मिथिलाक्षरक ऐतिहासिकता
ऐतिहासिक दृष्टिएँ मिथिलाक्षर लिपिक प्राचीनतम आओर प्रारम्भिक रूप चित्रात्मक छल । मैथिलीलिपि अर्थात् मिथि माथव सँ उत्पन्न विदेह जनकक राज्य मिथिला मे जाहि अक्षर सँ लिपिक रूप भाषाक रचना भेल, मिथिलाक्षर कहल जाइछ । मैथिली लिपिक प्राचीनतम उल्लेख, “ललित विस्तर” नामक बौद्ध ग्रंथ मे पाओल जाइछ, जतए ई “वैदेही-लिपि” कहल गेल अछि । ई पूर्वीय लिपि किंवा विदेह लिपि बंगला-आसामी ओ मैथिली-उड़िया वर्णमालाक जननी मानल जाइत अछि । मैथिलीक सभटा वर्ण-स्वरूप बंगालक प्राचीन पाण्डुलिपि मे भेटि जाइत अछि, तँ बंगाली पंडित सुविधा सँ मिथिलाक्षर पढ़ि लैत छथि । मगध तँ सहजहिं तत्कालीन वृहद विदेह मे अंगीभूत छल तें विक्रमशिला ओ नालन्दा मे लिखल मुसलमान आगमन सँ पूर्व एहन पाण्डुलिपि नेपाल मे सुरक्षित वर्णमालाक आलेख भेटैछ । परवर्त्तीकाल सातम शताब्दीक देवनागरी शैलीक वर्णमाला “कैथी”क प्रचार मगध, भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र होइत सरलता एवं संक्षिप्तताक कारणेँ मिथिला मे एकर पूर्ण प्रचार भेल । परञ्च मिथिलाक उच्च जातिक वर्ग मे प्राचीन लिपिक प्रयोग होइतहिं रहल । बाद मे मुद्रण कला विकसित भेलाक कारणें तिरहुता मे टाइपक निर्माण नहिं भऽ सकल, तखन हिन्दी साहित्यक प्रसारक संग ओकर लिपिक उपयोग मैथिलीक पोथी छपबा मे होमय लागल । ई स्थिति अद्यपर्यन्त अछि ।
मिथिलाक्षरक सभ सँ प्राचीन रूप “बौद्धगान” ओ “दोहा”क प्राचीन पाण्डुलिपि मे भेटैछ । एहि मध्य आलेखक तिथि नहिं भेटैछ । एहिना नेपालक पुस्तकालय सभ मे कतिपय अतिप्राचीन पाण्डुलिपि भेटैछ । राहुल सांकृत्यायन तिब्बत मे सुरक्षित कतोक पाण्डुलिपिक उल्लेख कएने छथि । “बिहार रिसर्च सोसाइटी” पटना मे सेहो मिथिलाक्षर मे लिखित संस्कृत ग्रन्थक पाण्डुलिपि सुरक्षित अछि ।
मिथिला मे लिपिक प्राचीनताक एकटा प्रमाण विदेह राज्यक स्थापना पहिने मिथिला मे व्रात्यनामक आदिवासीक प्रसंग संहित ओ ब्राह्मण-ग्रंथ सभ मे नीचवाचक शब्दक प्रयोग भेटैछ । व्रात्यलोकनिक सम्पूर्ण उत्तरी भारत मे प्रभावपूर्ण संस्कृति, साहित्य, भाषा, लिपि लौकिक छल, तेँ व्रात्य लोकनि ब्राह्मण ग्रंथ मे अनादरक पात्र छथि । महाभारत मे लिच्छवी केँ व्रात्य, क्षत्रिय तथा भगवान बुद्ध वज्जीक संज्ञा देने छथि, जकर अर्थ होइछ घुमक्कर । व्रात्यभाषा केँ बाटुला वर्त्तनी कहल जाइछ । मिथिला मे वर्णमाला केँ अद्यपर्यन्त वर्त्तनी कहल जाइछ, जे मिथिलाक्षर व्रात्य लोकनिक लिपिक संग घनिष्ठ सम्बन्धक सूचना दैछ । जाहि सँ मिथिलाक्षरक मूल अंश “ललित-विस्तर”क विदेह लिपि सँ बहुतो प्राचीन सिद्ध भए जाइछ ।
मिथिलाक्षरक उत्पत्ति कहिया ओ कोन रूपेँ भेल, निश्चित रूपेँ नहि कहल जा सकैछ, परंच प्रमाणस्वरूप “शतपथ ब्राह्मण”क अनुसार आर्यक एक दल माधव विदेह एवं हुनक पुरोहित रहुगणक नेतृत्व मे सरस्वती नदीक तट सँ सटले विदेह राजवंशक स्थापना कएल । संभव थीक जे ओ दल अपना संगे सिन्धु घाटीक सभ्यता, संस्कृत भाषा ओ लिपि सेहो अनने हो । “वृहदारण्य उपनिषद”क तेसर ओ चारिम अध्याय मे वर्णित याज्ञवल्क्य मैत्रेयी संवाद गर्भित तर्क प्रणाली सँ स्वभावतः अनुमान कएल जाइछ से शतपथ कालीन विदेह सर्वांग सम्पूर्ण विकसित राष्ट्र छल जकर स्वतंत्र वैदेही भाषा ओ स्वतंत्र वैदेही लिपि सेहो रहल होयतैक । एहि तथ्यक सम्पुष्टि बौद्ध धर्मक प्रसिद्ध ग्रंथ “ललित विस्तर” जकर चीनी अनुवाद ३०८ ई. मे भेल सँ प्रमाणित होइछ । एहि ग्रंथक ६६ गोट लिपिक सूची मे पूर्व-विदेह लिपिक चर्चा भेटैछ । विदेह लिपि सर्वांगीण पूर्वीय क्षेत्रक लिपिक विकास मैथिली, बंगला, आसामी ओ उड़िया लिपि सँ भेल । प्राचीन भारत मे दू गोट ब्राह्मी ओ खरोष्ठी लिपि प्रचलित छल । लिपिक प्राचीनतम प्रमाणेँ भारत मे पाँचम शताब्दी ई० पूर्वक पाणिनिक काल मे ब्राह्मीलिपि सँ मैथिलीक उद्भव ओ विकास भेल अछि । पूर्वी लिपि रूप सँ मैथिलीक, कैथी ओ बंगला विकसित भेल ।
मैथिलीक विकास रेखाचित्र निम्नवत् देखू :-
ब्राह्मीलिपि
उत्तरी शैली दक्षिणी शैली
गुप्तलिपि
कुटिललिपि
शारदालिपि नागरीलिपि
पूर्वीलिपि शैली पश्चिमी शैली
मैथिली, कैथी,
बंगला आदि । देवनागरी
डॉ० सुभद्र झा प्राच्य प्राकृत सँ निकलल भाषा सभ केँ निम्नरूपेँ दर्शौने छथि :-
प्राच्य प्राकृत
पश्चिमी पूर्वी
कौशल काशी मगध विदेह गौड़ ओड़ कामरूप
अवधी भोजपुरी मगही मैथिली बंगला ओड़िया आसामी
मैथिलीक विकास क्रमेँ प्राचीन मैथिली (दसम शताब्दी सँ अठारहम शताब्दी धरि) ओ नवीन मैथिली (अठारहम शताब्दी सँ अद्यपर्यन्त) दू गोट रूप मे मानल जाइछ ।
भारत भ्रमण कयनिहार तिब्बती यात्री धर्मस्वामी १२३४ ई० मे एहिठामक लिपिक चर्चा करैत ओकर नाम “बैवर्त्त-लिपि” कहलनि । ओ एहि सँ पूर्व विक्रमांकदेव चरित नामक ग्रंथ मे कुटिलाक्षर ओ कुटिल लिपिक चर्चा कएलनि अछि । सम्प्रति एकर नाम तिरहुता अछि । मुदा पढ़ल-लिखल लोक मे “मिथिलाक्षर” वा “मैथिली लिपि” रूप मे उद्धृत होइछ ।
म० म० हर प्रसाद शास्त्री “हाजार बछरेर पुरातन बौद्धगान ओ दोहा”क तालपत्रक आधार पर प्राचीनतम अभिलेख केँ “तिरहुता” कहि प्रकाशित कएलनि अछि । राहुल सांकृत्यायन “कुरुकुल्लासावन” नामक एक ग्रंथ तिब्बत मे प्राप्त कऽ ओहि लिपि के प्राचीनतम तिरहुता बतौलनि अछि । राजा नान्यदेवक मंत्री श्रीधर कायस्थक अंधराठाढ़ी (१०९७) ई० मे प्रायः सर्वप्रथम शुद्ध मिथिलाक्षरक दर्शन होइत अछि । तदन्तर नान्यदेवक बालक मलदेवक राजधानी भीठ भगवानपुरक लक्ष्मीनारायणक मूर्त्तिक नीचा शिलालेख मिथिलाक्षर मे अछि । एकर अतिरिक्त पनिचोभ ताम्रपत्र, आशी-शिलालेख, तिलकेश्वर गढ़ अभिलेख, खोजपुर अभिलेख, भागीरथपुरक शिलालेख, पोखराम गामक रामजानकी मन्दिर मे अवस्थित लक्ष्मीनारायणक मूर्त्तिक नीचाँ शिलालेख आदि मिथिलाक्षर मे देखल पाओल जाइत अछि ।
विद्यापतिक हाथ सँ (१४१८ ई०) लिखल भागवतक प्रतिलिपि मिथिलाक्षर मे कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा मे सुरक्षित अछि । मैथिली लिपिक वर्ण-विन्यासक नियम “कामधेनु तंत्र” ओ “वर्णोद्धारतंत्र” मे प्रकाशित अछि । एकर प्रचार बंगाल ओ आसाम धरि अछि ।
प्राचीन ताम्रलिपि वा शिलालेख मिथिलाक्षर मे प्राप्त अछि । सम्प्रति मिथिलाक्षरक स्थान पर देवनागरी लिपिक प्रयोग होइत आबि रहल अछि ।
(Posted 1st June 2011 by BAREL) BARABABU