खण्डवला वंशक इतिहास

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खण्डवला वंशक इतिहास

ओइनवार वंशक अंत भेलापर मिथिलामे केशव मजुमदार आ मजलिश खाँक शासन रहल। केन्द्रीय सत्ताक समाप्त भऽ गेलापर आ मुसलमान लोकनिककेँ लगातार आक्रमणसँ मिथिला छिन्न भिन्न भऽ गेल छल आ चारूकात अराजकता पसैरि गेल छल। जे जेम्हरे पेलक से तेम्हरे अपन आधिपत्य कायम कऽ लेलक आ एहियुगमे मिथिला बेसी बावू बवुआन लोकनि बढ़ती भेलैन्ह। किछु राजपूत लोकनि सेहो एहिसँ लाभ उठौलन्हि आ कैक ठाम अपन स्वतंत्र राज्य कायम करबामे सफल भेलाह। समस्त मिथिलामे हाजीपुरसँ बंगालक सीमा धरि मुसलमानी प्रभाव बढ़ि चुकल छल आ मुगल साम्राज्यक स्थापना धरि करीब–करीब इएह स्थिति बनल रहल। एहिठाम मुगल साम्राज्यक स्थापना हम बाबरक समयसँ नहि लऽ कए १५५६ यानि अकबरक समयसँ लैत छी कारण बाबर द्वारा स्थापित राज्य तँ राज्ये मात्र रहल आ हुनक पुत्र ओहि राज्यकेँ जोगा नहि सकलाह। नतीजा भेल जे बिहारेक शेरशाह मुगल साम्राज्यकेँ नस्तनाबूद केलन्हि आ अपन सत्ता स्थापित करबामे समर्थ भेलाह। शेरशाहक एकटा उत्तराधिकारी सिक्का तिरहूत भेटल अछि आ एकटा मैथिली लिपिक अभिलेख सूर्यगढ़ा (मूंगेर)सँ। अकबरक शासन भेलाक बाद जे परिवर्त्तन भेल तकर मिथिलापर स्वाभाविक रूपें पड़ल।
खण्डवला वंशक सम्बन्धमे कहल जाइत अछि जे हिनका लोकनिकेँ मुगल सम्राट अकबरसँ समस्त मिथिलाक राज्य भेटल छलन्हि। दरभंगा राजक इतिहास विस्तृत रूपे डॉ. जटाशंकर झा शोध कएने छथि आ एहि दृष्टिकोणें हुनक “हिस्ट्री ऑफ दरभंगा राज” आ “महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह” पठनीय ग्रंथ अछि। खण्डवला वंशक संस्थापक छलाह महामहोपाध्याय महेश ठाकुर। हिनक पूर्वज मिथिलेक रहथिन्ह आ ओहिमे एक गोटए शंकर्शन उपाध्यायकेँ किछु दान खण्डवामे भेटबाक बाद ओम्हरे जाके बसि गेल छलाह। महेश ठाकुर हुनके वंशज छलाह (दशम पीढ़ी) आ जमीन जायदाद वाला रहबाक कारणे इ लोकनि उपाध्यायसँ ठाकुर (सामंती पदवी) कहबे लागल छलाह। १६म शताब्दीमे इ लोकनि मण्डला (गढ़ मण्डल–वस्तर)सँ पुनः एलाह। हिनक पितामह श्रीपति ठाकुर भर राजपुतकेँ किछु दान दऽ कए भौर गाम बसौने छलथिन्ह। एहिठाम स्मरणीय जे ओइनवार वंशक पतनक बाद जे अराजक स्थिति शुरू भेल छल ताहिसँ लाभ उठाकेँ भर राजपूत लोकनि सेहो अपन स्वतंत्र राज्य स्थापित कऽ लेने छलाह। भौरमे आबिकेँ बसला कारणे खण्डवला लोकनि ‘खरौरे भौर’ कहौलथि। एहिवंशमे विद्वानक जे एकटा परम्परा चलि आबि रहल छल तकरा अनुरूपें इ लोकनि भौरमे एकटा संस्कृत विद्या केन्द्रक स्थापना केने छलाह जत्ते देशक विभिन्न भागसँ विद्यार्थी लोकनि पढ़बालेल अबैत छलाह। महेश ठाकुरक ज्येष्ठ भाए भगीरथक कारणे भौरक प्रतिष्ठा बड्ड बढ़ि गेल छल–
“पद्म पत्रमपि यत्र दुर्लभम्,
रन्धनं भवति नेन्धनं बिना।
श्री भगीरथ गुणेन केवलम्,
भौर गौरव कथा गरीयसी”॥
गढ़ेश–नृप–वर्णन–संग्रह श्लोकक पाण्डुलिपिक अध्ययनसँ मैथिल विद्वानक जे विवरण भेटइत अछि ताहिमे महेश ठाकुरक प्रशंसनीय उल्लेख अछि। रूपनाथ मैथिलक पाण्डुलिपि गढ़ेश–नृप–वर्णनम् कऽ उपरोक्त पाण्डुलिपि पूरक थिक आ ओहि पाण्डुलिपिमे गढ़मण्डल राज्यक विवरण भेटइत अछि। रूपनाथक अनुसार महेश ठाकुर भौर ठक्कुर लोकनिक वंशजक रूपमे वर्णित छथि आ संगहि यादोरायक धार्मिक गुरूक रूपमे सेहो। महेश दलपत शाह आ रानी दुर्गावतीक समकालीन छलाह। खण्डवा, मण्डला, रतनपुर आ वस्तरमे हिनक बेस इज्जति रहैन्ह। महेश ठाकुर दुर्गावतीकेँ पुराण सुनबैत छलाह। एक दिन कोनो कारणे ओ ओतए अपन प्रिय शिष्य रघुनंदनकेँ पठौलन्हि परञ्च रघुनन्दनकेँ ओतए किछु खटपट भऽ गेलैन्ह आ ओतहिसँ गुरू शिष्य दुनू गोटए दिल्ली दिस बिदा भेलाह। ओहिठाम मुगल दरबारमे इ लोकनि अपन विद्वतासँ सम्राटकेँ प्रभावित केलन्हि आ रघुनन्दन जे फरमान प्राप्त केलन्हि से दक्षिणा स्वरूप अपन गुरूदेव महेश ठाकुरकेँ दऽ देलन्हि। महेश ठाकुरक आ तीनू भाइ दिल्लीसँ घुरिकेँ वस्तर, रतनपुर आ मण्डला दिसि चल गेला किएक तँ ओहिठाम हुनका लोकनिकेँ जागीर छलन्हि आ महेश ठाकुर असगरे फरमानक संग घुरला। मण्डला अखनो धरि महेशपुर आ तिरहूतिया टोल अछि। मैथिल परम्परामे सेहो महेश ठाकुरक राज्य प्राप्तिक उल्लेख भेटइत अछि–
