मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक साधन

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मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक साधन

भारतीय इतिहासक अध्ययनक हेतु जतवा जे स्त्रोत उपलब्ध अछि तकर शतांशो मिथिलाक इतिहासक हेतु नहि अछि। मिथिलाक दुर्भाग्य इहो जे पुरातत्ववेत्ता लोकनिक ध्यान आर्य सभ्यताक पूर्वी सीमाक प्राचीनतम केन्द्र दिसि अद्यावधि नहि गेल छन्हि। पता नहि जेतैन्ह अथवा नहि। मिथिलाक प्राचीन भौगोलिक सीमा, जाहिमे जनकपुर आ सिमराँवगढ सेहो सम्मिलित अछि, कविशेष भाग सम्प्रति नेपाल तराइमे पड़इत अछि आ ओतए सरकारक दिसिसँ एहि क्षेत्रक प्राचीन ऐतिहासिक तत्वक पता लगेबाक हेतु अखन धरि कोनो सशक्त प्रयास नहि भेल अछि। मोतिहारी, वैशाली, गोरहोघाट, पुर्णियाँ, आदि क्षेत्रक यदा–कदा पुरातत्वक खोज भेला उत्तरो एहि दिसि ध्यान नहि देल गेल अछि। आ तैं मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक जे एकटा महत्वपूर्ण स्त्रोत होएबाक चाही से सम्प्रति अपूर्णे अछि।
आन–आन क्षेत्रक हेतु जतबो साधन उपलब्ध भेल छैक ततओ मिथिलाक हेतु नहि भऽ सकल अछि कारण एहि दिसि मैथिल-अमैथिल इतिहासकारक ध्यान नीक जकाँ आकृष्ट नहि कैल गेल अछि। मिथिलाक प्राचीन गौरव आ साँस्कृतिक देनक अध्ययनक हेतु हमरा लोकनि अहुँखन मात्र साहित्यिक साधनेपर निर्भर करए पड़इत अछि जकर नतीजा इ होइयै जे कोनो प्राचीन प्रश्नपर हमरा लोकनि एकटा निर्णयात्मक मत नहि दऽ सकैत छी। प्रत्येक प्रश्न विवादास्पद अछि आ निर्विवाद रूपें हम अखनो इ कहबाक स्थितिमे नहि छी जे अमूक बात किंवा घटना अमूक समयमे घटित भेले हैत। इ अनिश्चितताक स्थिति अखन मिथिलाक इतिहासमे बहुत दिन धरि बनले रहत।
यूनान जकाँ हमरा ओतए नञि कोनो हिरोडोटस आ थुसीडाइड्स भेल छथि आ नञि मुसलमान शासकक इतिहासकार जकाँ कोनो इतिहासकारे। विदेशी यात्रियो लोकनि जे विवरण एहि क्षेत्रक देने छथि से मात्र सामान्ये कहल जा सकइयै आ ओहिसँ स्थितिमे कोनो परिवर्तन नहि अवइयै। एहना स्थितिमे एहि प्राचीन क्षेत्रक इतिहासक निर्माण करब एकटा जटिल समस्या बनल अछि आ ओहि समस्या मध्य हमरा लोकनिकेँ ऐतिहासिक साधन खोजिकेँ संकलित करबाक अछि।
