कर्णाटवंशक इतिहास

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कर्णाटवंशक इतिहास
ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे मिथिलाक अवस्था अत्यंत दयनीय आ सोचनीय भऽ गेल छल कारण एहिठाम कोनो प्रकारक केन्द्रीय सत्ता नहि रहि गेल छल आ चारूकातसँ महत्वाकाँक्षी शासक लोकनि एहिपर अपन गिद्ध-दृष्टि लगौने छलाह। पाल लोकनिक शासन डगमगा गेल छल। कलचुरी लोकनि पश्चिमसँ हिनका सबके ठेलैत–ठेलैत मिथिलाक एक कोनमे पहुँचा देने छल। १०७७ एवँ १०७९क बीच कलचुरी शोढ़देव गण्डकीमे स्नान कए दान कएने छलाह तकर प्रमाण एकटा शिलालेखसँ भेटइत अछि। एहिसँ इ नहि बुझबाक अछि जे कलचुरी लोकनिक शासन स्थायी रूपे मिथिलापर छ्ल। एहिसँ तात्पर्य एतबे बहराइत अछि जे मिथिलाक दुर्बल राजनैतिक स्थितिसँ लाभ उठा कए विभिन्न राज्य एहिपर अपन सत्ता स्थापित करए चाहैत छलाह। सन्ध्याकर नन्दीक रामचरितमे तत्कालीन राजनीतिक विशद विश्लेषण अछि आ ओहिसँ इहो ज्ञात होइछ जे विग्रहपाल तृतीय कर्णकेँ हरौने छलाह। हुनक नौलागढ़ आ बनगामक शिलालेखक उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। पाल लोकनि सेहो एहिकालमे सबठामसँ सिकुरिकेँ मिथिलेमे आबि गेल छलाह। कुब्जिकामतमक एकटा तालपत्र पोथीमे इ लिखल अछि जे रामपालदेव नेपालक शासक छलाह जाहिसँ स्पष्ट होइछ जे विग्रहपाल तृतीयसँ रामपाल धरि मिथिला आ नेपाल पाल साम्राज्यक मुख्य केन्द्र छल।
एहि अनिश्चित स्थितिसँ जखन सब दिशक महत्वाकाँक्षी शासक लाभान्वित होइत छलाह तखन दक्षिणक महत्वाकाँक्षी लोकनि किएक मुँह तकैत रहितैथ? हमरा लोकनिकेँ विल्हणक विक्रमाँकदेवचरितसँ ज्ञात होइछ जे चालुक्य सोमेश्वर (१०४०–१०६९) मालवाक परमारक राजधानी धारकेँ जीतलैन्ह आ भोजक भोजकेँ ओतएसँ पड़ाए पड़लन्हि आ डाहलक राजा कलचुरि कर्णक शक्तिकेँ सेहो नष्ट केलन्हि। हुनक पुत्र विक्रमादित्य षष्ठम अपन बापोसँ एक डेग आगाँ बढ़लाह आ गौड़ कामरूपपर दू बेर विजय प्राप्त केलन्हि। बाप–बेटाक लगातार उत्तर भारतीय विजयक फलस्वरूप उत्तर बिहार, बंगाल आ कन्नौजक राजनीतिमे क्रांतिकारी परिवर्त्तन भेल। ओ लोकनि नेपाल धरि आक्रमण केने छलाह। विक्रमादित्य षष्ठमक पुत्र सोमेश्वर तृतीय अपन एक शिलालेखमे कहने छथि जे आन्ध्र, द्रविड़, मगध आ नेपालक शासक लोकनि हुनका पैरपर अपन माथ टेकने छलाह।
चालुक्य आक्रमण एहि बातकेँ सिद्ध करइयै जे उत्तर भारतमे ताधरि परमार आ कलचुरि वंशक पतन प्रारंभ भऽ गेल होएत। जँ से नहि होएत तँ एक्के बेर चालुक्य लोकनि आन्हर बिहाड़ि जँका समस्त उत्तर भारत एवँ नेपालकेँ कोना आक्रांत केने रहितैथ? विरोधक संभावना नहि रहला संता ओ लोकनि प्रोत्साहित भए एहि सब क्षेत्रपर अपन प्रभुत्व जमौने हेताह। हिनकहि सब संग दक्षिणसँ बहुत रास कर्णाट सेनापति लोकनि उत्तर भारतमे अवतरित भेलाह आ एक्कहि संग उत्तर भारतमे मिथिला–नेपालमे कर्णाट नान्यदेवक, बंगालमे विजय सेनक आ कन्नौजमे चन्द्रदेव गहढ़वालक उत्थान संभव भेल। गहढ़वाल लोकनि बढ़ैत–बढ़ैत गंगाक दक्षिणमे मूंगेर धरि पहुँच चुकल छलाह।
कर्णाट लोकनिक उत्पत्ति:- जनक वंशक परोक्ष भेलापर मिथिलाक अपन कोनो राजवंशक राज्य मिथिलामे नहि भेल छलैक। १०९७मे मिथिलामे कर्णाट वंशक स्थापना ताहि हिसाबे एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल जा सकइयै। मुदा इ कर्णाट लोकनिकेँ छलाह आ कोना मिथिलामे आबिकेँ बसलाह आ शासक भेलाह से पूर्ण रूपेण अखनो धरि ज्ञात नहि अछि आ हमरा लोकनि निश्चित रूपे इ नहि कहि सकैछी जे कर्णाट लोकनि अमूक आ अमूक छलाह। जेना कि हम पहिने देखि चुकल छी कि ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे मिथिला, कन्नौज आ बंगालमे करीब करीब एक्के समय तीनटा स्वतंत्र राज्यक स्थापना भेल छल आ ओ तीनू राज्य तत्कालीन राजनीतिमे महत्वपूर्ण भूमिका अदा केने छल। मिथिलाक व्यक्तित्वक पूर्ण विकास एहिवंशक शासन कालमे भेल आ तहियेसँ मिथिलाक प्रसिद्धि बढ़लैक।
कर्णाट लोकनि अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहैत छलाह। सेनवंश शासक सेहो अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहैत छलाह। हिनका लोकनिक सम्बन्धमे विद्वानक बीचमे पूर्ण मतभेद अछि। इ लोकनि कर्णाट छलाह एतवा धरि निश्चित अछि कारण नान्यदेव अपनाकेँ कर्णाट कुलभूषण कहने छथि आ सामंत सेन अपनाकेँ कर्णाट क्षत्रियक कुल शिरोमणि। हेमचन्द्र राय चौधरीक मत छन्हि जे देवपालक मूंगेर ताम्रलेखमे जाहि कर्णाट लोकनिक उल्लेख अछि सम्भवतः उएह कर्णाट लोकनि बादमे चलिके अलग–अलग राज्यक स्थापना केलन्हि। एहिमतक समर्थन केनिहार एक गोटएक कथन इ अछि जे जखन मगध– मिथिलामे पालवंशक ह्रास प्रारंभ भेल तखन उएह कर्णाट लोकनि (जे अखन धरि एहि क्षेत्रमे चुप्पी साधने छलाह) ओहि स्थितिसँ लाभ उठाके विस्तार केलन्हि आ कर्णाट सत्ताक स्थापना सेहो। एकमत इहो अछि जे राजेन्द्र चोलक आक्रमणक समयमे बहुत रास कर्णाट सैनिक एम्हर आएल छलाह आ राजेन्द्र चोलक घुरि जेबाक वाद एहिठाम रहि गेलाह आ एम्हुरका राजनीतिमे सक्रिय भाग लेबए लगलाह। राजेन्द्र चोल अपनाक गंगाइकोण्ड सेहो कहने छथि जाहिसँ प्रमाणित होइछ जे विजयाभियानक क्रममे इ गंगा धरि आएल छलाह। परंतु सब साधनक सामान्य अध्ययन केला उत्तर इ प्रतीत होइछ जे राजेन्द्र चोलक अभियानक विशेष प्रभाव तत्कालीन उत्तर भारतक राजनीतिपर नहि पड़ल छल। तैं इ कहब जे हुनका संगे आएल कर्णाट लोकनि एतए बसलाह से वैज्ञानिककेँ नहि बुझि पड़इयै। देवपालसँ मदनपाल धरि जतवा जे पाल अभिलेख अछि ताहि सबमे गौड़, मालव, खस, हूण, कुलिक, कर्णाट, लाट्, चाट, भाट, आदि शब्दक मात्र औपचारिक व्यवहार अछि आ एहि शब्दसँ मिथिला अथवा बंगालक कर्णाटकेँ जोड़ब समीचीन नहि बुझाइत अछि।