“नवग्रह वेद वसुन्धरा शकमे अकबर शाह
पंडित सुबुध महेश को किन्हो मिथिलानाह”॥
“आसीत पण्डित मण्डलाग्र गणिता भूमण्डला खण्डला।
जाता खण्डवाल कुले गिरि सुता भक्तो महेशः कृति।
शाकेरण्ध्र तुरंग श्रुतिमही (१४४८=??) लक्षिते
हविनेवाग्देवी कृप्या सुयेन मिथिलादेशः समस्तोऽर्जितः”॥
“अति पवित्र मंगल करण राम जनमकेँ दिन।
अकबर तुषित महेश को तिरहुति राजा करेन॥
जेना कि पूर्वहिं कहल जा चुकल अछि जे महेश ठाकुर जखन फरमान लऽ कए मिथिलामे राज्य करबाक हेतु पहुँचलाह तखन हुनका विरोधक सामना करए पड़लन्हि कारण एहिठामक स्वतंत्र राजपूत राजा लोकनि ताधरि स्वतंत्रताक स्वाद लऽ लेने छलाह। ओइनवारक बाद जे स्थिति उत्पन्न भेलैक तकर विवरण हम प्रस्तुत कऽ चुकल छी आ इहो कहि चुकल छी जे राजपूत लोकनि अपन प्रभाव बढ़ा लेने छलाह। तथा सरौंजा आ पररीमे पहिने हिन्दू राजा चुनचुनक राज्य छल परञ्च चुनचुनक परोक्ष भेलापर लक्ष्मी सिंह नामक एकटा राजपुत राजा ओहि क्षेत्रपर शासन करए लगलाह। ओइनवारक बबुआन लोकनि सेहो ठाम–ठाम अपन अधिकार जमौने छलाह आ १७म शताब्दीमे औरंगजेबक शासन काल धरि मिथिलामे एकटा ओइनवार शासकक विवरण (तलवार–अभिलेख–जे मिथिला भारतीमे प्रकाशित भेल अछि) भेटल अछि। एहिसँ तँ सामान्यतः इएह स्पष्ट होइछ जे महेश ठाकुरकेँ प्रारंभमे काफी मुश्किल भेल होएतन्हि। ताहि दिनमे मिथिला छोट–छोट खण्डमे बटल छल। भौर प्रधान प्रशासनिक केन्द्र छल। महेश ठाकुरक समय मिथिलाक स्थितिक वर्णन निम्नांकित अछि–
“रहै भौर क्षत्री प्रबल, वसत भौर निज ठौर
सूर समर विजयी बड़े, सब क्षत्री सिरमौर॥
अच्युतमेघ गोपाल मिलि, मारौ क्षत्री राज
निज सुत लै भागी तबै रानी नैहर राज
बहुत दिवसकेँ बाद सौं सजि आये पम्मार
युद्ध करण मिथिलेशसँ सेना अपरंपार”॥
महेश ठाकुर सब प्रकारक विरोधकेँ दबेबामे सफल भेला। एहिठाम प्रश्न इ उठइयै जे राज्य गुरू दक्षिणामे भेटल छलन्हि अथवा ओ स्वयं ओकरा प्राप्त केने छलाह। एहिपर विद्वानक बीच मतभेद अछि आ एक सिद्धांत इहो अछि जे ओ अपन विद्वतासँ मानसिंहकेँ प्रभावित कए राज्य प्राप्त केने छलाह। अकबर सेहो एहि पक्षमे छल जे कहुना चारूकात शांति बनल रहए जाहिसँ ओ अपन राज्य विस्तार कऽ सके आ तैं मिथिलाक भार महेश ठाकुरकेँ सुपुर्द कए ओ निश्चिंत होमए चाहैत छल। तिरहूतक कलक्टरक १७८९क एक पत्रसँ इ ज्ञात होइछ जे महेश ठाकुर ओइनवार वंशक पुरोहित छलाह आ ओइनवार वंशक अंत भेलापर ओ स्वयं दिल्ली जाए ओतुक्का शासककेँ सब स्थितिसँ अवगत कराए अपना हेतु राज्य प्राप्त कऽ केँ अनलन्हि। एक आ किंवदंती बुकानन पुर्णियाँ रिपोर्टमे सुरक्षित अछि। प्रिंसेपक अनुसार खण्डवला वंश मुगल साम्राज्यक अंतर्गत एक स्वायत्त राज्य छल आ ओहि राज्यक अधीन कतैको सामंत लोकनि रहैत छलाह। गोपाल ठाकुरक देल अकबरक फरमानसँ इ स्पष्ट अछि जे आंतरिक मामला मिथिला पूर्णरूपेण स्वतंत्र छल–चौधराइ आ कानूनगोय समस्त तिरहूतक हिनका लोकनिकेँ प्राप्त छलन्हि। १६५२ ई.क मजहरनामासँ सेहो स्पष्ट होइछ जे महेश ठाकुर एहिवंशक संस्थापक छलाह। औरंगजेबक समयमे एहिवंशकेँ बिहार आ बंगालक ११० परगन्ना दानस्वरूप भेटल रहैक आ संगहि खिलत आ महिमरेतिव (माँछक चेन्ह–जे दरभंगा राज्यक राजकीय चेन्ह छल)। एहिसँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे समस्त तिरहूतपर एहिवंशक प्रभाव महेश ठाकुरक समयसँ चलल अबैत छल।
महेश ठाकुर मिथिलामे खण्डवला कुलक संस्थापक छलाह एहिमे आब सन्देह नहि रहि गेल अछि। अपन राजा हेबाक अवसरकेँ चिरस्मरणीय बनेबाक हेतु ओ धौत परीक्षाक प्रथा चलौलन्हि। महेश ठाकुर मात्र एक शासकेटा नहि अपितु एक पैघ विद्वानो छलाह आ बहुत रास पोथी सेहो लिखने छलाह। कहल जाइत अछि जे मिथिलामे राज्य प्राप्त भेलाक बाद ओ गढ़ मण्डलासँ अपन देवी (कंकाली देवी)केँ सेहो ओतएसँ अनलन्हि। ओ अकबरनामाक एकटा संक्षिप्त संस्कृत संस्करण बाहर केलन्हि जे सर्वदेश वृतांत संग्रहक नामसँ प्रसिद्ध अछि। कहल जाइत अछि जे महेश ठाकुर अकबरक शासनक ३४म वर्ष एहि ग्रंथक अनुवाद कएने छलाह। बीरबलक आदेशपर इ अनुवाद भेल छल। किनको–किनको इहो मत छन्हि जे एहि अनुवादक बाद महेश ठाकुरकेँ मिथिलाक राज भेटलन्हि। सुभद्र झाक संपादकत्वमे इ पोथी प्रकाशित अछि। एहि ग्रंथसँ इ ज्ञात होइत अछि जे हिमायुँ नरहन आएल छलाह आ तिरहूत आ पूर्णियाँमे ओ जागीर सेहो देने छलथिन्ह। इ दुनू स्थानक जागीर ओ अपन भाए हिन्दालकेँ देने छलाह आ हुनका अपन जागीर ठीक कऽ कए बंगाल दिसि बढ़बाक आदेश देने छलाह। मैथिली शब्दक सेहो एहि संस्कृत पोथीमे बेस व्यवहार अछि। उदाहरणार्थ–
i) सम्यक्तया
ii) गल्ली
iii) असुस्थ
iv) तरवारि
v) सुस्थ
vi) ढ़व्य=ढ़ौआ
vii) विचीय–विचीय (बीछि–बीछि)
viii) वस्तु जातानि–
ix) हत्था जोरी–
आ एहेन बहुत शब्द ओहि संकलनमे अछि।
महेश ठाकुरक बाद हुनक द्वितीय पुत्र गोपाल ठाकुर गद्दीपर बैसलाह। कहल जाइत अछि जे ओ विद्रोही राजपूत प्रधान लोकनिकेँ दबौलन्हि। हिनके समयमे टोडरमलक राजस्व व्यवस्था लागू भेल छल। हिनका समयमे भेटल फरमानक उल्लेख हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। मिथिलाक आंतरिक झंझटमे इ ततेक बाझल छलाह जे जखन दिल्लीसँ हिनका बजाहटि एलन्हि तँ अपने नहि जा कए ओ अपन पुत्र हेमांगद ठाकुरकेँ पठौलन्हि जे ओतए कोनो कारणवश गिरफ्त भऽ गेलाह आ ओहि गिरफ्तावस्थामे अपन सुप्रसिद्ध एवँ अद्वितीय ज्योतिष शास्त्रक पोथी लिखलन्हि। कागज कलमक अभावमे ओतए ओ माँटिपर लिखैत छलाह आ जखन राजाकेँ एकर सूचना भेटलन्हि तँ राजाक पूछलापर ओ कहल थिन्ह जे एक हजार वर्ष धरि कहिया–कहिया ग्रहण लागत तकरे हिसाब ओ लिखि रहल छथि। ‘राहू पराग पंजी’ नामे इ ग्रंथ प्रचलित अछि, आ ओहिमे लिखल अछि–
“खण्डवला कुल तरणेर्गोपालादापयं गौरी
हेमाङ्गद सतनुते पंजी (!) राहू परागस्य”।
राजा हिनकासँ प्रसन्न भऽ हिनका मुक्त कए देल आ तिरहूत राज्यक जे बकिऔता छल सेहो माफ कऽ देलक। हेमाङ्गद तकर बादसँ पढ़वे–लिखबेमे अपन समय व्यतीत करे लगलाह। गोपालक बाद शुभंकर ठाकुर शासक भेलाह।
शुभंकर ठाकुरक नामपर दरभंगा लग अखनो शुभकंरपुर अछि। इ एक पैघ विद्वान आ लेखक सेहो छलाह। ओ भौरमे अपन राजधानी स्थापित केलन्हि किएक तँ एहिठाम पहिने भर राजपूत लोकनिक प्रधानता छल। हुनका बाद हुनक पुत्र पुरूषोत्तम ठाकुर शासक भेला। हिनक बजाहटि मुगल राजस्व पदाधिकारीक ओहिठाम भेल छलन्हि आ राजस्व पदाधिकारी दरभंगाक किला घाटमे ठहरल छलाह। ओहि पदाधिकारीकेँ मुगलशासकक हाथे सजा भेटलैकि। हिनकहि शासनकालमे तिरहूतक दूटा ब्राह्मणकेँ मुगल दरबारमे पुरष्कार भेटल छलैक। पुरूषोत्तमक बाद हुनक सतभाय नारायण ठाकुर राजा भेलाह। नारायण ठाकुरक समयमे दू फरमान भेटल छ्लैक जाहिसँ दूटा गामक न ननकार प्राप्त भेल छलन्हि–सरसो (परगन्ना भौर) आ बिजिलपुर (परगन्ना वेराय)। भखारा परगन्नाक स्थितिकेँ सुधारबामे हिनक विशेष हाथ छलन्हि आ १६४५ तक ओ राज्य करैत रहलाह। तकर बाद सुन्दर ठाकुर राजा भेलाह। राज्यक बटबाराक संकेत भेटइत अछि। एहिकालमे शाहजहाँक शासन छल आ हकीकत अली नामक एक व्यक्ति दरभंगाक नवाब छलाह।
“ल सं ५०९ श्रावणवदि १४ खौ पुनः परमभट्टारकाश्व
पति गजपति नरपति राज्य त्रयाधिपति
सुरत्राण शासत शाहजहाँ सम्मानित नओवाव
हकीकत खाण संभुज्यमान तीरभुक्त्यंतरित, स्स्
तीसाठतया संलग्न झोरिया ग्रामे….।
हिनके शासन कालमे मैथिल रघुदेव शाहजहाँक विरूदावली बनौने छलाह। सुन्दर ठाकुरक बाद महिनाथ ठाकुर राजा भेलाह। ओ पलामू आ मोरंगमे मुगल सम्राटक सहायता केने छलथिन्ह जकर सबूत उपलब्ध अछि। सुन्दर ठाकुर सुन्दरपुर मोहल्ला बसौलन्हि आ भालपट्टीमे सुन्दर सागर पोखरि खुनौलन्हि। एहि पोखरिक नाम रामकविक आनन्द विजय नाटिकामे भेटइत अछि। सुन्दर ठाकुर देखबामे बड्ड सुन्दर छलाह–
“अरविन्द विनन्दित सुन्दर लोचन
सुन्दर ठक्कुर सुन्दरता।
मदनेन समं विधिना तुलिता
कलिता मिथिलैक पुरन्दरता।
तव खण्डवला कुल मण्डन भूप।
सदा मतिरस्तु मुकुन्द रता
नैने नगरे निले कमलापर
वारिधि मंथन मन्दरता”–