मिथिलामे पैघसँ पैघ दार्शनिक एवँ तात्विक विषयपर ग्रंथक रचना भेल अछि जाहिसँ इ प्रमाणित होइछ जे एहिठामक लोग विज्ञ एवँ विद्वान छलाह परञ्च अपना संबंधमे किछु लिखबाक क्रममे ओ लोकनि राजर्षि जनकक विदेह नीतिये अपनौलन्हि अछि एहिमे कोनो सन्देह नहि। ‘मैथिल’ शब्द “वैदिक” युगसँ व्यवहृत होइत आएल अछि आ एहिसँ इ स्पष्ट होइत अछि जे ताहि दिनसँ मिथिलाक भौगोलिक इकाइ स्वीकृत अछि आ एहि भौगोलिक क्षेत्रमे रहनिहार मैथिल कहबैत छलाह–बिहारमे एतेक प्राचीन गौरव आ कोनो क्षेत्रकेँ प्राप्त नहि छैक तथापि एकर इतिहास अखनो एतेक संदिग्ध आ अनिर्णयात्मक स्थितिमे अछि से एकटा विचारणीय विषय।
प्राचीन मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु मुख्य साधन अछि वेद, उपनिषद्, ब्राह्म साहित्य, अरण्यक, महाभारत, रामायण, पुराण, स्मृति, पाणिनि, पतञ्जलि, आदिक रचना एवँ तत्कालीन बौद्ध आ जैन साहित्य। मिथिलाक सम्बन्धमे सूचना हमरा लोकनिकेँ यजुर्वेद एवँ अथर्ववेदसँ भेटए लगैत अछि यथापि अप्रत्यक्ष रूपें मिथिलाक ऐतिहासिक घटनाक विवरण ऋग्वेदमे सेहो देखल जा सकइयै। शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, पंचविंश ब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद्, एवँ छन्दोग्योपनिषद्मे मिथिलाक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, एवँ धार्मिक अवस्थाक विस्तृत विवरण भेटइत अछि। एहिमे सभसँ महत्वपूर्ण विवरण शतपथ ब्राह्मणक अछि जाहिमे जनककेँ सम्राट कहल गेल अछि आ संगहि याज्ञवल्क्यक संरक्षक सेहो। साँस्कृतिक स्थितिक अध्ययनक हेतु तँ उपरोक्त साधन अद्वितीय अछि आ एहि बातकेँ विदेशी विद्वान सेहो मानैत छथि। एहिमे संदेह नहि जे एहि युगमे ब्राह्मण वर्गक प्रधानता छल तथापि परीक्षितक बादसँ जनक वंशक इतिहासक हेतु उपरोक्त साधनक अध्ययन अत्यावश्यक मानल जाइत अछि। एतरेय ब्राह्मणसँ तत्कालीन अवस्थाक विवरण भेटइत अछि आ उपनिषद् तँ सहजहि दार्शनिक विचार-विमर्शक खान अछिये। ओहिमे जाहि ढंगे वाद–विवाद अछि से सर्वथा अद्वितीय कहल जा सकइयै। पाणिनि, पतञ्जलि एवँ अर्थशास्त्र (कौटिल्यक)सँ सेहो प्राचीन मिथिलाक इतिहासक विभिन्न अंशपर प्रकाश पड़इत अछि।
बौद्ध आ जैन साहित्यक संबंधमे इ साँचि कहल गेल अछि जे जखन कोनो आन साधन मिथिलाक इतिहासक हेतु नहि प्राप्त होइत अछि तखन बौद्ध आ जैन साधन हमरा लोकनिक साहाय्यक हेतु प्रस्तुत होइत अछि। दीपवंश, महावंश, अशोकविद्वान, अश्वघोषक, बुद्धचरित, बुद्धघोषक रचना सभऽ, धम्मपद्दद्ठ कथा, असंग, वसुवन्धु, दिगनाग, धर्मकीर्ति, आदिक रचनासँ मिथिलाक सांस्कृतिक एवँ दार्शनिक इतिहासक निर्माणमे बहु साहाय्य भेटइत अछि। बौद्ध दार्शनिक लोकनिकेँ कहबाक क्रममे मिथिलामे नव–न्यायक जन्म भेल छल आ तैं ७–८ शताब्दीसँ १५–१६म शताब्दी धरि जे बौद्ध एवँ मैथिल दार्शनिकक मध्य वाद–विवाद भेल अछि से मिथिलाक साँस्कृतिक इतिहासक अध्ययनक हेतु परमाश्वयक मानल जाइत अछि। वाचस्पति मिश्र (वृद्ध)सँ लऽ कऽ शंकर मिश्र धरिक समस्त ग्रंथ आ नालंदा विक्रमशिलाक महान पंडित लोकनिक रचित ग्रंथक अध्ययन एहि हेतु सर्वथा अपेक्षित।