कर्णाट शासक लोकनि कर्णाटसँ आबि मिथिलामे बसल छलाह इ सर्व सम्मतिसँ स्वीकृत अछि– विवाद एतवे अछि जे ओ लोकनि कखन, कहिआ आ कोना एतए आबिकेँ रहलाह आ कोन रूपे सत्ता हथिऔलन्हि। नेपाली परम्परा आ वंशावलिमे सेहो मिथिलाक नान्यदेवक वंशकेँ कर्णाट क्षत्रिय कहल गेल छैक। नान्यदेव भरतक नाट्यशास्त्रपर एकटा टीका लिखने छलाह जे सर्व प्रसिद्ध अछि आ ओहिक्रममे ओ अपना सम्बन्धमे निम्नलिखित पदवी सबहिक प्रयोग कएने छथि–नान्यपति, नान्य, महासामंताधिपति धर्मावलोक, धर्माधारभूपति, मिथिलेश, एवँ कर्णाट कुलभूषण। नान्य शब्दक व्यवहार हमरा लोकनि अन्हराठाढ़ी अभिलेखमे सेहो भेटइत अछि। नान्य शब्दक उत्पत्ति द्रविड़ शब्द ‘नन्नीय’सँ भेल अछि। नान्यदेव अपन टीकामे जतवा देशी रागक उल्लेख केने छथि से सब कर्णाट शैलीक राग थिक आ ओहुसँ इ सिद्ध होइत अछि जे नान्यदेव कर्णाटकक रहल होएताह अथवा कर्णाटकसँ हुनक सम्बन्ध कोनो ने कोनो रूपे अवश्य रहल हेतन्हि। चाहे कारण जे भी रहल हो, एतवा धरि निश्चित अछि जे ग्यारहम शताब्दीक अंतिम चरणमे कर्णाट लोकनि उत्तर भारतक राजनीतिमे सक्रिय रूपसँ भाग लेमए लागल छलाह।
एक मत इहो अछि जे कलचुरि गंगेयदेवक संग जे कर्णाट लोकनि सैनिकक रूपमे एतए आएल छलाह उएह सब बादमे चलिकेँ शासक भऽ गेलाह परञ्च इहो मत ने सर्वमान्य भऽ सकइयै। एहिठाम केवल एतवे स्मरण राखब आवश्यक अछि जे जँ गंगेय देवक आक्रमण मिथिलापर भेवे कैल होन्हि तँ से नान्यदेवक प्रादूर्भावसँ ६०–७० वर्ष पूर्वे भेल हेतैन्ह आ ओहना स्थिति हुनक (गंगेयदेव) सैनिक मिथिलापर अधिपत्य स्थापित केने हेथिन्ह से संभव नहि बुझाइत अछि। तैं एहि तर्ककेँ मानब असंभव।
रामकृष्ण कविक अनुसार राष्ट्रकूट लोकनि सेहो कर्णाट कहबैत छलाह आ जखन दक्षिणमे हुनक अवसान समीप एलन्हि तखन ओ लोकनि ओहिठामसँ हँटि उत्तर दिसि बढ़लाह आ कन्नौज, मिथिला आ बंगालमे अपन शासन स्थापित केलन्हि। एहि कथनक कोनो शुद्ध ऐतिहासिक अथवा परम्परागत आधार नहि अछि। राष्ट्रकूट इतिहासक मर्मज्ञ स्वर्गीय सदाशिव अनंत अल्तेकरसँ हम एहि सम्बन्ध जखन विचार विमर्श कैल तखन ओ कहने छलाह जे मिथिलामे कहियो कोनो रूपे राष्ट्रकूट लोकनिक शासन ने छल आ ने ओकर कोनो प्रमाणे अछि। तैं राष्ट्रकूटकेँ एहिठाम कर्णाटसँ मिलाएब उचित नहि बुझना जाइत अछि।
सुप्रसिद्ध फ्रेंच विद्वान सिल्वाँ लेवीक अनुसार मिथिलामे कर्णाट वंशक उत्पत्तिक सम्बन्ध सोमेश्वर चालुक्य एवँ ओकर वंशजक उत्तर भारतपर आक्रमणसँ छैक आ इएह सबसँ समीचीन तर्क बुझियो पड़इत अछि। विल्हणक विक्रमाँकदेव चरितमे एहि आक्रमणक विवरण भेटइयै आ पिता–पुत्र–पौत्रक अभियानक समय सेहो एहन अछि जे मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक स्थितिसँ मिलैत–जुलैत अछि। एहि आक्रमणक फलस्वरूपे बहुत रास कर्णाट वीर, सैनिक एवँ सामान्य लोक सब एम्हर आबिकेँ मिथिला, मगध, वंग, कन्नौज आदि स्थानमे बसि गेल छलाह। एहि आक्रमणक फले उत्तर भारतक परमार आ कलचुरि राजवंशक पराभव सेहो भेल छल। क्षेमेश्वरक चण्डकौशिकमे एकटा कथा अछि जाहिसँ मान (ज्ञात) होइछ जे पालवंशक महिपाल कोनो कर्णाटराजकेँ हरौने छलाह–
“य संश्रित्य प्रकृति गहनामार्य्या चाणक्यनीति
हत्वानंदान् कुसुमनगरं चन्द्रगुप्तो जिणाय
कर्णाटत्वं धुवमुपगतानत्व तानेव हंतुं
दादैपोघः स पुनरभवत् श्री महीपाल देवः”॥
आब इ कर्णाट राजकेँ छलाह से अखुनका स्थितिमे कहब कठिन। संभवतः कर्णाटकेन्दु विक्रमादित्य षष्ठम गौड़पर आक्रमण केने होथि। विक्रमादित्यक नागपुर प्रशस्तिसँ त एतवा स्पष्ट अछि जे कर्णाट लोकनिक सम्पर्क चेदिराज कर्णसँ सेहो छलन्हि आ ओ हिनके लोकनिक मदतिसँ मालवाकेँ पराजित केने छलाह। मुदा इ कहब एहि सहयोगक फले मिथिलामे कर्णाट नान्यदेवकेँ राज्य स्थापित करबामे सुविधा भेलैन्ह से तर्क संगत नहि बुझि पड़इयै कारण एहि दुनू घटनामे तिथिक जे अंतर अछि से ततेक व्यापक जे दुनूकेँ जोड़ब असंभव। क्षेमेश्वर एवँ विक्रमादित्य षष्ठमक आक्रमणक फले जे कर्णाट सैनिक एवँ सेनापति लोकनि एम्हर एलाह सैह राज्यक स्थापनामे समर्थ भेल छलाह कारण एम्हर आएल सेनापति लोकनि एम्हुरका स्थिति देखि एम्हरे रहि जाएब उचित बुझलन्हि कारण एम्हर रहबामे दुनू हाथमे लड्डुये–लड्डु छल। सेन वंशक संस्थापक अपनाकेँ कर्णाट कुललक्ष्मीक संरक्षक कहने छथि। विक्रमादित्य षष्ठम आ क्षेमेश्वर तृतीय अपन प्रभाव नेपाल धरि बढ़ौने छलाह। एकर बादसँ विभिन्न भारतीय राजा लोकनि नेपालपर अपन प्रभाव बढ़ेबाक प्रयास केलन्हि।
पाल लोकनि जखन कलचुरिक संग लटपटाएल छलाह तखने चालुक्य लोकनिक आक्रमणकेँ फले उत्तर भारतक कैक स्थानपर कर्णाट लोकनि पसरि चुकल छलाह आ ओहिठामक राजनीतिमे हस्तक्षेप करब शुरू कऽ देने छलाह। एहि तथ्यक प्रमाण हमरा विक्रमाँकदेव चरितसँ भेटइत अछि। १०५३ ई. क आसपाससँ चालुक्य लोकनि एम्हर सक्रिय रूपें हुलकी–बुलकी देमए लागल छलाह। १०५३ कऽ केलावाड़ी अभिलेखसँ इ ज्ञात होइछ जे सेनानायक भोगरस वंगकेँ जीति लेने छलाह। इ सोमेश्वर प्रथमक सेनानायक छलाह। चालुक्यक एकटा सामंत, जकर नाम आच छलैक, सेहो विक्रमादित्य षष्ठमक समयमे वंग धरि आक्रमण केने छलाह। एहि दुनू घटनासँ इ स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे हिनके लोकनिक संग आएल सेनापति, सेनानायक, सामन्त, सिपाही आदि व्यक्ति एम्हुरका स्थिति देखि एम्हरे रहि जाइ जाएत गेलाह। नान्य अथवा हुनक पूर्वज एहने एकटा सामंत–सेनापति रहल हेताह जे नेपालक तलहट्टी मिथिलाकेँ उपयुक्त बुझि ओहिठाम बसि गेल हेताह आ चालुक्य वंशक वापस भेलाह अपन स्वतंत्र सत्ता घोषित कए मिथिला आ नेपालक शासक बनि गेल हेताह। शासक भेला उत्तरो ओ अपनाकेँ महा सामंताधिपति कहैत रहलाह से एहिबातक द्योतक थिक जे राजा हेबाक पूर्व हुनक कि स्थिति छल।
