मिथिलाक लोक देवता डिहवार ,ब्रह्मबाबा |
मिथिला केर सांस्कृतिक आ आध्यात्मिक पृष्टिभूमिक दिग्दर्शन बिना ओतय केर परम्परागत लोक देवताक चित्रणक बिना पुर्णता प्राप्त नहि कए सकैत अछि | ई लोक देवता सभ गाम समाजक राग रंग मे, सुख दुःख मे हँसी खुशी मे ,रोग शोक मे आपद विपद मे सर्वदा लोकक संग पाओल जैत छथि | मात्र लोक कंठ वा किम्बदन्तिये मे नहि प्रत्युत लोक साहित्य वा जनसाहित्य सेहो लोक देवताक चर्चा बिना अपूर्णे मानल जाएत | कोनो भूमि खंडक साहित्यक पूर्णता ओकर लोक साहित्यक समावेश बिना संभव नहि | लोक साहित्य मे ओतय केर सामाजिक ,आर्थिक ,राजनीतिक ,धार्मिक तत्कालीन जीवनक स्पष्ट बिम्ब प्रतिबिंबित रहैत अछि | मिथिला मे लोक साहित्यक प्रचार प्रसार आ प्रकाशन एखनहुँ अत्यल्पे अछि | ई प्रायः लोक कंठ आ खिस्से पिहानी मे समाहित अछि | मिथिला लोक आस्थाक प्रतीक अनेको देवी देवता छथि ,जे प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूप सँ मिथिलाक लोकक क्षण प्रतिक्षण सभ परिस्थिति मे संग पूरैत छथि | लोक श्रद्धा सँ वा अनिष्टक भय सँ हिनका प्रति आस्था ब्यक्त करैत अछि | ई देवता सजीव वा निर्जीव रूप में पूजित छथि | हिनका लोक आस्था मे देवत्वक श्रेणी प्राप्त अछि | इहो पौराणिक देवता सरिस दीप्तिमय ,गरिमामय प्रभामय ,कल्याणमय स्वरुपँ जनमानस में महत्व केँ प्राप्त कएने छथि | वेद ,पुराण ,उपनिषद ,आ धर्म शास्त्र मे हिनक सबहक नाम नहियो अंकित रहनेँ ई अपन क्षेत्र मे जनसाधारणक मध्य सर्व शक्तिमान छथि | मिथिलाक कोनो गाम एहन नहि भेटत जतय जंगल ,नदीक घाट ,वृक्ष आदि मे देवताक थान नहि हो | ई कतहु वृक्ष तर तँ कतहु गहवर मे प्रतिष्ठित भेटताह | ई लोक देवता लोक केर
भाग ,सोहाग ,सुख आनंद ,दुःख शोक ,रोग ,ब्याधि आदिक प्रदाता छथि | अतएब हिनका प्रति श्रद्धा आ आस्था कामना पूर्तिक आशा किम्बा अनिष्टक भय सँ सुदृढ़ अछि | एहि देवता लोकनिक गुण गरिमा ,प्रभाव पूजा परम्परा ,गाथागायन ,लोक गीत आ नृत्य मे सेहो समाहित अछि | ई देवता वैदिक देवता सँ भिन्न लोकक सामाजिक ,वा जातिक देवताक रूप मे सेहो निरुपित छथि | ई देवता लोकनि मिथिलाक सांस्कृतिक ,सामाजिक ,धार्मिक परम्परा केँ अक्षुण रखबा मे सेहो सहायक छथि |ई देवता सभ क्षेत्राधारित छथि आ अपना २ क्षेत्र मे सर्व शक्तिमान मानल जैत छथि | ई जातीय आधार पर सेहो अवस्थित छथि | ई जाति विशेष पर अपन विशेष प्रभावक कारणेँ परम्परा सँ अपन पैठ बनौने छथि | हिनका सबहक संख्या सेहो अगण्य अछि | सभ जातिक अलग अलग लोक देवता |किन्तु सभ गामक पाछू एकटा एहनो लोक देवता छथि जनिका प्रति गामक सभ लोक आ सभ जाति पूर्णतह आस्थावान रहैत छथि आ ओ छथि गामक डिहवार वा ब्रह्म बाबा | गामक कोनो पीपरक गाछ तर हिनक बास छन्हि जे ओहि समस्त गामक सभ तरहेँ रक्षाक भार अपना पर रखनेँ रहैत छथि | एहि ब्रह्म पूजाक प्रारम्भ कहिया सँ आ कोना भेल तकर कोनो प्रमाण प्राप्त नहि अछि |हिनक सम्बन्ध मे जे लोक कथा अछि से एना अछि | पूर्व काल मे यदि कोनो ब्राह्मणक सद्यः उपनीत बालक अकाल काल कवलित भय जाथि किम्बा गामक सज्जन महापुरुषसमाजसेवक त्यागी करुनाशील ब्यक्ति जे अपन जीवन काल मे आचरण ,स्वभाव सँ लोकोपकारी