ओना बौद्धकालीन मिथिलाक सर्वांगीन इतिहासक हेतु समस्त जातकक अध्ययन आवश्यक बुझना जाइछ। महापदानक जातक, गाँधार जातक, सुरूचि जातक, महाजनक जातक, निमि जातक, महानारदकस्प जातक इत्यादि तत्कालीन मिथिलाक राजनैतिक समाजिक एवँ साँस्कृतिक इतिहासपर वृहत् प्रकाश पड़इयै– जाहिसँ सामान्य लोकक दैनन्दिनीक ज्ञान सेहो होइत अछि। जातकमे जे राजनैतिक श्रृंखला बताओल गेल अछि ताहिसँ पुराण वर्णित अवस्थामे काफी मतभेद अछि तैं राजनैतिक इतिहासक निर्माणमे जातकक अध्ययनमे सतर्कताक आवश्यकता अछि। सामाजिक–साँस्कृतिक–आर्थिक अवस्थाक अध्ययनक हेतु जातक प्रमुख साधन मानल गेल अछि। जैन स्त्रोतमे सेहो मिथिलाक विभिन्न स्थितिक विशद् विश्लेषण भेटइत अछि आ ओहि दृष्टिकोणसँ उतराध्यायनसूत्र, उवासगदसाओ, कल्पसूत्र, स्थविरावलीचरित्र (परिशिष्ट पर्वन) एवँ त्रिशस्तिशलाकापुरूष आदि ग्रंथक अध्ययन अपेक्षित अछि। कखनो कखनो जैन एवँ बौद्ध उपाख्यानमे समता सेहो देखबामे अवइयै। जैन–बौद्ध साहित्य आ अन्यान्य साधन मिथिलाक सामाजिक–आर्थिक इतिहासक अध्ययनक हेतु बहु लाभदायक मानल गेल अछि कारण ओहि सभ विवरणमे सामान्य लोकक जीवनपर सेहो प्रकाश पड़इत अछि। जातक आदिसँ इहो ज्ञात होइछ जे कोना ताहि दिनक मैथिल अपन घर दुआ छोड़िकेँ व्यापार–व्यवसायक हेतु देश–विदेश जाइत छलाह आ ओहिमे बहुत गोटए ओहिठाम बैसिओ जाइत छलाह। ओ लोकनि वेस उद्यमी आ परिश्रमी होइत छलाह आ समुद्र यात्राक हेतु कोनो संकीर्णता हुनका लोकनिमे नहि छलन्हि।
महाभारत, रामायण, आ पुराणमे मिथिलाक सबंधमे प्रचुर सामग्री अछि परञ्च एहि तीनूमे वैज्ञानिकताक हिसाबें कतहु कोनो साम्य नहि छैक। पुराणक विभिन्न खण्डमे जतवा जे नामावली अथवा राजाक सूची भेटइत अछि ताहिमे एकरूपता नहि देखबामे अवइयै आ एहि विरोधाभाससँ इतिहासक सामान्य विद्यार्थी अगुताकेँ घबरा जाइत अछि। ब्रिटिश विद्वान पारजीटर महोदय आ बंगाली विद्वान प्रधान महोदय बड्ड परिश्रम कए पुराण रूपी जंगलसँ मिथिलाक राजवंशक इतिहासक एकटा रूपरेखा प्रस्तुत करबामे समर्थ भेल छथि तथापि ओकरा सर्वसम्मत अखनो नहि मानल जाइत छैक। प्राचीन–कालमे इतिहास–पुराण एकटा अध्ययनक महत्वपूर्ण विषय छल आ अध्ययनक दृष्टिकोणसँ एकरा पंचमवेद सेहो कहल गेल छैक तथापि एकरा अध्ययनमे जे एकटा वस्तुनिष्ठताक अपेक्षा छल से प्राचीन विद्वान लोकनि नहि