मिथिलाक प्राचीन लोक नृत्य आ नाट्य परम्परा | किरतनियाँ नाच वा नाटक —-

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मिथिलाक प्राचीन लोक नृत्य आ नाट्य परम्परा |

किरतनियाँ नाच वा नाटक —-

आर्यावर्त्तक संस्कृत युग नृत्य कला एबं नाट्य चिन्तनक दृष्टि सँ स्वर्ण युग छल | भारतीय काव्य शाश्त्रक महान आचार्य भरत मुनि “ नाट्य शाश्त्रक समग्र रूप रेखा ओही काल मे प्रस्तुत कएल जे अद्यावधि सर्वश्रेष्ठ चिंतन विश्वक काव्य वाँगमय मे मानल गेल अछि | महाकवि कालि दासक नाट्य रचना समग्र विश्वक श्रेष्ठतम नाट्य साहित्य मे परिगणित होइत अछि | ओहिकाल मे मिथिला सेहो नाट्य कलाक योगदान मे पाछू नहि रहल |एतय केर समाज मे आध्यात्मिक चिंतन विशेष छल तदर्थ नाट्यो साहित्य में एकर पूर्ण प्रभाव परिलक्षित होइत अछि | पुराण ,उपनिषद्,आ अन्य धार्मिक ग्रंथक आख्यान केँ नाट्य रूपान्तरण कए एतय नाटक केर विकास भेल ,एकर उदाहरण स्वरुप मिथिलाक “किरतनियाँ नाटक” अछि | परम्परागत नवधा भक्तिक एकटा सोपान अछि हरिक कीर्तन |कीर्त्तन द्वारा प्रभुक गुणगान तथा लीलीक प्रदर्शनक स्मरण करब अछि | मिथिला में इएह विषय वस्तु ग्रहण कए किरतनियाँ नाटकक विकास भेल |ख़ास कए राम, कृष्ण आ शिव लीला के एहि लेल प्रधानता देल जाइत छल | किर्तनियाँ नाटक मे पात्रानुकूल वेश भूषा बनाय एकर प्रदर्शन होइत छल | दानव ,सुदर्शन ,गरूड़, नाग ,आ अन्य मानवेत्तर पात्रक रंग रूपक प्रदर्शन अत्यंत आकर्षक ढंग सँ कएल जाइत छल | नाटकक प्रारम्भ नांदी पाठ सँ होइत छल ,जाहि मे विभिन्न देबी ,देवताक महिमा गान मंगलाचरणक रूप मे कएल जाइत छल | मंगल गानक उपरान्त सूत्रधार नट आ नटीक वेष मे नाट्यक विषय आ लेखकक सम्बन्ध मे वार्त्तालाप द्वारा दर्शक केँ जानकारी दैत छलाह जे आइ एहि मंच सँ कोन आ ककर नाटकक प्रदर्शन हएत? मंचे पर एक कात समाजी बैसैत छलाह जे विभिन्न वाद्य द्वारा नाटकक प्रदर्शनं केँ रोचक बनबैत छलाह |ओ लोकनि नाटक मे पात्रक प्रवेश आ प्रस्थानक घोषणा आकर्षक ढंग सँ करैत रहैत छलाह | समाजी आ सूत्रधार द्वारा युद्ध आ अन्य कार्यक वर्णन सेहो रोचक होइत छल |