महिनाथ ठाकुरक समयक एकटा औरंगजेबक फरमान सेहो उपलब्ध अछि। महिनाथ ठाकुरक काजसँ प्रसन्न भऽ मुगल सम्राट हिनका आ राज्य देलथिन्ह–
सदर जमीन्दारी सरकार तिरहूत (तराइक संग)–१०२ परगन्ना
परगन्ना धरमपुरक जमीन्दारी
सरकार मूंगेर–एक परगन्ना–
बंगालसँ सेहो निम्नलिखित इलाका भेटलन्हि– माछक निसानी सेहो–
सरकार पूर्णियाँ–५ परगन्ना–
सरकार ताजपुर–२ परगन्ना–
महिनाथ ठाकुरकेँ बेतियाक राजा गजसिंहसँ सेहो झंझटि भेलन्हि। मिरजा, फिदाइ आ जीवन हिनका समयमे तिरहूतमे मुगल फौजदार छल। महिनाथ ठाकुरक शासन कालमे खण्डवला कुल अपन चरमोत्कर्षपर पहुँचल छल। महिनाथ ठाकुर बेतिया (सिमरॉव)क राजा गजसिंहकेँ पछाड़लन्हि जे सुगौना पहुँचिकेँ सुगौना किलामे आराम करैत छलाह।
“धाय मिथिलाकेँ महिनाथ सिंह महाराज
बाजकेँ झपटते सुगाओंपर चढ़ि गयौ।
घेराकरि दौड़ि दरवाजेमे दरेरा लगे धरव,
लागै मुचित्यौं आगे आग सी लहरि गयो।
दौड़–दौड़ पैदल कंगुरनमे चढ़ि लागै।
लेहुकी लहरि सो सोति ताल भरि गयौ।
कहु ढ़ाल कहु तरकस तलवार डारि तौलौ।
गज सिंह खोलि खिड़की दै निकल गयो।
महिनाथ ठाकुर मैथिली साहित्यक सेहो संरक्षक छलाह। हिनके समयमे लोचनक राजतंरगिणी आ नैषध काव्यक रचना भेल छल। हिनकहि समयमे इहो निर्णय भेल जे दरभंगा राज्य भविष्यमे बटत नहि आ ओहि हिसाबे उत्तराधिकारक नियम सेहो बना देल गेल।
एकर बाद नरपति ठाकुर शासक भेलाह। दुनू भाए (महिनाथ आ नरपति)क सम्बन्ध केहेन छल से निम्नलिखित काव्यसँ स्पष्ट होएत। कालीक पूजक छलाह–
“वदन भयान कानशब कुण्डल विकट दशन धन पाँती।
फूजल केश वेश तुअकेँ कहजनि नवजलधर काँती॥
काटल माथ हाथ अति शोभित तीक्ष्ण खङ्ग कर लाइ।
भय निर्भय वर दहिन हाथ कए रहिअ दिगम्बर माए॥
पीन पयोधर उपर राजित रूधिर स्त्रवित मुण्ड हारा।
कटि किङ्किणि शब कर करू मंडित सृक बहु शोणित धारा॥
वसिअ मशान ध्यान शब उपर योगिनि गणरहु साथे।
नरपति पति राखिअ जग इश्वरि करू महिनाथ सतार्थ॥
नरपति ठाकुर कुशल योद्धा छलाह आ तलवार भजबामे बेस कुशल। पलामू आ मोरंगमे जे महिनाथ ठाकुर मुगलक सहाय्यक हेतु सेना पठौने छलाह ताहिमे ओ ओहि सेनाक नेतृत्व नरपति ठाकुरक हाथमे देने छलथिन्ह। हुनक बहादुरीसँ सम्राट सेहो बड्ड प्रसन्न छलाह। एकर विवरण कतेको ठाम भेटइत अछि। उपरला पदसँ सेहो एकर भान होइयै। नेपाल तराइमे एकटा मकवानपुर राज्य छल। ओइनवार वंशक अंत भेला इ राजा लोकनि तिरहूत राज्यक किछु हिस्साकेँ हड़पि लेने छलाह। नरपति ठाकुर हिनका विरूद्ध पटनाक सूबेदारक ओहिठाम शिकायत केलन्हि आ ओहिठाम सूबेदारक आश्वासन भेटलापर ओ आन जमीन्दार लोकनिकेँ संग लए शिकार खेलबाक बहानासँ मकवानपुर राज्यपर आक्रमण केलन्हि आ ओतुका राजाकेँ गिरफ्तार कऽ लेलन्हि। ओहि राजाकेँ पकड़िकेँ दरभंगाक फौजदारक ओतए आनल गेल। ओ मिथिलाक राजाकेँ सलाना १२०० टाका आ हाथी नजराना देव स्वीकार कैल। मुगल सम्राटक संग हिनक सम्बन्ध बढ़िया छलन्हि आ तैं हिनका समयमे खण्डवला कुलक प्रतिष्ठा बढ़ल।
नरपति ठाकुरक बाद हुनक पुत्र राघव सिंह राजा भेला। ‘ठाकुर’क स्थान ओ ‘सिंह’ पदवी लेलन्हि। उहो अपन पिता जकाँ एकटा प्रतापी शासक छलाह आ हुनका मिथिला पति सेहो कहल गेल छन्हि। बेतियाक राजा ध्रुवसिंहसँ हुनका खटपट भेलैन्ह आ संघर्ष सेहो–
“नगहु खङ्ग ध्रुवसिंह तोहि उपर यम चढ़ौ।
मिथिलापति सौवेर दिन–दिन तोहि बढ़ौ॥
तेकयत कुलवधिक एतो राघव नृप राजा।
एहि दल दलन सम्मथ भीम भारत जिमि गाजा॥
कवि कहत रामरे मूढ़ सुनु जेहि दल प्रचण्ड भैरो रहत।
ठहरे फौज जाथ इति कोन जब सरदार खाँ तेगा गहत”॥
प्रसिद्ध अफगान लड़ाकू सरदार खाँ हिनका दरबारमे छल। बिहारी लाल अपन ‘आयनी तिरहूत’मे लिखने छथि जे औरंगजेब हिनको राजाक उपाधि देने छलन्हि। किछु गोटएक मत छन्हि जे इ पदवी हुनका अलीवर्दीसँ भेटल छलन्हि। एक लाख टाका जमाक हिसाब इ तिरहूत राज्यक मुकर्ररी लेने छलाह। नवावक दिवान धरणिधरकेँ सेहो ५०,००० टाका नजराना दैत छलथिन्ह। मकवानीक राजा जखन वार्षिक नजराना देव बन्द कऽ देलन्हि तखन हुनका मकवानपुरक खिलाफ सेहो आक्रमण करए पड़लन्हि। युद्धक घोषणा होइतहुँ मकवानीक राजा हिनकासँ मेल मिलाप कऽ लेलथिन्ह आ बेसी नजराना देवाक प्रतिज्ञा केलथिन्ह। हिनका समयमे एक आ प्रसिद्ध घटना भेल। बीरू कुरमी जे पहिन का ओतए रहैन्ह तकरा ओ राजस्व पदाधिकारी बनाकेँ धर्मपुर परगन्ना पठौलन्हि। बीरू ओतए अपन एकटा किला बना लेलक आ ओहिसँ राजकेँ राजस्व पठाएब बन्द कऽ देलक। ओकरा विरूद्ध सेना पठाओल गेल आ ओहिमे वीरूक बेटा मारल गेल आ वीरू पराजित भेल। ओकरा सम्बन्धमे निम्नलिखित कहावत अछि–