राखि सकलाह आ पुराणमे ततेक रास एम्हर–ओम्हरक बात घुसिया गेल जे एकर ऐतिहासिकतामे लोगकेँ संदेह होमए लगलैक। एहिठाम एतवा स्मरणीय जे एतवा भेला उत्तरो पुराण, रामायण आ महाभारतक एतिहासिक महत्वकेँ काटल नहि जा सकइयै। परंपरागत इतिहासक जे अपन महत्व छैक ताहि हिसाबे उपरोक्त साधनक अध्ययन कऽ कए हमरा लोकनि मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे एहिसँ साहाय्य लऽ सकैत छी।
मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु लिगिटमे मैनुस्कृप्ट सेहो आवश्यक बुझना जाइत अछि। एहिसँ मिथिला आ वैशाली दुनूक इतिहासपर प्रकाश पड़इत अछि। एहिमे कहल गेल अछि जे जखन वैशालीमे गणराज्य छल तखन मिथिलामे राजतंत्र आ मिथिलामे ताहि दिनमे एकटा प्रधानमंत्री छलाह जिनक नाम खण्ड छलन्हि आ हुनका अधीनमे ५०० अमात्य रहथिन्ह।
संस्कृत साहित्यक विभिन्न अंशसँ मिथिलाक इतिहासक अध्ययनमे सहायता भेटइत अछि। कालिदास, भवभूति, दण्डिन, राजशेखर, आदिक रचनासँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्षपर प्रकाश पड़इयै। लक्ष्मीधरक कृत्यकल्पतरू, श्रीनिवासक भद्दीकाव्यटीका, जयसिंहक लिंगवार्त्तिक, श्रीधर ठक्कुरक काव्यप्रकाशविवेक, नारायणक छांदोग्यपरिशिष्ट एवँ मिथिला आ भारतक अन्य भागसँ प्राप्त मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपि आदिसँ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटइत अछि। विल्हणक विक्रमाँकदेवचरित, विद्यापतिक समस्त रचना, वर्धमानक दण्डविवेक, अभिनव वाचस्पति मिश्रक समस्त रचना, गणेश्वरक सुगति सोपान, चण्डेश्वरक आठो रत्नाकर, ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्णनरत्नाकर आदि ग्रंथ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे उपादेय सिद्ध भेल अछि। बिहार रिसर्च सोसायटी द्वारा प्रकाशित “कैटलोग आफ मिथिला मैनुस्कृप्ट” (४ भाग), हरिप्रसाद शास्त्री द्वारा संपादित “कैटलोग आफ नेपाल दरबार मैनुस्कृप्ट” इत्यादिसँ सेहो मिथिलाक इतिहासक सभ पक्षपर विशेष प्रकाश पड़इयै। मिथिलामे सुरक्षित तालपत्रपर ब्राह्मण आ कायस्थक पाञ्जि सेहो मिथिलाक सामाजिक इतिहासक एकटा मूलि स्त्रोत मानल गेल अछि।
