३२० ई.सँ १०९७ ई. धरिक
मिथिलाक राजनैतिक इतिहास
गुप्तवंशक उत्थान भारतीय इतिहासमे एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। मिथिलाक हेतु एकर महत्व एहि लेल बढ़ि जाइत छैक कि मिथिलाक वैशालीक राजकुमारीक संग विवाह भेला उत्तरे चन्द्रगुप्त प्रथम साम्राज्य निर्माण करबामे सफल भेलाह। दोसर बात इहो जे एहि वैवाहिक सम्बन्धक बाद वैशालीक प्राचीन गणराज्यक परम्परा सेहो संभवतः समाप्त भऽ गेल आ वैशाली आब पूर्णरूपेण मगध साम्राज्य एकटा प्रमुख अंग बनि गेल। लिच्छवीक सम्बन्ध जतवा जे परिकल्पना भऽ सकइयै तकर विवेचन हमरा लोकनि पूर्वहिं कऽ चुकल छी आ ओहिसँ इहो स्पष्ट भेल अछि जे कोनो ने कोनो प्रकारे गुप्त साम्राज्यक उत्कर्षक पूर्वहिंसँ लिच्छवी आ पाटलिपुत्रक बीच घनिष्ठ सम्बन्ध छल। जँ लिच्छवीक कोनो महत्व नहि रहैत तँ चन्द्रगुप्त प्रथम हुनका सब संग वैवाहिक सम्बन्ध स्थापिते किएक करितैथि। गुप्त लोकनिक जे साम्राज्य विजयक सूची भेटइत अछि ताहिमे वैशालीक नाम नहि अछि यद्यपि नेपालक नाम अछि आ तैं आधारपर इ अनुमान लगायब युक्तिसंगत बुझि पड़इयै जे वैशाली तँ प्रारंभहिंसँ हुनका लोकनिक साम्राज्यक अंग छल। वैशालीक शक्ति हुनका लोकनिक साम्राज्य निर्माणमे सहायक भेलन्हि। पुराणमे वर्णित क्षेत्रमे वैशालीक नाम नहि अछि–
“अनु–गंगा–प्रयागंच साकेतम् मगधिस्तथा
एतान जनपदान सर्व्वान् भोक्षयंते गुप्तवंशजाः॥
पतंजलिक एहि प्रकार एकटा वाक्य तुलना करबाक योग्य अछि–
“अनु गंगं–हस्तिनापुरम्–
अनुगंगं वाराणसी;
अनु शोणम् पाटलिपुत्रम्”–
समुद्रगुप्तक प्रयाग प्रशस्तिमे सेहो वैशालीक उल्लेख नहि रहब एहि तथ्यक समर्थन करैत अछि जे वैशालीक विजय करबाक आवश्यकता गुप्त लोकनिक हेतु आवश्यक नहि छल कारण इ तँ गुप्त लोकनिक अपन छलन्हि आ कुमार देवीक जे महत्व सिक्का आदिमे भेटल छन्हि सेहो एहि बातकेँ पुष्ट करइयै। समुद्रगुप्तकेँ ‘सर्व राजोच्छेत्ता’ कहल गेल छन्हि।
वैशालीक प्रधानताक प्रमुख कारण इएह छल जे कुमार देवीसँ विवाह केला उत्तरे गुप्त लोकनि लिच्छवीक सहायतासँ पाटलिपुत्रपर अधिकार करबामे समर्थ भेल छलाह। कुमार देवीक दिसिसँ हुनका लोकनिकेँ वैशाली राज्य भेटल छलन्हि। समस्त तिरहुत गुप्त साम्राज्यक एकटा प्रमुख केन्द्र छल आ वैशाली ओहि प्रांतीय राज्यक राजधानी। वैशालीक महत्व तँ अहुसँ सिद्ध होइछ जे एहिठामक राज्यपाल युवराजे होइत छलाह आ गोविन्द गुप्त युवराज एहिठामक राज्यपाल छलाह तकर प्रमाण अछि वैशालीसँ प्राप्त अभिलेख। गुप्तलेखमे एहि क्षेत्र तीरभुक्ति कहल गेल छैक। ‘लिच्छवी दौहित्र’ कहिकेँ अपनाकेँ गौरवान्वित बुझनिहार समुद्रगुप्तक उक्तिसँ एतवा धरि स्पष्ट अछि जे ताहि दिनमे लिच्छवीक प्रतिष्ठा आ प्रभुत्व दुनू बनल हेतैन्ह आ वैवाहिक सम्बन्धक कारणे इ दुनू चीज गुप्त लोकनिकेँ स्वयंमेव उपलब्ध भेल होएतन्हि। मौर्य साम्राज्यक पछाति जे विकेन्द्रीकरणक प्रवृत्ति बढ़ल आ मगधपर बरोबरि आक्रमणक ताँता लागल रहल ताहिसँ लाभ उठाए लिच्छवी लोकनि अपन पुरान गौरवकेँ पुर्नस्थापित करबामे सफल भेलाह आ अपन सीमाकेँ नेपालसँ तिब्बत धरि बढ़ौलन्हि आ क्रमेण पाटलिपुत्रक सीमा धरि सेहो। जँ से बात नहि रहैत तँ चन्द्रगुप्त प्रथम अपन रानीक नामे सिक्का किएक बनावतैथ अथवा समुद्रगुप्त अपनाकेँ लिच्छवी दौहित्र कहबा किएक गौरवान्वित बुझितैथ। वैशालीक उत्खननसँ प्राप्त एकटा मोहरपर लिखल अछि–“महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त पत्नी महादेवी श्री ध्रुवस्वामिनी”–
ओहिसँ प्राप्त सामग्रीक आधारपर इ बुझबामे अवइयै जे तिरहुत प्रांतीय शासनक एकटा प्रमुख केन्द्र छल आ से तीरभुक्तिक विषयमे अनेक सामग्री भेटल अछि जाहिसँ ओत्तुका तत्कालीन शासन पद्धति एवँ समाजक व्यवस्थाक सम्बन्धमे ज्ञान प्राप्त होइछ। प्रांतीय आ नगर शासनक एहेन सुन्दर चित्रण आनठाम भेटब अंसभव। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्यक समयमे एहिठामक राज्यपाल छलाह युवराज गोविन्दगुप्त। गुप्तयुगमे मिथिलाक सीमा पश्चिममे श्रावस्ती भुक्तिसँ मिलैत छल आ पूवमे पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक किछु अंश सेहो मिथिलाक अंतर्गत रहल होएत जतए करण कायस्थ लोकनि “दत्त” पदवीधारी कैक पुस्त धरि राज्यपालक पदपर रहला आ जनिक अभिलेख सम्प्रति उपलब्ध अछि। मिथिलाक सीमा ताहि दिनमे पश्चिममे श्रावस्ती भुक्ति, उत्तरमे नेपाल, दक्षिणमे श्रीनगर भुक्ति आ पूवमे पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक सीमासँ मिलैत जुलैत छल आ इ गुप्त शासनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आ एकर महत्व एतेक छलैक जे राज्यवंशक लोक स्वयं एकरा अपना चार्जमे रखैत छलाह। गुप्त साम्राज्यक शासन पद्धतिक अध्ययन बसाढ़क उत्खननसँ प्राप्त सामग्रीक बिनु संभव नहि छल। अखनो ओहिमे कतेक रास एहनो शब्द अछि जकर अर्थ स्पष्ट नहि भऽ रहल अछि।
निम्नलिखित प्रशासनिक शब्दावली ओहिठामसँ प्राप्त अछि–
i.) उपरिक
ii.) कुमारामात्य
iii.) महाप्रतिहार
iv.) तलवर
v.) महादण्डनायक
vi.) विनय स्थिति स्थापक
vii.) भट्टाश्वपति
viii.) युवराजपादीय कुमारामात्याधिकरण
ix.) रणभाण्डागाराधिकरण
x.) बलाधिकरण
xi.) दण्डपाशाधिकरण
xii.) तीरभुक्तौ विनयस्थिति स्थापकाधिकरण
xiii) वैशाल्याधिष्ठानाधिकरण
xiv.) श्री परमभट्टारक पादीय कुमारामात्याधिकरण
xv.) तीरभुक्त्युपरिकाधिकरण–