एहि नाटकक प्रचलन अपना समय में समस्त मिथिलांचले मे नहि अपितु बंगाल आ आसाम धरि प्रदर्शित होइत छल| एहि नाटकक भाषा प्रमुख मे संस्कृत आ मैथिली रहैत छल जे स्थानानाकुल लोकक बोली मे परिवर्तित होइत रहैत छल | एहि नाटकक रसास्वादन विद्वान आ सर्वसाधारण बिना पढलो लिखलो लोक लैत छलाह |
एकर मंच खूजल आकाश मे चौकी आदि लगाय वा भूमिये पर होइत छल |दर्शक मंडली चारुकात सँ मंच के घेरि लैत छलाह आ बीचक खाली स्थान मे नाटकक प्रदर्शन होइत छल | प्रारम्भ मे ई कीर्त्तनक स्वरुप मे छल आ इएह कीर्तनक पद्धति आँगा आबि किरतनियाँ नाटकक स्वरुप ग्रहण कएलक |राम कृष्णक लीला वा महादेवक विवाह कीर्तन समस्त किर्तनियाँ नाटकक मूल कथा सभ अछि | मिथिलाक मध्य युग मे कीर्त्तनक की स्वरुप छल से किरतनियाँ नाटक सँ बोध होइत अछि | ई किरतनियाँ नाटक लिखित आ अलिखित दूनू स्वरुप मे छल | लिखित मे नन्दीपतिक ,कृष्ण केलिमाला ,कान्हाराम दासक शिवविवाह ,लालकविक शिव नाटिका ,आदि प्रमुख छल | मिथिलाक किरतनियाँ नाटक प्रायः वैष्णव समाज द्वारा प्रचलित नाटक थिक |ब एकरा बहुतो गवेषक महाकवि जयदेवक गीत गोविन्द सँ प्रादुर्भाव मानल अछि |बाद मे ई नाटक साहित्यिक स्वरुप ग्रहण केलक जाहि मे उमापति उपाध्यायक रुक्मिणी परिणय ,गोविन्दक नलचरित ,देवान्न्दक उषाहरण ,आदि प्रमुख छल |नाटकक प्रदर्शन राति मे मशालक इजोत मे होइत छल |पर्दाक प्रचलन नहिये जेकाँ छल |एही किर्तनियाँ नाटकक अनुकरण किछु परिवर्त्तन परिवर्द्धनक संग बंगाल मे यात्रा आ असाम मे अकिया नाट क प्रादुर्भाव भेल मैथिली भाषाक इतिहास मे एकर प्रादुर्भाव विद्यापतिक युगक उपरान्त हर्षनाथ झाक “उषा हरण “धरि मानल गेल अछि |एहि श्रृंखला मे म०म० उमापतिक
“पारिजात हरण “सर्व प्रसिद्द नाटक छल | ई नाटक छल वा नाच एहि सम्बन्ध मे पूर्ण गवेषणा भेल अछि |किछु विद्वान एकरा नाच कहल तँ किछु एकरा नाटक मानल अछि

