मुल्ला तकियाक वयाजक अनुसार मिथिलाक इतिहास
मुल्ला तकिया अकबरक समकालीन छलाह आ ओ अपन असमक भ्रमणक क्रममे मिथिला बाटे गेल छलाह। ओ मिथिलामे जे देखलन्हि– सुनलन्हि से आ अन्यान्य साधनकेँ आधार अपन एकटा
‘ वयाज ’ (डायरी) लिखलन्हि जे मिथिलाक इतिहासक अध्ययनक हेतु सर्वथा अपेक्षित अछि। एहि वयाजपर आधारित एकटा विस्तृत निबन्ध पटनाक मासिर पत्रिकामे १९४६मे छपल छल आ दरभंगासँ प्रकाशित डॉ. लक्ष्मण झा द्वारा संपादित साप्ताहिक मैथिली
“मिथिला” (२ फरवरी, ९ फरवरी आ १९ फरवरी १९५३क अंक सब)मे सेहो एकरापर आधारित किछु अंश प्रकाशित अछि। मिथिलाक इतिहासक हेतु इ एकटा अपूर्व साधन मानल जा सकइयै आ एकर उपयोग हम अपन ‘ हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन तिरहूत’मे सेहो कैल अछि। मैथिली पाठकक हेतु हम एहिठाम मुल्ला तकियाक वयाजक सारांश उपस्थित कऽ रहल छी। मिथिलापर मुसलमानी राज्यक विस्तारक अध्ययन क्रममे सेहो एकर विवरण भेटत।
वयाजक अनुसार राजा लक्ष्मणसेनपर आक्रमणक पूर्व वख्तियार खलजी मिथिलाक किछु भागपर आक्रमण कएने छलाह। मिथिलाक राजा नरसिंह देव बंगालक राजा लक्ष्मण सेनक अधीन शासन करैत छलाह। पाछाँ ओ मुसलमान राजाक अधीनता स्वीकार केलन्हि आ तखनसँ ओ मुसलमान शासक गियासुद्दीन इवाजक समय धरि कर दैत रहलाह। १२२५मे जखन इल्तुतमिश बंगालपर आक्रमण केलन्हि तखन गियासुद्दीन इवाज हुनकासँ मेल कऽ लेलन्हि। बिहारकेँ बंगालसँ फराक कए फुटे प्रांत बना देल गेल आ मल्लिक अलाउद्दीन जानीकेँ ओहिठामक राज्यपाल नियुक्त कैल गेल। इल्तुतमिसक घुरलापर गियासुद्दीन नरसिंह देवक मदतिसँ पुनः बिहारपर आधिपत्य स्थापित कऽ लेलन्हि। बदला लेबाक विचारसँ सुल्तानक पुत्र बंगालपर आक्रमण केलन्हि आ गियासुद्दीन मारल गेला। नरसिंह देव हुनकासँ माँफी माँगिकेँ अपनाकेँ छोड़ोलन्हि आ कर देबाक वचन देलन्हि। रजिया बेगमक शासन कालमे बंगाल पुनः दिल्लीक नियंत्रणसँ मुक्त भऽ गेल। राजा नरसिंह देव सेहो विद्रोह कऽ देलन्हि। तुगलक तुगान खाँ मिथिला विद्रोहकेँ दबेबाक हेतु पठाओल गेलन्हि आ ओ ओहि राज्यपर अपन सत्ता स्थापित कए बहुत रास वस्तुजात लूटिकेँ लऽ गेलाह। मिथिलाक राजा बहुत दिन धरि नजरबन्द रहलाह। १२४४मे ओ चंगेज खाँक आक्रमणक समयमे ओ अपन बहादुरी देखौलन्हि आ तकर पुरस्कार स्वरूप हुनका सुल्तान अलाउद्दीन मसूद प्रसन्न भऽ तिरहूत राज्य घुरा देलथिन्ह आ हुनका एकटा सम्मानित राजा घोषित कए बिदा केलथिन्ह। मिथिलाकेँ सूबेदारक मातहदीसँ हटा देल गेल आ एकरा सोझे दिल्लीक अधीन कऽ लेल गेल। आब इ अपन कर दिल्लीकेँ देबए लगला। ‘ तबाकते नासिरी’मे एहि आक्रमणक वर्णन अछि। विद्यापति सेहो अपन ‘ पुरूष परीक्षा’ मे नरसिंह देवक दिल्ली प्रवासक चर्चा कएने छथि। हिनक पुत्र रामसिंह देवक समयमे सेहो किछु संघर्ष भेल छल। हिनके समयमे दरभंगामे राम चौक नाम मोहल्लाक स्थापना भेल।
अलाउद्दीनक समयमे मिथिला पर पुनः मुसलमानी आक्रमणक चर्च भेटइत अछि। इतिहासमे एकर उल्लेख आनठाम नहि भेटइत अछि मुदा मुल्लाक वयाजमे एकर विस्तृत विवरण अछि। एहि आक्रमणक अंतर्गत मखदून ताज मोहम्मद फकीहक पुत्र शेख मुहम्मद इस्माइलक नेतृत्वमे तीन बेर युद्ध भेल छल। पहिल एवँ दोसर बेर शाही सेना पराजित भऽ गेल छलाह आ मिथिलाक जीत भेल छल। प्रथम लड़ाइक स्थान दरभंगामे अखनो
“मुकबेश ” नामसँ प्रसिद्ध अछि। शेख मुहमद इस्माइल जखन राजापर दोसर बेर आक्रमण करबाक विचार केलक तखन सेना पठेबाक हेतु बादशाहसँ निवेदन केलक। रजीउल मुल्क मलिक महमूदक सेनापतित्वमे शाही फौज मिथिलाक धरतीपर उतरल। अहुबेर हुनका अपने सन मुँह लऽ कए पराजित भऽ कए घुरे पड़लन्हि। इ लड़ाइ जाहि स्थानपर भेल छल ताहि स्थानपर राजा अपन राजधानी दरभंगासँ उठाकेँ लऽ गेला। शक्रसिंहक नामपर ओ स्थान सम्प्रति सकरी नामसँ विख्यात अछि। तेसर बेर पुनः युद्ध भेल जाहिमे मिथिलाक पराजय भेल आ राजा अपन मंत्री सबहिक संग पकड़ल गेला। गिरफ्त भेला उत्तर राजा क्षमा याचना केलन्हि आ आजीवन कर देबाक वचन देलन्हि। एहिशर्त्तपर अलाउद्दीन हुनका राज्य घुरा देलथिन्ह। बादमे शक्तिसिंह (शक्रसिंह) अलाउद्दीनक हिन्दू फौजक सेनापति सेहो नियुक्त भेला।
जखन अलाउद्दीनकेँ हम्मीर देवसँ युद्ध भेलन्हि तखन शक्रसिंह अलाउद्दीनक आर्थिक आ सैनिक साहायता देलन्हि। शक्रसिंह स्वयं रणक्षेत्रमे उतरलाह आ एहिसँ अलाउद्दीनकेँ बड्ड बल भेटलन्हि। शक्रसिंह एवँ प्रकारे मिथिलाक स्वतंत्रताकेँ सुरक्षित रखबामे समर्थ भेलाह। दरभंगाक ‘ सुखी दिग्घी ’ अखनो शक्रसिंहक स्मारक स्वरूप अछि।