वैशालीसँ प्राप्त अवशेष सबहिक आधारपर इ प्रामाणिक रूपें कहल जा सकइयै जे गुप्तयुगमे एहि क्षेत्रमे एकटा सुसंगठित शासन प्रणाली छल आ एकरे आदर्श मानि गुप्त साम्राज्यमे प्रांतीय आ स्थानीय शासन प्रणालीक स्थापना भेल छल। दामोदरपुरसँ प्राप्त ताम्रलेख एहिबातक साक्षी अछि। भुक्ति ताहि दिनमे प्रांत अथवा प्रमण्डलक द्योतक छ्ल। अधिकरण शब्दसचिवालयक द्योतक थिक आ प्रत्येक विभागकेँ अपन–अपन अधिकरण होइत छलैक जेना कि उपरोक्त विवरणसँ स्पष्ट अछि। प्रांतमे प्रसिद्ध होइत छलाह राज्यपाल, सेनापति, प्रतिहार आ अन्यान्य पदाधिकारी। युवराजक अधीन सेहो मंत्री लोकनि रहैत छलथिन्ह आ कोषाध्यक्ष, युद्धविभाग, न्याय विभाग, नियंत्रण विभाग आदिक पदाधिकारी एवँ कर्मचारी लोकनि सेहो प्रांतीय सचिवालयमे रहैत छलाह। स्थानीय शासनक दृष्टिकोणे वैशालीक अपन अलग अधिष्ठान स्थल आ ओकर सचिवालय–कार्यालय सेहो फराके रहैत छ्ल। साम्राज्यक शासन यंत्रक अपन मुख्यालय होइत छलैक जे प्रांतीय कार्यालय कहबैत छल आ स्थानीय शासनक अलग कार्यालय होइत छलैक। स्थानीय कार्यालय होएब अहुलेल आवश्यक छल कि ओहि संस्थाकेँ स्थानीय मामलापर विचार करए पड़इत छलैक। वैशाली एकटा प्रसिद्ध व्यापारक केन्द्र सेहो छल आ व्यापारी लोकनिक सेहो अपन संगठन छलन्हि जे “श्रेष्ठी–सार्थवाह–कुलिक–निगम” शब्दसँ ज्ञात होइछ। प्रांतीय शासन विभागक अतिरिक्त एहिठामक स्थानीय शासन सेहो वेस संगठित छल जेना कि उपयुक्त सूचीसँ ज्ञात होइछ। वैशालीक नगर शासन व्यवस्था सुन्दर छल।
उदानकूप परिषदक उल्लेखसँ स्थानीय शासनक बोध होइछ। वैशालीक व्यावसायिक संगठन, निगम, श्रेणी, सार्थवाह, कुलिक आदि सेहो अपन मोहर रखैत छलाह। बैंक प्रणाली नीक जकाँ वैशालीमे संगठित छल–‘कुलिक’ शब्द एकर संकेत थिक। ‘प्रथम कुलिक’क उल्लेख सेहो कैकटा मोहरपर भेटइत अछि। वसाढ़, भीठ, बंगाल आदि स्थानक उत्खननसँ प्राप्त सामग्रीक आधारपर इ कहल जा सकइयै जे गुप्तकालीन शासन–व्यवस्थाक स्वरूपमे एकरूपता छल आ एकर श्रेय गुप्त सम्राट लोकनिकेँ छलन्हि। ओना वैशाली तँ अतिप्राचीन कालसँ प्रशासनक प्रधान केन्द्र बनल आ ओहिठाम गणतांत्रिक परम्पराक प्रभाव गुप्तयुगक शासन संगठनमे सेहो देखल जा सकइयै। समुन्नत आर्थिक जीवनक हेतु सुगठित शासन प्रणाली आवश्यक बुझल जाइत अछि आ वैशालीकेँ जे बैंकक प्रणाली सेहो संगठित छल से उपरोक्त कथनकेँ आ समर्थन दैत अछि। श्रेष्ठी, कुलिक, निगम आदिक अलग–अलग सभापति होइत छलैक आ ओहिमे जे श्रेष्ठ होइत छलहि हुनका “प्रथम”क विशेषसँ विभूषित कैल जाइत छलन्हि। व्यापारी आ बैंकर लोकनि अपन पत्राचार आ कारोबारमे अपन–अपन मोहरक व्यवहार करैत छलाह। ओहिठाम बहुत मुद्रापर श्रेष्ठी निगमस्य सेहो उल्लिखित अछि आ बहुतो गोटएक नाम सेहो ओहि मुद्रा सबसँ भेटइत अछि। जेना उदाहरणार्थ निम्नलिखित नाम देल जा सकइयै– हरि, उमाभट्टा, नागसिंह, सालिभद्र, धनहरि, उमापलित, वर्ग्ग, उग्रसेन, कृष्णदत्त, सुखित, नागदत्त, गोण्ड, नन्द, वर्म्म, गौरिदास–इ सब केओ कुलिक छलाह। सार्थवाहमे डोड्डकक नाम आओर श्रेष्ठीमे षष्ठिदत्त, आ श्रीदासक नामक उल्लेख अछि। एहने एक मुद्रा बेगूसरायसँ प्राप्त भेल अछि जाहिपर “सुहमाकस्य” आ “श्री समुद्र” लिखल अछि। पुण्ड्रवर्धन भुक्तिक ओहि क्षेत्रमे जे तीरभुक्तिक भौगोलिक सीमाक समीप पड़इत छल ताहिपर कैक पुस्त धरि जे ‘दत्त’ करण (कायस्थ लोकनि) राज्यपाल छलाह तकर प्रमाण गुप्त अभिलेखसँ भेटइत अछि। चिरातदत्त, जयदत्त, ब्रह्मदत्त, स्थाणुदत्त, जीवदत्त, आदिक नाम गुप्त अभिलेखमे अछि। चिरातदत्त उपरिक छलाह। प्रांतीय शासनक हेतु जे बोर्ड होइत छल ताहिमे श्रेष्ठी, निगम, कुलिक, सार्थवाहक एक एकटा प्रतिनिधिक अतिरिक्त ओहिमे प्रथम कायस्थ सेहो रहैत छलाह। उपरिकक पदक वंशानुगत हैव एहि बातक संकेत दैत अछि जे ताहि दिनमे सामंतवादी प्रवृत्तिक विकास भऽ चुकल छल। पुण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक सीमा हिमालयमे वाराह क्षेत्र धरि पसरल छल आ ओहिठाम कोकामुख स्वामी नामक एकटा प्रधान तीर्थ सेहो छल– तैं एहि क्षेत्रकेँ मिथिलाक क्षेत्र मानव स्वाभाविके कारण इ मिथिलाक भौगोलिक सीमामे पड़इयै। गुप्तयुग धरि मिथिला गुप्त साम्राज्यक एकटा प्रमुख अंग बनल रहल।
गुप्त साम्राज्यक अंतिम दिनमे मिथिलाक इतिहासमे पुनः एकटा अनिश्चितताक स्थिति आबि गेल। गुप्त लोकनिक एकटा प्रांतीय राज्यपाल यशोधर्मन एहि स्थितिसँ लाभ उठाए अपन अधिकारक विस्तारमे लागि गेलाह आ लौहित्य (असम) धरिक क्षेत्रकेँ जीतकेँ अपना अधीनमे केलन्हि। एहि क्रममे ओ पुण्ड्रवर्द्धनक उपरिक दत्त लोकनिकेँ पराजित कए ओहु क्षेत्रपर अपन अधिकार बढ़ौलन्हि आ दत्त लोकनिक पुस्तैनी गवर्नरी एकर बाद समाप्त भऽ गेलैन्ह। एहि आधारपर हम इ अनुमान लगा सकैत छी जे किछु दिनक हेतु यशोधर्मनक प्रभुत्व मिथिलोमे अवश्य रहल हेतैन्ह। ५३३क मंदसोर अभिलेखसँ हमरा लोकनिकेँ उपरोक्त बातक ज्ञान होइछ। यशोधर्मन हूण लोकनिकेँ पराजित कए यशक अर्जन कएने छलाह आ तैं भारतमे ताहि दिनमे हुनक प्रतिष्ठा विशेष छलन्हि। परञ्च हुनक विजयाभियान बहुत दिन धरि नहि टिकलन्हि आ शीघ्रहिं हुनक राज्य समाप्त भऽ गेलैन्ह। मिथिलाक हेतु अनिश्चितताक अवस्था बनले रहल।