नान्यदेव (१०९७–११४७):- हम उपर देखि चुकल छी जे चालुक्य आक्रमणक समयसँ चालुक्य सेनाक विशेष भाग मिथिला आ बंगालमे बसि गेल छल। नान्यदेव मिथिलामे कर्णाट वंशक संस्थापक भेलाह। एहिठाम इ स्मरण राखब आवश्यक जे एहि वंशक तत्वावधानमे समस्त पूर्वी भारत मिथिले एक गोट एहेन राज्य छल जाहिठाम २२७ वर्ष धरि (१०९७–१३२४) मुसलमान लोकनिक कोनो राजनीतिक प्रभाव नहि जमि सकलैक। राजनीतिक एवँ साँस्कृतिक दृष्टिकोणसँ नान्यदेवक शासन काल तँ महत्वपूर्ण अछिये परञ्च कर्णाटवंशक शासनकेँ स्वर्णयुग कहल गेल छैक किएक तँ एहि युगमे मिथिलामे लगभग १४००–१५०० वर्षक बाद स्वतंत्र संगठित राज्य एवँ शासन प्रणालीक स्थापना भेलैक आ कला, साहित्यक संगहि संग मैथिली भाषाक विकास सेहो भेलैक। नान्यदेव अपन दीर्घ राजकालमे पाल, कलचुरि, सेन आ गहढ़वालक पारस्परिक संघर्षक मध्य अपन दूरदर्शिता, नीतिकुशलता, एवँ वीरतासँ अपन राज्यक स्थापना केलन्हि आ उत्तरोत्तर ओकरा शक्तिशाली बनौलन्हि। ओ अपना वंशक संस्थापक संगहि संग एकटा सर्वश्रेष्ठ शासक सेहो छलाह जनिक स्थान तत्कालीन भारतीय राजा सबहिक मध्य महत्वपूर्ण छल। नान्यदेव १०९७ इ.मे सिमरौनगढ़मे राजगद्दीपर बैसलाह आ कर्णाट वंशक स्थापना केलन्हि। निम्नलिखित श्लोकसँ उपरोक्त तिथिक भान होइयै आ कहल गेल अछि जे इ लेख सिमरौनगढ़ (जे सम्प्रति नेपालमे अछि)सँ प्राप्त भेल अछि।
“नन्देन्दु विन्दु विधु सऽम्मितशाकवर्षे
सच्छ्रविणे सितदले मुनिसिद्धितिथ्याम्।
स्वा(ती) तौ शनैश्चर दिन करिवैर लग्ने
श्री नान्यदेव नृपतिर्व्यदधीत वास्तुम्”
शक् १०१९ (=१०९७ ई.)क स्वाती नक्षत्रमे शनि दिन(श्रावण सप्तमी)केँ नान्यदेव राजा भेला–याने मिथिला राज्यक स्थापना केलन्हि।
१६२८ ई. भतगाँवक राजा जगज्योतिमल्ल रचित मुदितकुवलयाश्वसँ सेहो ज्ञात होइछ जे नान्यदेवक १८ जुलाइ १०९७केँ मिथिला राज्यक स्थापना केलन्हि। मिथिला राज्यक स्थापनाक क्रममे नान्यदेवक स्थान सर्वप्रथम छन्हि आ तकर प्रमाण हमरा नेपालक परम्परा एवँ वंशावली आ शिलालेखसँ भेटइत अछि। प्रतापमल्लक शिलालेखमे सेहो एहि क्रमे नाम अछि। नान्यदेव मिथिला राज्यक स्थापना मिथिला–नेपालक सिमानपर सिमरौनगढ़मे केने छलाह आ ओहिठामसँ चारूकात पसरल छलाह।
मैथिल परम्परामे एकटा कथा सुरक्षित अछि जे एवँ प्रकारे अछि। कहल गेल अछि जे प्रारंभमे नान्यदेव नीलगिरी प्रांत (दक्षिण भारत)मे राज्य करैत छलाह आ ओतहिसँ ओ मिथिला प्रांत आएल छलाह। घुमैत–फिरैत ओ सीतामढ़ी जिलांतर्गत नान्यपुर परगन्नास्थ पुपरी ग्रामक समीप कोइली ग्राममे विश्राम केलन्हि। एकदिन ओ अपन खेमाक कातसँ एकटा विषधर सर्पकेँ जाइत देखलन्हि जाहिपर निम्नलिखित श्लोक लिखल छल–
“रामोवेत्ति नलोकेत्ति वेत्ति राजा पुरूखाः
अलर्कस्य धनं प्राप्य नान्यो राजाभविष्यति”।
परम्परा केकटा जँ देखल जाइक तँ एहिसँ इएह सिद्ध होइछ जे अलक्षित धनक प्राप्ति कए नान्यदेव मिथिलाक राजा हेताह। कहल जाइत अछि जे हुनका एहेन धन प्राप्त भेल छलन्हि जाहिसँ हुनका राज्यशक्ति अर्जन करबामे सहायता भेटल छलन्हि। ओ दक्षिणमे नीलगिरीमे राजा छलाह अथवा नहि से कहब तँ कठिन अछि मुदा एतबा धरि ज्ञातव्य जे मिथिला पहुँचलाहपर हुनका किछु अलक्षित धनक लाभ अवश्य भेलन्हि आ ओ ओहिसँ लाभान्वित भए मिथिला राज्य प्राप्त करबामे अग्रसर भेलाह। तखन मिथिलामे कोनो प्रकारक विरोधक संभावना नहि रहि गेल छल।
नान्यदेवकेँ कामरूपक धर्मपालक समकालीन कहल गेल छन्हि। धर्मपालक शासनकालमे कालिका पुराणक संकलन भेल छल आ ओहि कालिका पुराणमे सबसँ प्राचीन उल्लेख भरत भाष्यक अछि जकर लेखक नान्यदेव छलाह। ओहि कालमे मिथिलासँ बासतरिया ब्राह्म लोकनिक परिवार असम गेल छल। मिथिला ताहि दिन धरि तंत्रक प्रमुख केन्द्र बनि चुकल छल आ कालिका पुराणक संकलनक मूल उद्देश्य छल मिथिला आ असमक बीच एक प्रकारक साँस्कृतिक सम्पर्क स्थापित करब। नान्यदेव, जे कि अभिनव गुप्तक नामे सेहो प्रसिद्ध छलाह, प्रसंग के.सी.पाण्डेयक विचार छन्हि जे ओ १०१४–१५ इ.मे भेल होएताह मुदा से कोनो रूपे मान्य नहि भऽ सकइयै आ एहि प्रसंगक तर्क हम आनठाम उपस्थित कऽ चुकल छी (द्रष्टव्य–काशी प्रसाद जायसवाल संस्थान द्वारा प्रकाशित बिहारक बृहत् इतिहास–अंग्रेजीमे)।
सिमरौनगढ़ शिलालेखमे नान्यदेवक तिथि स्पष्ट अछि जकर संकेत हम पूर्वहिं दऽ चुकल छी। नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दासक एकटा बिनु तिथिक शिलालेख, जे अन्हराठाढ़ी गाममे अछि, जे पाठ निम्नलिखित अछि–
“ॐ श्रीमन्नान्य पतिर्जेता गुणरत्न महार्णवः
यत्कीर्त्यां जनितम् विश्वे द्वितीय क्षीर सागर।
मंत्रिणा तस्यन्नान्यस्य क्षत्र वंशाब्ज भानुना
दओयकारित श्रीधरः श्रीधरेणच
यस्यास्य बाल्मीकेर विजयो प्रबन्ध जलधौ
व्यासस्य चात्यद् भुत्ते वाद्यैरण वद्य गद्य
चतुरैन्यैश्च विस्तारिते अस्माकम्
क्वर्पुनग्गिरामवसरः
कोवाकारोत्यादर यद्वालबचोप्य”।
१६४८क प्रताप मल्लक शिलालेखमे नान्यदेवक वंशक क्रम एवँ प्रकारे अछि–
“आसीत् श्री सूर्यवंशे रघुकुल नृपजो रामचन्द्रो
नृपेशः तद्वंशो नान्यदेवोऽवनि पतिरभवत सुतः
गंगदेवः। तत्पुत्रोऽभून्नृसिंहो नरपतिरतुलस्तत्सुतो
रामसिंहः तज्जः श्री शक्तिसिंहो धरणिपतिरभत्
भूप भूपालसिंह तस्मात्कर्णाट चूड़ामणि
विहरियुत्सिंह देवौस्यवंशे”।
ओहिकाल राजनीतिक परिस्थितिक अध्ययनसँ हमरा लोकनि नान्यदेवक उचित मूल्याँकन कऽ सकैत छी। बंगालमे सेन वंशक स्थापना भऽ चुकल छल आ कन्नौजमे गहढ़वाल राज्य सेहो जमि रहल छल। मूंगेरक क्षेत्र पाल लोकनि सिमैटिकेँ आबि गेल छलाह। जखन पाल, सेन आ गहढ़वाल अपने–अपनेमे बाँझल छलाह तखन नान्यदेव मिथिलासँ नेपालपर आक्रमण केलन्हि आ ओकरा अपन राज्यमे मिला लेलन्हि। सेन सबकेँ हरेबाक हेतु नान्यदेव गहढ़वालसँ बढ़िया सम्बन्ध रखैत छलाह आ एकर प्रमाण हमरा विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ सेहो भेटइत अछि जाहिमे लिखल अछि नान्यदेवक पुत्र मल्लदेव राजा जयचन्द्रक ओतए सम्मानित भावें रहैत छलाह। विजयसेनक देवपाड़ा शिलालेखसँ इ ज्ञात होइछ जे नान्यकेँ पराजित कए विजयसेन गिरफ्तार कऽ लेने छलन्हि। सेन आ कर्णाट वंशक वीच बरोबरि खटपट होइते रहैत छल आ पूर्वी मिथिला (सहरसा–पूर्णियाँ)क क्षेत्रमे दुनूकेँ कोनो ने कोनो रूपें झंझटि चलिते रहन्हि। एहि हेतु नान्यदेव गहढ़वाल लोकनिक संग नीक सम्बन्ध रखैत छलाह। नान्यदेव मिथिलामे मात्र कर्णाटवंशक स्थापनेटा धरि नहि केलन्हि अपितु एकरा दृढ़ सेहो केलन्हि आ समस्त मिथिलापर अपन एकक्षत्र शासन कायम केलन्हि। गण्डकीसँ कौशिकी धरि आ हिमालयसँ गंगाधरि अपन राज्यक विस्तार करबामे ओ सक्षम भेला। मिथिलाक इतिहासक संदर्भमे नान्यदेवकेँ उएह स्थान प्राप्त छन्हि जे समस्त भारतक इतिहासक संदर्भमे चन्द्रगुप्त मौर्यकेँ। जनक वंशक पश्चात् एहन प्रशस्त राज्य मिथिलामे आ कहिओ नहि बनल। ओहि समयमे मिथिलाक जे राजनैतिक स्थिति छलैक ताहिमे नान्यदेव एहिसँ बेसी किछु कइयो नहि सकइत छलाह। राज्यक स्थापनाक संगहि संग ओकरा सुदृढ़ बनेबाक हेतु ओ संगठित शासन विधानक जन्म सेहो देलन्हि।
