मिथिलाक इतिहासमे मुसलमानी अमल
कर्णाट वंशक समयसँ मिथिलामे मुसलमान लोकनि हुलकी–बुलकी देव शुरू कऽ देने छल।
७११ई. जखन सिन्धपर अरब लोकनिक आक्रमण भेलैक ताहिसँ पूर्वहुसँ अरब लोकनिक सम्पर्क
पश्चिमी आ दक्षिणी भारतसँ छलैक आ ओ लोकनि ओहि क्षेत्रमे व्यापार करबाक हेतु अवैत
छलाह। जखन अरब लोकनि सिन्धपर आक्रमण केलन्हि तकर बादहिसँ भारतक संग राजनैतिक
सम्बन्धक शुरूआत मानल जाइत अछि। ७११ सँ १२०० ई.क बीच बहुत रास मुसलमान चिंतक
आ संत उत्तर भारतक विभिन्न क्षेत्रमे पसरि गेलाह आ मिथिला क्षेत्र सेहो सूफी लोकनिक एकटा
प्रधान केन्द्र छल। ओम्हर पूबमे बंगाल धरि बख्तियार खलजीक समय धरि मुसलमानी प्रकोप
बढ़ि चुकल छल आ बिहारोमे गंगा दक्षिण भागमे मगधपर मुसलमान लोकनि अपन आधिपत्य
जमा चुकल छलाह। मिथिलेटा एकटा भाग बचल छल जाहिपर हिनका लोकनिक नियंत्रण अखन
धरि नहि भेल छलन्हि यद्यपि इ लोकनि एहि बातक हेतु सतत प्रयत्नशील रहैत छलाह।
मुल्ला तकियाक वयाजक अनुसार तँ मुसलमान लोकनि बख्तियार खलजीक समयमे मिथिलोपर आक्रमण कएने छलाह यद्यपि एकर कोनो आन प्रमाण ओना नहि भेटइत अछि। गंगाक मार्गसँ जेवा काल किवाँ गंगा कोशीक संगम दिसिसँ भने इ लोकनि लूट–पाट करैत होथि से दोसर कथा मुदा हिनका लोकनिक आधिपत्य तिरहूतपर भेल नहि छलन्हि। पूबमे मिथिलाकेँ मुसलमानी प्रगतिक पथमे बाधक बुझल जाइत छलैक कारण ताहि दिनमे अहिठाम सशक्त कर्णाट लोकनिक शासन छल आ तैं सब ठामसँ विद्वान लोकनि पड़ायकेँ एतए अबैत छलाह। पश्चिमक मुसलमान लोकनि तँ तत्काल मिथिलाकेँ अपना नियंत्रणमे नहि आनि सकलाह परञ्च बंगालक मुसलमान शासकक गिद्ध दृष्टि सेहो मिथिलाक स्वतंत्र कर्णाट राज्यपर लगले रहैत छलैक आ तैं जखन कोनो मौका भेटैक तखने वो लोकनि मिथिला दिसि बढ़ि जाइत छलाह। गंगदेवक कर्णाट शासक लोकनिमे ओ शक्ति नहि रहि गेल छलन्हि जाहिसँ ओ लोकनि शक्तिशाली आक्रमणक विरोध करितैथ। १२११ आ १२२९क बीचमे बंगालक विजेता गियासुद्दीन इवाज मिथिलाक राजाक क्षेत्र अपन नाक घुसौलन्हि आ हुनकासँ कर वसूल केनाई प्रारंभ केलन्हि। अहिसँ पूर्व मिथिलाक राजा ककरो सामने ने तँ झुकल छलाह आ ने कर देने छलाह। बंगाल पड़ोसिया होइतहुँ मिथिलापर मुसलमानी आक्रमणक श्रीगणेश केलक।
बंगालसँ तिरहूतमे एबाक हेतु रस्तो सुगम छलैक। कोशी, गण्डक आ गंगाक काते कात तिरहूत होइत बंगाल जाएव–आएव सुगम छल आ तैं ताहि दिन पश्चिम आ पूबक आक्रमणकारी लोकनि अहि मार्गक प्रश्रय लेने छलाह। बीचमे पड़ैत छल तिरहूतक राज्य जे समयानुसार ‘वेत्तसिवृत्ति’क पालन करैत अपन स्वतंत्रताक सुरक्षाक हेतु यथासाध्य परिश्रम करैत छल। कानूनगोय महोदयकेँ इ बात बुझबामे नहि अवैत छन्हि जे जखन मिथिला आ कामरूपक स्वतंत्र राज्यकेँ बख्तियार नहि जीत सकल तखन ओ तिब्बत दिसि बढ़बाक प्रयास कियैक केलक? बख्तियार खलजीक मूल उद्धेश्य छल प्रांत सबकेँ लूटब आ धन जमा करब तैं कोन प्रांत स्वतंत्र रहल अथवा गुलाम भेल तकर चिंता हुनका नहि छलन्हि। आ वो मात्र अपन स्वार्थ आ महत्वाकाँक्षाक पूर्त्तिक हेतु सब काज करैत छ्लाह। पश्चिमसँ एक्के वेर बंगाल धरि मुसलमानी राज्यक प्रसार कऽ देव ताहि दिनमे कि कोनो कम उपलब्धिक बात भेलैक? बंगाल विजयक क्रममे नदीक मार्गक अवलंबनमे मिथिला दक्षिण पूर्वी सीमा देने जँ ओ गुजरल होथि तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। सेनवंशक संग बरोबरि खटपल रहलसँ मिथिलाक इ अंश विशेष काल आरक्षित रहैत छल आ तैं यदि अहि बाटे बंगाल जेबाक क्रममे मुसलमान लोकनि अपन प्रभाव क्षेत्र एकरा बना लेने होथि तँ से संभव। परञ्च एतए स्मरण रखबाक अछि जे गियासुद्दीन इवाजक पूर्व धरि कोनो मुसलमान शासक मिथिलाक राजासँ कर नहि वसूल केने छलाह। तैं बख्तियारक प्रभावक गप्पक प्रसंग मिथिलापर व्यर्थ बुझना जाइछ। बख्तियारक पुत्र इख्तियारोक तिरहूतपर आक्रमण करबाक संकैत भेटइत अछि परंञ्च उहो आक्रमण लूट–पाटे जकाँ छल कारण ओहिसँ तिरहूत राज्यक अक्षुण्णता एवं अखण्डतापर कोनो आँच नहि आएल। दक्षिण बिहारपर ओकर आक्रमणक स्थायी प्रभाव पड़लैक कारण उदंतपुर विश्वविद्यालयकेँ उहै नष्ट केलक आ अपन बहादुरीक प्रदर्शन कुतुबुद्दीन ऐबकक दरबारमे दिल्लीमे जाके केलक।