यशोधर्मन ओम्हर अपन डफली बजा रहल छलाह आ एम्हर पूबमे उत्तर गुप्त लोकनि गुप्त साम्राज्यक पतन (५५४ इ.)सँ लाभ उठाए अपन अस्तित्वकेँ सुरक्षित करबामे एवँ मजबूत करबामे लागि गेल छलाह। बिहारमे ओहि युगमे मौखरी लोकनि सेहो अपन अधिकार जमेबाक चेष्टामे लागल छलाह। एहि अनिश्चितताक स्थितिसँ तँ सब केओ लाभ उठबे चाहिते छलाह आ तैं चालूक्य कीर्त्तिवर्मन सेहो अंग, मगध, आ वंगपर आक्रमण केलन्हि। उत्तरगुप्त, मौखरी आ अन्यान्य शासकक बीच ताहि दिन आधिपत्यक हेतु संघर्ष चलि रहल छल। जीवित गुप्त अपन प्रयासमे सफल भेल होएताह से अन्दाज लगाओल जा सकइयै। मगधक शासक महासेन गुप्त असम धरि अपन अधिकार क्षेत्रक विकास केलन्हि आ तैं इ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे ओ मिथिलापर सेहो अपन आधिपत्य कायम केने हेताह। ताहि दिनक स्थिति इ छल कि जहाँ कोनो एक राज्य कमजोर भेल कि दोसर ओकरापर टुटि पड़इत छल आ ओकरा अपना अधीन कऽ लैत छल। संभव अछि जे मौखरी लोकनि अपन साम्राज्य विकासक क्रममे मिथिलोकेँ अपना अधीनमे कऽ लेने होथि। कटरा (मुजफ्फरपुर)सँ जीवगुप्तक एकटा अभिलेख भेटल अछि परञ्च ओहिसँ राजनैतिक इतिहासपर तत्काल कोनो आलोक नहि पड़ि रहल अछि। कामरूपक वर्मन वंशक शासक लोकनि सेहो मिथिलाक पूर्वी क्षेत्र पूर्णियाँपर कैक पुस्तसँ अधिकार जमा लेने छलाह। गुप्त साम्राज्यक पतनक बाद मिथिलाक इतिहास अंधकारमय भऽ जाइत अछि आ कोनो संगठित एवँ नियोजित इतिहासक संकेत कतहुसँ नहि भेटइत अछि। चारूकात जे राज्य विस्तारक संघर्ष चलि रहल छल ताहिमे मिथिला एकटा प्रमुख शिकार छल आ विभिन्न महत्वाकाँक्षी राजा लोकनि शिकारीक काज करैत छलाह।
हर्षवर्द्धनक अमलमे मिथिला हुनक साम्राज्यक अंश छल एहिमे कोनो सन्देह नहि। हर्षक समय धरि अबैत–अबैत राजनीतिक क्षेत्रमे पाटलिपुत्रक स्थान कन्नौज लऽ लेने छल आ पाटलिपुत्रक महिमा घटि चुकल छल। हर्षक राजधानी छल कन्नौज जकरा महोदय श्री सेहो कहल जाइत छलैक आ जकर महिमाक विवरण चीनी यात्री हियुएन सांग प्रस्तुत कएने छथि। हर्षक पूर्व शशाँक मिथिलापर शासन केने होथि से संभव कारण ताहि दिनमे शंशाँक पश्चिममे अपन आधिपत्य बढ़ेबाक हेतु सब तरहे प्रयत्नशील छलाह। प्रभाकर वर्द्धनक पुत्र राज्यवर्द्धनक हत्या बंगालक शशाँकक हाथे भेल छलन्हि।
शासक भेला उत्तर हर्ष अपन राज्यवर्द्धनक मृत्युक बदला लेबाक हेतु कटिबद्ध छलाह आ ओहि उद्देश्यसँ प्रेरित भऽ ओ अपन सैनिक अभियानक श्री गणेश केलन्हि। शशाँक पराजित भेलाह आ अपना सन मुँह बनाकेँ अपन पराजयक घूंट पीबैत रहलाह। हर्ष लगातार ६ वर्ष धरि अपन अभियान जारी रखलन्हि आ उत्तर भारतक विशिष्ट भागपर अपन अधिकार जमौलन्हि। चीनी यात्रीक अनुसार ओ ‘पाँचो भारत’ (जाहिमे मिथिला सेहो सम्मिलित छल) जीति कए उत्तर भारतमे स्थायित्व अनलन्हि–‘पाँचो भारत’ भेल स्वराष्ट्र (पंजाब), कान्यकुंज, मिथिला, गौड़, तथा उत्कल। ६४१ इ.मे ओ मगधपर सेहो अपन आधिपत्य कायम केलन्हि आ भारतक चारूकातक राजाकेँ सैतलन्हि। गुप्त साम्राज्यक पतन भेलापर जे एकटा अनिश्चितताक स्थिति उत्पन्न भऽ गेल छल तकरा हर्ष समाप्त केलन्हि आ समस्त उत्तर भारतपर एकटा स्थायी शासनक रूपरेखा प्रस्तुत केलन्हि। ओ समस्त भारतकेँ पुनः एकछत्र शासनक अधीन करए चाहैत छलाह आ हुनक दुश्मन पुलकेशिन द्वितीय हुनका “सकलोतरापथस्वामी” कहने छथिन्ह। हर्षक शासन तँ बहुत दिन धरि नहि रहल तथापि हर्षक महत्व एहि लेल अछि जे हर्ष अपना समयमे एकटा स्थायित्वक रूपरेखा प्रस्तुत कएने छलाह जे हुनका परोक्ष भेलापर समाप्त भऽ गेल।
हर्षक समयमे भारतमे सामंतवादक पूर्ण विकास भऽ गेल छल आ हर्षक शासन प्रणालीपर सेहो एकर प्रभाव देखबामे अवइयै। हियुएन सांग सेहो एहि बातक साक्षी छथि। हर्ष स्वयं घुमि–घुमिकेँ अपन शासनक निरीक्षण करैत छलाह आ जागीरक रूपमे अपन कर्मचारी आ सैनिककेँ वेतन दैत छलाह। शासन संगठनमे ओ मौर्य आ गुप्तसँ प्रभावित छलाह आ हुनक साम्राज्य प्रांत, भुक्ति आ विषयमे विभाजित छल। तीरभुक्ति शासनक एकटा प्रधान केन्द्र छल आ हर्षक समयमे ओहिठाम अर्जुन अथवा अरूणाश्व नामक एक महत्वाकाँक्षी व्यक्ति राज्यपाल छलाह। हर्षक देहावसान भेलापर पुनः राज्यमे अराजकता पसरि गेल आ महत्वाकाँक्षी अर्जुन ओहिसँ लाभ उठाकेँ राज्यकेँ हड़पि लेलन्हि आ स्वयं शासक बनिकेँ बैसि गेलाह। एकर अर्थ इ होइछ जे हर्षक समयमे तीरभुक्ति एक महत्वपूर्ण प्रांत छल आ एहिठामक राज्यपालक शक्ति आन राज्यक अपेक्षा विशेष छलैक। अर्जुन (अरूणाश्व) महात्वाकाँक्षी होइतो योग्य सैनिक एवँ संगठन कर्म सेहो रहल होएत आ परिस्थिति अनुकूल भेला उत्तर ओहिसँ लाभ उठौने होएत।
तिब्बती आक्रमण:- हर्ष अपन मृत्युक पूर्वहिं चीनक सम्राटक ओतए एकटा शिष्टमण्डल (दूत मण्डल) पठौने छलाह आ ओकरे उत्तरमे चीनक सम्राट सेहो एकटा दूतमण्डल हर्षवर्द्धनक दरबार पठौने छलाह आ ओहि दूतमण्डलक नेता छलाह वाँग–हियुएन–सी। वाँगक नेतृत्वमे जखन चीनी दूतमण्डल भारत पहुँचल तखन हर्षक मृत्यु भऽ चुकल छल आ अरूणाश्व समस्त राज्यकेँ हड़पिकेँ शासक बनि चुकल छलाह। ओहि दूतमण्डलक संग हुनक व्यवहार तँ अशोभनीय भेवे केलन्हि आ संगहि ओ दूतमण्डलकेँ बेइज्जत सेहो केलन्हि। वाँग भागिकेँ नेपाल चलि गेलाह आ ओतएसँ तिब्बत सेहो। तिब्बतमे ताहि दिनमे शासक छलाह प्रसिद्ध श्रौंग–सान–गंपो। श्रौंग, वाँगकेँ १२०० चुनल तिब्बती सैनिक देलथिन्ह आ नेपालसँ सेहो हुनका ७००० सेना भेटलन्हि। तिब्बती–नेपाली सहयोगसँ वाँग अरूणाश्वकेँ पराजित कए उत्तरी बिहार अथवा तिरहुतपर अपन प्रभाव जमौलन्हि। अर्जुनक विद्रोहकेँ दबाओल गेल आ ओ भागबाक प्रयास केलन्हि मुदा हुनका गिरफ्तार कऽ लेल गेल आ चीनक सम्राटक ओतए बंदीक रूपमे उपस्थित कैल गेल। कहल जाइत अछि– जे वाँगक एहि प्रयासमे कामरूपक भास्करवर्मन सेहो सहायक भेल छलथिन्ह।