नान्य अपनाकेँ श्रीमहासामंताधिपति, श्रीमन्नान्यपति, कर्णाटकुलभूषण, धर्माधर भूपति, राजनारायण, नृपमल्लमोहन मुरारी, प्रत्ययग्रवानिपति, मिथिलेश्वर, सामंतधिपति आदि–कहने छथि। अन्हराठाढ़ी अभिलेखमे हुनका ‘श्रीमान’ कहल गेल छन्हि। एहि सबसँ हुनक पूर्वक स्थितिक भान होइयै आ बुझि पड़इयै ओ पूर्वमे सामंत रहल होएताह आ बादमे शासक भेल होएताह। ताहि दिनक अनिश्चित राजनैतिक स्थितिमे ओ मिथिलाक व्यक्तित्वक विकास केलन्हि आ मिथिलाकेँ एकटा रूप देलन्हि। मिथिलाक चौहद्दीक परिभाषा जे हमरा लोकनि देखइत छी तकरा राज्यक रूपमे चरितार्थ उएह केलन्हि आ तैं ओ प्रशंसनीय छथि। ओ स्वयं एक पैघ कूटनीतिज्ञ एवँ सफल योद्धा छलाह। चम्पारणमे राजधानीक स्थापना करब (सिमरौनगढ़) हुनक कूटनीतिज्ञताक परिचय देने छथि। ताहि दिनमे दरद–गण्डकी क्षेत्र धरि पश्चिमक राज्य छल आ मिथिलाक सीमा ओहि राज्यसँ मिलैत छल आ ओम्हर यशः कर्णक नजरि सेहो एहि दिसि लगले छल। तैं नान्यदेव ओहि खतरासँ अपन राज्यक रक्षार्थ ओम्हरे अपन राजधानी बनौलन्हि जाहिसँ पश्चिम आ उत्तर दुनूक सुरक्षा हो। एहि विचारसँ ओ अपन राज्यक राजनीतिकेँ सेहो संचालित करैत छलाह।
नान्य जे टीका लिखने छथि ताहिमे ओ अपनाकेँ सौवीर आ मालवक विजेता घोषित कएने छथि–
“जित सौवीर वीरेण सौवीरक उदहृतः”
“लुप्तमालव भूपाल कीर्तिर्मालव पञ्चमीम्”
“बाँगलि केति कथिता मिथिलेश्वरेण”।
“श्रीरागस्यैक भूमिर्ललित मधुरवाग्भिंत
बंगाल–गौड़, प्रौढ़ प्राग्भारसारः
कुकुभमुभयथासाधयन्विश्रमुच्चैः।
संग्रामे भैरओयः प्रबिलसति
मुहुर्धूर्जरीयस्य कण्ठे, सौवीरो
ध्यायमोनं व्यधितकृतमतिः भूपतिः नान्यदेवः”॥
सौवीर, मालवा, बंगाल आ गौड़केँ पराजित करबाक श्रेय ओ अपनापर लैत छथि–सौवीर, मालवापर संभवतः ओ मिथिलेश्वर होएबाक पूर्वहिं विजय प्राप्त केने होएताह। बंगालक प्रश्न लऽ कए हुनका सेन वंशसँ झंझटि भेलन्हि तकर वर्णन उपर कऽ चुकल छी आ संभव जे अंततोगत्वा हुनका बंगाल–गौड़पर विजय प्राप्त भेल होन्हि। बंगाल आ गौड़क प्रश्नपर नान्यदेव आ विजयसेनक वीच मनोमालिन्य भेल होन्हि अथवा रहैत होन्हि से संभव। दिनेश चन्द्र सरकार सेनवंश आ कर्णाटवंशक सब तथ्यक अध्ययन केलाक पछाति एहि निर्णयपर पहुँचल छथि जे विजयसेनकेँ नान्यदेवक विरूद्ध कोनो खास सफलता नहि भेटल छलन्हि। गिरीन्द्र मोहन सरकार सेहो एहिबातसँ हमरा लोकनिकेँ अवगत करौने छथि जे सेनक मिथिलामे शासन अथवा राज्य हेबाक कोनो ठोस प्रमाण नहि अछि। देवपाड़ा शिलालेखक अध्ययनसँ एतबे प्रमाणित होइछ जे विजयसेन नान्यदेव आ राघवक घमण्डकेँ चूर केलन्हि।
मिथिलामे अपन अस्तित्वकेँ सुदृढ़ कए आ अपन चारूकात विस्तारक कोनो आशा नहि देखि नान्यदेव नेपाल दिसि अपन ध्यान लगौलन्हि। ताहि दिनमे नेपालोमे कैक गोट राज्य छल आ ओहिमे आपसमे आधिपत्यक हेतु संघर्ष होइत रहैत छल। नान्यदेव एहि स्थितिसँ लाभ उठौलन्हि आ नेपालक राजनीतिमे हस्तक्षेप करब प्रारंभ केलन्हि। नेपाली परम्पराक अनुसार ओ समस्त नेपालकेँ अपना अधीनमे केलन्हि आ नेपालक स्थानीय शासक, पाटन आ काठमाण्डुक जयदेव मल्ल आ भात गाँवक आनंद मल्लकेँ गद्दीसँ उतारलन्हि। नेपाली परंपराक अनुसार नेपालक राजवंशकेँ नान्यदेव समाप्त नहि केलन्हि–बुझि पड़इयै जे जखन ओ लोकनि नान्यदेवक सत्ताकेँ स्वीकार कऽ लेलथिन्ह तखन नान्यदेव हुनका लोकनिकेँ अपन अधीनस्थ शासक बनाकेँ छोड़ि देलथिन्ह। सामंतवादी व्यवस्थाक इ एकटा प्रमुख बात छल। नेपालक इतिहासकार दिली रमण रेगमीक अनुसार नान्यदेव सम्पूर्ण नेपालकेँ नहि जीतने छलाह आ हुनका ११४१मे फेर दोसर बेर नेपालपर आक्रमण करए पड़ल छलन्हि। नान्यक परोक्ष भेलापर पुनः ठाकुरी वंशक लोग अपन आधिपत्य बना लेने छलाह। नेपालपर नान्यदेव जे कर्णाट वंशक स्थापना केलन्हि तकरा हुनक वंशज हरिसिंह देव बादमे सुदृढ़ केलथिन्ह।
विजेता, राज्यनिर्माता, कुशल प्रशासक एवँ संगठन कर्त्ताक अतिरिक्त नान्यदेव स्वयं एक बहुत पैघ विद्वान छलाह आ भरतक नाट्यशास्त्रपर एक गोट टीका सेहो लिखने छलाह। श्रीधर दास एवँ रत्नदेव नान्यदेवक प्रधानमंत्री छलथिन्ह। श्रीधर दासक पिता बटुदास सेनक महासामंत छलाह आ श्रीधर दास सेहो महामाण्डलिक छलाह। हिनक मूल राजधानी सिमरौनगढ़ (नेपाल)मे छलन्हि आ दोसर राजधानी नान्यपुरमे। नान्यदेव ५० वर्ष धरि राज्य केलन्हि आ सब किछु सफलतापूर्वक उपलब्ध कए मिथिला राज्यकेँ एकटा स्वरूप प्रदान केलथि। मिथिला तहियासँ आइ धरि संस्कृतिक एकटा प्रधान केन्द्र बनल अछि। राजनैतिक इतिहासक महत्वक लोप भेलो उत्तर सांस्कृतिक दृष्टिकोणसँ नान्यदेवक शासनक अपन अलग महत्व अछि।
मल्ल देव:- विद्यापति अपन पुरूष परीक्षामे मल्लदेवकेँ युवराज कहने छथि परञ्च मिथिलामे कर्णाट वंशक शासन श्रृंखलामे नान्यदेवक बाद गंगदेवक नाम अवइयै तैं मल्लदेवक युवराजक संज्ञा एकटा समस्या बनि गेल अछि। सभ साधनक अध्ययन केलापर इ प्रतीत होइछ जे नान्यदेवक बाद मिथिला राज्य संभवतः दुनू भाइमे बटि गेल छल आ दुनू गोटए अपन–अपन क्षेत्रपर शासन करैत हेताह। पुरूष परीक्षाक अनुसार नान्यदेवक पुत्र मल्लदेव बड्ड साहसी आ स्वाभिमानी छलाह। ओ किछु दिन धरि कन्नौजक जयचन्द्रक ओतए छलाह आ फेर ओहिठामसँ चिक्कौर राजाक ओतए आबिकेँ रहला। मैथिली अनुश्रति इ कहल जाइत अछि जे दुनू भाएमे पटइत नहि छलन्हि आ तैं जखन गंगदेव नेपाल एवँ वंगक संग बाझल छलाह तखन मल्लदेव हुनक मदति नहि केने छलथिन्ह। जयचन्द्र मल्लदेवक वीरतासँ बड्ड प्रभावित छलाह। सहरसा जिलामे मलडीहा आ मल्हनी गोपाल मल्लदेवक नामपर बसल अछि। भीठ भगवानपुरमे मंदिरमे एकटा अभिलेख अछि जाहिमे लिखल अछि–“ॐ श्री मल्लदेवस्य”। किंवदंती अछि जे भीठ भगवानपुर मल्लदेवक राजधानी छल। भीठ भगवानपुर गंधवरिया राजपूतक केन्द्र सेहो मानल गेल अछि आ गंधवरिया परम्परामे सेहो एकटा मल्लदेवक नाम अवइयै। तैं इ कोन मल्लदेवक शिलालेख थिक से कहब असंभव।