ओना पुरातात्विक साधनक अभाव तँ मिथिलामे अछि तथापि मोतिहारीसँ बंगालक सीमा धरि जे विभिन्न पुरातात्विक महत्वक स्थान अछि तकर सर्वेक्षणसँ मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटत। मिथिलाक प्रमुख क्षेत्रक उत्खनन अखनो नहि भेल अछि तैं ओहिठामसँ पर्याप्त मात्रामे शिलालेख, सिक्का, आदि नहि भेटल अछि। एम्हर मोतिहारीसँ कैकटा ताम्रलेख प्रकाशित भेल अछि, मुजफ्फरपुरक कटरा थानासँ जीवगुप्तक एकटा अभिलेख भेटल अछि जाहिसँ पता लगैत अछि जे तीरभुक्तिमे चामुण्डा नामक एकटा विषय छल। इमादपुरसँ पाल कालीन अभिलेख भेटल अछि जाहिसँ इ सिद्ध होइछ जे पाल लोकनिक शासन मिथिलापर छल। नौलागढ (बेगुसराय)सँ दूटा पालकालीन अभिलेख भेटल अछि– जाहिमे एकटा क्रिमिला विषयक आ दोसरमे एकटा बिहारक उल्लेख अछि। एहिठाम इहो स्मरणीय जे एहि क्षेत्रसँ गुप्तकालीन मोहर एवँ ‘रक्षमुक्त विषय’क एकटा गुप्तकालीन मोहर सेहो भेटल अछि जाहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे मिथिलाक इ क्षेत्र शासनक प्रधान केन्द्र छल। बनगाँव (सहरसा)क गोरहोघाट, पटुआहा, आदि स्थानसँ पंचमार्क्ड सिक्का तँ बहुत पूर्वहिं भेटल छल आ एम्हर विग्रहपाल तृतीयक एकटा प्रमुख ताम्रलेख बहरायल अछि जाहिमे इ कहल गेल अछि जे तीरभुक्तिक अंतर्गत हौद्रेय नामक एकटा विषय छल। इएह हौद्रेय आधुनिक हरदीथिक। एहिसँ पूर्व हमरा लोकनिकेँ तीरभुक्तिमे मात्र एक्केटा विषयक ज्ञान छल आ ओ छल ‘कक्ष’ विषय जकर उल्लेख नारायण पालक भागलपुर ताम्रलेखमे भेल अछि। इ कक्षविषयक सम्बन्धमे अखनो धरि इतिहासकार एकमत नहि भेल छथि मुदा हमर अपन विचार इ अछि जे इ ‘कक्ष’ विषय प्राचीन अंगुतरापमे छल आ महाभारतमे वर्णित ‘कौशिकी कक्ष’क प्रतीक छल। नारायण पालक ताम्रलेखमे एहि कक्ष विषयक विवरण भेटइत अछि। चामुण्डा विषय पश्चिममे, हौद्रेय केन्द्रमे आ कक्ष विषय तीरभुक्तिक पूर्वी सीमाक संकेत छल। एकर अतिरिक्त पंचोभसँ प्राप्त ताम्रपत्र सेहो मिथिलाक इतिहासक अध्य़यनक हेतु अत्यावश्यक। अन्धराठाढी़सँ प्राप्त श्रीधरक अभिलेख, कन्दाहासँ नरसिंह देव ओइनवारक अभिलेख, भगीरथपुरसँ प्राप्त ओइनवार कालीन अभिलेख, मुहम्मद तुगलकक अभिलेख, वेदीवनक तुगलक कालीन अभिलेख, इब्राहिम शाह शर्कीक अभिलेख, शिवसिंहक सिक्का, ओइनवार शासक भैरव सिंह देवक चाँदीक सिक्का आदिसँ मिथिलाक इतिहासक विभिन्न पक्षपर प्रकाश पड़इत अछि। नेपाल वंशावली आ नेपालसँ प्राप्त अभिलेख जाहिमे सिमराँवगढ स्थित नान्यदेवक तथाकथित अभिलेख एवँ प्रताप मल्लक शिलालेख महत्वपूर्ण अछि। एम्हर आबिकेँ वैशाली, बलिराजगढ, करिऔन आदि स्थानक उत्खननसँ जे सामग्री प्राप्त भेल अछि सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माणमे सहायक सिद्ध भेल अछि। महेशवारा (बेगूसराय)सँ प्राप्त रूकनुद्दिन कैकशक अभिलेख तँ अन्यान्य दृष्टिकोणसँ महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक विभिन्न भागसँ मुसलमानी सिक्का पर्याप्त मात्रामे भेटल अछि जाहिसँ राजनैतिक इतिहासक निर्माणमे सहायता भेटइत अछि। मटिहानी (बेगूसराय)सँ बंगालक सुल्तान नसरत शाहक अभिलेख सेहो भेटल छल आ कहल जाइत अछि जे बेगूसरायक समीप नूरपुरगाँवमे मीरजाफरक पुत्रक एकटा अभिलेख अछि।
