वैशालीक इतिहास

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वैशालीक इतिहास
i.)भौगोलिक विश्लेषण:- अति प्राचीन कालमे भौगोलिक क्षेत्रक हिसाबे वैशाली विदेह राज्यक अंतर्गत छल, आ विदेह जकाँ वैशालीमे सेहो पहिने राजतंत्र छल आ तत्पश्चात् गणतंत्र भेल। वैशाली गण्डकसँ पूर्व अछि आ एकर आर्यीकरण विदेहक संग भेल छल। प्राचीन उत्तर बिहारक वैशाली आ विदेह दुनू महत्वपूर्ण राज्य छल आ दुनूक अपन अलग–अलग ऐतिहासिक महत्व छैक। अति प्राचीन विदेहक अंग होइतहुँ, वैशालीक सेहो अपन एकटा निर्धारित क्षेत्र छैक। प्राचीन वैशालीक अंतर्गत चम्पारण आ मुजफ्फरपुर जिलाक विशेष भाग छल आ विदेहक अंतर्गत छल दरभंगा, कटिहार, समस्तीपुर, मधुबनी, सहरसा, पूर्णियाँ, अररिया, बेगूसराय, मूँगेरक उत्तरी भाग, भागलपुरक उत्तरी भाग आ नेपालक तराइ सेहो विदेह वैशालीक अंश छल।
विदेह शब्दक अर्थ ताहि दिनमे वेस व्यापक छल–विदेह एकटा जातिक नामक संकेत सेहो दैत छल। विदेह एकटा भौगोलिक सीमाक प्रतीक छल एवँ विदेह एकटा राज्य छल जकरा अंतर्गत ताहि दिनमे गण्डकीक पूवसँ महानंदा धरिक समस्त क्षेत्र सम्मिलित छल। आधुनिक उत्तर बिहारक द्योतक छल विदेह। इएह कारण थिक जे एहि व्यापकताक कारणे महावीरक जन्मस्थान कुण्डग्रामकेँ विदेहमे मानल गेल अछि, अजातशत्रुकेँ वैदेही पुत्र कहल गेल अछि। विदेहक व्यापकताक प्रभाव पाछाँ धरि बनल रहल कारण हम देखैत छी जे ‘ललित विस्तार’मे विदेहक संगहि पूर्व विदेहक वर्णन सेहो अछि।
शक्ति संगम तंत्रमे जे मिथिला क्षेत्रक वर्णन भेल अछि ताहिमे कहल गेल अछि गण्डकीक तीरसँ चम्पाक जंगल धरिक जे क्षेत्र अछि उएह क्षेत्र विदेह अथवा तैरभुक्ति कहबैत अछि। चम्पाक जंगलसँ एहिठाम बहुत गोटए चम्पारणक उत्तरी जंगली भागक अर्थ लैत छथि मुदा जखन हम एकर सीमाक विश्लेषण आन ठाम देखैत छी तखन हमरा इ बुझि पड़इयै जे इ विश्लेषण समीचीन नहि अछि कारण विदेहक सीमा एतबेटा नहि भऽ सकइयै। चम्पाक जंगल धरिक अर्थ भेल ओ क्षेत्र जे चम्पाक उत्तरी भागमे छल आ जकरा बौद्ध साहित्यमे अंगुतराप कहल गेल अछि। चम्पा आ विदेहक सीमा कोनो एक खास बिन्दु पर मिलैत छल एहिमे संदेह नहि।
पुरूषोत्तम देव अपन त्रिकाण्डशेषमे एवं वामन अपन लिंगावुशासनमे विदेह आ तीरभुक्तिकेँ पर्यायवाची शब्द मानने छथि। बारहम शताब्दीक एकटा शिलालेखमे वैशालीकेँ तीरभुक्तिक अंतर्गत बताओल गेल अछि। जीनप्रभासूरी अपन विविध तीर्थकल्पमे सेहो किछु एहि प्रकारक संकेत दैत तीरभुक्तिक विवरण देने छथि। शक्ति संगम तंत्रमे सेहो विदेह आ तीरभुक्तिकेँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल अछि। बौद्ध लोकनि विदेह आ वैशालीकेँ दू अलग–अलग राज्यक रूपमे वर्णन कएने छथि। बौद्ध साहित्यमे वैशाली आ वृज्जिकेँ पर्यायवाची मानल गेल अछि।