बंग, कामरूप आ तिरहूतक शासकसँ ऐतिहासिक तौरपर कर वसूल केनिहार व्यक्ति छलाह गियासुद्दीन इवाज। कानूनगोएक मत जे तिरहूतक सम्बन्धमे छन्हि से पूर्णतया भ्रामक मानल जाइत अछि आ ओकर कोनो ऐतिहासिक प्रमाण नहि भेटइयै। अरिमल्लदेव नामक कोनो राजा मिथिलामे नहि भेल अछि आ ओहिकालमे नरसिंह देव अहिठामक शासक छलाह। अहि शंकाक समाधानक हेतु हम प्रोफेसर कानूनगोएकेँ लिखने छलियन्हि आ हुनके आदेशानुसार डॉ. रमेश मजुमदारकेँ सेहो। श्री मजुमदार महोदय इ लिखलन्हि जे कर्णाटवंशमे अरिमल्लदेवक नामक कोनो शासक नहि भेल छथि जकर राज्य मिथिलामे हो। कानूनगोए महोदयक अनुसार मिथिलाक पूर्वी भाग ताहि दिनमे लखनावतीक अधिकार भऽ गेल छलैक। कोन आधारपर कानूनगोए महोदय अहि निर्णयपर पहुँचल छथि तकर प्रमाण ओ नहि देने छथि आ अहिकालमे मिथिलाक राज्य टुकड़ा–टुकड़ामे बटबाक प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नहि भेटल अछि। यदि ओ सिलवाँ लेवीसँ प्रेरित भए अपन निर्णय बनौने छथि तखन आव एतवे कहि देव उचित जे आधुनिक शोधक आधार लेवी महोदयक मत मान्य नहि अछि।
नरसिंह देवक शासन कालसँ मुसलमानी प्रकोप मिथिलामे बढ़ल सेटा मान्य अछि आ मैथिल परम्परामे सेहो अहिबातकेँ स्वीकार कैल गेल अछि आ विद्यापतिक पुरूष परीक्षा एकर साक्षी अछि। नरसिंह देव पहिल व्यक्ति छलाह जे कर देलन्हि आ दिल्ली आ बंगाल दुनु ठामसँ सम्बन्ध बनौलन्हि। इ सब होइतहुँ ओ अपन स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे सफल भेला। बछवाड़ाक समीप ब्रह्मपुरा गाममे एकटा मस्जिद अखनहु वर्त्तमान अछि जकरा इल्तुतमिश प्रचुर मात्रामे दान देने छलैक। एहिसँ बुझि पड़इयै जे मिथिलाक एहि क्षेत्रपर इल्तुतमिशक प्रभाव रहल हेतैक आ तखने ओ दान देने हेतैक। इल्तुतमिशक समयमे तुगान खाँ बिहारक राज्यपाल छलाह मुदा ताहि दिनक बिहारमे मिथिला सम्मिलित नहि छल। मिथिला बिहारसँ फुटे एक स्वतंत्र राज्य छल जकरा जीतबाक लेल बंगाल आ दिल्ली दुनु समान रूपसँ प्रयत्नशील छलाह। तुगान खाँ अपनाके बंगाल आ बिहारक शासक बना लेलक आ रजिया बेगमसँ ओकर मंजूरी लऽ लेलक। अहि स्थितिकेँ देखि नरसिंह देव पुनः अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कलेलन्हि आ कर देव बन्द कऽ देलन्हि। मुदा थोड़बे दिनक बाद ओ गिरफ्त भऽ गेला आ दिल्ली लऽ जाएल गेलाह। चंगेज खाँक विरूद्ध अपन बहादुरी देखा ओ पुनः मिथिलाक स्वतंत्रता प्राप्त केलन्हि आ एहि आदेशसँ घुरला जे ओ सोझे दिल्लीकेँ कर देल करौथ।
रामसिंह देवक समयमे मुसलमानी आक्रमणक प्रकोप बढ़ि गेल छल। तुगान खाँक तिरहूत आक्रमणक उल्लेख मुसलमानी श्रोतमे भेटइत अछि परञ्च ओहिमे राजाक नाम नहि अछि। कालक हिसाबे तखन रामसिंह देव मिथिलापर शासन करैत छलाह। तुगानक आक्रमणसँ मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ धक्का अवश्य पहुँचले परञ्च स्वतंत्रता सुरक्षित रहलै। तुगान प्रचुर मात्रा धन–वित्त प्राप्त केलक। तिब्बती यात्री धर्मस्वामी जे रामसिंहक शासनकालमे एतए आएल छलाह से अपना आँखि सब किछु देखलन्हि आ लिखैत छथि जे मुसलमानी प्रकोपसँ वैशालीक निवासी हड़कम्पित छलाह आ मुसलमानी सेनाक आवागमनसँ जे धुरा उड़ैत छल ताहिसँ सौसे मेघ अन्हार भऽ जाइत छल। तुरूक आक्रमणक संख्या दिन प्रतिदिन बढ़िते जाइत छलैक आ तिरहूतक राजा रामसिंह देव मुसलमानी प्रकोपसँ बचबाक हेतु अपन राजधानीक चारूकात बढ़िया किलाबंदी करौने छलाह। किछु संस्कृतक पाण्डुलिपिक पुष्पिकासँ सेहो इ ज्ञात होइछ जे रामसिंहकेँ मुसलमान सबसँ संघर्ष करए पड़ल छलन्हि आ ओहिमे हुनका अभूतपूर्व सफलता सेहो भेटल छलन्हि। चारूकातसँ मुसलमानक प्रकोप रहितहुँ रामसिंह अपन पूर्वजक जकाँ मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह आ एहि हेतु हिनक शासन काल मानल गेल अछि।