हरिसिंह देव कर्णाट वंशक अंतिम राजा छलाह आ हरिसिंहपुर सेहो अपन राजधानी बनौने छलाह। गियासुद्दीन तुगलक जखन बंगालक विद्रोहकेँ दबाकेँ घुरलाह तखन ओ तिरहूतपर ध्यान देलन्हि। तिरहूतक राज्य ओ दखल केलन्हि। कहल जाइत अछि जे तिरहूतक राजा बंगालक मदतिमे छलाह। हरिसिंह देव अपन मजबूत किला, कठिन रास्ता ओ दुरूह जंगल आदिक बलें पहिने तँ गियासुद्दीनक विरोध केलन्हि परञ्च बादमे पराजित भऽ पकड़ल गेलाह। सुल्तान हुनका पकड़िकेँ दिल्ली लऽ गेला आ मिथिलाक शासन भार अहमद खाँक हाथमे देलन्हि। गियासुद्दीनक मुहम्मद तुगलक दिल्लीक शासक भेलाह। राज्याभिषेकक अवसर ओ हरिसिंह देवकेँ मुक्त कऽ देलैन्ह। हरिसिंह देव कर देबाक बचन देलन्हि तखन हुनका राज्य घुरा देल गेलैन्ह आ ओ प्रमुख सेनापतिक पदपर सेहो नियुक्त भेलाह। इ सब भेलाक बाद सुल्तानकेँ बुझबामे एलन्हि जे राजाक मंत्री वीरेश्वर ठाकुरक संग एक विचित्र पाथर छन्हि जकर संसर्गसँ सब प्रकारक धातु सोना भऽ जाइत अछि। इ पाथर अलाउद्दीन खलजीकेँ नहि देल गेल छल। सुल्तान आदेश बहार केलन्हि वाजाप्ता एक फरमान द्वारा जो ओहि पाथरकेँ शाही खजानामे जमा कऽ देल जाइक। वीरेश्वर जखन पाथरक बदलामे हीरा उपस्थित केलन्हि तखन सुल्तान ओकरा लेबासँ अस्वीकार केलन्हि। तकर बाद वीरेश्वर बजलाह जे काशीमे गंगा स्नान केलाक उत्तर ओ ओहि पाथरकेँ शाही खजानामे जमा करताह। शाही सरंक्षणमे वीरेश्वरकेँ काशी आनल गेल। काशी एबाक पूर्व ओ राजा हरिसिंह देवसँ सेहो भेंट केलन्हि आ काशीमे स्नान करबाक क्रममे ओ पाथरकेँ गंगेमे राखि देलन्हि। शाही संरक्षक एहि प्रसंगकेँ लऽ कए हरिसिंह देवक शिकायत सुल्तान लग कऽ देलक। एहिपर मिथिला राज्य जप्त भेल आ हरिसिंह देवकेँ आजीवन कारावासक आदेश भेटल। एहिबातक सूचना राजाकेँ पहनहि भेट गेलन्हि आ ओ तुरंत पड़ाएकेँ नेपाल चल गेला। बादमे हुनक पता नहि लागल। मिथिलाकेँ तुगलक साम्राज्यमे मिला लेल गेल। सुल्तान तिरहूतकेँ एक अलग प्रांत बना देलैन्ह आ तिरहूतक महत्व बढ़ल आ दरभंगा ओकर राजधानी बनल। तिरहूतकेँ तुगलकपुर सेहो कहल गेल। ओतए एकटा किला आ जामा मस्जिदक स्थापना भेल।
१३४०मे मुहम्मद तुगलक मिथिलाक शासन भार कामेश्वर ठाकुरकेँ देलन्हि। बंगालक शासनक भार सुल्तान शमसुद्दीन हाजी इलियासकेँ देलन्हि। मिथिलासँ कर वसूली करब आ राजापर निगरानी रखबाक भार सेहो हिनकेपर देल गेलैन्ह। कामेश्वर ठाकुर ओइनी गामक रहए वाला छलाह आ इ गाम हुनका पूर्वजकेँ कर्णाट शासकसँ जागीरक रूपमे भेटल छलन्हि। कामेश्वर ठाकुर राज्य प्राप्त केला उत्तर अपनहि