मूँगेर आ भागलपुरक उत्तरी भागकेँ बौद्ध साहित्यमे अंगुतराप कहल गेल अछि जकर सीमा कोनो समयमे लिच्छवीक राज्यसँ मिलैत छल। अंगुतरापक सीमा कमला–कोशीक बीच छल। प्राचीन अंगक उत्तरी सीमा छल कोशी आ पश्चिममे एकर क्षेत्र बेगूसरायक गण्डकी धरि पसरल छल। वैशालीक लिच्छवी लोकनिक अधिकार कमला नदी धरि बढ़ि गेल छलन्हि आ तकर बाद मिथिलाक राज्य शुरू होइत छल जाहिमे ताहि दिनक अंगुतराप आ पुण्ड्रवर्धनभुक्तिक किछु अंश समाहित छल। तैं हमरा बुझने शक्ति संगम तंत्रमे जे चम्पाक जंगल धरिक गप्प अछि तकरासँ चम्पारण नहि बुझि अंगुतराप एवँ ओकर ओहि क्षेत्रक बोध होइछ जाहिठाम ताहिठाम खाली जंगले–जंगल छल आ जमीन सेहो दलदले छल। गण्डकीसँ अंगक जंगलक सीमा धरि विदेहक राज्य पसरल होएत इ वेसी तर्कसंगत बुझि पड़इयै आ तैं अखनो इ परिभाषा एकटा विचारणीय विषय बनल अछि।
ii.)ऐतिहासिक विवरण (राजतंत्र धरि):- विदेहक प्राचीन इतिहास जकाँ वैशालीक प्राचीन इतिहास ओझरैले अछि। यद्यपि पौराणिक स्त्रोतसँ वैशालीक विवरण भेटइत अछि परञ्च वैदिक साहित्यमे वैशालीक कोनो श्रृंखलाबद्ध विवरण उपस्थित नहि अछि। यत्र–तत्र एहन एकाधटा नाम वैदिक साहित्य अथवा वेदमे भेटइत अछि जकर सम्पर्क वैशालीसँ रहल हो परञ्च एहि आधारपर वैशालीक कोनो इतिहास निर्माण करब असंभव। अथर्ववेदमे तक्षक वैशालेयक उल्लेख अछि आ हुनका विशालान्मज विराजक पुत्र कहल गेल छन्हि। पंचविंश ब्राह्मणमे हुनके (वैशालेय)केँ एकटा सर्पयज्ञक पुरोहितक रूपमे वर्णन कैल गेल अछि।
पुराणमे वैशालीक इतिहासक सम्बन्धमे बहुत रास सामग्री अछि परंतु ओहिमे ततेक नञि विरोधाभास अछि जे ओहिमे सँ कोनो ठोस सत्यक निर्माण करब एकटा कठिन कार्य। मार्कण्डेपुराणमे मनु आ हुनक पुत्र प्रियव्रत तथा उत्तानपादक कथा अछि। प्रियव्रतक संतानक घनिष्ठ सम्बन्ध वैशाली एवँ हिमालय क्षेत्रसँ छलन्हि। वृद्धावस्थामे अग्निध्र (प्रियव्रतक पुत्र)गण्डकीपर अवस्थित शालग्राम (हिमालय) गेल छलाह। हुनक पुत्र नाभि तपस्याक हेतु वैशाली आएल छलाह। ताहि दिनमे वैशाली विशालाक नामसँ प्रसिद्ध छल। नाभिक पुत्र छलाह ऋषभ (संभवतः प्रथम जैन तीर्थकर इएह छलाह) आ हुनक पुत्र भेला भरत जिनका नामपर एहि देशक नाम अछि। भारतवर्षक पूर्वक नाम छल हिमवर्ष। भरत अपन राज्य सुमतिकेँ दए तपस्यामे चलि गेलाह। मार्कण्डे, भागवत्, विष्णु आदि पुराणमे वैशालीक इतिहास जे विवरण अवइयै ताहिमे तत्तेक नञि संशयात्मक बात सभ अछि जे हमरा लोकनि कोनो एकटा निर्णयात्मक सत्यपर नहि पहुँचि सकैत छी तथापि ओहि स्त्रोतक आधारपर एकटा वैज्ञानिक इतिहासक रूपरेखा ठाढ़ करबाक प्रयास कैल गेल अछि।
गजेन्द्र मोक्षक प्रसंग सेहो वैशालीक इतिहासक प्रसंगमे अवइयै। गज–ग्राहक संघर्ष वैशालीक गण्डकी क्षेत्रमे भेल छल आ कहल गेल अछि जे विष्णु गजकेँ ग्राहकक चाङ्गुरसँ बचाकेँ एहि क्षेत्रकेँ एकटा तीर्थक स्थान बना देलन्हि। इ घटना गंगा–गण्डकक संगमपर भेल छ्ल आ तैं एकरा गजेन्द्र मोक्ष तीर्थ, हरिहर क्षेत्र, हरि क्षेत्र कहल गेल अछि आ पुराणमे एहि स्थानकेँ विशाला क्षेत्रक अधीन राखल गेल अछि। दितिक तपस्याक क्षेत्र सेहो वैशाली छल। दितिक पुत्र मरूत लोकनि जे समुद्रमंथनक कार्य कएने छलाह ताहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे अति प्राचीन कालहिसँ वैशालीक लोक समुद्रसँ परिचित छलाह। हिन्दू, जैन आ बौद्ध धर्मक दृष्टिये सेहो वैशालीक इतिहास महत्वपूर्ण मानल जाइयै।