विदेशी यात्री लोकनि सेहो मिथिलामे आएल छलाह आ एहिमे चीनसँ आयल यात्री लोकनिक विशेष महत्व अछि कारण ओ लोकनि एतए बौद्धधर्मक अध्ययनार्थ अबैत छलाह। फाहियान, हियुएनसंग, सूंगयुन, इंसिंगआदि यात्रीक नाम उल्लेखनीय अछि। इ लोकनि मिथिलाक विभिन्न क्षेत्रक भ्रमण कएने छलाह आ ओ लोकनि जे अपन विवरण लिखने छथि ताहिसँ एहि क्षेत्रपर विशेष प्रकाश पड़इयै। वृज्जी, लिच्छवी एवँ तीरभुक्तिक प्रसंग हिनका लोकनिक लेख उपादेय अछि। विदेशी यात्रीमे सर्वप्रमुख व्यक्ति, जे मिथिलाक हेतु सर्वतोभावेन महत्वपूर्ण कहल जा सकैत छथि, भेलाह तिब्बती यात्री धर्मस्वामी जे १३म शताब्दीक पूर्वार्द्धमे मिथिला होइत नालंदा गेल छलाह। तखन मिथिला राजगद्दीपर कर्णाटवंशीय रामसिंह देव विराजमान छलाह। धर्मस्वामी मिथिलाक संबंधमे बहुत रास बात लिखने छथि। बहुत दिनधरि ओ रामसिंहक दरबारमे सेहो रहल छलाह आ रामसिंह हुनका अपन पुरोहित बनबाक हेतु आग्रहो केने छलथिन्ह परञ्च ओकरा ओ स्वीकार नहि केलन्हि। ताहि दिनमे मिथिलापर मुसलमानी आक्रमण प्रारंभ भऽ चुकल छल तकर विवरण ओ दैत छथि कारण जखन वैशाली बाटे जाइत छलाह तखन ओ अपना आँखिये इ सभ घटना देखलन्हि। धर्मस्वामी मिथिलाक इतिहासक हेतु एकटा आवश्यक स्त्रोत भेला। एकटा दोसर महत्वपूर्ण साधन भेल वसातिलुनउंस जकर लेखक छलाह मुहम्मद सद्र उला अहमद हसन दाबिर इदुसी (उर्फ ताज) आ ओ इखतिसान उद देहलवीक नामे सेहो विख्यात छलाह। ओ गयासुद्दीन तुगलकक संगे बंगाल आक्रमणमे गेल छलाह आ घुरती कालमे मिथिला पर गयासुद्दीन तुगलकक आक्रमणक समयमे हुनके संग छलाह। तैं इहो एकटा आँखि देखल साधन भेल आ ओहि हिसाबे महत्वपूर्ण सेहो। फोलियो १२ (एकर सम्पूर्ण पटनाक काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थानमे सुरक्षित अछि आ ४टा फोलियो जकर संबंध मिथिलाक इतिहाससँ छैक, हमर हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुतमे छपल अछि)पर लिखल अछि जे हरिसिंह देव ककरो कोना सलाह नहि सुनलन्हि आ पराकेँ पहाड़ दिसि चलि गेलाह। गयासुद्दीन तुगलकक तिरहूत आक्रमणक संबंधमे एहिसँ प्रामाणिक दोसर कोनो साधन उपलब्ध नहि अछि। तिरहुत ताहि दिन विस्तृत आ सुखी संपन्न राज्य छल आ अखन धरि ककरो अधीन नहि छल तैं गयासुद्दीन बंगालसँ घुरबा काल अपना