विभिन्न तथ्यक परीक्षणक बाद हम एहि निर्णयपर पहुँचल छी जे नान्यदेवक पछाति मिथिला राज्यक विभाजन भेलैक आ ओकर पूर्वी भागपर मल्लदेवक आधिपत्य रहलैक। पश्चात मल्लदेवक वंशज सेहो एहि क्षेत्रपर शासन केलन्हि जकर अप्रत्यक्ष रूपें कनेको प्रमाण भेटइत अछि। राज्यक बटबारा भऽ गेलसँ कर्णाट वंशक प्रभाव किछु घटि अवश्य गेल होएतैक आ तैं नान्यदेवक पछाति हमरा लोकनिकेँ कर्णाट राज्यक विशेष विस्तार देखबामे नहि अवइयै।
स्वर्गीय कालिकारज्जन कानूनगोय एकठाम लिखने छथि जे १२१३–१२२७क बीच मिथिलामे कोनो कर्णाट अरिमल्लदेवक शासन छल मुदा एहिठाम स्मरणीय जे एहि नामक कोनो शासक मिथिलामे नहि भेल छथि। नेपालमे एहि नामक शासक भेलहि अवश्य परञ्च ओ कर्णाटवंशक नहि छलाह आ ने ताहि दिनमे नेपालक कोनो प्रभाव मिथिलाक कोनो भागपर छल। इहो संभव अछि जे कानूनगोय महोदय मल्लदेवकेँ अरिमल्लदेव बुझि लेने होथि। एकर कारण हमरा बुझने इ अछि जे मिथिला परम्परामे कहल गेल छैक जे नान्यक एकटा पुत्र नेपालमे शासन करैत रहथिन्ह आ चूंकि नान्यक एकटा पुत्रक नाम मल्लदेव छलन्हि तैं कानूनगोय साहेब ओहि नामकेँ अरिमल्लदेवक संगे मिझ्झरक देने होथि। तैं हम अपन एक लेखमे (जे आनठाम प्रकाशित अछि) मल्लदेवकेँ मिथिलाक एकटा विसरल राजाक संज्ञा देने छी। मल्लदेव पूर्वी मिथिलापर तँ राज्य करिते छलाहे आ संगहि नेपालक किछु भागपर सेहो भीठ भगवानपुर एकटा केन्द्रीय स्थल छल तैं ओकरा ओ अपन राजधानी बनौलन्हि कारण ओहिठामसँ ओ अपन शासन बढ़िया जकाँ दुनूठाम चला सकैत छलाह। कहल जाइत अछि जे हुनके दरबारमे स्मृतिकार वर्द्धमान उपाध्याय सेहो रहैत छलाह जनिक एकटा शिलालेख आसी (मटिआरी) (हाटी परगन्ना)सँ उपलब्ध अछि। ओ मल्लदेवक समयमे धर्माधिकरणक पदपर नियुक्त छलाह। शिलालेख एवँ प्रकारे अछि–
“जातो वंशे बिल्व पंचाभिधाने
धमाध्यक्षो वर्द्धमानो भवेशात्।
देवस्याग्रे देवयष्टि ध्वजाग्रा
रूढ़ कृत्वाऽस्थापद्वैन तेयम्”॥
भीठ भगवानपुरक मंदिर आ पोखरिसँ बहराएल बहुत रास बस्तुजात एहि बातकेँ प्रमाणित करैत अछि जे प्राचीन कालमे इ एकटा महत्वपूर्ण स्थान रहल होएत। कलात्मक वस्तुजात जे कर्णाटकालीन बुझि पड़इत अछि से ओतए प्रचुर मात्रामे बहराएल अछि आ किछु वस्तु तँ एहनो अछि जकरा अपूर्व कहल जा सकइयै। एकर विस्तृत विवरण कतेक ठाम कैल अछि। कर्णाट कालीन पुरातात्विक महत्वक बहुत रास वस्तु बहेड़ासँ सेहो बाहर भेल अछि। भगवानपुरक डीह–डाबर, पोखरि आ मंदिर विस्तारसँ देखलासँ आ सामरिक दृष्टिकोणसँ ओहिगामक चौहद्दीक अध्ययन केलासँ इ बुझना जाइत अछि जे मल्लदेव ओहि स्थानकेँ अपन राजधानी बनौने हेताहे आ ओतहिसँ ओ नेपाल आ सहरसा–पूर्णियाँ क्षेत्र धरि अपन राज्यक नियंत्रण करैत हेताह। प्राचीन कालमे सहरसा–पूर्णियाँ जेबाक रास्ता, बाट–घाट, सबटा एहि दऽ कऽ छल आ नेपालो जेबामे हुनका एहिठामसँ सुभीता होइत हेतन्हि। ओहि स्थानक उत्खनन भेलासँ ओहिपर आ प्रकाश पड़बाक संभावना अछि। जाधरि आ कोनो नवीन तथ्य हमरा लोकनिक समक्ष नहि अवइयै ताधरि मल्लदेवक ऐतिहासिकता संदिग्धे मानल जाएत। मल्लदेवक सम्बन्ध अखन आ शोधक अपेक्षा अछि।
गंगदेव:- ११४७ ई.मे नान्यदेवक मृत्युक उपरांत आ पारिवारिक कलह एवँ उपरोक्तक पछाति गंगदेव मिथिलाक राजगद्दीपर आसीन भेलाह। ओ बंगालक वल्लालसेनक समकालीन छलाह आ स्वयं एक महत्वाकाँक्षी शासक सेहो। विजय सेनक हाथे अपन पिता नान्यदेवक बेइज्जतीक बात ओ बिसरल नहि छलाह आ ओ अवसरक खोजमे छलाह जाहिसँ एकर बदला लऽ सकैथ। गंगदेव आ गाँगेयदेवक प्रश्नपर इतिहासकारक मध्य जे एकटा विवाद चलि रहल अछि ताहि दिस हम पाठकक ध्यान पूर्वहिं आकृष्ट कए चुकल छी। रामायणक पुष्पिकामे जे एकटा गाँगेयदेवक विश्लेषण भेल अछि ताहि प्रसंगमे मिथिलाक इतिहासकार उपेन्द्र ठाकुरक विचार छन्हि जे ओ गाँगेयदेव कलचुरि वंशक छलाह आ हुनका महिपालसँ संघर्ष भेल छलन्हि। परञ्च हमरा एहिठाम एहि प्रश्नपर विचार करबाक हेतु निम्नलिखित बातकेँ ध्यानमे राखए पड़त।
रामायणक एक पोथीमे छैक–‘गौड़ध्वज’ श्रीमद गांगेयदेव–एहिमे पुण्याव लोक शब्दक व्यवहार अछि आ विनु कोनो संकेत संवत् १०७६क। दोसर पाठमे ‘गौड़ध्वज’क स्थानपर “गरूड़ध्वज” छैक। उपेन्द्र ठाकुर महामहोपाध्याय मिराशीक मतसँ सहमति प्रगट कएने छथि। मुदा एहिठाम विचारणीय विषय इ अछि जे १०७६–शक छल अथवा विक्रम आ दोसर बात इ जे महिपाल प्रथमक समयमे पाल वंशक पुनरूद्धार भेल छल आ तैं ओहि कालमे कलचुरि लोकनिकेँ ‘गौड़ध्वज’क उपाधिसँ विभूषित हेबाक कोनो संभावना नहि बुझाइत अछि। महिपाल प्रथम अपन साम्राज्यक सीमा बनारस धरि बढ़ौने रहैथ आ जँ कलचुरि गांगेयदेवकेँ से शक्ति रहितन्हि तँ ओ अवश्ये बंगालक महिपालक प्रगतिकेँ रोकितैथ परञ्च से कहाँ हमरा लोकनिक देखबामे अवइयै। दोसर बात इहो जे मिथिलासँ महिपालक काल अभिलेखो भेटल अछि। संवतक संकेत नहि रहब सेहो एकटा दिग्भ्रमक जन्म दैत अछि। पोथी लिखनिहार श्रीकरक आत्मज कायस्थ मिथिलाक नरंगवाली मूलक एकटा प्रमुख व्यक्ति छलाह आ अहुँसँ इ प्रमाणित होइछ जे अपन तीरभुक्तिक महाराजाधिराज पुण्यावलोक श्री गंगदेवक प्रसंगहिमे लिखने हेताह।
तत्कालीन राजनैतिक अवस्थाकेँ ध्यानमे राखि जखन हम एहि साधनक अध्ययन करैत छी तखन इ स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे बारहम शताब्दी उतरार्द्धमे बंगालमे पालवंशक ह्रास भऽ रहल छल आ बंगालक सेनवंश आ मिथिलाक कर्णाट लोकनि ओहि पाल साम्राज्यपर अपन गिद्ध दृष्टि लगौने छलाह। एहेन बुझि पड़इयै जे प्रारंभमे मिथिलाक कर्णाट आ बंगालक सेन संगहि मिलि पालकेँ परास्त कए ओतएसँ भगौलन्हि आ जखन आपसी बटबाराक प्रश्न उठल तखन दुनूमे संभवतः विवाद भेलन्हि आ सेन आ कर्णाट वंशमे झगड़ा भेल। पाल लोकनिकेँ पराजित करबाक श्रेयक कारणें मिथिलाक गाँगेयदेव “गौड़ध्वज”क उपाधिसँ विभूषित भेलाह। तैं रामायणक पुष्पिकामे उल्लिखित ‘गांगेयदेव’ मिथिलाक गंगदेव थिकाह जे मिथिलासँ बंगाल धरि अपन शासनक प्रसार केने छलाह आ बल्लालसेन मिथिलाक बढ़ैत शक्तिसँ सशंकित भऽ भागलपुर धरि गंगाक दक्षिणमे अपन सत्ता बढ़ा लेने छलाह।