विदेह–वैशालीक प्राक्–इतिहासक सम्बन्धमे हमरा लोकनिक ज्ञान एकदम स्वल्पोसँ कम अछि तथापि जे किछु हम जानतो छी से रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रंथक आधारपर। ओहु सभ साधनमे सभमे अलग–अलग विवरण अछि। विदेहक आर्यीकरणसँ वैशालीक इतिहास प्रारंभ होइत अछि आ प्राचीन ग्रंथक आधार इ बुझना जाइत अछि जे मनुवैवस्वतकेँ ९टा पुत्र छलथिन्ह आ एकटा पुत्री जिनक नाम छलन्हि इला। नओ पुत्रक नाम अछि–इक्ष्वाकु, नाभाग (नृग), धृष्ट, शरयाति, नरिष्यंत, प्रांशु, नाभानेदिष्ठ, कारूष आ पृषधर। मनु भारतकेँ १० भागमे बटलन्हि। एहि ९ओ पुत्रमे नाभानेदिष्ठ वैशाली राज्यक संस्थापक भेलाह। हिनका वंशमे ३४टा शासक भेलथिन्ह जाहिमे सबसँ अंतिम छलाह सुमति। सुमति अयोध्याक दशरथ आ विदेहक सीरध्वज जनकक समकालीन छलाह।
नाभानेदिष्ठक सम्बन्धमे सेहो प्राचीन साहित्यमे एकमत नहि छैक। रामायण महाभारत एहि नामपर गुम्म छथि। एहन बुझि पड़इयै जे पाछाँ चलिकेँ लोग एहि नामकेँ बिसैर गेल छल। राजा विशालकेँ वैशालीक संस्थापक मानल गेल छन्हि। रामायणमे वैशालीक राजा सुमतिक शासन क्षेत्र सम्बन्धमे कहल गेल अछि जे हुनक गण्डकसँ पुर्व आ विदेहसँ दक्षिण पश्चिम दिसि छल। एहिसँ स्पष्ट अछि जे नाभानेदिष्ठ जाहि राज्यक स्थापना वैशालीमे केने छलाह तकर सीमा ताहि दिनमे बड्ड छोट छल। हुनक पुत्र भेला नाभाग, जे वैश्य कन्यासँ विवाह केलाक कारणे, गद्दीसँ वंचित रहलाह। कृषि आ व्यवसायमे ओ वेसी रट रटएलगलाह आ हुनका भाइ सभसँ सेहो नहि पटलाक कारणे बरोबरि टंट–घंट लगले रहैत छलन्हि। नाभाग अपनि पत्नी प्रेमक चलते राजगद्दीकेँ त्यागलन्हि आ क्षत्रियत्व छोड़ि वैश्यत्व ग्रहण केलन्हि। हुनका तीनटा पुत्र छलथिन्ह जाहिमे एकटाक नाम भालचंद छलन्हि आ दू भाइ ब्राह्मणत्व प्राप्त कएने छलाह। नाभागक अथक परिश्रमक कारणे वैशाली क्षेत्रमे कृषि आ व्यवसायकेँ प्रोत्साहन भेटलैक आ अति प्राचीन कालहिसँ वैशाली कृषि एवँ उद्योगक प्रधान केन्द्र बनि गेल। एक विद्वानक तँ इहो मत छन्हि जे नाभागक वैश्यत्व ग्रहण करब वैशालीक नामक उत्पत्तिसँ सम्बन्ध रखइयै। नगरक हिसाबें नाभाग अपना क्षेत्रकेँ वैश्य लोकनिक हेतु सभसँ प्रमुख नगर बनैलन्हि आ उएह नगर बादमे ‘वास्यु लोकनिक नगर’ अथवा वैशालीक नामसँ प्रसिद्ध भेल। विदेह ब्रह्मविद्या आ आर्य संस्कृतिक केन्द्र बनल आ वैशाली कृषि, उद्योग, वेद–विरोधी धर्म आ कुलीनतंत्र शासन पद्धतिक केन्द्र। ओहि युगमे मात्र पत्नीक हेतु राजगद्दीक त्याग करब एवँ ब्राह्मण व्यवस्थाक परित्याग कए वैश्यत्व ग्रहण करब एक महान–क्रांतिकारी कदम छल। एहि विवाहक एकटा दोसरो असर पड़ल सामाजिक व्यवस्थापर जकरा चलते वैशालीमे बादक राजा सबकेँ “आयोगव” कहल गेल अछि। एहिसँ एक एहेन जातिक बोध होइछ जकर माय वैश्य आ पिता शूद्र रहल हो। शतपथ ब्राह्मणमे राजा मरुत्तकेँ आयोगव कहल गेल अछि। नाभागक वैश्य पत्नीक नाम सुप्रभा छलन्हि।