अधीनमे करबाक प्रयास केलक। इसामी अपन फुतुह–सालातीनमे लिखने छथि जे गयासुद्दीन तिरहुतक कर्णाटवंशक अंतिम राजापर आक्रमण केँलन्हि आ ओ बिना कोनो प्रकारक विरोध केने पहाड़–जंगल दिसि भागि गेलाह। सुल्तान तीन दिन धरि ओतए ठहरलाह आ जंगलकेँ काटिकेँ सम्पूर्ण क्षेत्रकेँ साफ करौलन्हि। तेसर दिन ओ मिथिला राज्यक विशाल किला जकर दिवाल गगनचुम्बी छल आ जे सात टा गहिर खाधिसँ चारू कातसँ घेरल छल, पर आक्रमण केँलन्हि आ ओहिपर विजय प्राप्त केला उत्तर ओहि किलामे दू या तीन सप्ताह रूकला आ चारू दिसक विरोधकेँ दबैलन्हि आ एवँ प्रकारें मिथिलापर अपन प्रभुत्व स्थापित केलन्हि। जेबासँ पूर्व ओ तवलिघाक पुत्र धर्मात्मा अहमदकेँ तिरहुतक प्रधान बनौलन्हि। एवँ प्रकारे एक–दू मासक बाद गयासुद्दीन अपन राजधानी दिसि चलि गेलाह। फरिस्ता आ मुल्लातकिया जे राजाक गिरफ्तारीक गप्प लिखैत छथि से गलती बुझि पड़इयै। वसातिनुलउंसक अनुसार तिरहुतक राजा समृद्धशाली छलाह, आ हुनका सैनिकक कोनो अभाव नहि छलन्हि। विराट राजभवन छलन्हि आ सभ तरहें ओ सुखी आ सम्पन्न छलाह। अपन अजेय दूर्ग–किलाबंदी आ सेनापर अटूट विश्वास छलन्हि आ आइ धरि कतहु हुनक माथ झुकल नहि छलन्हि। गयासुद्दीनक पहुँचबाक समाचार सुनितहिं ओ एतेक भयभीत भऽ गेलाह जे हुनक सब घमण्ड धूल–धूसरित भऽ गेल। अपन प्रतिष्ठा बचेबाक हेतु ओ अपन तेज घोड़ापर चढ़िकेँ भागि गेलाह। वसातिनुलउंसक लेखकक विचार अछि जे जँ राजा मेलसँ चाहतैथ तँ गयासुद्दीन हुनका संग बढ़िया व्यवहार करितथिन मुदा ओ बिनु कोनो प्रकारक वार्ता कएने भागि गेला। अपन स्वतंत्रताक रक्षाक हेतु ओ पहाड़क कोरामे नुका रहलाह। गयासुद्दीन ओहिठाम थोड़ेक दिन ठहरि समस्त राज्यक शासनक व्यवस्था अपने निर्देशनमे केलन्हि। ग्राम मुखिया (मकोद्दम) लोकनिक संग नीक व्यवहार दर्शौलन्हि आ तकर बाद सब प्रबंध केला उत्तर ओहिठामसँ अपन राजधानी दिसि बढ़लाह।
एकर अतिरिक्त एकटा आ महत्वपूर्ण साधन अछि मुल्ला तकियाक वयाज। मुल्ला तकियाक वयाज पटनाक मासिक (पटना–१९४६)मे छपल अछि आ ‘मिथिला’ साप्ताहिकमे सेहो एकर मुख्य साराँश मैथिलीमे छपल छल बहुत दिन पूर्वहिं जे आब उपलब्ध नहि अछि। मुल्ला तकिया मुगल कालीन रइस छलाह। आसाम जेबाक क्रममे मिथिला होइत गेल छलाह आ ताहि दिनमे एहिठाम जत्तेक जे किछु छल तकर विस्तृत विवरण संकलित कए ओ मिथिलाक एकटा व्योरेवार इतिहास बनौने छलाह। एकर अतिरिक्त फरिता, अलवदाओनी, अबुल फजल, अब्दुल सलिम आ गुलाम होसेन हुसेनक पोथी सभसँ सेहो मिथिलाक इतिहासपर पर्याप्त प्रकाश पड़इत अछि।