इ घटना तँ ओना देखलासँ सामान्य बुझि पड़इयै परञ्च ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ इ एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि जकर संक्षिप्त विवेचन आवश्यक बुझना जाइत अछि। अर्जुन अथवा अरूणाश्वक सम्बन्धमे पूर्ण जानकारी नहि अछि परञ्च ओ तीरभुक्तिक राज्यपाल छलाह से निश्चित अछि आ हर्षक परोक्ष भेलापर ओहि साम्राज्यक अधिकारी सेहो भऽ गेला। वाँगक संग एहि प्रकारक व्यवहार ओ किएक केलन्हि से बुझबामे नहि अवइयै। वाँग स्वयं सब मिलाकेँ चारि बेर कूटनीतिक काजक प्रसंग भारत आएल छलाह आ भारत विवरणक सम्बन्धमे हुनक एकटा पोथी सेहो उपलब्ध अछि। पोथीक मूल तँ लुप्त भऽ गेल अछि मुदा ओकर अंशकेँ संकलित कए ताओचेन नामक एक व्यक्ति ओकरा सुरक्षित रखने छथि। ताँग वंशक इतिहासमे भारतपर वाँगक आक्रमणक विवरण भेटइयै जाहिमे इ कहल गेल अछि जे वाँगक दूतमण्डल पहुँचबाक किछुऐ पूर्व शिलादित्य (हर्ष) मरि चुकल छलाह आ समस्त देशमे अराजकता पसरल छल। नाफुती (तीरभुक्ति)क अरूणाश्व (ओलानाशुएन) राजगद्दी हड़पि चुकल छलाह। वाँगक दूतमण्डलकेँ भऽ गेबाक प्रयासमे ओ लागल छलाह। दूतमण्डलक संग मात्र ३०टा घोड़सवार छल। वाँग कोहुना भागिकेँ बचलाह। तिब्बत आ नेपालसँ सेना आनि दूतमण्डलक दोसर प्रमुख पदाधिकारी, सियांग-चेन-जेनक नेतृत्वमे तीन दिन धरि युद्ध भेल आ अंतमे अरूणाश्व पराजित भेलाह। वाँग जखन बन्दीक रूपमे अरूणाश्वकेँ लऽ कए चीन पहुँचलाह तखन वाँगकेँ प्रोन्नत कओल गेलन्हि। उपरोक्त विवरण ताँग वंशक पुरना इतिहासमे भेटइत अछि।
ताँग वंशक नवका इतिहासमे सेहो एहि घटनाक विवरण एवँ प्रकारे भेटइत अछि। ६४८मे वाँगकेँ जखन भारत दूतमण्डलक नेता बनाके पठाओल गेलन्हि तखन हर्षक अवसान भऽ चुकल छल आ अरूणाश्व राज्यक अधिकारी भऽ चुकल छलाह। ओ तीरभुक्तिक शासक छलाह। तिब्बत आ नेपालसँ सहायता लऽ वाँग अपन वेइज्जतीक बदला लेबाक हेतु तिरहुतपर आक्रमण केलन्हि। ओ अपन सेनाकेँ कैक भागमे विभक्त कए अपन तेसर दिन चा-पुओ-हो-लो नामक स्थानपर पहुँचलाह आ ओहिपर अपन आधिपत्य कायम केलन्हि। एहिक्रममे ३००० व्यक्तिक हत्या भेल आ १०००० व्यक्तिकेँ नदीमे डुबाओल गेल। अर्जुन भागिकेँ पुनः अपन शक्ति संचय केलन्हि आ फेर वाँगक संग युद्ध शुरू केलन्हि मुदा हुनका कोनो सफलता नहि भेटलन्हि। राजाक जनानखानाक प्रधान दुश्मनक बाट रोकबाक हेतु किएन-तो-वाइ नामक नदीक मार्ग अवरूद्ध कए देलन्हि तथापि चीनी दूतमण्डल हिनका लोकनिकेँ पराजित केलन्हि आ अरूणाश्वक पत्नी समूह एवँ पुत्रादिकेँ गिरफ्त कए माल असवाब सब लूटि लेलन्हि। चीनी सेना नायक उपरोक्त चेन-जेनक समक्ष ५८०टा नगर आत्म समर्पण केलक। पूर्वी भारतक राजा ची-कीउ-मो (श्री कुमार) अथवा भास्करवर्मन चीनी दूतमण्डलक बड्ड सहायता केलथिन्ह आ हुनका लोकनिकेँ घोड़ा, बड़द, अस्त्र, शस्त्र, तीर धनुष आदि बहुत रास सामान उपहारमे देलथिन्ह। चीनी सम्राटक हेतु ओ एकटा भारतक मानचित्र सेहो उपहारमे देलथिन्ह। दूतमण्डलसँ ओ आग्रह केलथिन्ह जे ओतएसँ ओ लाओ-जेक एकटा चित्र पठा दैथ। अरूणाश्व बन्दीक रूप चीनमे रहलाह आ ओतहि हुनक मृत्यु भेलैन्ह।
मत्वलिन सेहो एहि घटनाक विवरण उपस्थित कएने छथि आ हुनक विवरण ताँग वंशक नवका इतिहाससँ मिलैत–जुलैत अछि। मत्वलिनक अनुसार चीनी सम्राट ६४६ ई.मे मगध सम्राटक ओतए एकटा दूतमण्डल पठौने छलाह। अर्जुन अथवा अरूणाश्वकेँ चीनी श्रोतमे तिरहुतक शासक मानल गेल छैक आ दुनूक बीच जे युद्ध भेलैक से कतहु एहि क्षेत्रमे भेल हेतैक। वाँग कन्नौज धरि गेल होएताह ओहिमे संदेह बुझना जाइत अछि। तिरहुतक राज्यपाल अरूणाश्व हर्षक परोक्ष भेलापर तिरहुतहिसँ अपनाकेँ साम्राज्यक अधिकारी घोषित कएने होथि से संभव। चीनमे जाहिठाम अर्जुनक शव अछि ताहिठाम एकटा जे स्मारकपर लेख छैक ताहिमे लिखल छैक “तीरभुक्तिक हिन्दूराजा अरूणाश्व”। अहुँसँ इ स्पष्ट होइछ जे अर्जुन अथवा अरूणाश्व तीरभुक्तिक शासक छलाह आ वाँगक युद्ध तीरभुक्तिक सीमे धरि सीमित रहल होएत। एहि घटनाक विवरण चीनक करीब २५टा सँ बेसी ग्रंथमे भेटइत आ आधुनिक शोध एवँ एहि २५सए ग्रंथक उपयुक्त अंशक अनुवादक अध्ययनसँ एतवा धरि स्पष्ट होइत अछि जे हर्षक परोक्ष भेलापर अर्जुन तीरभुक्तिक शासक छलाह। चीनी दूतमण्डल आ हुनका बीच संघर्ष भेल छल जाहिमे ओ पराजित भेल छलाह आ एहि युद्धक कार्यस्थल छल गण्डकी, वाग्मती, बलान आ गंगाक बीचक भूमि। युद्धक वास्तविक स्थान कोन छल से निर्णय करब अद्यतन कठिन समस्या बनल अछि। वृज्जि क्षेत्रसँ अंगुतराप क्षेत्रक वीच इ लड़ाइ भेल छल से धरि निश्चित आ वाँगक शक्तिशाली सैनिकक समक्ष जँ तत्काल छोट-पैघ शहर सब आत्मसमर्पणक देने हुए तँ एहिमे कोनो आश्चर्यक गप्प नहि।
किछु दृष्टिदोष अथवा विचार दोषसँ इ आक्रमण भेल हुए सेहो संभव। वाँगकेँ अर्जुन दुश्मन बुझि विरोध केने हेथिन्ह आ ओ जखन सहायतार्थ तिब्बत पहुँचलाह तखन ओहिठामक शासक श्रौंग सेहो एकटा महत्वाकाँक्षी व्यक्ति रहैथ आ विचारसँ साम्राज्यवादी सेहो। ओ एहि अवसरकेँ अपन साम्राज्य विस्तारक अवसरक रूपमे देखने होथि तँ कोनो आश्चर्य नहि कारण ताहि दिनमे हुनक प्रभुत्वक धाख चीन आ नेपाल धरि पसरल छलन्हि। वाँगक माध्यमसँ ओ तिब्बती प्रभाव भारतपर बढ़बे चाहैत छलाह परञ्च से संभव नहि भऽ सकलन्हि कारण इ युद्ध तिरहुत धरि सीमित रहि गेल आ ४०–५० वर्षक बाद ओहि विदेशी सत्ता उखारिकेँ फेक देल गेल। एकर कोनो स्थायी प्रभाव भारतक इतिहासपर नहि पड़ल। अहुमे संदेह अछि जे श्रौंग स्वयं भारतपर आक्रमण केने होथि कारण श्रौंगक विजयक विवरण जाहि तिब्बती परम्परामे सुरक्षित अछि ताहिमे कतहु भारतक नाम नहि अछि। केवल मत्वलिन एहि बातक उल्लेख केने छथि। दोसर बात जे महत्व रखैत अछि से भेल इ जे नेपाली परम्परामे एहि घटनाक विधिवत उल्लेख कतहु नहि अवइयै। पूर्वी भारतपर हर्षक शासन ६४१मे भेल छल। चीनी परम्परामे अर्जुनकेँ पूर्वी भारतक शासक (तीरभुक्तिक) कहल गेल छैक आ तैं संभव जे हर्षक परोक्ष भेलापर ओ (पूर्वी भारत) पुनः अपनाकेँ कन्नौजक नियंत्रणसँ मुक्त कऽ लेने हो आ अर्जुन गवर्नरक हिसाबे ओहिपर अपन अधिकार कऽ लेने होथि। एहि घटनाक एतेक विस्तारसँ चीनी परम्परामे वर्णन कैल गेल हो से संभव। एतवा धरि तँ निश्चित रूपे माने पड़त जे अर्जुन आ चीनी दूत वाँगक वीच खटपट अवश्य भेलैक आ एहि क्रममे तीरभुक्तिपर आक्रमण सेहो। एकर स्थान एवँ अन्यान्य बातक विश्लेषण अखन आ शोधक अपेक्षा रखइयै।