गामकेँ राजधानी बनौलन्हि। मुहम्मद तुगलकक जीवैत हाजी इलियास अपन निवास दरभंगामे रखलक परञ्च मुहम्मद तुगलकक मुइलाक बाद ओ अपनाकेँ स्वतंत्र घोषित कए देलक आ कर देव सेहो बंद कऽ देलक। अपन साम्राज्य क्षेत्र विस्तारक योजनाक क्रममे ओ अपन आसपासक इलाकापर अपन अधिकार बढ़ौलक आ कोशी धरिक क्षेत्रपर अपन आधिपत्य स्थापित कऽ देलक। ओ मिथिलाक राजाक संग युद्ध कए मिथिला राज्यकेँ दू भागमे विभक्त कऽ देलक। बूढ़ी गंडकक उत्तरी भागमे मिथिलाक राज्य रहल आ ओकर दक्षिणमे इलियासक राज्य भेल। एवँ प्रकारे नेपाल तराइसँ बेगूसराय धरि ओ अधिकारक स्थापना केलक आ कामेश्वर वंशकेँ ओइनीसँ हँटौलक। मिथिलाक एहि अप्राकृतिक बटवाराक विरोधमे कामेश्वर ठाकुर विद्रोह कऽ देलन्हि मुदा ओहि विद्रोहकेँ शख्तीसँ दबाओल गेल। एहि शख्तीसँ विद्रोह दबेबाक क्रममे बहुतो गाम नष्ट–भ्रष्ट भऽ गेल। विद्रोह दबौलाक पश्चात ओ बूढी गण्डकक तटपर अपन राज्यक सुरक्षार्थ एकटा प्रशासनिक केन्द्र बनौलक जे शमसुद्दीनपुर (समस्तीपुर)क नामे ताहि दिनमे प्रसिद्ध छल। गंगाक तटपर ओ हाजीपुर बसौलक आ ओतए एकटा किलाक निर्माण सेहो केलक।
फिरोज तुगलककेँ जखन इ सूचना भेटलैक तँ ओ आगि वबुला भऽ गेल आ समाचार सुनतहि ओ दिल्लीसँ मिथिलाक हेतु विदा भऽ गेल। आवत फिरोज गोरखपुर पहुँचल तावत हाजी इलियास अपन बोरिया –विस्तर बान्हिकेँ पण्डुआ दिसि विदा भऽ गेल। ओतहु अपनाकेँ सुरक्षित नहि देखि ओ ओतएसँ एकदला दिसि चलगेल। जखन फिरोज मिथिला पहुँचल तखन कामेश्वर ठाकुर तथा छोट–मोट जमीन्दार लोकनि उपहार लऽ कए सुल्तानक समक्ष उपस्थित भेलाह आ हाजी इलियासक लूट –पाटक शिकायत केलन्हि। सुल्तान कामेश्वर ठाकुरकेँ पुरस्कृत केलथिन्ह। कामेश्वर ठाकुर हुनक अधीनता स्वीकार केलन्हि आ कर देबाक प्रतिज्ञा केलन्हि। फिरोज मिथिलाक दुनू भागकेँ मिलाकेँ फेर एक कऽ देलैन्ह आ ओहिठाम अपन काजी नियुक्त केलन्हि। सुल्तान ओहिठामसँ एकदला दिसि विदा भेला। १३५३ फिरोज तुगलक कामेश्वर ठाकुरकेँ छोट बालक भोगीश्वरकेँ राजा बनौलन्हि मुदा मुल्ला तकिया एहि प्रसंगमे चुप्प छथि। बरनी सेहो एहि विषयमे किछु नहि कहैत छथि। फिरोज विद्रोही इलियासकेँ दबाकेँ जखन घुरला तखन ओ मिथिलामे अपन हाकिम बहाल केलन्हि। मुल्ला तकिया कोनो स्पष्ट संकेत एहि सम्बन्धमे नहि दैत छथि। मिथिलामे मुसलमानी शासनक प्रसारक सम्बन्धमे जखन