बल्लालसेनक एकटा अभिलेख धातु सनोखर (भागलपुर)सँ प्राप्त भेल अछि जे एहिबातकेँ सिद्ध करइयै। बल्लाल चरितमे कहल गेल अछि जे बल्लालसेन पंचगौड़ (वंग, वागड़ी, वरेन्द्र, राढ़ आ मिथिला)क शासक छलाह परञ्च हमरा बुझने पहिल चारिपर हुनक शासन छलन्हि आ पाँचमकेँ ओ अपन बापक अमलक प्रतिष्ठाक रूपमे जोड़ने छलाह। पूर्वहिं इ देखाओल जा चुकल अछि कि मिथिलापर सेन राज्यक कोनो स्पष्ट प्रमाण नहि छल तैं आब इ निर्विवाद रूपें कहल जा सकइयै जे गंगदेवक शासन कालमे मिथिला पूर्णरूपेण स्वतंत्र छल आ कर्णाट लोकनि अक्षुण्ण भावें एहिठाम राज्य करैत छलाह। दुनू राज्यक सीमा मिलैत जुलैत छल तैं यदा कदा टंट–घंट भऽ जाएब स्वाभाविके छल। लक्ष्मण संवत् प्रचलनक साक्ष्य दऽ केँ इ कहब जे मिथिलामे सेन वंशक राज्य छल से समीचीन प्रतीत नहि होइछ आ ने एकरा सिद्ध करबाक हेतु कोनो ठोस प्रमाणे अछि।
गंगदेव अपन मंत्री श्रीधर दासक सहायतासँ उत्तमोत्तम रीतिसँ अपन राज काज चलबैत रहलाह। हुनका समयमे कर्णाट शासन प्रणालीकेँ दृढ़ बनाओल गेलैक। राजस्व प्रशासनकेँ वैज्ञानिक ढ़ंगपर चलेबाक हेतु ओ अपन राज्यकेँ परगन्नामे विभाजित केलन्हि आ प्रत्येक परगन्नामे मुखिया अथवा प्रधान नियुक्त भेलाह जे ‘चौधरी’ कहबैत गेलाह। न्याय प्रशासनक हेतु पंचायती व्यवस्थाक स्थापना भेल। जन कल्याण आ कृषिक उन्नतिक हेतु ओ अपना राज्यमे अनेकानेक पोखरि एवँ जलाशयक व्यवस्था केलन्हि। अपन राज्यकेँ ओ अपना शासन कालमे सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह। पश्चिममे गहढ़वाल, पूर्वमे सेन आ दक्षिणमे पाल लोकनिसँ अपन साम्राज्यक सुरक्षा रखैत ओ नेपालोपर अपन अधिकारक दावी देनहि रहलाह आ एवँ प्रकारे नान्यदेव द्वारा स्थापित राज्यकेँ गंगदेव आ दृढ़ बनौलन्हि जाहिसँ मिथिलाक प्रतिष्ठा चारूकात बढ़ल। गंगदेवक समयमे मिथिलामे शांति आ सुव्यवस्था बनल रहल आ कोम्हरोसँ कोनो आक्रमण नहि भेल। इएह कारण छल जे ओ शासन संगठन आ प्रशासनिक सुधार दिसि अपन ध्यान देबामे समर्थ भेलाह। नान्यदेव तँ विजय प्राप्त कैक राज्यक जन्म देलन्हि आ गंगदेव ओकरा संगठित केलन्हि आ शांति प्रदान केलन्हि। इ एकटा अजीव संयोग थिक जे पिता पुत्र दुनू एक्के रंग कूटनीतिज्ञ, दूरदर्शी आ कुशल विजेता आ प्रशासक बहरेलाह।
बारहम शताब्दीक श्रीवल्लभाचार्य (न्याय–लीलावतीक लेखक) निम्नलिखित वाक्य एकटा तत्कालीन कर्णाट शासक उल्लेख करैत छथि–
“यदि च गगनमात्मावान्यधर्मणान्यमवच्छिन्द्यात्
काश्मीर वर्त्तिना कुङ्कुम रागेण कर्णाट चक्रवर्त्ति (ललना)
करकमवच्छिन्द्यात्–”
आब इ कर्णाट चक्रवर्त्ति (ललना)केँ छलाह से कहब असंभव। नान्यदेव, मल्लदेव आ गंगदेव–सब भऽ सकैत छथि। ‘ललना’ शब्द मैथिलीमे छोट बच्चाक हेतु प्रयोग होइत छैक तैं हमरा बुझने एहिसँ नान्यदेवक कोनो पुत्रक संकेत होइयै, आब ओ मल्लदेव हेताह अथवा गाँगदेव से कहब कठिन।
श्री वल्लवभाचार्य–एकटा शासन करैत राजाक नाम सेहो लिखैत छथि–“श्री शालि वाहनो नृपति”– अहु राजाक पहचान असंभव अछि। मिथिलासँ प्राप्त मैथिलीक पाण्डुलिपि सब से एहेन बहुत रास राजा सबहक नाम भेटइत अछि जकरा कोनो राजवंशसँ मिलाएब अथवा जोड़ब असंभव भऽ जाइत अछि। मिथिलाक इतिहासक साधनो अखन धरि इएह सब रहल अछि तैं एकरा तिरस्कारो करब असंभव।
नरसिंह देव–(११८७–१२२७)– गंगदेवक परोक्ष भेलापर मिथिलाक राजगद्दीपर नरसिंह देव बैसलाह। हुनका समयमे मिथिला आ नेपालक मध्य किछु खट–पट भेल छल आ एकर नतीजा इ भेल जे नेपाल मिथिलासँ फराक भऽ गेल। रामदत्त अपन दान पद्धतिमे नरसिंह देवकेँ कर्णाटान्वय भूषणः- कहने छथि। रामदत्त हुनक मंत्री छलाह आ रामदत्तक अनुसार नरसिंह देव मिथिलाक अक्षुण्ण शासक छलाह। विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ ज्ञात होइछ जे नरसिंह देव अपन पिता मल्लदेवक संग कन्नौज गेल छलैथ। ओतएसँ ओ दिल्ली सेहो गेल छलाह आ शहाबुद्दीन गोरीक सेनामे सेनानायकक काज कएने छलाह जाहिसँ गोरी हिनकासँ प्रसन्न भऽ हिनका मिथिलामे अक्षुण्ण करबाक हेतु छोड़ि देबाक आश्वासन देने रहथिन्ह। इ चाचिक देव चौहानक परम मित्र छलाह। कहल जाइत जे इहो एक कुशल शासक छलाह मुदा राजनैतिक दृष्टिकोणसँ हम देखैत छी जे हिनका राज्यमे नेपाल हिनका हाथसँ बाहर भऽ गेल आ ताधरि बाहर रहल जाधरि हरिसिंह देव पुनः ओकरा नहि जीतलन्हि। दोसर बात इहो जे मुसलमान लोकनि पश्चिम आ पूबसँ मिथिला राज्यकेँ दबबे लागल छलाह आ आक्रमण श्री गणेश सेहो हिनके समयमे प्रारंभ भऽ गेल छल। मिथिला राज्यकेँ मुसलमान लोकनि अपन आँखिमे काँट जकाँ बुझैत छलाह आ तैं ओ लोकनि एम्हर–ओम्हरसँ हुलकी–बुलकी देव आरंभ कऽ देने छलाह। नरसिंह देव अपना भरि मिथिला राज्यकेँ चारूकातसँ सुरक्षित रखबाक यथेष्ट प्रयास केलन्हि आ एहि क्रममे हुनका बहुत किछु सफलता भेटलन्हि।
रामसिंह देव–(१२२७–१२८५)– रामसिंह देव कर्णाट वंशक एक सफल आ कुशल शासक छलाह जनिक महिमाक गुनगान तिब्बती यात्री धर्मस्वामी सेहो कएने छथि। कर्मादित्य ठाकुर रामसिंह देवक मंत्री छलथिन्ह आ कर्मादित्यक एकटा अभिलेख ल.सं.२१२क सेहो उपलब्ध अछि। हिनका समयमे समस्त उत्तर भारतमे मुसलमानी सत्ताक प्रसार भऽ चुकल छल आ मिथिलाक चारूकात मुसलमानी आक्रमणक संभावना बढ़ि गेल छल। वैशालीमे मुसलमानी आक्रमणक स्वरूपक विवरण धर्मस्वामी उपस्थित कएने छथि। लखनौतीक हिसामुद्दिनइवाज मिथिलोसँ कर प्राप्त केने छल आ तिरहुतमे पूर्व–पश्चिम दुनू दिसिसँ आक्रमण होइत रहैत छल। रामसिंह देवक पदवीमे ‘भुजबलभीम’ आ ‘भीमपराक्रम’क विशेष महत्व रखइयै। हिनक सान्धि विग्रहिक छलाह देवादित्य ठाकुर जिनका वंशमे बड्ड पैघ–पैघ विद्वान आ पराक्रमी लोक सब भेल छलाह। धनवान होएबाक कारणे ओ लोकनि महत्तक (महथा) सेहो कहबैत छलाह।