हम पहिने कहि चुकल छी जे कामरूपक भास्करवर्मनक पूर्वजक समयमे बहुत रास मैथिल साम्प्रदायिक ब्राह्मण कामरूप गेल रहैथ आ ओतुका शासकक अनुग्रह प्राप्त केने रहैथ। हर्षक पूर्वहिं निर्धनपुर ताम्रलेखसँ इ ज्ञात होइछ जे वर्मन वंशक सीमा पुर्णियाँक कोशी धरि छलन्हि आ तकर पश्चिममे तिरहुतक राज्य छल जाहिपर हर्षक अधिकार छल। जाधरि हर्ष जीवित रहलाह ताधरि कामरूपक शासक हुनक मित्र बनल रहलथिन्ह मुदा हर्षक परोक्ष भेला उत्तर भास्करवर्मन चीनी दूतमण्डलक सहायता केने छलथिन्ह से उपरोक्त विवरणसँ स्पष्ट अछि– एकर कि कारण से नहि कहि। संभवतः अर्जुनक प्रभुत्व देखि आ तीरभुक्ति राज्यक विस्तारसँ ओ घबड़ा कए चीनी दूतमण्डलक समर्थन केने होथि से संभव। दोसर बात इहो भऽ सकइयै जे चीनक डरसँ ओ एना केने होथि। ऐहनो बुझि पड़इयै जे जखन वाँगक आक्रमणक समयमे मौखरी, उत्तर गुप्त आ नेपालक लिच्छवी शासकक वीच संभवतः कोनो प्रकारक समझौता भेल छल आ ओ लोकनि तिब्बती साम्राज्यवादी प्रसारक विरोधमे संगठित छलाह। अदु शक्तिशाली संगठनसँ भयभीत भऽ भास्करवर्मन वाँगक सहायता केने होथि तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। भास्करवर्मन सेहो महत्वाकाँक्षी छलाह आ तैं हुनक आंतरिक इच्छा इ अवश्य रहल हेतैन्ह जो कामरूप राज्यक प्रसार हो। कामरूप आ मिथिलाक सीमा सेहो मिलैत जुलैत छल। हर्षक मृत्युक उपरांत ओ कन्नौजसँ अपन सम्बन्ध विच्छेद कए कर्ण सुवर्णकेँ अपना राज्यमे मिला लेने छलाह आ अपन चारूकातक छोट छीन क्षेत्र सबकेँ सेहो। निर्धनपुर ताम्रलेखक आधार इ कहल जा सकइयै जे ओ मिथिलाक पूर्वी भागक किछु हिस्सापर अपन अधिकार जमा लेने छलाह आ ओतहिसँ संभवतः ओ वाँगक सहायता केने छलाह।
६४८सँ ७०३ ई. धरि मिथिलापर तिब्बती आधिपत्य बनल रहल। एहि बीचक इतिहास अंधकारमय अछि। मिथिलापर बहुत दिन धरि तिब्बती प्रभाव नहि रहि सकलैक आ उत्तरगुप्त शासक लोकनि अपन परिश्रमसँ पुनः सम्पूर्ण बिहारकेँ जीति अपना अधीन केलन्हि आ मिथिलाकेँ तिब्बती आक्रमणसँ मुक्त सेहो। कटरा (मुजफ्फरपुर)सँ प्राप्त अभिलेख (ताम्रलेख)सँ ज्ञात होइछ जे जीवगुप्त नामक कोनो व्यक्ति ओहि क्षेत्रपर शासन करैत छलाह। तिथिक अभावमे किछु कहब असंभव अछि मुदा अंदाजन इएह कहल जा सकइयै जे इ संभवतः उत्तरगुप्त वंशक केयो रहल हेताह आ तिब्बती आक्रमणसँ मुक्त भेलापर एहि क्षेत्रक शासनाधिकारी भेल होएताह। गुप्तवंशक परम्पराक पुनर्स्थापनामे व्यस्त जे सर्व प्रसिद्ध व्यक्ति भेलाह एहि वंशमे हुनक नाम छलन्हि आदित्य सेन। महासेन गुप्तक शासन कालहिसँ मिथिलापर हिनका लोकनिक प्रभुत्व छलन्हि आ आदित्यसेनक समय धरि तँ उत्तरगुप्त लोकनि पूर्वी भारतक एकटा प्रसिद्ध राजवंश घोषित भऽ चुकल छलाह। अफशड़, मंदार आ शाहपुरसँ प्राप्त अभिलेखक आधार इ निश्चित रूपें कहल जा सकइत अछि जे आदित्यसेन समस्त बिहारपर अपन आधिपत्य कायम केलन्हि आ वृहत्तर मगध राज्यक संस्थापकक नामसँ बहु चर्चित भेलाह। हुनका परममट्टारक-महाराजाधिराजक पदवी छलन्हि आ ओ गंगा सागर धरि अपन राज्य बढ़ा अश्वमेघ यज्ञ सेहो केने छलाह। ताँग वंशक इतिहाससँ हमरा इ ज्ञात होइत अछि जे मिथिला आ नेपाल ७०३ धरि विदेशी नियंत्रणसँ मुक्त भऽ गेल छल। सिल्वोंलेवीक अनुसार ७०२मे मिथिलामे उत्तर गुप्तक शासनक स्थापना एकटा महत्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। नेपाली अभिलेखमे सेहो आदित्य सेनकेँ मगधक महत्वपूर्ण शासकक रूपमे वर्णन कैल गेल छैक। नेपालक शिवदेव मौखरी भोगवर्मनक जमाय छलाह आ भोगवर्मन आदित्य सेनक बेटीसँ विवाह केने छलाह। एवँ प्रकारे तीनू राज्य एक दोसरासँ सम्बन्धित छल। आदित्य सेनक बादो हुनका लोकनिककेँ प्रभाव बनल रहल आ जीवित गुप्त द्वितीय धरि ओ लोकनि उतरापथनाथ कहबैत रहलाह।
मिथिलाक इतिहासमे बुझु जे बारी-बारी कऽ कए उत्तर भारतक सब छोट-छीन राज्य कोनो ने कोनो रूपे राज्य केलन्हि आ मिथिलामे कोनो स्थायी राज्यक स्थापना १०९४ क पूर्व नहि भऽ सकल। उत्तर गुप्तक बाद मिथिलाक इतिहासक जे स्थिति छल से ठीकसँ हमरा लोकनिकेँ ज्ञातव्य नहि अछि। उत्तरगुप्तक राज्यक अंत केलन्हि कन्नौजक यशोवर्मन। गौड़वहीक कवि वाक्पतिक अनुसार यशोवर्मन गुप्त लोकनिकेँ पराजित केलन्हि आ हिमालय प्रदेशकेँ जीति अपना राज्यमे मिलौलन्हि। आ एहि क्रममे जँ ओ तिरहुतकेँ जीतने होथि तँ कोनो असंभव बात नहि। कश्मीर सेहो अपन प्रभाव बढ़ा रहल छल आ पूर्वमे सेहो पूण्ड्रवर्द्धन भुक्तिक दिसि कश्मीरक प्रभावक वृद्धि देखबामे आबे लगैत अछि। ललितादित्य मुक्तपीड़ एहि क्षेत्रमे यशोवर्मनकेँ पराजित कए अपन प्रभाव क्षेत्र बढ़ा लेने छलाह। लामा तारनाथक अनुसार मिथिलामे चन्द्रवंशक शासन छल जकर सम्बन्ध पश्चिममे राजा भतृहरिसँ छलैक। चन्द्रवंशक राज्य वर्मा आ पूर्वी बंगालमे सेहो छलैक। वर्माक चन्द्रवंशक शासक लोकनि ‘वेथाली’ (वैशाली) नामक एक गोट शहर बसौने छलाह। चन्द्रवंशक पछाति मिथिलामे पालवंशक स्थापना भेल छल। उत्तरपूर्वी भारतक विभिन्न प्रदेशक कोनो श्रृंखलाबद्ध एवँ साधनयुक्त इतिहास नहि अछि। आ मिथिलाक जहाँधरि प्रश्न अछि से तँ सर्वथा अपूर्णे अछि। लामा तारनाथ जकर वर्णन कएने छथि तकर समर्थन कोनो आन साधनसँ नहि भऽ रहल अछि तैं एकरा अखन संदिग्धे मानल जाएत। चन्द्रवंशक प्रश्न विवादास्पद अछि। जँ एहि वंशक राज्य रहलो हैत तँ पूर्वी मिथिलेपर रहल होएत कारण उएह स्थान वंगक समीप अछि।