विवरण प्रस्तुत करब तखन सब बातक समीचीन व्याख्या करब। एहिठाम तँ मात्र मुल्ला तकियाक वयाजक आधारपर वस्तुस्थितिकेँ उपस्थिति कैल गेल अछि। फिरोज तुगलक पुनः मिथिलाकेँ दिल्लीक एकटा प्रांत बना लेलन्हि आ एहिठामक राजा पुनः दिल्लीक अधीन भऽ गेलाह भने हुनका स्वायत्ता प्राप्त रहल होन्हि से दोसर गप्प। कर वसूल करबाक हेतु फिरोज तुगलक एतए अपन आदमीकेँ नियुक्त केलन्हि। भोगीश्वर फिरोजक मित्र छलाह।
दरभंगाक उत्पत्तिः- एहि प्रसंगमे दरभंगाक उत्पत्तिक सम्बन्धमे दूएक बात कहि देव आवश्यक बुझना जाइत अछि। दरभंगा शब्दक उत्पत्ति कहिया आ कोना भेल एहि प्रश्नपर अखनो धरि मत विभिन्नता अछिए। तवारिखुल फितरत (फितरतक इतिहास)क अनुसार दरभंगाकेँ बसायवला गियासुद्दीन तुगलक छलाह। हरिसिंह देवकेँ पराजित कए ओ एहि नगरकेँ बसौलन्हि एहेन बुझल जाइत अछि। हरिसिंह देव पड़ाएकेँ जंगल–पहाड़ दिसि चल गेल छलाह। सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक अपन आक्रमणक क्रममे हुनकापर कब्जा करबा लेल जंगल कटबा देलन्हि। एहि साफ कैल जंगलक नाम “ दारू भंग ” राखल गेल। संस्कृतमे “ दारू ” क अर्थ होइछ लकड़ी आ ‘ भंग ’क अर्थ भेल काटब, छाटब आ नष्ट करब। चूंकि स्वयं सुल्तान अपना हाथे तरूआरिसँ जंगलकेँ काटिकेँ नष्ट केने छलाह आ ओहिठाम अपन आधिपत्य स्थापित कएने छलाह तैं ओहि स्थानकेँ
“दारूभंग ” कहल गेल जे क्रमेण दरभंगा क नामे प्रसिद्ध भेल। अखन धरि इ मत सर्वमान्य नहि भेल अछि।
विलियम हण्टर दरभंगी खाँ सँ दरभंगाक उत्पत्ति बतबैत छथि। दरभंगी खाँ आइसँ करीब १२५ वर्ष पहिने भेल छलाह आ ओ मुहम्मद रहीम रूहेलाक पौत्र छलाह। हिनक वंशज अखनो दरभंगामे छथिन्ह। दरभंगी खाँक बसाओल दरभंगा बाला सिद्धांत कोनो तरहे मान्य नहि बुझि पड़इयै परञ्च तइयो हम देखइत जे ओमैली सेहो हण्टरेक मतकेँ मानने छथि। दरभंगा ओहिसँ पुरान नगर अछि तैं हण्टर आ ओमैलीक मत अमान्य अछि। इहो सिद्धांत प्रतिपादित कैल गेल अछि जे
‘ द्वार –वंग’ अथवा दूर– वंग या दार –इ –वंगलसँ दरभंगा शब्दक निर्माण भेल अछि। दरभंगाकेँ ‘ द्वार वंग ’क संज्ञा देव उपयुक्त नहि बुझि पड़इयै कारण कोन रूपे एकरा बंगालक द्वार कहल जेतैक? इ बात ठीक जे मध्य युगमे दिल्लीक सेना एहि बाटे बंगाल जाइत छल।
मिथिलाक संस्कृत लेखक पण्डित गंगादत्त झा(१६१५ –१६८४)अपन अपन भृंगदूतमे दरभंगा शब्दक उल्लेख कएने छथि –