शक्तिसिंहक समयमे मिथिलापर अलाउद्दीनक आक्रमणक विवरण मुल्ला तकियाक वयाजमे भेटइत अछि परञ्च कोनो आन साधनसँ एकर संपुष्टि नहि होइत छैक। अलाउद्दीनकेँ हम्मीरक विरूद्ध इ सहायता देने छलथिन्ह आ हिनका हम्बीरध्वांत भानुः कहल गेल छन्हि। हिनका संग देवादित्य ठाकुर आ देवादित्यक पुत्र वीरेश्वर सेहो गेल छलथिन्ह। चण्डेश्वरक कृत्यचिंतामणिमे एकर उल्लेख अछि। फरिश्ताक विवरणमे अछि जे अलाउद्दीन समस्त बिहारकेँ जीत लेने छलाह मुदा तहिया मिथिला बिहारसँ भिन्न छल आ बिहार कहलासँ मिथिलाक बोध नहि होइत छल। अलाउद्दीन मिथिलाक व्यक्तित्व आ वैभवकेँ देखि ओकरा मित्र बनौने होथि से संभव कारण ओहि मित्रतासँ हुनका कैकटा लाभ छलन्हि। सर्वप्रथम लाभ तँ इ भेलैन्ह जे ओ मैथिल शासककेँ अपना पक्षमे कए हम्वीरक विरोधमे ठाढ़ केलन्हि आ देवादित्यकेँ ‘मंत्री रत्नाकर’ पदवीसँ विभूषित केलन्हि। अहि सबसँ बुझि पड़इयै जे ओ बिना युद्ध केनहि मिथिलाकेँ अपना मैत्री भावसँ मिला लेने होएताह आ ओहिठाम अपन प्रभाव क्षेत्र बढ़ौने होएताह। मिथिलामे प्रभाव क्षेत्र बढ़ाएब आवश्यक छल किएक तँ ओम्हर बंगाल दिसि मुसलमान लोकनि मिथिलाक पूर्वी दक्षिणी क्षेत्रमे घुसि रहल छलाह।
अहि प्रसंगक विवरणक पूर्व बलबनक संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक अछि। कहल जाइत अछि जे अपन बंगाल अभियानक क्रममे बलबन इकलिम–इ–लखनौती तथा अरशाह–इ–बंगालकेँ दबाकेँ अपना अधीनमे केने छलाह आ मुसलमानी बंगालक राज्यपालक रूपमे ओ अपन पुत्र बुगरा खाँकेँ ओतए नियुक्त केलन्हि। बुगरा खाँकेँ ओ कहलन्हि जे अहाँ “दिआर–इ–बंगाल”केँजीतबाक प्रयास करू। किछु गोटएक मत छन्हि जे सोनार गाँवक दशरथ दनुजराय (वंग)क राज्य ‘दिआर–इ–बंगाल’मे छलन्हि। एहि दिआर–इ–बंगालकेँ किछु तिरहूत जिलाक दरभंगा बुझैत छथि जे हमरा बुझबे अप्राँसगिक बुझि पड़इयै कारण अहिठाम दशरथ–दनुजरायक राज्य छल ने कि कर्णाट वंशक। बंगालक द्वार जँ एकरा बुझल जाइक तँ इ क्षेत्र कतहु बंगालक समीप रहल होइत कारण बलबनक समयमे मिथिलामे कर्णाट वंशक राज्य छल आ ओ तीरभुक्तिक नामे प्रसिद्ध छल आ ‘दिआर–इ–बंगाल’क नाम ताधरि प्रचलित नहि भेल छलैक। बलबनक समयमे बिहारकेँ बंगालसँ अलग कैल गेल छलैक से बात ठीक मुदा तखन मिथिला बिहारसँ फराके एकटा स्वतंत्र राज्य छल।
१९५५मे महेशवारा (बेगूसराय)सँ फिरूजएतिगिन (१२९०–९२)क एकटा सुप्रसिद्ध एवं अद्वितीय शिलालेख उपलब्ध भेल अछि जकरा हम पूनासँ प्रकाशित करौने छी। फिरोज एतिगीन बंगालक रूकनुद्दीन कैकश द्वारा नियुक्त एक प्रशासक छलाह जे अपनाकेँ ओहि अभिलेख द्वितीय सिकन्दर आ खानक खान कहने छथि। एहि प्रशासकक नामक एक गोट आर अभिलेख लक्खीसराय (मूंगेर)सँ सेहो प्राप्त भेल अछि। रूकनुद्दीन कैकस बलबनक वंशक छल आ मिथिला क्षेत्रमे ओकर अधिकारक प्रसार अहिबातक संकेत दैत अछि जे शक्तिसिंह आ हरिसिंह देवक समय बंगालक शासक दक्षिणसँ गंगा पार कए गण्डक धरि बढ़ि चुकल छलाह आ कर्णाट शासककेँ ओहि क्षेत्रसँ धकिया चुकल छलाह। कर्णाट शासक लोकनि बंगालक दबाबसँ तबाह भऽ रहल छलाह। मुल्ला तकिआ एहिबातक उल्लेख नहि कएने छथि मुदा अभिलेख जखन साक्षाते मौजूद अछि तखन दोसर साधनक अपेक्षे कोन? गण्डक क्षेत्रसँ अहि शिलालेखक प्राप्ति अहि बातकेँ स्पष्ट कऽ दैत अछि जे ओहिकाल धरि अवैत–अवैत कर्णाट लोकनिक शक्ति दक्षिणमे क्षीण भऽ चुकल छलन्हि। अहि क्षेत्रमे गंगाक दुनु कात बंगालक सीमा धरि दियारा सब अछि–अहि दियारा सबकेँ संकेत “दिआर–इ–बंगाल”सँ होइत हो से संभव कारण गंगाक दुनु काते बंगाल जेबा–एबाक रास्ता छल। अहि अभिलेखसँ कर्णाट राज्यक वास्तविक विस्तारक सम्बन्धमे प्रश्न उठब स्वाभाविक बुझि पड़इत अछि। बलबनक बाद बलबनी शाखा बंगालमे स्वतंत्र शासन करए लागल छल आ एतए धरि अपन राज्यक सीमा बढ़ा लेने छल।