रहल होथि |ककरो कहियो अनिष्ट नहि कएने वा सोचने होथि |ओ गामक लोक वेद जीव जंतु ,गाछ वृक्ष ,माँटि पैन सबहक रक्षक होथि | एहने शुद्ध ,निश्छल परोपकारी बटुक कालान्तर मे ब्रह्म वा गामक डिहवार बनि जैत छथि | मिथिलाक प्रायः प्रत्येक गाम मे विभिन्न विभिन्न नामक डीहवार ब्रह्म भेटताह |एहि सँ सिद्ध होइछ जे ब्रह्म एकटा पद थिक जे गामक रक्षक हुतात्मा केँ प्रदान कएल जाइछ | ई गामक विशिष्ट आत्माक प्रतीक थिकाह | देवात्माक नाश नहि होइछ आ ने ओ भूत ,प्रेत ,पिशाच योनि मे जाइछ |कोनो दुष्टात्मा कथमपि ब्रह्म पद नहि पाबि सकैत अछि | ई हुतात्मा गामक कोनो पवित्र ब्यक्तिक देह मे प्रवेश कए ओकर आत्मा केँ माध्यम बनाय गामक भूत ,वर्त्तमान ओ भविष्यक कथा तथा आगत आपत्ति बिपत्ति ,रोग शोक ,सुख आनंद सँ जनगण के परिचि कराय आगामी संकट ,रोग सोग सँ बचबाक उपाय कहि जन साधारण केँ सचेत कए दैत छथि | ई ब्रह्म गामक कोनो शांत एकांत स्थान मे पीपरक गाछ तर रहैत छथि जे गामक ब्रह्मस्थान कहबैत अछि | पीपरक जड़ि मे माँटिक चबुतरा आ चबूतरा पर बाँस मे फहरैत लाल रंगक ध्वजा ,गाछ मे अनेकानेक भत्ता लपेटल जनउ आ पीरी पर चढाओल फूल ,पान
अक्षत ,दूध .पीठी आ घीक प्रवाहित धार ,कात मे सजाओल माँटिक घोड़ा | प्रत्येक गाम मे सालक कोनो दिन विशेष सामूहिक पूजा होइत अछि |ब्रह्मस्थान मे ढोल पिपही ताशा ,सिंगा बजैत अछि आ घरे घर सँ फूल पान प्रसाद चढ़ाय लोक पूजा करैत अछि आ ब्राह्मण कुमारि भोजन करबैत अछि | एहि प्रसंग मे लोक कंठ मे किछु परम्परागत गीत अछि जे गाम आ क्षेत्र भेदेँ अलग अलग अछि | आब हम अपन क्षेत्रिय ब्रह्मगीतक किछु बानगी पेश करए जा रहल छी ——
[१] ब्राह्मण बाबुक अंगना मे पीपरक गछिया ,ताहि तर ब्रह्म निवास हे !
घोडबा चढ़ल आबथि ब्राह्मण दुलरुआ ,शक्ति जोति कएने परगास हे !
बिछि बिछि मारू ब्राह्मण दुष्ट कसैया ,दुःख शोक करू ने बिनाश हे !
गाम केर सकल मनोरथ पुरियौ ,ब्रह्म बाबा अहीँ केर आश हे !
[२] प्रजा पूत पर घोर विपतिया ,ब्राह्मण बाबू सूनू ने पुकार यौ !
अहँ बिनु ब्राह्मण के दुःख हरतै, ब्रह्म बिनु सुन संसार यौ !
पापी पापक बाढ़ि भेल अछि ,घेरने शोक विकार यौ !
भुजा उठाय संहारू खल दल ,शक्ति अनेक प्रकार यौ !
[३] ब्राह्मण बाबुक छतिया मे देवता केर बल छन्हि, दुष्ट करथि संहार हे !
प्रजा पूत केर रक्षा खातिर ,हिरदय नीक विचार हे !
माथा गोखुर टीक जनेउआ चन्दन सुन्दर शोभ हे !
पहिरन पीताम्बर चकमक कर, पूजा पाठक लोभ हे !
अमृत लोटा हाथ मे सोटा ,भक्त ने करथि उदास हे !
जीव जंतुकेर पालक ब्राह्मण ,सभ जन हिनकर दास हे |
[४] चढ़ि के खरमुआ ब्राह्मण बाबू अएला भक्तक द्वारि हो रामा !
मुँह मे मन्त्र हाथ मे आशीष ,सुनि के भगत पुकार हो रामा !
अक्षत फूल ,चानन ,जनोऊ लय ,जे कर हिनक गोहारि हो रामा !
सदय रहथि सदिकाल भक्त पर ,सभटा
विपत्ति पछारि हो रामा |
[५] कमलक आसन देल बाबू ब्राह्मण ,गंगाजल स्नान यौ !
अक्षत मधु और दूध घी भोजन ,फल फूल और बीड़ा पान यौ !
आरव चौरक पीठी देलहुँ,चरखा सुतक
जनोउ यौ !
आफद विपद हरण करू ब्राह्मण ,दीन हीन सुधि लेहु यौ !
एहि प्रकारेँ मिथिलाक प्रत्येक गामक देवता ब्रम्हक। (ब्रह्मबाबा, डिहबार बाबा)