किछु गोटए अहुमतक छथि जे यशोवर्मनक आक्रमणक उपरांते तिब्बती प्रभाव तीरभुक्ति क्षेत्र परसँ घटल होएत। यशोवर्मन मालदह, राजशाही आ पुर्णियाँ धरि बढ़ल छलाह आ तत्पश्चात कश्मीरक शासक सेहो “पंच गौड़” (मिथिला जकर एकटा प्रमुख अंश छल) पर अपन विजय प्राप्त केने छलाह। हियुएन-सांग द्वारा वर्णित “पाँच भारत” बादमे “पंच गौड़”क नामसँ प्रसिद्ध भेल आ पाल कालमे एहि ‘पंच गौड़’केँ विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त भेलैक। तारनाथक अनुसार एहि ‘पंच गौड़’मे चन्द्रवंशक पछाति अराजकता पसरि गेल छल आ ओहि क्षेत्रमे कोनो प्रकारक राज्य नहि रहि गेल छल। चारूकात मत्स्यन्यायक प्रधानता छल आ कोनो व्यवस्था नहि रहि गेल छल। चन्द्रवंश (सिंह चन्द्रक पुत्र)क बलिचन्द्रकेँ भंगलसँ भगा देल गेल छलन्हि। लिच्छवी पंचमसिंह (जनिक राज्य ताहि दिनमे तिब्बतसँ त्रिलिङु आ बनारससँ समुद्र धरि रहैन्ह) बलिचन्द्रकेँ पराजित केने रहथिन्ह आ ओ भंगलसँ भागिकेँ तिरहुतमे आबिकेँ राज्य शुरू केने छलाह। बलिचन्द्रक पुत्र विमल चन्द्र अपन पिताक पराजयक बदला लेलन्हि आ अपन राज्यक विस्तार बंगाल आ असम धरि केलन्हि। हुनक पुत्र छलाह गोविन्द्रचन्द्र आ गोविन्द्रचन्द्रक पुत्र भेलाह ललितचन्द्र। इ दुनू गोटए सिद्धि प्राप्त कए राज्यसँ विमुख भऽ गेलाह आ तत्पश्चात् राज्यमे अराजकता पसरि गेल आ मत्स्यन्यायक स्थिति उत्पन्न भेल।
पाल वंश:- एहि मत्स्यन्यायक स्थितिसँ उबारबाक हेतु ओहिठामक लोग गोपाल नामक एक व्यक्तिकेँ अपन शासक चुनलक आ उएह पाल वंशक संस्थापक भेलाह। मत्स्यन्याय आ अराजकताक स्थिति समाप्त कए गोपाल चन्द्रवंशक समस्त राज्य क्षेत्र व्यवस्थाक स्थापना केलन्हि आ तखन लऽ कए (७५०–१०००) लगभग २५० वर्ष धरि समस्त पूर्वी भारतमे एक प्रकारक शांति बनल रहल। पाल युगक इतिहास भारतीय इतिहासमे महत्वपूर्ण स्थान रखइयै आ मिथिलाक इतिहासक हेतु सेहो इ काल महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। गोपाल चूंकि चन्द्रवंशक उत्तराधिकारीक रूपमे शासक भेल छलाह तैं इ अनुमान लगाएब स्वाभाविक जे ओ तीरभुक्तिक शासक सेहो अवश्य रहल होएताह कारण तीरभुक्तियोपर चन्द्रवंशक शासन रहल छल।
गोपालक बाद हुनक पुत्र धर्मपाल शासक भेलाह। पाल साम्राज्यक वास्तविक संस्थापक धर्मपाले छलाह एहिमे संदेह नहि। उत्तर भारतपर आ खास कऽ कए कन्नौजपर आधिपत्य प्राप्त करबाक हेतु हुनका राष्ट्रकूट आ प्रतिहार वंशसँ युद्ध मोल लेबए पड़लन्हि जे हुनका बादो चलैत रहलैन्ह। खलीमपुर अभिलेख एवँ तारनाथक विवरणसँ ज्ञात होइछ जे तिरहुत हुनक राज्यक अंतर्गत छल आ पूवमे कामरूप धरि अपन राज्यक सीमा बढ़ौने छलाह। मूंगेरक समीप ओ प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीयकेँ हरौने छलाह। राज्यक प्रसारक क्रममे ओ हिमालय धरि गेल छलाह आ वागमती नदीपर अवस्थित गोकर्ण धरि अपन राज्यकेँ बढ़ौने छलाह। गोकर्ण एकटा प्रसिद्ध धार्मिक स्थल छल तैं संभव जे ओतए धरि ओ धर्म करबाक हेतु गेल होथि मुदा वास्तविक कारण इ छल जे ओहि क्षेत्रमे किरातक राज्य छल आ तैं हिनका डर छलन्हि जे किरात लोकनि तिरहुतक क्षेत्रमे किछु उत्पात मचा सकैत छथि तैं हेतु किरात लोकनिकेँ पराजित करब आवश्यक छल। पशुपतिनाथ मंदिरकेँ उत्तर पूबमे गोकर्णक जंगलमे किरात लोकनिककेँ राजधानी छलन्हि आ तैं ओ ओतए दूर धरि जाकए किरात लोकनिकेँ पराजित केलन्हि। स्वयंभु पुराणमे कहल गेल अछि जे धर्मपाल नेपालक राजगद्दीपर अधिकार प्राप्त केलन्हि। इ गप्प संभवतः गोकर्णपर धर्मपालक आक्रमणकेँ प्रमाणित करैत अछि। नेपालपर हुनक अधिकार भेल हो अथवा नहि परञ्च किरातकेँ दबाबे राखब मिथिलाकेँ संदर्भमे आवश्यक छल आ धर्मपाल एहिबातकेँ साम्राज्यवादी हिसाबें नीक जकाँ बुझैत छलाह। मूंगेर ताम्रलेखमे ‘गंगा समेतं बुद्धि’क जे उल्लेख अछि से गोकर्णसँ सर्वथा भिन्न स्थान भेल आ तैं दुनूकेँ मिलाएब उचित नहि बुझना जाइत अछि। मूंगेर ताम्रलेखोसँ इ ज्ञात होइत अछि जे धर्मपाल हिमालयक तराइमे आक्रमण कएने छलाह। मूंगेरमे जे लड़ाइ भेल छल ताहुमे तीरभुक्तिक योगदान रहल होएत से निश्चिते।
धर्मपाल समस्त उत्तरी भारतमे अपन धाख जमौने छलाह एकर प्रमाण हमरा कैकटा स्रोतसँ भेटइत अछि:- केशव प्रशस्ति, खलिमपुर अभिलेख एवँ भागलपुर ताम्रलेख। गुजराती कवि सोढ़्ढ़ल अपन उदय सुन्दरी कथामे देवपालकेँ उत्तरा पथ स्वामी कहने छथि। ‘पंच गौड़’ हुनक साम्राज्य सीमाक बोध दैत अछि। ‘पंच गौड़’ शब्दकेँ प्रसिद्ध केनिहार भेलाह कल्हण जे अपन राज तरंगिणीमे एकर विवरण देने छथि मुदा एकर राजनैतिक स्वरूपक वास्तविक जन्मदाता धर्मपाले रहल हेताह जनिक साम्राज्य पंजाबसँ बंगाल आ हिमालयसँ मध्य भारत धरि पसरल छल। मिथिला नेपालपर सेहो हुनक प्रभुत्व छल। धर्मपालक पछाति हुनक पुत्र देवपाल राजा भेलाह आ हुनक साम्राज्य हिमालयसँ विन्ध्य पर्वत धरि पसरल छल। उहो प्रतिहार राजा मिहिर भोजकेँ हरौलन्हि। हुनकहि समयमे पाल साम्राज्य अपन चरमोत्कर्षपर पहुँचल।