एकर बाद छिट–पुट ढ़ंगसँ मुसलमान लोकनि एम्हर–ओम्हरसँ हुलकी–बुलकी दैत रहलाह आ लूट–पाट करैत रहलाह। चारूकात मुसलमानी प्रभावक वावजूदो जे मिथिलाक कर्णाट लोकनि अखन धरि अपन स्वतंत्रता सुरक्षित रखने छलाह, इ कोनो कम गौरवक विषय नहि। लखनौती जेबाक बाटमे मिथिला पड़ैत छल आ तैं एहिपर एबा–जेबा कालमे सब केओ अपन किछु ने किछु बना लैत छलाह। संगठित रूपेँ मिथिलापर सुनियोजित आक्रमण केनिहार व्यक्ति छलाह गियासुद्दीन खलजी। सुगति सोपानसँ ज्ञात होइछ मिथिलाक राजनैतिक स्थिति दयनीय भऽ गेल छल। दान रत्नाकरक एक श्लोकमे कहल गेल अछि जे मिथिला म्लेच्छ रूपी समुद्रमे डुबि गेल छल (मग्नाम्लेच्छमहार्णवे…..)। कहबाक तात्पर्य इ भेल जे हरिसिंह देवक समय तक अवैत मुसलमानी आक्रमणक प्रकोप मिथिलापर बढ़ि गेल छल आ हरिसिंह देव अखन धरि ककरो समक्ष झुकल नहि छलाह जेना ज्योतिरीश्वरक विवरण सँ स्पष्ट होइछ। अपितु हमरा बुझना जाइत अछि जे वो कोनो सुलतानकेँ पराजित सेहो केने छलाह– आव इ सुलतानकेँ छलाह से कहब कठिन? नामक अभाव किछु निश्चित नहि कहल जा सकइयै। नाबालिक होएबाक कारणे हरिसिंह देवकेँ बहुत दिन धरि अपना मंत्री सबक अधीनमे रहए पड़ल छलन्हि।
१३२३–२४मे मिथिलापर गियासुद्दीन तुगलकक आक्रमण भेल। मिथिलापर आक्रमणक पूर्व ओ बंगालपर आक्रमण कएने छलाह मुदा कानूनगोए महोदय कहैत छथि जे ओ पहिने तिरहूत आ तब बंगालपर आक्रमण केलन्हि। मुदा से मत मान्य नहि अछि। गियासुद्दीनक आक्रमणक विवरण सब मुसलमानी श्रोतमे भेटइत अछि, मुल्ला तकिआमे सेहो आ एहि घटनाक एकटा चश्मदीद गवाह सेहो छथि जनिक पोथी वशातिनुलउन्स अखनो उपलब्ध अछि आ जकर फोटो कॉपी पटनाक काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थानमे अखनो राखल अछि। ओहि पाण्डुलिपिक बारहम पातपर मिथिलाक राजाक सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे ककरो कोनो बात नहि सुनलन्हि, तर्क आ बुद्धिसँ काज नहि लेलन्हि आ अनेरो पहाड़ दिसि पड़ा गेलाह–आगि जकाँ पाथरक पाछु नुका गेला मुदा तइयो चकमक करिते रहलाह। इशामीक अनुसार गियासुद्दीन तिरहूतपर आक्रमण केलन्हि आ ओहिठामक राजा एत्तेक भयभीत भऽ गेला जे बिना कोनो प्रकारक विरोध केने भागि गेला। हिन्दू लोकनि सेहो जंगलमे नुका रहलाह। सुल्तान जखन अपनहि हाथसँ जंगल काटब शुरू केलन्हि तखन सैनिक सेहो ओहिमे जुटि गेला आ तीन दिनमे सम्पूर्ण जंगल साफ भऽ गेल। तकर बाद राजाक किलापर चढ़ाई भेल जे सातटा पैघ–पैघ पानि भरल खाधिसँ घेरल छल। किलापर विजय प्राप्त कए राजाक धन सम्पत्ति सबटा लूटलन्हि आ विरोधीक हत्या केलन्हि। अहमदकेँ अहिठामक शासक नियुक्त कए ओ ओतएसँ वापस गेलाह। फरिश्ता आ मुल्ला तकिआमे हरिसिंह देवक गिरफ्तारक गप्प झूठ अछि कारण वशातिनुल–उंसक विवरणसँ इ बात कटि जाइत अछि। वशातिनुलउंस (लेखक–इखतिस्सान)क अनुसार–तिरहूतक राजाकेँ प्रचुर सामग्री उपलब्ध छलन्हि, जन–धनक कोनो अभाव नहि छलन्हि, मजबूत किला छलन्हि, नीक व्यक्तित्व छलन्हि मुदा ओ घमण्डे चूर रहैत छलाह आ विद्रोहक भावनाक्ल नेतृत्व सेहो करैत छलाह। राजद्रोह हुनकामे कूटि–कूटिकेँ भरल छल। एहिसँ पूर्वक शासकक प्रति कहियो ओ अपन माथ नहि झुकौने छलाह, ने ककरो मातहदी गछने छलाह आ ने कहिओ पराजित भेल छलाह। सुल्तानक आगमनक सूचनासँ ओ भयभीत भऽ गेला आ संगहि चिंतित सेहो। ओ किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ बैसि गेला। एतेक चिंतातुर आ अपाहिज जकाँ ओ भऽ गेला जे सब किछु रहितहुँ ओ सुल्तानक विरोध करबाक वजाय किला छोड़ि भगबेक घोषणा करैत ओ सबसँ तेज घोड़ापर चढ़िकेँ भागि गेलाह। भोरमे जे अपनाकेँ सम्राट बुझैत छलाह तिनके स्थिति साँझमे भिखारि जकाँ भऽ गेलैन। ओ ओतए पहाड़ दिसि भगलाह आ अपना पाथरक पाछु नुका लेलन्हि। सुल्तान ओहिठाम बहुत दिन धरि रूकला आ प्रशासनिक व्यवस्था केलन्हि। जे केओ सुल्तानक आज्ञा मानलन्हि हुनका क्षमादान भेटलन्हि आ बाँकीकेँ सजा। सब किछु ठीक ठाक केलाक बाद ओ ओहिठामसँ दिल्ली दिसि विदा भेला। तिरहूत तुगलक साम्राज्यक एकटा अंग बनि गेल आ ओकरा तुगलकपुर सेहो कहल जाइत छल। एवँ प्रकारे कर्णाट कालक गौरव पूर्ण शासनक अंत भेल आ शुद्ध रूपे मिथिलामे मुसलमानी अमल शुरू भेल। एतवा दिन मुसलमान एम्हर–आम्हरसँ हस्तक्षेप करैत छलाह मुदा आव मिथिला दिल्ली सल्तनतक एकटा प्रांत बनि गेल आ एकर स्वतंत्र सत्ता समाप्त भऽ गेलैक जकरा पुनर्स्थापित करबाक प्रयास बादमे शिवसिंह आ भैरव सिंह केलन्हि।