मुसलमानी साधनक अतिरिक्त इस्ट इण्डिया कम्पनीक रेकार्डस, कलक्टरेटक कागज पत्र, अंग्रेज कर्मचारी लोकनिक मध्य भेल पत्राचार, जमीन्दारीक कागज आ दरभंगा राजक सचिवालय एवँ रेकार्डस रूममे सुरक्षित पुरान कागज सभ सेहो मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु सहायक सिद्ध होएत। मिथिलामे जे बहुत रास जमीन्दारी छल ओहि सभ जमीन्दारक ओतए विभिन्न प्रकारक सरकारी गैर सरकारी कागज उपलब्ध अछि आ ओहि सभसँ मिथिलाक आधुनिक इतिहासक निर्माणमे काफी सहायता भेट सकइयै। एहि सभ कऽ संकलन एवँ प्रकाशन आवश्यक अछि– दरभंगा राज्यक इतिहासक निर्माणमे एहिसँ बड्ड सहायता भेटल अछि। दरभंगा, बनैली, नरहन, बेतिया, सुरसंड, गंधवरिया, चक्रवार आदि राजवंशक वृहद एवँ वैज्ञानिक इतिहास नहि लिखल जा सकल अछि। दरभंगा राज्यक अतिरिक्त बाँकी राज्य सभहक संबंध हमरा लोकनिकेँ पूर्ण जानकारियो नहि अछि कारण साधनक अभाव अछि।
एहि सभ साधनक वैज्ञानिक अध्ययन केलासँ मिथिलाक प्रामाणिक इतिहासक निर्माण भऽ सकइयै। सब साधनक समीचीन व्याख्या केला उत्तरे हमरा लोकनि मिथिलाक समीक्षात्मक सर्वेक्षण कऽ सकैत छी। ओना आन प्रांतक तुलना एहिठाम साधनक सर्वथा अभावे कहल जाएत तथापि जतवा जे उपलब्ध अछि ताहिपर वैज्ञानिक रूपें अध्ययन करब आवश्यक। मिथिलाक हेतु मैथिली साधनपर विशेष निर्भर करए पड़त। एहि प्रसंगमे एकटा उदाहरण देव अप्रासंगिक नहि होइत। विद्यापति कवि होइतहुँ इतिहासक नीक ज्ञाता छलाह जकर प्रमाण हमरा हुनक ग्रंथ सभसँ भेटइत अछि। पुरूष परीक्षा जाहि सिल–सिलेवार ढंगसँ ओ ऐतिहासिक व्यक्तित्वक विवेचन कएने छथि ताहिसँ हुनक ऐतिहासिक बोध एवँ वस्तुनिष्ठताक पता लगइयै। (एहि सबंधमे द्रष्टव्य–हमर लेख–विद्यापतिज पुरूष परीक्षा–जे हमर ‘हिस्ट्री आफ मुस्लिम रूल इन तिरहुत’क परिशिष्टमे छपल अछि।) ज्ञातव्य जे पुरूष परीक्षाक अध्ययन केला उपरांत स्वर्गीय चन्दा झा मिथिलाक इतिहासक अध्ययन दिसि आकृष्ट भेल छलाह आ ओहि संबंधमे बहुत रास सामग्री सेहो जमा केने छलाह। कीर्तिलता, कीर्तिपताका, लिखनावली आदि ग्रंथ सेहो ओतवे महत्वपूर्ण अछि। मिथिलाक इतिहासक लेल मैथिली साधनक हेतु खोज करए पड़त कारण एकर एकटा अविच्छिन्न प्रवाह वैदिक कालसँ अद्यावधि बनल अछि। यशस्तिलकचम्पूमे तिरहुत रेजिमेंटक विवरण मिथिलाक स्वतंत्र व्यक्तित्वकेँ स्पष्ट करइत अछि जकर स्पष्टोक्ति विद्यापतिमे भेल अछि। मिथिलाक इतिहासक निर्माणक हेतु उपरोक्त सभ साधनक वैज्ञानिक अध्ययन एवं ओकर समीक्षात्मक विश्लेषण अपेक्षित अछि।

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