“वीरनगर वीर साह का बसे कौशिका तीर
का पति राखे कौशिका का राखे रघुवीर”।
बुकाननक पुर्णियाँ रिपोर्टमे लिखल अछि जे वीरूक हाल सुनि सरमस्त अली खाँक नेतृत्वमे दिल्लीसँ सेना पठाओल गेल। पहिल बेर तँ ओ सेना पराजित भऽ गेल मुदा दोसर बेर राघव सिंहक मदतिसँ वीरू पराजित भेल। राघव सिंहक अधिकार पुनः समस्त परगन्नापर भेलैन्ह परञ्च नाथपुर आ गोराड़ी हुनकासँ लकए पुर्णियाँक राजाकेँ दऽ देल गेलैन्ह। राघव सिंह दानी आ उदार व्यक्ति छलाह आ बहुत रास मन्दिर इत्यादिक निर्माण सेहो करौने छलाह। हुनक दूटा शिलालेख उपलब्ध अछि–
मधुरवाणीश्वर (परगन्ना हाटी)क शिलालेख–ॐ नमः शिवाय।
आसीन्नासीर दासी भवदरि निवह(:) क्ष्माभृताँकोऽपि धन्यः
पुण्य(:) श्री शालिखण्डोरय (मल) कव रसमाहुति वंशाग्रगण्यः॥
समस्तो यावदात स्फुरदमलयशोरा सिरस्वती कृतान्य–
स्त्रीकः श्रीकण्ठ भक्तिस्फुट घटितमतिस्तीरभुक्तिश्वरोयः॥
तस्य श्रीमन्नरपतिसिंहस्यासन् सुताः फलतपसः
श्रीमद् राघव सिंहो येषां ज्यायान्महाराजः॥
श्रीनन्द नन्दन इति प्रथितः पृथिव्यां।
सवस्वदोऽस्य नृपतेरभवतकनीयन्।
श्री भानुदग्र गुण ठाकुर सिंह नामा।
कामारिसक्त हृदयोऽवरजस्तदीयः॥
एतेषांतु विशेषज्ञा प्रज्ञावज्ञातधीरधीः।
स्वसामधुरवाणीति नामतोऽप्यर्थतोऽप्यभूतः॥
नखन वंशकवीर श्रीमद्धरिजीव शर्मणः कृतिनः।
कल्पमहीरूहदान प्रभृति महादान यायिनी दयिता॥
शाके लोचन वाण (१६५२) भूपति मते मास शुभे माघवे।
पक्षे स्वच्छ तरेऽधि पंचभि तिथौवाचस्पतेवसिरे॥
उन्मीलन्मदगण्ड मण्डलवलद्वेतण्ड वृन्देश्वरे।
श्रीमद् राघव सिंह नाम्नि मिथिला नाथे महीशासति॥
हुनकर दोसर शिलालेख लोहना गामसँ भेटल अछि–
ॐ स्वस्ति। श्रीमद् राघव सिंह वाहु विलंसज्जेत्रास्तविक्षोभित–
प्रोधद्धरै महीप संभव यशः शुभ्रीभवद् भुतले।
प्राज्ञ श्री बलभद्र वलितो यत्नेन शम्योरिदं गर्भागारम कारयद् दृढ़तरं निर्वाण संप्राप्तये॥
शाके वारण वेदराज कमिते राकेश्वरे भास्वरे पौषे मासि विलासि मोद रचिते कामान्वितायांति थौ। शाके १६४८
राघव सिंहक बाद विष्णु सिंह शासक भेलाह। आ चार वर्ष धरि शासन कए ओ मरि गेलाह। हुनका बाद राजा नरेन्द्र सिंह राजा भेलाह। नरेन्द्र सिंहक शासन काल मिथिलामे बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। ओ बड्ड वीर छलाह। हुनका सम्बन्धमे चन्दा झा लिखने छथि–
“नृपति नरेन्द्र सिंह भेल जखन।
अरिधर कानन पसरल तखन॥
ताकि ताकि शत्रुक संघार।
कैलन्हि बहुत छात्र व्यवहार॥
कतहु जुद्धि नहि एला हारि।
अतिशय तेज तनिक तरूआरि”॥
मुसलमानसँ जखन हिनका संघर्ष भेल छलन्हि तखन नरहनक बबुआन हिनका मदति केने छलथिन्ह। नरेन्द्र सिंह आ नरहनक बबुआनक बहादुरी देखि नवाव आश्चर्यचकित रहि गेल छलाह जकर स्पष्टीकरण निम्नलिखित पद्यसँ होइछ–
“ऐसो महाघोर जोर जंग सुल्तानी
बीच झुकत बबरजंग संगर करीन्द्र हैं।
औलिया नवाव नामदार पूछै बार–बार।
ये दोनो कौन लड़त अरिवारण परीन्द्र हैं।
साहेब सुजान जैनुद्दिन अहमद खाँ सामनेयय
अजेकरत कहत कवि चन्द्र हैं।
ये तो द्रोणवारकेँशो साह के अजीत साह
आगे राघो सिंह जी के नवल नरेन्द्र हैं।