वाचस्पति आ राजा नृग:- एहिठाम एक प्रश्नपर विचार कऽ लेब आवश्यक बुझना जाइत अछि। स्वर्गीय महामहोपाध्याय उमेश मिश्र राजा नृगक चर्च कए एकटा समस्या उपस्थित कऽ देने छथि जाहि लऽ कए इतिहासकारमे विवाद हैव स्वाभाविके। ओकर नृग नामक एक राजाक नामक उल्लेख पुराणमे अछि मुदा ओहिसँ वाचस्पति कालीन नृगक तुलना नहि भऽ सकइयै। वाचस्पति (९म शताब्दी) अपन भामतीमे नृग नामक महत्वपूर्ण राजाक उल्लेख कएने छथि। उमेश्र मिश्रक अनुसार नृग किरात लोकनिक राजा छलाह ओ अपन भामती एहि राजाक ओतए बैसि कए लिखने छलाह। नृग वाचस्पतिकेँ सम्मानित केने छथिन्ह। ‘नव-न्यायक इतिहास’क रचयिता एहि नृगकेँ बंगालक आदिसूरसँ मिलबैत छथि। एहिठाम स्मरणीय जे वाचस्पति अपन न्याय कणिकामे सेहो आदिसूरक फराकेँ वर्णन कएने छथि।
नृगक सम्बन्धमे वाचस्पति अपन भामतीक अंतमे लिखैत छथि–
“नृपांतराणां मनसाप्यगम्यां
भ्रूक्षेपमात्रेण चकार कीर्तिम्,
कार्त्तस्वरासारसुपूरितार्थ सार्थः
स्वयं शास्त्रविचक्षणश्च,
नरेश्वरा यच्चरितानुकारमिच्छंति
कर्त्तुं न च पारयंति
तस्मिन्महीपे महनीय कीर्तौ
श्रीमन्नृगेऽकारि मया निबन्धः॥
दोसर स्थानपर एवँ प्रकारे वर्णन अछि–
“न चायापि न दृश्यंते लीलामात्र
विनिर्मितानि महाप्रसाद प्रमदवनानि
श्रीमन्नृगनरेन्द्राणामन्येशां
मनसापि दुष्करानि नरेश्वराणाम्”॥
‘नृग’क ‘महीप’ एवँ नरेन्द्र कहल गेल छन्हि आ एहिसँ इ अनुमान लगाओल जाइत अछि जे ओ मिथिलाक कोन भागमे ताहि दिनमे राज्य करइत हेताह। ‘नृग’ आ “आदिसूर” दुनू दू व्यक्ति छलाह एहिमे सेहो कोनो सन्देह नहि। ‘नृग’ किरात लोकनिक शासक होथि से संभव कारण ताहि दिनमे किरात आ पाल लोकनिक बीच बरोबरि खटपट होइत रहन्हि आ एकर उल्लेख हम धर्मपालक समयमे कऽ आएल छी। आदिसूर पूर्वी मिथिलाक शासक छलाह जकर सीमा बंगालसँ मिलैत छल आ वाचस्पति सन विद्वानकेँ दुनू राजाक दरबारसँ सम्बन्ध हैव कोनो आश्चर्यक विषय नहि। नृगसँ ‘नरवाहन’क बोध सेहो होइयै आ किरात लोकनिक बीच इ बेश प्रचलित छल– अहु किरात लोकनिक क्षेत्र मिथिलाक उत्तरी पूर्वी भागमे छल।
‘नृग’ एकटा समस्या मूलक नाम भऽ गेल अछि एहिठाम अमलानंद सरस्वती अपन भामतीक टीका वेदांत कल्पतरूमे लिखने छथि–
“तथाविधःसार्थोयस्यप्रकृतत्वेनवर्त्ततेस नृगस्तथेत्यपरः। नृग इति राज्ञ आख्या…”
‘नृग’ एकटा परम्पराक द्योतक सेहो मानल गेल छथि आ ओ परम्परा भेल दयालु हैव, दानी हेव आ सब तरहें परोपकारी हैव। एहि परम्पराक एकटा उल्लेख गुप्तकालीन अभिलेखोमे अछि–
“भूमि प्रदानान्न परं प्रदानं
दानाद्विशिष्टं परिपालनञ्च।
सर्वेऽतिसृष्टा परिपाल्य भूमिं
नृपा नृगाधास्त्रिदियं प्रपन्नाः॥
एहि अभिलेखमे महाराज संक्षोभ्यक तुलना परम्परागत दानी नृगसँ कैल गेल अछि। अमलानंद सरस्वती सेहो अपन टीकामे ताहिकालक शासकक तुलना राजा नृगसँ करबाक चेष्टा कएने छथि। जेना कि हम उपर कहि चुकल छी राजा नृग पौराणिक राजा नृगक संकेत मात्र छथि आ ओ दानशीलता आ जनप्रियताक हेतु प्रसिद्ध छथि। १४ शताब्दीक सारंगधरक रचनामे सेहो नृगक उल्लेख भेटइयै। अहुठाम परम्परागत रूपेमे। उपेन्द्र ठाकुर सब तथ्यक परीक्षण केला उत्तर इ निर्णय दैत छथि जे ‘नृग’ शब्दसँ एहिठाम पाल राजा देवपालक तुलना कैल गेल अछि आ वाचस्पति अपन भामतीमे देवपालकेँ नृग कहलन्हि अछि। तिथि सम्बन्धी जे झंझटि अछि ताहि संदर्भमे अखन अहुमतकेँ संदिग्धे कहल जाएत। उमेश मिश्रक अनुसार नृग कर्णाटसँ आबि मिथिलामे राज्य स्थापित केने छलाह परञ्च इ मत तर्कपूर्ण नहि अछि किएक नान्यदेवसँ पूर्व एकर कोनो प्रमाण नहि भेटइयै।
हमरा बुझने ‘नृग’ आ आदिसूर दुनू दू व्यक्ति छलाह आ मिथिला प्रांतक उत्तरी पूर्वी एवँ पूर्वी भागक क्रमशः शासक छलाह। वाचस्पतिक समय धरि मिथिला आ उत्तर भारतमे सामंतवादी प्रथाक विकास भऽ चुकल छल आ अभिलेख, साहित्य एवँ विदेशी यात्रीक विवरण एहिबातकेँ पुष्ट करैत अछि। पालवंशक स्थापनाक संगहि उत्तर पूर्वी भारतमे एकटा स्थायित्व एलैक आ पाल साम्राज्यक विस्तारसँ नेपाल धरिक क्षेत्र तक एकटा सुव्यवस्थित राज्यक स्थापना भेलैक। ताहि दिनमे आवागमन एवँ यातायातक सुविधाक अभाव रहलाक कारणे इ शासक लोकनि विभिन्न क्षेत्रकेँ जीतिकेँ ओहिठाम अधिकारीकेँ सुपुर्द करैत छलाह आ हुनका सामंतक स्थितिमे राखि अपन शासन सुव्यवस्थाकेँ चलबैत छलाह। जँ वाचस्पति मिश्र देवपालक ओतए अपन भामती ग्रंथ लिखतैथ तँ ओ देवपालक नामक स्थानपर ‘नृग’क नाम किएक लिखतैथ?देवपाल अपने बड्ड पैघ लोक छलाह आ वाचस्पति सन विद्वानक हाथे अपन नाम उल्लिखित करेबामे अपनाकेँ गौरवान्वित बुझितैथ। वाचस्पतियोकेँ एहिमे कोनो आपत्ति नहि होइतैन्ह कारण देवपालक शासन धरि एकटा व्यवस्थित व्यवस्थाक स्थापना भऽ चुकल छल। दोसर बात इहो जे वाचस्पति जहिना आदिसूरक नामक उल्लेख केने छथि ठीक तहिना नृगक नाम। तैं इ माने पड़त जे इ दुनू व्यक्ति अलग अलग राजा छलाह आ दुनूक दरबारमे रहिकेँ ओ दुनू ग्रंथक निर्माण केने छलाह। प्रथम किरात सामंत छलाह आ दोसर पूर्वी मिथिलाक सामंत– जे दुनू पालेक अंतर्गत हेताह। जाधरि आ साधन उपलब्ध नहि होइयै ताधरि नृगक समस्या एहिना बनल रहत। नृग राजा सहरसा जिलांतर्गत बड़गामक रहनिहार छलाह। एहनो एकटा मत अछि।
देवपालक बाद पाल साम्राज्यक स्थितिमे डावाँडोल शुरू भेल आ चारूकातसँ पुनः आक्रमण–प्रत्याक्रमण होमए लागल। नारायण–पालक भागलपुर अभिलेखसँ इ ज्ञात होइत अछि जे तीरभुक्तिक कक्ष विषय (जकर तुलना कौशिकी कक्षसँ कैल जा सकइयै)मे पाल शासक पशुपताचार्य परिषद एवँ शिवभट्टारक लोकनिक हेतु किछु दान देने छलाह। ८६६ ई. क आसपास राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष अंग, वंग आ मगध धरि अपन अधिकार बढ़ा लेने छलाह। कृष्ण द्वितीय राष्ट्रकूटक समक्ष सैह स्थिति छल। ओम्हरसँ प्रतिहार भोज आ महेन्द्रपाल सेहो पाल साम्राज्यक सीमामे अपन अधिकार बढ़ा चुकल छलाह। प्रतिहार लोकनि तिरहुत धरि अपन अधिकार बढ़ौने छलाह। महेन्द्रपाल प्रतिहार तँ बंगालमे पहाड़पुर धरि पहुँचि गेल छलाह। पाल साम्राज्य बिहारक किछु भाग धरि सीमित रहि गेल छल। मिथिला पाल–प्रतिहार साम्राज्यक बीचमे बत्तीस दाँतक बीचमे जीभक स्थितिमे छल– कखनो प्रतिहार लोकनि बढ़ैथ आ कखनो पाल लोकनि। एहि काल मिथिलाक कोनो प्रामाणिक इतिहास भेटतो नहि अछि आ हम देखैत इएह छी जे पश्चिम आ पूब दुनू दिसिसँ जे आक्रमण होइत छल, मिथिला ओकर शिकार भऽ जाइत छल। पाल लोकनि कोनो रूपें अपन अस्तित्वकेँ ढ़ोने जाइत छलाह एहिमे संदेह नहि यद्यपि हुनक प्रभुत्व बहुत घटि गेल छलन्हि।