“तस्याः पाथः परम विमलं सन्निपियाभिरामा –
गारां कामायुध दरभंगा राजधानी मुपेयाः” ।
अहुँसँ इ सिद्ध होइछ जे दरभंगीक पूर्वहिसँ दरभंगा नाम प्रचलित अछि। १७७८मे प्रतापसिंह सेहो दरभंगामे अपन राजधानी बनौने छलाह मुदा हुनकासँ १०० वर्ष पूर्वसँ ‘ दरभंगा ’ राजधानीक रूपमे प्रख्यात छल जकर प्रमाण हमरा ‘ भृंगदूत ’क कविसँ भेटइत अछि। ओहि कविक विवरणसँ इहो ज्ञात होइछ जे दरभंगा (राजधानी) वाग्मती नदीक तटपर स्थापित छल आ ओतए एहेन एहेन सुन्दर भवन सब छल जे देखबामे कामदेवक तरूआरि सन लगैत छल। भृंगदूतक आधार इ कहल जा सकइयै जे ‘ दरभंगा ’ १७म शताब्दीमे एकटा प्रसिद्ध दर्शनीय नगर छल। दरभंगामे ताहिदिनमे मुगल बादशाहक प्रतिनिधि रहैत छलाह आ खण्डवला कुलक राजधानी
“भौर ” मे छल आ भौर आ दरभंगाक मध्य मधुर सम्बन्ध छल। महाराज माधव सिंहक समयसँ खण्डवला कुलक महाराज लोकनि स्थायी रूपेँ दरभंगामे रहए लगलाह। एक इहो सिद्धांत प्रतिपादित कैल गेल अछि जे ‘ दलभंग ’सँ दरभंगाक उत्पत्ति भेल अछि–
गजरथपुरमे शिवसिंहक पराजय भेलापर ओहि स्थानक नाम ‘ दलभंग ’ राखल गेलैक किएक तँ ओहिठाम शिवसिंहक ‘ दल’केँ
‘ भंग ’ कैल गेल छलन्हि। परञ्च अहुमे विशेष तथ्य नहि बुझा पड़इत अछि।
ओना तँ सब गोटए अपन–अपन तर्क उपस्थित कएने छथि मुदा कोनो तर्क ने अखन धरि मान्य भेल अछि आ ने ओकरा हेतु कोनो प्रामाणिक साधने उपलब्ध अछि। १७म शताब्दीमे ‘ दरभंगा ’ नामक प्रचलन इ सिद्ध करैत अछि जे इ नाम बहुत पूर्वहिसँ प्रख्यात रहल होएत। तैं हमर अपन विचार इ अछि जे एहि शब्दक उत्पत्ति गियासुद्दीन तुगलकक समयमे भेल जे
‘ दारू ’–‘ भंग ’ केलैन्ह आ ओहि दारूभंगसँ दरभंगा शब्दक विन्यास भेल। इ जखन तुगलक साम्राज्यक एकटा अंग बनल तखन मिथिला तुगलकपुरक नामे प्रसिद्ध भेल आ ओकरे राजधानी भेल ‘ दरभंगा ’ । दरभंगा ताहि दिनमे जंग़ल छल आ तकरा कटबामे सबकेँ डर होइत छलैक तैं गियासुद्दीन अपनहि जखन जंगल काटब शुरू केलन्हि तखन आ सब केओ मिलिकेँ एहिमे योगदान देलथिन्ह आ जंगल साफ भेलैक आ ओहिठाम तुगलक साम्राज्यक प्रधान कार्यालय बनल। तिरहूतक तुगलक कालीन सिक्का सेहो भेटल अछि।
राधाकृष्ण चौधरी