हुनका समयमे बछौर परगन्ना लऽ कए पुनः झंझट ठाढ़ भेल। बछौरक रूपनारायण इ झंझट केने छलाह। नरेन्द्र सिंह नवाव महावत जंगक ओतए जाय मुर्शिदाबादमे अपन दावी रखलन्हि परञ्च नवाव हुनकासँ अनुरोध केलथिन्ह जे ओ बछौर परगन्ना रूपनारायणकेँ दऽ देथुन्ह। राजमहल धरि सब गोटए संगहि अबैत गेलाह आ ओतए पुनः नवाव हुनकासँ आग्रह केलथिन्ह तखन नरेन्द्र सिंह एहि शर्त्तपर देबा लेल तैयार भेलाह जे ओ हुनका (नरेन्द्र सिंहक) प्रति राजभक्त रहताह आ करहिया, चिचरी आ जयनगरपर ओ कोनो प्रकारक दावा नहि करताह कारण इ सब तिरहूत राजाक सम्पत्ति छल। राजा आ नवावमे बढ़िया सम्बन्ध छलन्हि। नरेन्द्र सिंहकेँ जे सुविधा सरकार द्वारा भेटलैक तकर विवरण कम्पनीक कागज सबमे सेहो भेटइत अछि। कन्दर्पी घाटक लड़ाइक विवरण जे लाल कवि कएने छथि ताहिसँ ताहि दिनक मिथिला दरबारक ज्ञान होइछ। नरेन्द्र सिंह अपन पिताक स्मारककेँ चिरस्थायी बनेबाक कारणे सहरसा जिलामे राघवपुर (राघोपुर) नामक स्थानक स्थापना केलन्हि। मठक स्थापनाक हेतु कैक व्यक्तिकेँ दान देलन्हि। हुनक एकटा पत्नी महिषिक छलथिन्ह आ तिनके आग्रहपर ओ महिषिमे उग्रताराक मन्दिरक जीर्णोद्धार केलन्हि। हुनक दरबार विद्वानक हेतु एकटा बड़का आश्रय छल।
नरेन्द्र सिंहक पछाति प्रताप सिंह राजा भेलाह। ओ भनवारासँ राजधानी हटाके झंझारपुर अनलन्हि आ फेर ओतएसँ दरभंगा। स्थानीय परम्परामे हुनका “मिथिलेश” कहल गेल छन्हि। ताहि कालमे तिरहूतसँ बंगाल धरि चोर–डकैतक प्रभाव बढ़ि गेल छल आ कम्पनीक रेकार्डमे कहल गेल अछि जे प्रताप सिंह हिनका लोकनिकेँ मदति करैत छलाह। हिनका सजा देबाक बातपर सेहो विचार कैल गेल छल। दान देबामे इहो बड्ड उदार छलाह आ हिनक दानक कैकटा कागज सेहो भेटल अछि। हिनका समयमे फ्रान्सिस ग्रांड दरभंगा (तिरहूत)क कलक्टर छलाह। १७७४मे तिरहूतकेँ पटना प्रोविनसिअल….कौंसिलक अंतर्गत कऽ देल गेल।
१७७१मे नेपालक पृथ्वीसिंह जे भारत सरकारसँ समझौता कए कर देबाक प्रतिज्ञा केलन्हि से कर भारत सरकारकेँ राजा प्रताप सिंहक माध्यमे पठाओल जाइत छलन्हि। १७७०मे राजा प्रताप सिंहकेँ वंसीटार्ट आ राजा सितावरायसँ तिरहूतक राज्य मुकर्ररी पट्टापर भेटल छलन्हि। ओहि वर्ष तिरहूतक हेतु इस्ट इण्डिया कम्पनी एकटा सुपरभाइजर सेहो बहाल केने छल। कर देबामे विलंब भेलाक कारण हिनका झंझटक सामना करए पड़लन्हि। खेआली राम आ हिम्मत अलीकेँ तिरहूतक आर्थिक हालत जाँच करबाक हेतु पठाओल गेलन्हि।
दरभंगाक राजधानी अनबाक सम्बन्धमे निम्नलिखित काव्य उल्लेखनीय अछि–
दोहा–
“नृत्यत फणिन फणानंपर खंजन पाँखि पसारि
सो लाखि सब पूछत भऽये अद्भुत बात निहारि॥
पूछत भये नेरश तब सुनु सोति सब लोग
खंजन फणि पर शोभहिं थाको कौन संयोग”॥
कवित्त–
कहत लगे है तब मंत्री प्रबल लोग सुनियं मिथिलेश जो ज्योतिषमे प्रमाण है। सरस है भूमि याको जीति न सकत कोउ वास करिबेकेँ यह विधिकेँ निशानि है॥ सुनिकेँ आनन्द उर उमगे उछाह बढ़िकेँ बोले महाराज ने सरस भरि वाणी है। हुकुम हमारी यह जाहिर जहान करो भौरा को छाड़ि यहाँ दरभंगा राजधानी है।
दोहा–
राजधानी दरभंगा भऽ सकल गुणान खानि भौरा छाड़ि भूप तब सम्मत सबके जानि”॥
विद्या प्रेमी हेबाक कारणे महाराज प्रताप सिंह आलापुर परगन्नाक जगतपुर ग्राम ओ पंडित भवानी नाथ शर्माकेँ दानमे दऽ देलैन्ह जाहिसँ ओ आन आ विद्यार्थीक खर्च चला सकैथ।
“महाराजाधिराज श्रीमत प्रताप बहादुरः–
वंग देशाटनांतराभेक भूपाले दत्तानेक
वृत्तितरा स्वीकारक स्मार्ता धर्मज्ञ तर्क
मीमाँसा वेदांतालंकार कानन पञ्चानन
धर्मधीर श्री भवानीनाथ शर्मषु वृत्तिपत्रम
ददाति सकल छात्राध्ययन निर्वाहाय
सूर्य बिहार सरकार पटनाभ्यांतर्गत
तीरभुक्त देशांतर्गत परगन्ना आलापुर
अंतर्गत जगतपुर सारैण्यक ससीमक
सकाननक ग्रामस्य श्री विष्णु प्रीति
सम्पादनायच यवनायवन साधारण
स्वसपथपूर्वक वृत्ति रक्षणामेव करिष्यति…”
हुनका बाद राजा माधव सिंह गद्दीपर बैसलाह। ओ स्थायी रूपेण दरभंगाकेँ अपन राजधानी बनौलन्हि। १७८५सँ अद्यावधि हिनका लोकनिक राजधानी दरभंगा रहल अछि। खण्डवला कुलक इतिहासमे माधव सिंहक शासनकेँ बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। ओ अपन प्राचीन परम्पराक अनुसार समस्त तिरहूतपर प्रभुत्वक माँग अंग्रेजक समक्ष रखने छलाह आ चिरस्थायी बन्दोबस्तकेँ मनबा लेल तैयार नहि छलाह। एहि हेतु ओ सम्राट शाह आलम द्वितीयक दरबारमे सेहो दरखास्त देने छलाह आ शाह आलमसँ १८०० ई.मे एकर स्वीकृति सेहो भेट गेल छलन्हि। परञ्च कम्पनीक अधिकारी लोकनि हिनक बात नहि सुनल कैन्ह आ नहि शाह आलमक स्वीकृतियेकेँ मानल कैन्ह आ हिनका लोकनिकेँ जमीन्दारक दर्जा दऽ देल कैन्ह आ तहिये इ राजा दरभंगाक जमीन्दारी कहबे लागल जे १९४७ तक रहल।