९५३–५४ ई.मे जे जा भुक्तिक चन्देल लोकनि मिथिलापर आक्रमण केलन्हि। यशोवर्मन आ हुनक पुत्र धंग मिथिलापर आक्रमण केलन्हि आ गुर्जर प्रतिहारक नियंत्रणसँ ओकरा मुक्त कए अपना अधीनमे केलन्हि मुदा ओ लोकनि बहुत दिन धरि एहि क्षेत्रपर राज्य नहि कऽ सकलाह। चन्देल आक्रमणसँ समस्त उत्तरी भारत पराजित भेल आ आक्रान्त सेहो आ पाल साम्राज्यकेँ एहिसँ बेस धक्का लगलैक। एहिसँ पूर्वहिं प्रतिहार आ राष्ट्रकूट लोकनिक आक्रमणसँ पाल साम्राज्य शिथिल भइयै चुकल छल आ चन्देल आक्रमण ओकरा आ तहस नहस कऽ देलकै। नवम–दशम शताब्दीमे गण्डक आ शोण नदी सब प्रतिहार आ पाल राज्यक सीमा छलैक। चन्देलक प्रभाव पूर्णियाँ धरि पसरल छल आ ओहि कालमे चारूकात अस्तव्यस्तता बढ़ि गेल छल।
महिपाल प्रथम एक बेर पुनः पाल साम्राज्यकेँ श्रृंखलाबद्ध करबाक प्रयास केलन्हि आ पाल साम्राज्य फेर संगठित भऽ अपना पैरपर ठाढ़ भेल। महिपाल प्रथमक अभिलेख मुजफ्फरपुर जिलाक इमादपुर गाममे भेटल अछि आ एहिसँ इ सिद्ध होइत अछि जे महिपाल उत्तर आ दक्षिण दुनू बिहारक शासक छलाह। हुनक राज्यक सीमा बनारस धरि छलन्हि। परञ्च हुनको शासन काल सुखद एवँ शांतिपूर्ण नहि रहलन्हि। विभिन्न साधन इ ज्ञात होइछ जे चेदि–कलचुरी लोकनि सेहो मिथिलापर अपन जाल फेरने छलाह आ हाथ पैर पसारने छलाह। महिपाल आ कलचुरीमे संघर्ष भेल छलन्हि अथवा नहि से ज्ञातव्य नहि अछि तखन एतवा जरूर अछि ११ म शताब्दीमे चोल लोकनिक संग दक्षिणसँ बहुत रास कर्णाट लोकनि एम्हर आबिकेँ बैसि गेल छलाह। प्राकृतपैंगलमसँ सेहो ज्ञात होइत अछि जे ताहि दिनमे चम्पारण बाटे सेहो ओम्हर गोरखपुर दिसि किछु आक्रमण भेल छल। मिथिलाक इतिहासक कोनो स्पष्ट तस्वीर हमरा लोकनिककेँ एहि युगक उपलब्ध नहि होइत अछि।
पाल लोकनि येन केन प्रकारेण अपन अस्तित्व बनौने रखलन्हि आ बिहार–बंगालक विभिन्न भागपर छिटपुट ढ़ंगे शासन करैत रहलाह। नौलागढ़ आ वनगाँवसँ जे विग्रहपाल तृतीयक अभिलेख भेटत अछि ताहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे पाल लोकनि अपन अंतिम कालमे तीरभुक्तिमे अपनाकेँ बचौलन्हि कारण ताहि दिनमे कलचुरी कर्णक आक्रमणसँ बंगाल आक्रांत छल और विग्रहपाल तृतीय आ कलचुरीक वीच जे मनमुटाव चल अबैत छल तकरा अतीश दीपंकरक प्रयासे मेटाओल गेल आ दुनूक वीच एकटा वैवाहिक संधि भेल। विग्रहपाल तृतीय यौवनश्रीसँ विवाह केलन्हि आ हुनका दुनूक वीच जे संधि भेलन्हि तकरा दुनूक बीच जे संधि भेलन्हि तकरा कपाल संधि कहल गेल अछि। नौलागढ़ आ वनगामक अभिलेखकेँ देखलासँ इ प्रतीत होइछ जे मिथिला कलचुरीक आक्रमणसँ बचल छल आ मिथिलापर पाल लोकनिक शासन चल अबैत छल। अपन ह्रासकालमे पाल लोकनि तीरभुक्तिकेँ अपन राजधानी बनौलन्हि आ ओहिठामसँ शासन केनाइ प्रारंभ केलन्हि।
विग्रटपाल तृतीयक समयमे पालवंशक सूर्यास्त भऽ रहल छलैक। प्राकृतपैंगलम् आ अन्य साधन सबसँ इ ज्ञात होइछ जे गण्डक क्षेत्र धरि कलचुरी वंशक लोक अपन प्रभुत्व बढ़ा लेने छलाह। पाल लोकनिसँ हुनक संघर्ष बढ़ि रहल छलन्हि। संध्याकर नन्दीक ‘राम चरित’मे ताहि दिनक राजनैतिक स्थितिक बढ़िया विवरण अछि। नेपालक हस्तलिखित पोथीमे रामायणक एक गोट पोथी उपलब्ध भेल अछि जकरा अनुसार संवत १०७६मे तीरभुक्तिमे एकटा सोमवंशोद्भव महाराजाधिराज गाँगेयदेवक शासन छल। ओहि रामायणक किष्किन्धा काण्डकेँ अंतमे लिखल अछि–“सम्वत् १०७६ आषाढ़ वदी४ महाराजाधिराज पुण्यावलोक सोमवंशोद्भव गौड़ध्वज श्रीमद् गांगेयदेव भुज्यमान तीरभुक्तौ कल्याण विजयराज्ये नेपालदेशीय श्री भंक्षुशालिक श्री आनन्दास्य पाटकावस्थित (कायस्थ) पंडित श्रीकुरस्यात्मज गोपतिना लेखिदम्”–१९४०मे एकर दोसर प्रति भेटलैक जाहिमे “गौड़ध्वज”क स्थानपर “गरूड़ध्वज” छैक। एहि पुष्पिकाक अध्ययनसँ मिथिलाक इतिहासक वस्तुस्थितिपर विद्वानक बीच पूर्ण मतभेद छन्हि। किछु गोटए एकरा कलचुरी गंगेयदेव मनैत छथि आ किछु गोटए कर्णाट गंगेयदेव। हमरा बुझने इ कर्णाट गंगेयदेव छलाह। एकर कारण इ अछि जे मिथिलामे अद्यावधि कलचुरी शासनक प्रमाण उपलब्ध नहि। दोसर बात इ जे कलचुरी शासकक संग विग्रहपाल तृतीय कपाल संधि आ वैवाहिक संधि कए अपन अस्तित्वकेँ सुरक्षित रखने छलाह। तेसर बात इ जे कोनो उल्लेख नहि पाओल जाइत अछि आ ने अप्रत्यक्षे रूपसँ एकर कोनो विवरण कलचुरी साधनमे भेटइयै। चारिमबात इ जे महिपालक ४८म वर्ष धरि तिरहुत हुनका अधीनमे छलन्हि तखन ओहिठाम गंगेयदेव कलचुरीक राज्य कोना भऽ सकइयै। महिपालक बादो रामपाल धरि मिथिलामे पालवंशक राज्य बनल रहल आ पालवंशक अंत भेलापर कर्णाट लोकनिक शासन प्रारंभ भऽ गेल। मिथिलाक समस्त क्षेत्रमे पालकालीन अवशेष भेटइत अछि जखन कि एम्हर कलचुरीक कोनोटा अवशेष मिथिलामे नहि भेटइछ। एहि प्रश्नपर विस्तृत रूपें विचार हमरा लोकनि कर्णाट कालक अध्ययन क्रममे करब। जखन पालवंशक सूर्यास्त भऽ रहल छल तखन दक्षिणक षष्ठम विक्रमादित्य उत्तरमे अपन भाग्य अजमेबाक हेतु आगाँ बढ़ि रहल छलाह।