विदापत नाच |

जेना कि एकर नामकरण सँ बोध होइछ जे मैथिली लोक नाट्य साहित्य मे महाकवि विद्यापतिक पश्चाते “विदापत नाचक” परम्पराक प्रादुर्भाव भेल हएत | प्राचीन कालक किरतनियाँ नाटकक प्रभाव ग्रहण कए “विदापत नाचक नामे ई प्रचलित भेल से विद्वान आ इतिहास कार लोकनिक अभिमत छन्हि | गीतगोविन्दकपद
आ विद्यापतिक गीत मिलि जुलि केँ अनेक लोक नृत्य आ नाट्यक जन्म देलक |
पन्द्रहम शताब्दीक निकट विद्यापतिक पद सभ गावि गावि केँ जे नाचक रिबाज चलल से नचारी कहौलक आ इएह नाचारीक नवीन रूप
“विदापत नाच” भेल | एहि पर अंकिया नाटक सेहो स्पष्ट प्रभाव देखना जाइछ | मिथिला मे प्रारम्भिक नृत्य कला तथा नाट्य चिंतन दूनूक दृष्टि सँ ई मध्य काल स्वर्णयुग छल | एहि युग मे विभिन्न भाषा भाषी क्षेत्र मे लोक नृत्य आ नाट्यक सुदीर्घ परम्पराक विकास भेल जाहि मे लोक रंजन केर भाव प्रमुख छल |मिथिलाक किरतनियाँ,आसामक अंकिया ,आ बंगालक यात्रा आदि एही कालक नाट्य परम्परा थिक | मुग़ल शासनकाल मे किरतनियाँ नाटक केर सर्वाधिक विकास भेल |मिथिला मे जखन किरतनियाँ नाच अत्यंत लोक प्रिय छल तख्ननहि आसामक शंकरदेव मिथिला आबि एकर प्रचर प्रसार निरखि आसाम मे एकरे अनुकरण कए एकटा अभिनव नाट्य परम्परा विकसित कएल जे अंकिया नाट कहाओल |मिथिला मे एही किर्तनियाँ नाटकक तर्ज पर “विदापतनाचक “नाम सँ एकटा नवीन लोक नाट्य प्रारम्भ भेल |गीत गोविन्दक पद आ विद्यापतिक गीत एकर प्रमुख आधार छल |विदापत नाचक मूल उत्स किरतनियाँ नाटक थिक |एकर मंच व्यबस्था एबं अभिनय पर अंकिया नाटक सेहो प्रभाव देखना जाइछ |एकर मूल कथानकक रचयिता विद्यापति नहि प्रत्युत उमापति छथि | हुनक पारिजात हरणक कथा केँ नाट्य रूप देल गेल अछि | एहि मे एकटा “मुलगैन होइत छथि जे सूत्र धारक काज करैत छथि | वाद्य वादक सभ केँ “समाजी “आ श्रृँगार स्थल केँ “साजघर” कहल जाइत अछि | एहि नाटकक प्रारम्भ विद्यापति रचित भगवती बंदना सँ कएल जाइत अछि ,एही कारणेँ लोक एकरा विदापत नाच कहय लगलैक | एहि नाटकक कोनो लिखित परम्परा नहि प्रत्युत मौखिक परम्परा छल | एहि नाचक प्रारम्भ सँ पहिने समाजी सभ साजघर मे जुटि वेष विन्यास करैत छलाह आ तावत “जमिनिका” मे वाद्य संगीत बजैत रहैत छल |प्रारम्भ मे विद्यापतिक गीत समूह रूप सँ गाओल जाइत छल |गानक उपरान्त नाटकक परिचय देल जाइत छल आ ई परिचय क्रिया नाटक केर नायक आ बिपटाक मध्य संबाद सँ होइत छल |एहि क्रम मे दूनू मे हँसी मसखरी सेहो होइत छल |तदुपराँत राधा अपन सखी गणक संग आबि रास नृत्य प्रस्तुत करैत छलीह | नाटकक प्रारम्भ में राधा आ हुनिक रारस नृत्यक की उपयोगिता छल से जानि नहि| रासक उपरान्त मंच पर नारद , कृष्ण ,रुक्मिणी ,अबैत छलीह आ नारद कृष्ण केँ एकटा पारिजातक फूल दैत छलाह आ कृष्ण ओहि फूलक महिमाक गुणगान करैत रुक्मिणी केँ दैत छथि | किछु कालक बाद दासी द्वारा सत्य भामा केँ फूल प्रातिक समाचार ज्ञात होइत छन्हि आ ओ मान कए बैसैत छथि |कृष्ण स्वयं सत्यभामा केँ मनेवाक हेतु जाइत छथि तँ ओ फूल नहि फूलक गाछ मगैत छथि |कृष्ण पारिजातक गाछ लेल गरुड़ केँ सैन्य संग स्वर्ग पठबैत छथि आ स्वर्ग मे इंद्रक रक्षक सँ गरुड़क सेना युद्ध करैत अछि |समाचार पाबि इन्द्र स्वयं अबैत छथि आ दोसर दिस सँ कृष्ण सेहो | कृष्णक संग सत्यभामा आ इंद्रक संग शची सेहो रहैत छथि
आ दूनू मे नीक मौगियाही झगड़ा होइत अछि | अंत मे इंद्र पराजित भय महादेवक स्मरण करैत छथि |महादेव आबि दूनू केँ शांत करैत मेल मिलाप करबैत छथि |
कुल मिलाय विदापत नाटकक भाव किछु किर्तनियाँ आ किछु अंकिया नाटक प्रदर्शन सँ लेल गेल छल |ई नाच कतहु
सामियाना टाँगि कएल जाइत छल |चारू कात दर्शक आ मध्य मे अभिनेता गण |सम्प्रति मिथिलौक लोक “विदापत नाच “केँ विसरि
जेकाँ गेल अछि |