कर्णाट वंशक पराभव भेलापर मिथिलामे ओइनवार वंशक स्थापना भेल आ इ राजवंश तुगलक साम्राज्यक करद राज्य छल। ओना आंतरिक मामलामे जे स्वायतत्ता प्राप्त रहल हौकसँ दोसर बात मुदा वास्तविकता आव इएह जे कर्णाट कालीन स्वतंत्रता लुप्त भऽ चुकल छल आ मुसलमानी प्रभाव मिथिलामे काफी बढ़ि गेल छल। खास कऽ कए तुगलक लोकनिक सम्बन्ध ओइनवार शासकक संग बरोबरि बनल रहलन्हि आ जखन तुगलक वंशक ह्रास भेल तखन आन–आन शक्ति सब सेहो मिथिलाकेँ धमकावे लागल। बंगाल, जौनपुर, अवध आ दिल्ली सबहिक मुसलमान शासकक नजरि मिथिलापर बनल रहैन्ह आ जखन जे मौका पावैथि सैह हाथ मारि लैत छलाह। कोनो तरहे मिथिलाकेँ चैन नहि छलैक आ बेचारे शिवसिंह आ भैरवसिंहक सत्प्रयासक बादो मिथिला स्थायीरूपेण राजनीतिक क्षेत्र कर्णाटकालीन मर्यादा नहि प्राप्त कऽ सकल। इ तँ धन्य विद्यापति जे अहिवंशक गौरवगाथाक यशोगान कऽ एकरा अमरत्व प्रदान करेबामे समर्थ भेलाह। ऐयासुद्दीन तुगलकक समयमे तिरहूतकेँ बंगालसँ फूटका कऽ एकटा अलग प्रांत बनाओल गेल छल आ दरभंगामे ओकर राजधानी छल।
ताहि दिनसँ दरभंगा मुसलमानी शक्तिक प्रसारक जे एकटा केन्द्र बनल से बनले रहल जा धरि कि ओहिपर अंग्रेजक कब्जा नहि भऽ गेलैक। ओइनवार वंशकेँ तुगलक लोकनिक हाथे राज्य भेटल छलन्हि तैं ओ लोकनि ओहिवंशक उपकृत छलाह। मोहम्मद तुगलकक समयमे एकर आर प्रसार भेलैक आ तिरहूत पर तुगलक शक्तिक विस्तार सेहो मुदा महत्वाकाँक्षी लोकनिक तँ कतहुँ अभाव नहि अछि आ इएह कारण छल जे बंगालक शमसुद्दीन हाजी इलियास रक्षकक स्थान पर भक्षकक काज केलन्हि आ तिरहूत आ नेपाल पर आक्रमण कए देलन्हि। तुगलक साम्राज्यमे मोहम्मद तुगलकक पगलपनीक चलते जे अव्यवस्था उत्पन्न भऽ गेल छलैक ताहिसँ प्रोत्साहित भए गोरखपुर, बहराइच, चम्पारण, तिरहूत आदिक राजा ढ़ीट भगेल छलाह आ शमसुद्दीन इलियास अपन महत्वाकाँक्षाक पूर्त्ति करबाक हेतु हिनका लोकनिकेँ सजा देवाक ढ़ोंग रचलक। हिन्दू राजा लोकनि आपसमे बटल छलाह जकर परिणाम ई भेल जे ई लोकनि सम्मिलित भए ओकर मुकाविला नहि कऽ सकलाह आ हाजी इलियास अपन विजयक डंका बजबैत हाजीपुर धरि पहुँचि गेल। गोरखपुर धरि ओकर प्रभाव बढ़लैक आ मिथिलामे ओइनवार राजाक अधिकारकेँ ओ सीमित ककए बूढ़ी गण्डकक उत्तरी भागमे राखि देलक आ दक्षिणक समस्त भागपर अपन आधिपत्य स्थापित केलक। समस्तीपुरसँ बेगूसराय धरि आ ओम्हर हाजीपुर धरि इलियासक आधिपत्य बढ़लैक आ समस्तीपुर एवँ हाजीपुरक संस्थापको इएह मानल जाइत अछि। हाजीपुरक सामरिक महत्व ताहि दिनसँ बनले रहल आ मुसलमान कालमे एकर महत्व छल। बंगालोक प्रतिनिधि अहिठाम रहैत छलाह।
जखन फिरोज तुगलक गद्दीपर बैसलाह तखन इलियासक ढ़ीटपनी दिसि हुनक ध्यान आकृष्ट भेलन्हि आ तैं तुगलक साम्राज्यक निर्धारित सीमापर अपन सत्ता स्थापित करबाक हेतु ओ अग्रसर भेलाह। एम्हर जे हिन्दू राजा सब इलियाससँ पराजित भेल छलाह सेहो सब इलियाससँ खिसियैले छलाह आ तैं ओ लोकनि हर्षौत्फ्फुल भेलाह। फिरोज तुगलकक स्वागतमे ठाढ़ भेला गोरखपुर, कारूष, चम्पारण आ तिरहूतक शासक लोकनि। अहि सबपर अपन सत्ता स्थापित कए फिरोज सरयु नदीसँ कोशी नदीक क्षेत्र धरिक इलाकापर अपन प्रशासनिक व्यवस्था ठीक केलन्हि आ ओकरा अपन अधीनमे पुनः आलन्हि। फिरोजक प्रगतिक सूचना सुनितहि इलियास तिरहूतसँ भागल आ फिरोज हुनका पाँछा गेला। इलियास पहिने पण्डुआ पहुँचल आ तकर बाद एकदला। फिरोज तुगलक तिरहूत बाटे बंगाल दिसि गेलाह आ झंझारपुर अनुमण्डलमे सम्प्रति एकटा पिरूजगढ़ अछि जे फिरोज द्वारा स्थापित कहल जाइत अछि। ओहिठामसँ ओ राजविराज लग कोशी पार करैत बंगाल पहुँचलाह आ इलियासकेँ हरौलन्हि। ओहिठामसँ घुरलापर मिथिलाक सहयोगक प्रतिदान स्वरूप ओ भोगीश्वरकेँ अपन प्रियसखा कहैत मिथिलाक राजा बनौलन्हि। कहल जाइत अछि जे तिरहूतक दुनू भागकेँ मिलाकेँ ओ एक केलन्हि आ समस्त राजक भार ओइनवार लोकनिकेँ देलन्हि। मुदा किछु गोटएक मत छन्हि जे इ काजक श्रेय शिवसिंहकेँ छलन्हि। दिल्ली घुरबासँ पूर्व फिरोज मिथिलाक हेतु अपन कलक्टर आ काजी बहाल केलन्हि। हाजी इलियासकेँ मिथिलासँ भगाकेँ ओहिपर ओ पुनः अपन आधिपत्य स्थापित केलन्हि आ ओइनवार वंशकेँ करद राज्यक रूपमे रहए देलन्हि। इ लोकनि वार्षिक कर तुगलककेँ दैत रहलाह। इलियास अपना अमलमे तिरहूतमे बहुत रास किला बनबौने छल मुदा ओकरा गेलापर ओहि सब किलाकेँ हिन्दू लोकनि तोड़ देलन्हि।