रामसिंह देव विद्या आ धर्मक समर्थक आ प्रवर्त्तक छलाह। हुनके समयमे मिथिलामे वैदिक टीका लिखल गेलैक। ओहिकालमे सामाजिक एवँ धार्मिक नियमक प्रतिपादन भेल आ शासन विधानमे सेहो बेस सुधार भेलैक। प्रत्येक गामक हेतु कोतवालक नियुक्ति भेल। गामक प्रत्येक समाचार चौधरी कोतवालकेँ दैत छलैक आ ओहि ठामसँ ओ समाचार राजा धरि पहुँचैत छ्ल। ओहि समयमे पटवारी प्रथाक विकास भेल। रामसिंह देव पैघ विद्या प्रेमी छलाह आ हुनके समयमे श्रीधर आचार्य अमरकोशपर अपन टीका लिखलन्हि।
रामसिंह देवक समयमे प्रसिद्ध तिब्बती यात्री धर्मस्वामी एम्हर आएल छलाह आ रामसिंह देवक संग हुनक सम्बन्ध मधुर छलन्हि। ओ आती–जाती दुनू बेर रामसिंह देवक संगे रहलो छलाह। ओहि समयमे मिथिलामे मुसलमान लोकनिक प्रकोप बढ़ल जाइत छल। रामसिंह राजधानी ‘पट’ (सिमरौनगढ़)क सुन्दर विश्लेषण धर्मस्वामी कएने छथि। ‘पट’ बड्ड पैघ आ उन्नत नगर छल आ चारूकातसँ दुर्ग आ खाधिसँ घेरल–बेढ़ल छल। सब तरहे एकर सुरक्षाक प्रबंध कैल गेल छल। इ नगर उत्तरमे छल। एहिठाम ओ ज्वरसँ पीड़ित सेहो भेल छलाह। नेपालसँ एहिठाम एबामे हुनका तीन मास लागल छलन्हि। रोगसँ मुक्त भेलापर जखन ओ अपन देश जेबाक हेतु तैयार भेलापर तखन रामसिंह हुनका किछु दिन आ रहबाक हेतु आग्रह केलथिन्ह। एतबे नहि रामसिंह हुनका अपन प्रधान पुरोहितक पदपर नियुक्त करबाक आश्वासन सेहो देलथिन्ह मुदा तइयो ओ एतए रहबा लेल तैयार नहि भेलाह आ घुरबाक हेतु तत्पर भऽ गेलाह। रामसिंह हुनका बहुत रास वस्तुजात उपहारमे देलथिन्ह। धर्मस्वामीक विवरण इ स्पष्ट होइछ जे मुसलमान लोकनिक प्रभाव बड्ड बढ़ि गेल छल आ रामसिंह किलाबंदीपर विशेष बल देने छलाह। रामसिंह किलाबंदीपर विशेष बल देने छलाह। रामसिंहक अपन राजभवन सात गोट भीत आ २१ गोट खाधिसँ घेरल छल। वैशालीक निवासी लोकनि मुसलमानी आक्रमणसँ हड़कम्पित छलाह। वैशालीमे एकटा प्रसिद्ध ताराक मूर्त्ति छल।
धर्मस्वामीक मुसलमानी आक्रमण सम्बन्धी मतक समर्थन परम्परागत साहित्य एवँ साधनसँ सेहो होइत अछि जाहिमे इ कहल गेल अछि जे रामसिंहकेँ मुसलमानसँ लड़ए पड़ल छलन्हि। मुसलमान लोकनि गंगाक दक्षिणमे मूंगेर, भागलपुर, पटना, आदि स्थानमे पसरि चुकल छलाह आ ओम्हर बंगालक शासक सेहो पश्चिम दिसि अपन शक्तिकेँ बढ़ेबामे लागल छलाह। ओहि दुनूमे बरोबरि संघर्ष चलैत रहन्हि आ मिथिलाक शासक अपन ‘वेतसिवृति’क पालन कए अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे व्यस्त छलाह। रामसिंह देव एहि हेतु कत्तेक प्रयत्नशील छलाह तकर प्रमाण तँ एतवे अछि जे ओ जँ अपन राज्यक विस्तार नहि केलन्हि तँ हुनका समयमे हुनक राज्य एक्को इंच घटल नहि आ साँस्कृतिक एवँ सामाजिक दृष्टिकोण ओ जे रचनाक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बनौलन्हि तकरे आधारपर बादमे हरिसिंह देवी पंजी प्रथा ठाढ़ भेल।
शक्ति सिंह:-(शक्र सिंह)–(1285–95)–?– रामसिंहक पछाति शक्तिसिंह अथवा शक्रसिंह मिथिलाक राजा भेलाह। ओ महा पंडित, प्रतापी एवँ पराक्रमी शासक छलाह आ दिल्लीक शासकक संग हुनक सम्बन्ध बरोबरि बनल रहलन्हि–इ सम्बन्ध विरोध आ मित्रता दुनूक छलन्हि। हम्मीरक विरूद्धक अभियान शक्तिसिंह अलाउद्दीन खलजीक संग रहैथ आ हुनका संग हुनक मंत्री देवादित्य आ हुनक आत्मज वीरेश्वर सेहो रहथिन्ह। अपन मंत्रीक स्वामीद्रोहक कारणे (रायमल्ल आ रामपाल) हम्मीर पराजित भेलाह। अलाउद्दीन देवादित्यकेँ ‘मंत्रिरत्नाकर’ पदवीसँ विभूषित केलथिन्ह। शक्तिसिंहक संग खलजी सम्राटक मित्रता बनल रहल आ मिथिलाक स्वतंत्रता सेहो बाँचल रहल।
शक्तिसिंह अत्याचारी शासक छलाह। हुनक निरंकुश शासनकेँ रोकबाक हेतु वृद्ध सब सातटा प्रमुख वृद्धकेँ चुनिकेँ एकटा ‘वृद्ध–परिषद’क निर्माण कएने छलाह। हुनक अत्याचारी शासनसँ हुनक दरबारी आ मंत्री लोकनि कूपित भऽ गेल छलाह। राजाक निरंकुशताक विरोधमे सर्वप्रथम अवाज उठौलनि चण्डेश्वर ठाकुर जे अपना युगक एकटा प्रसिद्ध विद्वान आ राजनीतिज्ञ छलाह। हुनके प्रयासे राजाक निरंकुशतापर रोक लागि सकल। दरभंगाक आनंदवागक पश्चिम ‘सुखीदिग्घी’ पोखरि हिनके खुनाओल थिक आ आधुनिक सकुरीक बसौनिहार शक्तिसिंहें थिकाह। शक्तिसिंहक बाद एकटा भूपाल सिंहक नाम भेटइयै मुदा ओ शासक भेलाह अथवा नहि से कहब असंभव।
हरिसिंह देव:-(१२९५–१३२४-?)– नान्यदेवक पश्चात् कर्णाटवंशक सबसँ प्रसिद्ध एवँ महान शासक हरिसिंह देव भेलाह जे मिथिला आ नेपालक इतिहासमे कैक दृष्टिये विख्यात छथि आ जनिक शासन काल पूर्वी भारतक इतिहासमे महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। हिनक जन्म, राज्यारोहण, मृत्यु इत्यादिक वास्तविकताक सम्बन्धमे हमरा लोकनिक ज्ञान अपूर्ण अछि अथवा इहो कहि सकैत छी जे हिनका सम्बन्ध सबटा एतिहासिक तथ्य अद्यावधि अनिश्चितता एवँ सन्दिग्धक गर्भेमे अछि। एकर मूल कारण इ अछि जे मिथिलाक एहिकालक इतिहासक अध्ययनक हेतु जे प्रामाणिक साधन चाही तकर सर्वथा अभाव अछि। तथापि जतवे जे साधन उपलब्ध अछि ताहि आधारपर हमरा लोकनि हरिसिंह देवक शासन एकटा वस्तुनिष्ठ अध्ययन प्रस्तुत करबाक प्रयास करब। ने राजनीतिक इतिहासक हिसाबे आ साँस्कृतिक इतिहासक हिसाबे हरिसिंह देवकेँ विसरल जा सकइयै। जँ नान्यदेव एहिवंशक संस्थापकक हिसाबे स्मरणीय छथि तँ हरिसिंह अपन नेपाल विजय एवँ पंजी–प्रथाक संस्थापकक रूपें मिथिलाक इतिहासमे अमर छथि। एम्हर आबिकेँ आब मिथिलाक इतिहासक महत्व दिसि पौवात्य–पाश्चात्य विद्वानक ध्यान आकृष्ट भेल छन्हि आ एकर प्रमाण भेल लुसिआनो पेतेकक ‘मिडिभल हिस्ट्री आफ नेपाल’ तथा भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित “दिल्ली सल्तनत” (खण्ड–6)मे विवेचित मिथिलाक इतिहासक अंश। आब मिथिलाक इतिहासक एहिकालकेँ उपेक्षित करब कठिन अछि कारण एहि सम्बन्धमे जे अद्यावधि एकटा भ्रांति पसरल छल से दूर भऽ गेल अछि आ सामाजिक इतिहासक अध्ययनार्थ हरिसिंह देवक पंजी प्रथा एकटा प्रमुख विषय बनल अछि।