जट्ट—जट् टीन —

वृष्टि कल्प अर्थात् वरषाक हेतु वृष्टि देवक प्रार्थना करब मिथिलाक एकटा नृत्य गीतक परम्परा रहल अछि जकरा लोकभाषा मे जट्ट –जटटीन केर खेल कहल जाइत अछि | एहि विधानक प्रारम्भ बेँग पर
पैन ढारि अर्थात् ओकरा स्नान कराय ,सिंदूर पिठार ,काजर आदि सँ अलंकृत कए कएल जाइत अछि ,कारण जे ई उभयचर प्राणी जे बेसी काल जले मे रहैत अछि आ जले मे प्रजनन क्रिया कए अंडा दैत अछि तदर्थ एहि अनुष्ठान हेतु विधिक प्रारम्भ वेंगे सँ कएल जाइत अछि | एहि नृत्य संगीतक क्रिया मे मंडूक सँ वर्षा हेतु स्तुति सेहो कएल जाइत अछि |ई विधान प्रायः ऋगवेदक मंडूक सूत्र सँ प्रारम्भ हएब मानल जाइत अछि |मिथिला मे सर्व प्रसिद्द वृष्टि कल्प जट –जटिन प्रचलित अछि ताहि मे वेंग केँ महत्वपूर्ण स्थान देल गेल छैक |आद्रा सँ लय उत्तरा नक्षत्र धरि अर्थात साओन भादव मे वर्षा नहि भेनेँ ई क्रिया अर्थात जट्ट –जट्टीन केर नृत्यमय संगीतक आयोजन करबाक प्रथा अछि |एहि संगीत युक्त नृत्य क्रिया केँ पूर्णता प्रदानक हेतु गामक सभ वर्गक स्त्री लोकनि एकठाम जुटैत छथि | एकटा उखरि मे पाँचटा वेंग पकड़ि ओकरा स्नान आ साज श्रृंगार कए राखल जाइत अछि | गामक पाँचटा कुमारि कन्या गामक घरे घर सँ पाँचटा तम्मा मे गीत गबैत भीख मंगैत छथि |ओहि मे सँ एकटा कुमारि पूर्णतः नग्न भऽ माथ पर तामा रखने आगू आगू आ पाछू गीत गबैत सभ जाइत छथि | प्रत्येक आँगन मे तामा मे दूबि धान आ जल देल जाइत अछि आ गीतक माध्यम सँ पैनक देवता सँ वर्षा माँगल जाइत अछि |
“पैन माँगय गेली घरैतिन के अँगना ,पैनियो ने दै छै हे ,इन्नर लोक !
इनरा के पबितहुँ, मूडी मचोड़ितहुँ,हे ,इन्नर लोक |
गाम के अधिकारी बाबू फल्लाँ ओझहा ना,झूठे मूठे पतरा उनटाबै छै,किछु ने बताबै छै ना|
पंडित के पापे दैवा वरखो नै होइत छै ,सभ तरि परल अकाले हो ना |
चमरा के अंगना मे छापर छूपर पनिया ,ताही मे नहाइ छै गामक सभटा बभना ,
अंगो ने भीजै छै ,जनौओ ने मलै छै ,अध भिजुए पहिरी घर जाइ छै ना|
लुलुअबै छै ओकरा घरक मलिकैनो हो ना |
धनिकहो के धिया पुता खुद्दी लय कनै छै अन्न बिना परलै अकाले हो ना
तखन तामा मे पैन आनि पाँच टा समाँठ आनल जाइछ आ उखरि मे पांचो कन्या वेंग के कुटैत अछि |वेंग कुटबा काल नाचि नाचि गीत गायिनी सभ गबैत अछि –
“हाथक लोइया सुखाएल जाइत अछि ,
इनरा के पबितहुँ ,मुंगरी लय ठोकितहुँ,
झहरबिते करिया मेघा हो राम !
आरि बान्हू ,धूर बान्हू गाम के गिरहतबा ,
खेत सँ उछलि जाएत पनिया हो राम |
वेंग कुटलाक बाद दूटा छौड़ी के बरद बनाय हर जोतल जाइछ ,आ गीत गुन्जायमान होइत अछि —
“हाली –हाली बरिसू इन्नर देवता ,पानी बिनु पड़ै छै अकाले हो राम |
चौर सुखेलै,चांचर सुखेलै, सुखि गेलै सगरो संसारे हो राम |
सूखि गेलै पोखरि ,झाँखरि कूपो ,सुखि गेलै भैया के जिराते हो राम !
राँरी बभिनियाँ हरबा जोतै छै ,फरबा उछटि अरिया लागै छै हो राम!
हाली हाली बरिसू इन्नर देवता ,पानी बिना परल अकाले हो राम |
धोबिया के अंगना में छापर छूपर पनिया ,ओही में नहाय सभ बभना होराम !
धोतिया खीचल जनौआ सोंटल ,रूचि रूचि तिलक लगाबे हो राम |
मजूरा के धिया पुता कल्ह मल्ह करै छै,मालिक सभ कोठियो ने खोलै छै हो राम !
सुखले खेत मे हर जोतबै छै ,सरल खेसारी बोनि तौलै छै हो राम|
पैन बिना धरतीक जीवा जंतु मरै छै ,दयो ने लागै छोउ हौ,इन्नर देवता ||