फिरोज तुगलकक दिल्ली चल जेबाक बाद ओइनवार वंशमे आंतरिक संघर्ष प्रारंभ भेलैक आ एम्हर तुगलक लोकनिक प्रभाव सेहो घटे लगलन्हि। गणेश्वरक हत्यासँ मिथिलामे एक नवस्थिति उत्पन्न भेल जकर चर्च हम पूर्वहि कऽ चुकल छी। बिहारमे मलिक वीर अफगान तुगलक लोकनिक प्रतिनिधि छलाह मुदा तिरहूतपर हुनक कोनो अधिकार छलन्हि अथवा नहि से कहब कठिन कारण तिरहूत तखन बिहारसँ अलग राज्य छल। कीर्तिसिंह आ वीर सिंहक जौनपुर यात्राक उल्लेख पूर्वहि भऽ चुकल अछि आ इ लोकनिक जौनपुरक इब्राहिम शर्कीसँ मदति लेबाक हेतु विद्यापतिक संगे ओतए गेल छलाह। फिरोज तुगलकक पोता सुल्तान महमूद तुगलक बिहार आ तिरहूतक राज्य अपन वजीर ख्वाजा जहाँ (जकरा मलिक–उस–शर्क) सेहो कहल जाइत छैक के देने छलाह आ ओ जखन देखलन्हि जे दिल्लीक गद्दी लड़खड़ा रहल अछि तखन ओ अपन स्वतंत्रता घोषित कऽ लेलन्हि। ओ अपन पदवी सुल्तान–उस–शर्क रखलन्हि आ अपनाकेँ जौनपुरक शासक घोषित केलन्हि। आ अवध, बिहार, तिरहूत तथा गंगाक दोआव धरि ओ अपन आधिपत्य कायम रखलन्हि। एतवा धरि निश्चित अछि जौनपुरक आक्रमण मिथिला पर भेल छलैक मुदा ओ कीर्ति सिंह–वीर सिंहक हेतु अथवा बंगालमे मुसलमानी सत्ताक पुनर्स्थापनक क्रममे से कहब कठिन। मुल्ला तकिया विवरणमे इब्राहिम शाह शर्कीक शिलालेख उल्लेख अछि जाहिसँ तथ्यक पुष्टि होइछ मुदा तत्कालीन घटना क्रमक सम्बन्ध ततेक रास नेऽ बात सब मिझ्झर भेल अछि जे ओहिमे सँ कोनो वास्तविक तथ्यकेँ बाहर करब कठिन गप्प। एहि हेतु अखन आरो प्रयास करए पड़त आ तखनहि हमरा लोकनि ओहि औझरैल जालसँ बाहर हैब। १४६० धरि मिथिला जौनपुरी राज्यक मातहदी राज्य छल तकर कोनो प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नहि भेटइत अछि। मुसलमानी साधन सेहो एत्तेक स्पष्ट नहि अछि जाहि आधार किछु ठोस बात कहल जा सकए।
जखन तुगलक साम्राज्यक पतनक बाद चारूकात अस्थायित्व छल आ कोनो निस्तुकी राजाक शासन जमि नहि रहल छल तखनहि मिथिलामे शिवसिंहक उदय भेलन्हि आ ओ मिथिलाकेँ मुसलमानी नियंत्रणसँ मुक्त कऽ अपन सोनाक सिक्का बाहर केलन्हि। बंगाल, जौनपुर, दिल्ली आ आन–आन, छोट–छोट राज्य जखन सब अपन डफली बजा रहल छलाह तखन शिवसिंहे किएक चुप्प बैसितैथ? शिवसिंहक संघर्ष जौनपुरक शर्की राजाक संग भेल छलन्हि। ओना तँ अहि युद्धक पूर्ण विवरण नहि ज्ञात अछि मुदा कीर्तिपताकाक विवरणसँ एहि युद्धक संकेत भेट सकइयै। हुनका द्वारा घोषित मिथिलाक स्वतंत्रता मुसलमानक आँखिमे काँट जकाँ गरए लागल आ ओ अपन स्वतंत्रताक सुरक्षार्थ अपन जानक बाजी लगौलन्हि। शिवसिंह लड़ैत–लड़ैत मारल गेला अथवा कतहु पड़ा गेला से कहब कठिन। शिवसिंहक बादसँ मिथिलापर आधिपत्यक हेतु दिल्ली, जौनपुर आ बंगालक बीच घीचांतीरी होइत रहल। शिवसिंहक पछाति कालक्रमेण इलियास वाला बटबाराकेँ बंगालक शासन पुनः जीऔलक आ ओहि क्षेत्रपर पुनः अपन स्तित्व कायम केलक। भैरवसिंहक समयमे ओहि क्षेत्रपर बंगालक प्रतिनिधि रहैत छल से वर्धमानक दण्डविवेक ग्रंथसँ ज्ञात होइछ–
“गौड़ेश्वर प्रतिसरीरमति प्रतापः।
केदार रायमवगच्छति दारतुल्यम्”॥
इ केदार राय बंगाल सुल्तानक प्रतिनिधि छलाह। इ हाजीपुरमे अपन मुख्यालय रखने छलाह। भैरव सिंह हिनका पराजित कऽ पंचगोड़ेश्वरक पदवीसँ विभूषित भेल छलाह आ मिथिलाक दुनू भागकेँ एक वेर पुनः जोड़िकेँ एक केने छलाह आ संगहि अपनाकेँ स्वतंत्र सेहो घोषित केने छलाह। तकर बाद लोदी वंशक प्रभाव मिथिलापर बढ़लैक आ सिकन्दर लोदी मिथिलाक राजाक परम मित्र छलाह जकर उल्लेख हम पूर्वहि कऽ चुकल छी। सिकन्दर जौनपुरकेँ हराकेँ अपन राज्यक विस्तार पटना, तिरहूत आ सारन चम्पारण धरि केने छलाह। वाकिआत–इ–मुस्तकीसँ ज्ञात होइछ जे ताहि दिनमे चम्पारणमे मियाँ हुसैन फारमुली जागीरदार छलाह। आधिपत्यक हेतु लोदी आ बंगालक शासकक बीच संघर्ष होइत रहल आ मिथिला पेड़ाइत रहल। लोदीक समयसँ मिथिलापर मुसलमानक प्रभाव एकदम प्रत्यक्ष होमए लगलैक। बेगूसरायमे एकटा लोदीडीह अखनो अछि आ तुगलकसँ लऽ कऽ शाह आलम धरिक सिक्का ओतएसँ प्राप्त भेल अछि। दिल्ली आ बंगाल दुनु मिथिलापर अधिकार प्राप्त करबा लेल संघर्षशील रहैत छलाह। भगिरथपुर अभिलेख अहिबातक साक्षी अछि जे मिथिलापर चारूकातसँ मुसलमानी प्रकोप खूब जोर–शोरसँ बढ़ि गेल छल।