मिथिला की सारस्वत सुषमा (लेखक विनयानंद झा)केर पृष्ठ संख्या 182- 184मे खण्डवला राजवंशक वंशावली उपलब्ध अछि। तदनुसार महेश ठाकुरक पूर्वज गंगाधर उपाध्याय अपन पैतृक ग्राम खण्डवासँ आबि मिथिलाक गंगौली ( गनौली)गाममे रहैत रहथि, मुदा खण्डवासँ सम्पर्क रखने रहथि। गंगाधर उपाध्यायकेँ दुइ पुत्र- वीर आ नारायण। नारायणक पुत्र शूलपाणि। शूलपाणिक पुत्र हाले आ संकर्षण ठाकुर। संकर्षण ठाकुर खण्डवामे रहथि। संकर्षण ठाकुरकेँ पाँच पुत्र-भद्रेश्वर, दामोदर, नीकण्ठ, श्रीकण्ठ, ध्यानकण्ठ। श्रीकण्ठ मिथिलामे रहलाह। श्रीकण्ठकेँ सात पुत्र- श्यामकण्ठ, हरिकण्ठ, नित्यानंद, गणेश्वर, देवानंद, हरिदत्त, हरिकेश। गणेश्वरकेँ तीन पुत्र- हलेश्वर, चक्रेश्वर, पक्षेश्वर। चक्रेश्वरक पुत्र पद्मनाभ। पद्मनाभक पुत्र पुरुषोत्तम। पुरुषोत्तमक पुत्र ज्ञानपति। ज्ञानपतिकेँ दुइ पुत्र- उमापति, सुरपति। सुरपतिकेँ तीन पुत्र- श्रीपति, लाखू, महीपति। श्रीपतिकेँ तीन पुत्र- हरपति, नरपती, चन्द्रपति। चन्द्रपति ठाकुरकेँ चारि पुत्र- मम. थेघ, मम. मेघ(भगीरथ), मम. दामोदर, महाराजाधिराज महामहोपाध्याय महेश ठाकुर भेलथिन। महेश ठाकुर अपन पूर्वजक मौजे गंधवारिमे रहैत रहथि। महेश ठाकुरक सान्निध्यमे अनेको शिष्य विद्यार्जन कयलनि। रघुनंदन राय महेश ठाकुरक शिष्य रहथिन। अकबरक दरबारमे विद्वान् लोकनिक शास्त्रार्थ आयोजित रहै। ताहिमे महेश ठाकुर सेहो आमंत्रित रहथि, मुदा स्वयं नहि जाय अपन मेधावी शिष्य रघुनंदनकेँ शास्त्रार्थ हेतु मुगल दरबारमे पठौलथिन। ताहि शास्त्रार्थमे रघनंदन राय विजयी घोषित भेलाह। पुरस्कारस्वरूप रघुनंदनकेँ मुगल दरबारसँ भौराराजक ( भौरा, मधुबनी) प्राप्ति भेलनि, मुदा रघुनंदन ताहि भौराराजकेँ गुरुदक्षिणाक रूपमे अपन गुरुदेव महेश ठाकुरकेँ देबाक हेतु मुगल दरबारमे अनुरोध कयलनि, से मान्य भेलनि। तत्पश्चात् मुगल दरबारसँ आदेशपत्र निर्गत भेलै। तदनुसार महामहोपाध्याय महेश ठाकुर महाराजाधिराज भऽ गेलाह।
ध्यातव्य अछि जे महेश ठाकुरक पूर्वज मिथिलासँ बाहर खण्डवामे रहथि। मूल छनि- खड़ौरे भौर। अर्थात् गंगाधर उपाध्यायक पूर्वज मिथिलाक गाम खड़ौराक वासी रहथि। मिथिलासँ खण्डवा(मप्र.) चल गेल छल हेताह आ हुनक वंशज मिथिला आबि गेल हेताह।
रघनंदन राय क्योटीक निकट कोन गामक रहथि, से हमरा मोन नहि अछि। मैथिल ब्राह्मणक पंजीकारसँ रघुनंदन रायक सम्बन्धमे जनतब प्राप्त कऽ सकैत छी।
जय मिथिला!
अनंत मंगलकामना अछि।
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