झिझिया नृत्य —

मिथिला आ बंगाल डाइन योगिन केर प्रमुख क्षेत्र अछि | एतय केर डाइन सभ समाज मे बालघातिनी ,विषदायिनी ,महामारी प्रसारिणी ,अग्निवाण हननी ,तथा भूतसप्पा प्रहारिणी मानल गेल अछि |एकर सबहक प्रहार सँ बचबाक लेल लोक बिभिन्न प्रकारक ओझा गुणी सँ डाइनक गुण उनटेबाक लेल अनेक प्रकारक प्रयोग करैत अछि | नवरात्रा एहि लेल सभ सँ उपयुक्त अवसर मानल गेल अछि | मिथिला मे देवी दुर्गाक तंत्र पूजा प्रसिद्द अछि |एहि सिद्ध काल मे जे प्रयोग कएल जाइत अछि से लोक मान्यतानुसार देवीक कृपा सँ अवश्य सिद्ध होइत अछि | झिझिया सेहो एहने प्रयोग अछि |झिझिया में स्त्रीगण माँटिक घट मे अनेक छेद कए ओहि मे दीप जराय माथ पर एक पर एक घैल राखि गीत गबैत नृत्य करैत अछि |
झिझिया मिथिलाक एक प्रकारेँ डाइन योगिन सँ सम्बंधित नारी लोकनिक नृत्य गीत थिक | एहि मे झिझियाक निर्माण प्रक्रिया ,देवीक स्वरुप ,आराधना ,आ डाइन केँ बिखिन्न बिखिन्न गारि नाचि नाचि गाओल जाइत अछि |
“डैनियाँक बेटा मरल परल ,अन्हारी राति झिझिया |
डैनियाँ देह मे पील फरल ,अन्हारी राति ,झिझिया |
झिझियाक ज्योति अगिन बाण सन ,उनटा फेरय डैनियाँक सभ गुण ,
तंत्र मन्त्र सभ बिसरल ,अन्हारी राति झिझिया | “
एकटा झिझियाक नृत्य गीत मे डाइन सँ अबोध शिशुक झिझिया द्वारा रक्षा करबाक निर्देश देल गेल अछि |
“ झिझिया नाचैते रहिहह खबरदार ,डैनिया के जादू बर असरदार |
डैनियाँ गुण हनतौ ,अबोधबा मरतोउ ,अपन गुण रखिहेँ डोका मे सम्हार |गे सजनी !
आगि मांगै लय अंगना जेतोउ ,देखनुक नेना पर गुण हनतोउ ,
बोकरेतौ सोनित केर धार ,गे सजनी !