१५२६मे पानीपतक पहिल लड़ाईमे इब्राहिम लोदी परास्त भेला। बाबरक लेख इत्यादिमे तिरहूतक राजा रूपनारायणक उल्लेख भेटइयै। तिरहूत बाबरकेँ कर दैत छल। बाबरसँ पूर्वहुँ तिरहूतमे अपन आधिपत्य कायम रखबाक हेतु मुसलमान लोकनि किछु उठा नहि रखलन्हि। बंगालक राजा नसरत शाह तिरहूतक राजाकेँ परास्त केलक आ नसरत शाहक एकटा अभिलेख बेगूसरायक मटिहानी गामसँ प्राप्त भेल छैक। नसरत अलाउद्दीनकेँ तिरहूतक गवर्नरक रूपमे नियुक्त केलक। नसरतक अवसान भेलापर मकदूम शाह विद्रोह केलक आ सासारामक अफगान नेता शेरशाहक संग मित्रता सेहो। शेरशाह चम्पारणसँ चटगाँव धरि जीतबाक प्रयास केने छल। हुमायुँक भाएक प्रभाव नरहनमे छलैक जे कि महेश ठाकुरक सर्वदेश वृतांत संग्रहसँ बुझना जाइत अछि। हाजीपुरपर शेरशाहक प्रभाव छलैक। १५४७मे हुमायुँ मिरजा हिन्दालकेँ हाजीपुरपर कब्जा करबाक आदेश देलकै। १५३० सँ १५४५ धरि मिथिलामे अराजकता रहलैक आ तकर किछु दिनक बाद केशव कायस्थ राजा भेल। दिल्ली सँ इ राज्यक भार हुनका भेटल छलन्हि। शेरशाह आ हुनक वंशजक शासन तिरहूतपर छलन्हि। तेघड़ा क्षेत्रमे मुगल–अफगानक संघर्ष भेल छल। मुगल साम्राज्यक समयमे मिथिलाक हेतु दिल्ली दिसि गवर्नर अथवा मुगलक प्रतिनिधि नियुक्त कैल जाइत छल। दरभंगामे बरोबरि फौजदार रहैत छल। महेश ठाकुरक शासनकालमे बहुत रास पठान सब तिरहूतमे आबिकेँ बसि गेल। 1575मे जखन दाउद खाँ अफगान मुगलक विरोधमे विद्रोह केलन्हि तखन मिथिलाकेँ पठान सब हुनक संग देलन्हि। दाउदकेँ दबेबाक हेतु अकबर बिहार, तिरहूत आ हाजीपुरसँ सेना जमा केने छलाह। सैनिक दृष्टिकोणसँ मुगलकालमे हाजीपुर बहु महत्वपूर्ण भऽ गेल छल। अकबर हाजीपुरकेँ बरोबरि सुरक्षित राखए चाहैत छलाह आ खान–इ–आजमकेँ बंगाल आ तिरहूतक गवर्नर नियुक्त केने छलाह। मुजफ्फर खाँ चम्पारणक राजा उदीकरणक संग मिलि विद्रोही लोकनिकेँ दबौने छलाह। तिरहूतक राजा सम्राटकेँ कर दैत छलथिन्ह। १५८०क बाद शुभंकर ठाकुर भौरमे मिथिलाक राजधानी बनौलन्हि आ मुगल सम्राटसँ अपन बढ़िया सम्बन्ध बनाके रखलन्हि।
शुभंकर ठाकुरक समयमे जखन अकबर काबुल दिसि गेल छलाह तखन एम्हर तिरहूतमे बदम्क्षीक पुत्र बहादुर शाह साम्राज्यक विरूद्ध विद्रोह केलन्हि आ अपन नामक सिक्का आ खुतबा शुरू कदेलन्हि। पश्चात् ओ आजम खाँक नौकर सब द्वारा मारल गेला। पुरूषोत्तम ठाकुर जखन राजा भेलाह तखन हुनका राजस्व जमा करबाक हेतु किला घाटमे बजाओल गेलन्हि आ ओतहि धोखासँ मारि देल गेलन्हि। हुनक पत्नी दिल्ली जाए जहाँगीरक दरबारमे एकर शिकायत कैलक आ पुरूषोत्तमक हत्याराकेँ मृत्युदण्ड देल गेलैक। रानी ओतहि जमुना नदीक निगम बोध घाटपर सती भऽ गेलीह। हुनक बाद नारायण ठाकुरक शासन कालमे कोनो एहेन महत्वपूर्ण घटना नहि घटल आ मुसलमानक सम्बन्ध यथावत रहल। तब सुन्दर ठाकुर राजा भेलाह। १६६१मे औरंगजेबक एकटा फरमान अछि जाहिमे उल्लिखित अछि जे महिनाथ ठाकुर पलामू आ मोरंगकेँ जीतबामे साहाय्य देने छलाह। हुनका समय नवाब मिरजा खाँ दरभंगाक फौजदार छलाह। पलामूक चेरो सरदार प्रतापराय सम्राटकेँ कर देव बन्द कऽ देने छलाह आ अपना क्षेत्रमे तहलका मचौने छलाह। हिनका दबेबाक हेतु औरंगजेबक आदेश एलापर फौजदार महिनाथ ठाकुरसँ मदति लेलन्हि आ पलामूक संग-संग मोरंगक विद्रोही लोकनिकेँ सेहो दबाओल गेल। ओहि हेतु औरंगजेब हिनका धन्यवाद सेहो देने छलथिन्ह। अहिसँ इ स्पष्ट अछि जे मुगल सम्राटक अधीन छलाह। हिनका पारितोषिक हेतु मूंगेर, हवेली, ताजपुर, पूर्णियाँ, धरमपुर आदिक जमीन्दारी भेटलन्हि आ माछक निशान सेहो। मोरंगक विरूद्धक लड़ाइमे नरपति ठाकुर सेहो संग देने छलथिन्ह। महिनाथक बाद नरपति ठाकुर राजा भेलाह। मिरजा खाँक पश्चात मासूमखाँ, नुसेरी खाँ, शाहनवाज खाँ आ हादी खाँक ओहिठामक फौजदार भेला।