१७८१ खेआली राम राजा कल्याण सिंहक डिप्टी बहाल भेलाह। राजा कल्याण सिंहसँ राजा माधव सिंहकेँ सेहो मतभेद भेल छ्लन्हि। एम्हर जखन कल्याण सिंह से झंझटि चलिते छ्लन्हि कि तामे हुनका दरभंगा सदर दिवानीक अदालतक हाकिमसँ सेहो मतभेद शुरू भऽ गेलन्हि। हुनक आदमी सबकेँ गिरफ्तार कऽ लेल गेलन्हि। राय मोहन लाल आ माधव सिंहक बीच तँ झंझट चलिये रहल छलन्हि। १७८३मे डनकनक हस्तक्षेप हिनक मामला सरियेलन्हि। दोसर एकटा झंझट आ हुनका शासन कालमे उत्पन्न भेल। सरदार खान अफगानक बेटा कराम अली अपन मृत्युसँ पूर्व अपन सब सम्पत्ति राजा माधव सिंहकेँ दानमे लिखि देने छ्लथिन्ह। १७९५मे दरभंगाक कलक्टर, दरभंगाक तहसिलदारकेँ आदेश देलथिन्ह जे ओ कराम अलीक सम्पत्तिकेँ जप्त कऽ लौथ। राजा माधव सिंह एकर विरोध केलन्हि आ ओम्हर कराम अलीक भगिना सेहो एकटा दरखास्त देलक जे कराम अलीक दानपत्र जाली थिक। अंतमे माधव सिंहक जीत भेल आ ओ सम्पत्ति हुनका भेटलन्हि। माधव सिंह उदार आ दानी छ्लाहे आ बहुत रास मन्दिरक निर्माता सेहो।
१८म शताब्दीक उत्तरार्द्धमे समस्त पूर्वी भारतक स्थिति चिंतनीय भऽ गेल छल आ समस्त क्षेत्रमे सन्यासी फकीरक बगे बनाकेँ चौर–डकैत चारूकात उपद्रव करैत छलाह। हिनका सबकेँ संरक्षण आ प्रोत्साहन मोरंगक राजासँ भेटइत छलन्हि। मोरंग आ तिरहूतक सीमा मिलैत–जुलैत छल। सन्यासी–फकीरक नेता छलाह खुर्रम शाह आ ओ ताहि दिन नेपालसँ मुक्त भऽ मोरंगक एकटा गाम मटिहानीमे रहैत छलाह। तिरहूतक सीमापर इ लोकनि आतंक मचौने छलाह।
१८०४मे परगन्ना छै आ फरकीयाक तिरहूतसँ अलग कऽ कए भागलपुरमे मिला देल गेलैक। माधव सिंहक समय धरि तिरहूत एक स्वायत्त हिन्दू राज्य छल जकर अपन न्यायालय छलैक आ अपन न्यायाधीश होइत छलैक। एकर सबसँ पैघ प्रमाण इ अछि १७९४ ई.क एकटा न्यायाधीशक निर्णय संस्कृतिमे भेटल अछि जाहिमे गुलामकन्याक उपर स्वत्वाधिकारक प्रश्नपर निर्णय अछि। एहि निर्णयकेँ बड़ा महत्वपूर्ण मानल गेल आ अठारहम शताब्दीक अन्तिम चरण धरि न्यायालयक निर्णय संस्कृतमे लिखल जाइत छल तकर इ प्रमाण थिक आ गुलामक स्थितिपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि।
माधव सिंहक समयसँ दरभंगा राजक स्थिति पूर्णरूपेण जमीन्दारक स्थितिमे परिवर्त्तित भऽ गेल। माधव सिंहक पछाति छत्रसिंह महाराज भेलाह। १८१२क बाद जखन अंग्रेजकेँ नेपाल संग झंझटि भेलन्हि तखन ओ लोकनि बेतिया, पुर्णियाँ आ दरभंगाक राजा लोकनिकेँ आदेश देलन्हि जे अपन–अपन सीमाक सुरक्षार्थ ओ लोकनि प्रयत्नशील रहौथ। एहि अवसरपर छत्रसिंह अंग्रेज लोकनिकेँ साहाय्य देने छलथिन्ह। एकर कारण इ छल जे नेपाली सब तिरहूत क्षेत्रमे सेहो हुलकी–बुलकी दैत छल आ एम्हर–आम्हरसँ लूट पाट सेहो करैत छल। १८१५मे हुनका महाराज बहादुरक पदवी भेटलन्हि। छत्रसिंहक समयमे बेतिया राज आ तिरहूत राजक बीचक सम्बन्ध बढ़िया भऽ गेल छल। दुनू गोटेकेँ पटनाक पाटन देवीक मन्दिरमे भेट भेलापर स्थितिमे सुधार भेलैक। सौराठक मन्दिरकेँ छत्र सिंह पूरा करौलन्हि आ ओहिमे माधवेश्वर महादेवक स्थापना सेहो। सौराठमे ओ एकटा धर्मशाला सेहो बनबौलन्हि।
हुनका बाद महाराज रूद्र सिंह गद्दीपर बैसलाह। हुनका बाद राजा महेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। हुनके समयमे सिपाही विद्रोह भेल छल। अंग्रेजकेँ बरोबरि हिनकापर शक बनल रहैत छलन्हि। अंग्रेजक निगरानी हिनकापर रहैत रहैन्ह। नाथपुर आ पुर्णियाँक बीच डाकक व्यवस्थाक हेतु इ अंग्रेजी सरकारकेँ १६टा घोड़सवार सेहो देने रहैथ। संताल विद्रोहकेँ दबेबामे सेहो इ अंग्रेजक मदति केने रहैथ मुदा तैइयो अंग्रेजकेँ हिनकापर विश्वास नहि होइत छलन्हि। १८६०मे हिनका मरलाक बाद दरभंगा १८७८ धरि कोर्ट आफ वार्डसक अधीन रहल। ओकर बाद महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह राजगद्दीपर बैसलाह। ओ एक सफल शासक, कुशल प्रशासक, विद्या प्रेमी, विधायक आ राजनीतिज्ञ छलाह। हुनका समयमे दरभंगा राज्यक