चाँचरि —-

चाँचरि सेहो मिथिलाक प्राचीन नृत्य गीत थिक |एकर उल्लेख मैथिलीक पुरातन साहित्य मे चर्चरी गानक रूप मे प्राप्त होइत अछि | चाँचरि में मूल रूपेँ प्रेम आ श्रृंगारक अभिब्यक्ति कएल जाइत अछि |
“ ओहिपार रसिया बसिया बजाओल ,एहि पार तरुणी नहाय |
बसिया शबद सुनी हिया धनि सालल, चित्त रहय नहि थीर|
हरि सँ मिलन हित ह्रदय बेयाकुल ,श्यामक नेह गंभीर ,लाला हो —
चांचरि मे स्त्री पुरुषक परस्पर स्नेहक दिब्य स्वरुप प्रदर्शित कएल जाइत अछि | एहि मे परकीया नायिकाक प्रेमक सुन्दर चित्रण कएल जाइत अछि –उदाहरण स्वरुप –
राधा हिया हड़ि हरि भेल निरमोहिया गोकुल तेजि चलि देल गे सखिया !
आब के निधुवन गाए चरओत ? के कर रासक खेल गे सखिया |
आब के घर घर माखन चोराओत ? के हर गोपीक चीर ,गे सखिया !
के कदमक तरु बंशी टेरत “?राधा चित्त ने थीर गे सखिया !
चाँचरि में एकटा दरश प्रेम केर बानगी देखू —
“ देखल अन्हरिया राति महल पर ,चकमक करयित चान हो रामा
!नयन वान हनि देलक मोहनियाँ,अब तब में अछि प्राण हो रामा !
कोना बजाएब गोरि विपिन में ,कोना करब अभिसार हो रामा !
वेदन हृदयक कोना सुनाएब ?प्रेमक परस अपार हो रामा |
[21/01 10:15 pm] shailesh jha: रास —-
मिथिला मे रासक प्रचलन वृन्दावनक वैष्णव समाजक भावोन्मादक नृत्य गीतक परम्परागत प्रदर्शनक अनुकरण अछि | मिथिला में यज्ञ आ अन्य उत्सव पर वृंदावनक रास मंडली रास नृत्य करबालय अबैत छल आ गाम समाजक लोक एकरा खूब पसिंद करैत छल | रासक लोक प्रियता देखि मिथिलौक रंगकर्मी लोकनि पहिने तँ टो टा केँव्रजभाषा मिश्रित मैथिली मे आ क्रमशः खांटी मैथिली प्रयोग द्वारा रासक प्रदर्शन करय लगलाह जे अत्यंत लोक प्रिय भेल | मुरली ,चानखोल ,झालि ,कठताल ,वाद्यक अनोर पर उन्मुक्त नृत्य आ सामूहिक गीत गायन अत्यंत कर्णप्रिय होइत छल |
प्रस्तुत अछि एकटा रासक गीत –
“चलहु सखि,सुखधाम ,श्याम जँह रास रचाबे |
पग पग चलू निहारि ,गज गामिनी व्रज नारि,
श्याम जँह मुरली बजाबे |
शेष ,महेश निगम चतुरानन ,सुर नर मुनि करु ध्यान ,
चलु सखिरास करय वृन्दावन ,गोपी गण तेजि मान |
पशु पक्षी सभ मुदित कुञ्ज वन ,यमुना लहरय नीर |
जीवा जन्तु मगन भय नाचय ,देवहु चरण ने थीर ||
ई नारी लोकनिक सामूहिक नृत्य गीत अछि | एहि मे कृष्ण छोड़ि सभ पुरुषो नारी स्वरुप गोपी बनि कृष्ण प्रेम मे उन्मत्त भय नचैत रहैत अछि | देखू कतेक उन्माद भाव बोधक अछि ई रास गीत —
“मधुवन नाचत रास कन्हाई |
गोपी सकल त्यागि गृह कारज ,पहुँचत यमुना तट पर धाई |
हरि सम्मोहन वेणु बजाबत ,गोपियन लेत बजाई |
मना ने मानत सासु ननदि के, गुरुजन नैन बचाई |
नाचत लाज बीज तजि गोपी ,उठत खसत मुरछाई ||”
२, हरि टेरल फेनो मुरलिया ,|
शरद पूर्णिमा राति इजोरिया ,बैसि कदम केर फ़ेरिया |
मनमोहक मुरली ध्वनि पसरल ,हड़ि लेल गोपी सुधिया |
सभ पागलि मधुवन के भागलि ,श्याम स्वरुप लुबुधिया |
मिथिलाक अनेक गाम मे ई रास मंडली छल जे पर्व ,उत्सव आ बिभिन्न संस्कारक अवसर पर रास नाचि लोकक मनोरंजन करैत छल ||

नारदी —–

नारदी सेहो कृष्ण विषयक नृत्य गीत थिक | हरि कीर्त्तनक शैली पर भक्त नारद आ समाजी गण वीणा,एकतारा ,पखौज ,मृदंग ,आ कठताल बजाए सामूहिक नृत्य रत भय कीर्तन गायन छल नारदी गान | एहि मे कृष्ण लीला विषयक गान आ नृत्य कएल जाइत छल |नारदीक नृत्य रत कृष्ण नृत्यरता गोपी सँ माखन मँगैत कोना खेखनियाँ करइत धमकी दैत छथि से देखल जाए –
“नन्देर नंदन गोपी आँगा ,माखन माँगे हाथ पसारी |
देहु गोआरि हमर प्रिय भोजन ,नहि तऽ हम घीचब तुअ साडी |
पथ जाइत दधि मटुकी फोड़ब,छीको माखन लेब उतारी | नाव चढ़ाय डूबाएब यमुना ,हँसि के कह गोपी गिरधारी ||”
नारदी मे खास कय कृष्ण आ हुनक अधिकाँश बाल लीलाक नृत्य गान द्वारा प्रदर्शन प्रमुखता सँ कएल जाइत छल यथा माखनचोर ,भोजन विहार ,भूमि लोटोवा ,चोरघरा ,गोपी उपराग ,गोपालक कौतुक क्रीडा आदि |