नरपति ठाकुरकेँ मकवानपुरक राजासँ झंझट भेलन्हि। नरपति ठाकुर तखन सुवादारसँ अनुरोध केलन्हि आ सुवादारसँ आश्वासन भेटलापर मकवानीपर आक्रमण केलन्हि। मकवानीक राजाकेँ पकड़िकेँ दरभंगाक फौजदारक समक्ष आनल गेल जतए ओ कर देव स्वीकार केलन्हि। बासमे नवाब फिदाई खाँ (1692 – 1702) ओकरा आ बढ़ाकेँ बेसी कऽ देलन्हि। तकर बाद राघव सिंहक शासन भेल। 1701मे शमशेर खाँ तिरहूतक फौजदार छलाह। ओहि वर्ष राघव सिंह राजा भेल छलाह। अलीवर्दी हुनका राजाक पदवी देने छलन्हि। ओ तिरहूतक राज्य मुकर्ररीपर लऽ लेने छलाह मुदा पारिवारिक संघर्षक चलते केओ एक गोटए जाके नवाबकेँ हुनका विरोधमे खबरि कऽ देलकन्हि आ नतीजा इ भेलैक जे हुनकापर चढ़ाई भऽ गेलन्हि आ हुनक राज्य जप्त कऽ लेल गेलन्हि। रिआज – उस सालातिनक अनुसार भौरक राजाक विद्रोही प्रवृत्तिक कारणे इ आक्रमण भेल छल। पुनः हुनका ‘रेवन्यु कलक्टर’ बनाकेँ तिरहूत वापस पठैल गेलन्हि। नवाबक दीवान धरणीधरकेँ सेहो इ पचास हजार टाका सालाना दैत छलथिन्ह। एकर बाद विष्णु सिंह राजा भेलाह आ तकर बाद नरेन्द्र सिंह। नरेन्द्र सिंहक शासनकाल महत्वपूर्ण अछि। हिनकहि शासनकालमे कन्दर्पी घाटक लड़ाई भेल छल। राजा रामनारायणसँ हिनका संघर्ष भेल छलन्हि जकर विवरण हमरा लालकविसँ प्राप्त होइछ। रामनारायणक नेतृत्वमे भिखारी महथा, सलावत राय आ वख्त सिंह पाँच हजार सेनाक संग मिथिलाक राजा नरेन्द्र सिंहपर आक्रमण केने छलाह। रामनारायण भिखारी महथाकेँ आदेश देलथिन्ह जो तिरहूतकेँ सोझे अपना कब्जामे कऽ लौथ। सलावत राय सेहो हुनका संग गेलथिन्ह। राजा नरेन्द्र सिंह सेहो तैयारी कऽ कए बढ़लाह। वक्सी गोकुलनाथ झा, जाफर खाँ आ हालाराय सेहो हुनका संग आगाँ भेलथिन्ह। राजा मित्रजित आ उमराव सिंहकेँ आगाँ पठौलथिन्ह जाहिसँ ओ लोकनि दुश्मनक सेनाकेँ रोकि सकैथ। सलावत राय उमरावकेँ हाथे मारल गेला आ भिखारी महथा कहुना बचिकेँ भागलाह। लालकविक वर्णनक किछु अंश एवँ प्रकारे अछि–
“रामनारायण भूपतें कहयौ मुखालिफ जाय।
हाकिम को मिथिलेशने, दीन्हों अदल उठाय॥
सीरकरो तिरहूति को, ताके रचो उपाय।
फौजदार महथा भये, संग सलावति राय॥
वख्त सिंह कुल उद्धरण, रोड़मल्ल दिलपुर।
चौभान भानु भानू सुउअ, एक एक तैं सूर॥
याही सब तै नाथ करी, फौजे पाँच हजार।
दिग शुल सन्मुख जोगिनी, महथ उतरे पार॥
पड़ै उठाय धाय धाय एक एक सँ लड़ै।
मनो गजेन्द्र सो गजेन्द्र जंग जोर को धरै॥
महीप मित्रजित राव वख्त सिंह को धरै।
चखा चखी चोट चोट लोट पोट ह्वैगिरै॥
एहि युद्धमे नरहनक राजा नरेन्द्र सिंहक संग देने छलाह। कन्दर्पी घाटक युद्ध बलान नदीक तटपर भेल छल। नरेन्द्र सिंह एहि युद्धमे विजयी भेल छलाह। दरभंगाक अफगान लोकनि सेहो करीब तीन मासक हेतु अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कऽ चुकल छलाह। दरभंगाक अफगान आ दरभंगाक महाराज लोकनिक बीच सम्बन्ध बढ़िया छल। अलीवर्दीक विरोधमे दरभंगाक अफगान लोकनि मराठाक संग षडयंत्र करए लागल छलाह। अलीवर्दी अफगान सब अखनो मोहद्दीनगरक समीपमे छथि। 1765मे जखन अंग्रेजकेँ बंगाल, बिहार आ उड़ीसाक दिवानी भेट गेलैक तखन राजनैतिक स्थितिमे पूर्ण परिवर्त्तन भऽ गेलैक आ मुसलमानी अमल एक रूपें समाप्त भऽ गेलैक। 1774मे तिरहूतकेँ पटनाक अधीन कऽ देल गेलैक आ 1782मे ग्रैन्ड तिरहूतक कलक्टर भऽ कए एला। तखन मुजफ्फरपुर तिरहूतक अधीन छल। मुसलमानी अमलक अंत भेलापर अंग्रेजक अमल शुरू भेल आ मिथिला ओकर एकटा अंश बनि गेल। मुगल कालमे मिथिला तीन प्रकारमे विभाजित छल – हाजीपुर, चम्पारण आ तिरहूत आ अधुना (तिरहूत) मिथिलाक प्राचीन सीमा क्षेत्रक हिसाबे मुजफ्फरपुर, दरभंगा आ कोशी प्रमण्डल मिलाकेँ मिथिला कहाओल जाइत अछि। अंग्रेज अपना सुविधानुसार प्रशासनिक क्षेत्र बनौने छलाह आ आजुक शासक ओकरा आओर अपना सुविधानुसार बना रहल छथि।
राधाकृष्ण चौधरी