कहिआ, कोना आ कोन रूपें ओ मिथिलाक शासन भार ग्रहण केलन्हि तकर कोनो ठोस प्रमाण हमरा लग नहि अछि मुदा हुनका सम्बन्धमे प्रचलित किंवा व्यवहृत शब्दावली एहि बातक प्रमाण अछि जे ओ शक्तिशाली शासक छलाह। अपना काल धरि ओ कहियो ककरो समक्ष ने अपन माथ झुकौने छलाह आ ने टेकने छलाह। अपनाकेँ स्वाभिमानी स्वतंत्र आ निर्भीक बुझैत छलाह आ एहिबातक प्रमाण हमरा वसातिनुलउन्ससँ भेटइत अछि। पुरूष परीक्षामे विद्यापति हुनका ‘कर्णाट–कुल–सम्भव’ कहने छथिन्ह; चण्डेश्वरक कृत्यरत्नाकरमे हुनका ‘कर्णाट वंशोद्भव’ कहल गेल छन्हि। ज्योतिरीश्वर ठाकुर धूर्त समागममे कर्णाट चूड़ामणिक संज्ञा हिनका देल गेल छन्हि।
कर्णाटवंशोद्भव शत्रुजेता हरिसिंह देव मिथिलामे अपन एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केने छलाह। हुनक सान्धिविग्रहिक मंत्री देवादित्य ठाकुर छलथिन्ह। देवादित्य यशस्वी, बुद्धिमान एवँ दानी छलाह। हुनक पश्चात् हुनक पुत्र वीरेश्वर ठाकुर मंत्री भेलाह। उहो महा दानी छलाह आ समुद्र सन गहिर पोखरि दहिभत गाममे खुनौने छलाह। ओ श्रौतकर्मानुष्ठाता ब्राह्मण लोकनिकेँ उदारता पूर्वक दान देने छलाह आ गामक गाम दानमे सेहो हुनका लोकनिकेँ देने छलाह। उहो एकटा पोखरि खुनौने छलाह जकर नाम छल ‘वीरसागर’आ ओहिसँ गामक नाम‘विरसागर’ पड़ल। वीरेश्वर ठाकुरकेँ ‘महावर्तिक नैबन्धिक’ सेहो कहल जाइत छलन्हि। वीरेश्वर ठाकुरक बाद हुनक पुत्र चण्डेश्वर ठाकुर महामत्तक सांधिविग्रहिक भेलाह। उहो प्रतापी, साहसी, उदार एवँ दानी छलाह आ हरिसिंह देवक मित्र, सलाहकार एवँ दार्शनिक सेहो छलाह। हरिसिंह देव हिनक समयमे व्यस्क भऽ चुकल छलाह आ राज काज सम्हारि लेने छलाह। इहो हावी परगन्नाक सिमराम ग्राममे एकटा पोखरि खुनौने छलाह जे “सुरवय” कहबैत अछि। नाबालिक अवस्थामे राजगद्दीपर बैसलाक कारणे हरिसिंहक देखरेख सुयोग्य मंत्रिगणक हाथमे छल आ राजाक दिसि इएह मंत्री लोकनि सब काज करैत छलाह। हरिसिंह देव जखन जवान भेलाह तखन चण्डेश्वर ठाकुर हुनक मंत्री छलथिन्ह। ब्राह्मणक एकवंशसँ कर्णाट राजदरबारमे तीन पीढ़ी धरि बरोबरि मंत्री होइत रहलाह–ताहिसँ इ सिद्ध होइत जे एहि कालमे सामंतवादी व्यवस्थाक विकासक कारणे मंत्रीपद वंशानुगत भऽ चुकल छल आ राजापर हुनका लोकनिक विशेष नियंत्रण रहैत छलन्हि। हम उपर देखि चुकल छी जे शक्ति सिंह जखन निरकुंश बनबाक चेष्टा केलन्हि तखन इएह सामंत लोकनि हुनक ओहि चेष्टाकेँ विफल कैल आ हरिसिंह देवक नाबालिग रहबाक कारणे हुनका लोकनिक अधिकारमे अत्यधिक वृद्धि भेल। विद्यापतिक पुरूष परीक्षासँ इहो ज्ञान होइछ जे हरिसिंह देव यादव राजा देवगिरिक रामदेवक समकालीन छलाह आ गोरखपुरक राज दरबारमे हुनक कला–प्रेमी होएबाक चर्च बरोबरि होइत छलन्हि। हरिसिंह देवक नामसँ समकालीन राजा लोकनि नीक जकाँ परिचित छलाह। हरिसिंह देवक मंत्री चण्डेश्वर अपना कालक प्रसिद्ध विद्वान छलाह आ तैं हिनक नामसँ मिथिला राज्योक नामक प्रसार होइत छल।
हरिसिंह देवक समयमे चण्डेश्वर ठाकुर नेपाल अभियानक नेतृत्व केलन्हि। ओतए इ किरात राजा सबकेँ एवँ सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा गणकेँ पराजित कए सम्पूर्ण नेपाल राज्यपर मिथिलाक आधिपत्य जमौलन्हि। एहिसँ इ तँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे नरसिंह देवक समयमे नेपालसँ खट–पट भेलाक बाद नेपाल अपनाकेँ मिथिलाक नियंत्रणसँ मुक्त कऽ लेने छल कारण जँ से बात नहि रहैत तँ चण्डेश्वर ठाकुरकेँ हरिसिंह देवक शासन कालमे पुनः नेपालपर आक्रमण करबाक आवश्यकता कियैक भेलैन्ह। दोसर बात इहो जे हरिसिंह देवक प्रभाव जखन नेपालपर पुनः स्थापित भेल तँ मिथिलाक प्रतिष्ठा सेहो बढ़ल आ एहि हिसाबे हरिसिंह देवक शासनकाल महत्वपूर्ण मानल जा सकइयै। हरिसिंह देव तुगलकसँ पराजित भेलाक बाद भागिकेँ नेपाले गेल छलाह। चण्डेश्वर ठाकुर वाग्मतीक नदीक तटपर स्वर्ण तुलापुरूष महादान कयने छलाह आ उएह प्रथम व्यक्ति छलाह जे पशुपति नाथ धरि पहुँचल छलाह। चण्डेश्वर ठाकुर अधीन हरिब्रह्म नामक एक सामंतक चर्च प्राकृत–पैंगलममे भेल अछि।
हरिसिंह देवक समयमे मिथिलाक राज्य सुरक्षित रहल यद्यपि ताहि समय तक पश्चिमी आ पूर्वी राज्यसँ मिथिलापर बरोबरि प्रहार भऽ रहल छल। नेपाल धरि अपन राज्यक सीमाकेँ पुनः बढ़ेबाक श्रेय हरिसिंह देवकेँ छन्हि। नेहरामे हरिसिंह देव सेहो अपन एकटा मुख्यालय रखने छलाह आ ओहिठाम एकटा गढ़ सेहो छल। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक ‘धूर्त समागम नाटक’सँ ज्ञात होइछ जे हरिसिंह देवकेँ कोनो सुरत्राणसँ झगड़ा भेल छलन्हि जकर परिणाम अनिर्णीत बुझना जाइत अछि। हरिसिंह देवक पादपद्मपर कतेको प्रतापी राजा अपन–अपन माथ नमवैत छलाह।
“नानायोध निरूद्ध निर्जित सुरत्राणात्र सद्वाहिनी
नृत्यद्भीमकबन्धमेलक दलद् भुमि भ्रमद् मुधरः॥
अस्ति श्री हरिसिंह देव नृपतिः कर्णाट् चूड़ामणिः
दृप्यत्पार्थिव सार्थ मौलिमुकुटन्यस्ताङघ्र पंकेरूहः”॥
उमापतिक पारिजातहरणसँ सेहो इ स्पष्ट होइछ जे हरिसिंह देव आ कोनो मुसलमान शासकक बीच संघर्ष भेल छल मुदा ज्योतिरीश्वर आ उमापतिक विवरणमे कोनो मुसलमान शासकक नाम नहि रहलासँ कठिनताक अनुभव हैव स्वाभाविके। ओहि सबसँ केवल एतवे ज्ञान होइछ जे हरिसिंह देवकेँ बरोबरि मुसलमान शासक लोकनिसँ टंटा होइत रहन्हि आ ओहि सभहिक वावजूदो ओ मिथिलाकेँ राज्य सुरक्षित रखैत अपन प्रजाक कल्याणमे लागल रहैथ। हमरा बुझि पड़इयै जे मिथिलाक राज्यक भविष्यक सम्बन्ध हुनका पूर्वाभास भऽ गेल छलन्हि आ तैं ओ नेपालपर पुनः अपन आधिपत्य कायम करबाक प्रयासमे लागल छलाह। मिथिलामे चारूकातसँ तंगी देखि ओ अपना हेतु नेपाल राज्यकेँ सुरक्षित राखए जाहिसँ किओ मुसलमानी आक्रमणसँ आक्रांत भेलापर ओतए जाएकेँ रहि सकैथ। इएह कारण थिक जे हुनक मंत्री नेपालपर पूर्ण आधिपत्य कायम केने छलाह। तुगलक आक्रमणक बाद ओ भागिकेँ ओम्हरे गेओ केलाह। कहल जाइत अछि जे मिथिला छोड़बाक पूर्व ओ नेहरा पोखरिपर विश्वचक्र महादान यज्ञ कयने छलाह।
१३२३–२४ ई.मे मिथिलापर गयासुद्दीन तुगलकक आक्रमण भेल। कहल जाइत अछि जे बंगाल आ मिथिलाक शासकक संग एक प्रकार गुप्त समझौता छल आ दुनू अपन–अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबाक लेल प्रयत्नशील छलाह।

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