उत्तरोत्तर विकास भेल। दरभंगामे लेडी डफरिन अस्पतालक स्थापना आ खड़गपुर (मूंगेर)मे सेहो एकटा अस्पतालक स्थापना केलन्हि। काँग्रेसकेँ बरोबरि चन्दा दैत रहलाह। कलकत्ता विश्वविद्यालयकेँ ओ हृदय खोलिकेँ दान देलन्हि आ दरभंगामे राज स्कूलक स्थापना केँलन्हि। ताहि दिनमे ऐहेन कोनो शिक्षण संस्था नहि छल जहिमे मांगलापर अथवा बिनु मंगनो इ सहायता नहि देने होथि। १८८८मे काँग्रेसकेँ अधिवेशन करबा लेल इ ‘लाउपर कास्ल’ प्रयागमे कीनिकेँ देने छलथिन्ह आ सालाना १०,००० टाका चंदा तँ दैते रहथिन्ह। महात्मा गाँधीसँ सेहो हिनका पत्राचार छलन्हि।
ताहि दिनक प्रधान व्यक्ति के. एम. बनर्जी, नरेन्द्र नाथ सेन, आनन्द मोहन वोस, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आदिसँ हिनका व्यक्तिगत सम्बन्ध छलन्हि। लेजिस लेटिभ कौंसिलक सेहो इ एकटा प्रमुख सदस्य छलाह आ ओहिमे सक्रिय भाग लैत छलाह। ओ बिहार जमीन्दार सभक सभापति छलाह। ओ एक पैघ पुस्तक प्रेमी सेहो छलाह।
हुनका बाद महाराज रामेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। ओ बहुत पैघ विद्वान छलाह आ किछु दिनक हेतु मैजिस्ट्रेटक पदपर सेहो इयुक्त भेल छलाह। दरभंगा, छपरा आ भागलपुरमे ओ मैजिस्ट्रेट रहल छलाह। पाछाँ ओहिसँ त्यागपत्र दए ओ लेजिस लेटिभ कौंसिलक सदस्य बनलाह। लक्ष्मीश्वर सिंहक अमल ओ राजनगरमे रहैत छलाह। ओ सरकारक खैरखाह छलाह आ अंग्रेजक संग हिनक सम्बन्ध बढ़िया छलन्हि। सनातन धर्म सभाक ओ सर्वेसर्वा छलाह। ओ बिहार जमीन्दार सभाक आजीवन सभापति रहलाह। ओ एक धार्मिक व्यक्ति छलाह। हिन्दू विश्वविद्यालयक स्थापनामे हुनक विशेष योगदान छलन्हि। हिनके प्रयासे बिहारमे संस्कृत एशोसियेसनक स्थापना भेल छल।
हिनका बाद १९२९मे महाराज कामेश्वर सिंह गद्दीपर बैसलाह। गद्दीपर बैसितहि ओ राजनगर अपन छोट भाए कुमार साहेबकेँ दऽ देलन्हि। इ राउन्द टेबिल कंफ्रेंसमे भाग लेने छलाह। जमीन्दार सभाक सभापति इहो बनल रहलाह। १९४७मे जमीन्दार उन्मूलन भेलाक बाद आन जमीन्दारी जकाँ दरभंगा राज्यक जमीन्दारी सेहो समाप्त भऽ गेल। पटना विश्वविद्यालयमे रामेश्वर सिंह मैथिली चेयरक हेतु इ १,२०,००० टाका दान देने छलाह। संस्कृत एशोसियेसनक सभापति इ बनल रहलाह आ अंतमे अपन “आनन्दवाग पैलेस”केँ संस्कृत विश्वविद्यालयक स्थापनाक हेतु दानमे देलन्हि। संस्कृत एशोसियेसनकेँ “मिथिलेश महेश”लेक्चरशिपक हेतु सेहो दान देने छलाह। दरभंगामे मिथिला रिसर्च इंस्टीच्युटक स्थापना हिनके दानस्वरूप सम्भव भेल। विभिन्न विश्वविद्यालय, महाविद्यालय आ स्कूलकेँ दान देवाक अतिरिक्त, इ पटनामे ‘इंडियन नेशन, ‘आर्यावर्त्त’ आ ‘मिथिला मिहिर’ पत्र–पत्रिकाक स्थापना सेहो केलन्हि। राज कम्पाउंटक आधुनिकरण हिनके समएमे भेर्ल। ‘दरभंगा इम्प्रूभमेंट ट्रस्ट’क स्थापना हिनके प्रयासे भेल छल। अम्हुबर १, १९६२केँ हिनक मृत्यु भेलन्हि आ खण्डबला कुलक परम्पराक सूर्यास्त ओहि दिन भेल हुनकासँ तीन वर्ष पूर्वहिं हुनक छोट भाए (कुमार साहेब)क मृत्यु भऽ चुकल छलन्हि जाहिसँ बड्ड दुखी रहैत छलाह। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंहकेँ कोनो संतान नहि छलन्हि आ तैं ओ अपना मरबासँ पूर्व एकटा “विल” बना देने छलाह जकर एक्जीक्युटर भेला पटना उच्च न्यायालयक भूतपूर्व न्यायाधीश पंडित लक्ष्मीकांत झा जे सम्प्रति काज कऽ रहल छथि। राजा बहादुर विशेश्वर सिंह (कुमार साहेब)क तीनटा पुत्र छथिन्ह कुमार जीवेश्वर सिंह, कुमार यज्ञेश्वर सिंह आ कुमार शुभेश्वर सिंह। अहिमे कुमार शुभेश्वर सिंह अपन पितीक परम्पराक निर्वाह करबाक प्रयासमे प्रयत्नशील छथि आ सभ तरहे सामाजिक आ सांस्कृतिक कार्यमे भाग लैत छथि। महेश ठाकुरक स्थापित खण्डवला कुलक इतिहास मिथिलामे ओतवे महत्वपूर्ण जतवा कर्णाट वंशक आ ओइनवार वंशक। अहि तीनू वंशमे सभसँ बेसी दिन शासन केलन्हि खण्डवला कुलक लोग। (खण्डवलाक इतिहासक हेतु देखु हमर निबन्ध–“द खण्डवालज आफ मिथिला” जाहिमे माधव सिंह धरि पूर्ण विवरण उपलब्ध अछि।)


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