झुम्मरि —

मिथिला मे वाल्येवस्था सँ खेल कूद मे झुम्मरि नाँचब सिखाओल जाइत अछि | नेना लोकनि नाचि नाचि गबैत अछि “करिया झुम्मरि खेलैछी | भूत पटा पटि मारै छी
आदि | वयक संग एकर भाव मे परिवर्त्तन आबि जाइत अछि| प्रौढक झुम्मरि में प्रेमक करुण चित्कार,अतृप्त पिपासा एबं वेदनाक सेहो अभिब्यक्ति आबि जाइत अछि |एहि मे राधा कृष्णक प्रेम प्रसंग तथा लोक जीवनक गार्हस्त नेहक सेहो प्रस्फुटन भेल अछि |झूम्मरि मिथिलाक प्राचीनतम नृत्य गीत थिक| महाकवि विद्यापतियो अपन पद मे” गावहु ऐ,सखि झुम्मरि लोरी “कहि एकर परिपुष्टि कएल अछि |देखू राधा माधव केर एकटा झुम्मरि—
“झुम्मऱि नाचय माधव राधा |
गहन एकाँत विपिन के माँझे अंग मिला केँ आधा आधा |
चारू कात बछरुआ गैया ,देखि के हुकरय करय ने बाधा |
एक एक गोपी एकएक माधव ,सभ केँ समरस प्रेम अगाधा |
देखू एकटा लोकरसक झुम्मरि—
“ आरे ,उतरहिराज सँ एलइ एक नटिनियाँ, रे जान |
जान ,बैसि रे गेलै,कदम विरिछिया रे जान |
अरे ,झिहिर झिहिर बहलै शीतल बयरिया रे ,जान |
जान ,घर सँ बाहर भेली सुन्नरि एक पुताहुआ रे जान |
जान ,झारे जे लगली नामी नामी केसिया रे ,जान |
जान परि रे गेलै नटिनी केर नजरिया रे जान |

आ आगाँ कोना नटिनियाँ ओकरा गोदना गोदेबाक लाथ लगाय रूपक हाट लय जाइत अछि से चर्चा रोचक अछि | समाजक कुल शीलक नारी केँ एहन कुट्टनी सँ बचि के रहबाक निर्देश भनित अछि | एकटा दोसर झुम्मरिक नृत्य गीत मे रुक्मिणीक श्री कृष्ण सँ प्रेम याचनाक निवेदन पत्र अछि –
“कदली वन सँ पत्र अनाओल ,नैन काज़र मोसिहानि यौ|
लिखल विलाप विनय केशव सँ, देहु चरण तर वास यौ |
सिंहक भाग सियार ने पाबय ,जनम अकारथ जाय यौ !
अहिँक शरण धय प्राणक धारण ,नहि तँ मरव विष खाय यौ !!

देवी देवताक भाव नृत्य —

मिथिला मे गामे गाम मे अनेक देवी देवताक थान आ गहवर अछि ,जतय हुनिक सेवा पूजा लय नियुक्त सेवक वा भगत केर देह मे समय समय पर देवी देवताक सवारी अबैत अछि आ ओ जे उद्दाम नृत्य करैत छथि तकरा भाव नृत्य कहल जाइत अछि | एकर मुख्याधार अछि संगीत आ देशी वाद्यक अनोर |एहि मे प्रमुख अछि –सलहेस ,सती वेहुला ,गोपीचन्न ,सामा-चकेवा ,डोमकछ ,कतिका- कुमर,दीनाभद्री,सोखा सोमनाथ ,शशिया ,लौरिक ,दुलरा दयाल ,गनिनाथ आदि आदि |
एबं प्रकारेँ मिथिला में परम्परागत लोक नृत्य आ नाट्य परम्परा अत्यंत समृद्धि छल ई उपरोक्त अति संक्षिप्त विवेचनो सँ सिद्ध होइत अछि ||
“मधुकर”|
२८,६..२०१३,

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