सुप्रभासँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल भलंदन। ओ राजर्षि निप (काम्पिल्त)सँ सहायता लय अपन पैत्रिक राज्यकेँ प्राप्त करबाक प्रयत्न केलन्हि आ एहि क्रम ओ सफल भेलाह आ अपन सर संबन्धीकेँ पराजित कए ओ राज्य प्राप्त केलन्हि आ राजमुकुट अपना पिताक देलन्हि मुदा पिता ओ ग्रहण करबासँ अस्वीकार केलथिन्ह। तखन भलंदन स्वयं शासक भऽ गेलाह। न्यायपूर्वक ढंगसँ ओ शासन केलन्हि आ अपन कर्तव्य पथपर चलैत रहलाह। हुनका वत्सप्रि नामक एकटा योग्य पुत्र छलथिन्ह। वत्सप्रिक पत्नीक नाम छल मुदावती (सुनंदा)। अपना पिताक बाद वत्सप्रि शासक भेलाह। हुनक दोसर नाम अजवाहन सेहो छलन्हि। ओ मालवाक राजाक संग वैवाहिक सम्बन्धक कारणें ओ एक पुश्तधरि मालवापर सेहो शासन केलन्हि। हुनक शासन काल शांतिप्रिय छल आ ओ अपन उदारता एवँ महानताक हेतु प्रसिद्ध छलाह। सुनन्दा (मुदावती)सँ १२टा पुत्र छलथिन्ह–प्रांशु, प्रचीर, सूर, सुचक्र, विक्रम, क्रम, बालीन, बलाक, चण्ड, प्रचण्ड, सुविक्रम, स्वरूप। पौराणिक स्रोतसँ इहो ज्ञात होइछ जे वेदक तीनटा वैश्य मंत्रकर्त्ता लोकनि वैशालियेक शासक छलाह जनिक नाम छलैन भलंदन, वत्सप्रि (वाशव) आ संकील।
प्रांशु अपन पिताक पछाति वैशालीक शासक भेलाह। ओ एकटा सशक्त शासकक छलाह। ओकर बाद प्रजानि, (प्रजापति, प्रमति) हुनक पुत्र, शासक भेलाह। एहि समयमे वैशाली राज्यमे किछु आपसी संघर्ष शुरू भेल। प्रजानिक पाँच पुत्रमे खनित्र महत्वपूर्ण भेलाह आ अपन पिताक बाद शासक सेहो। ओ बहुत वीर आ बुधियार छलाह। अपना प्रजाक हेतु ओ सभ किछु करबाक लेल प्रस्तुत रहैत छलाह। अपना भाइ सबहिक प्रति ओ दयावान आ विचारवान छलाह। ओ अपन सभ भाइकेँ अपना अधीनमे छोट–छोट राजा बना देने छलाह। अंतमे हुनके एकटा छोट भाइ हुनका विरोधमे विद्रोह कए राज्यक शांतिकेँ नष्ट कए देल। खनित्रक पछाति हुनक पुत्र क्षुप शासक भेलाह। हुनका चाक्षुश सेहो कहल जाइत छन्हि। ओ ब्राह्मण लोकनिकेँ प्रचुर दान दए यशक भागी बनलाह। हुनका बाद हुनक पुत्र विविंश राजा भेलाह। हुनक दोसर नाम वीर छल। तीर चलेबामे ओ बड्ड निपुण छलाह आ संगहि ओ एक शक्तिशाली शासक सेहो छलाह। हुनका बाद हुनक पुत्र विविंश शासक भेलाह। हुनका समयमे जनसंख्याक वृद्धिक कारण अन्याय बढ़ि गेल छल। स्थितिक सुधारक हेतु ओ कैक प्रकारक यज्ञ सेहो केलन्हि। विविंशकेँ १५टा पुत्र छलथिन्ह जाहिमे सबसँ पैघक नाम छलन्हि खनीनेत्र। हुनका पुराणमे धार्मिक शासक कहल गेल छन्हि। ओ ब्राह्मणकेँ उदारतापूर्वक दान दैत छलाह। हुनका पुत्र नहि छलन्हि तँ पुत्र प्राप्तिक हेतु ओ पशुयज्ञक त्याग केलन्हि। गोमतीक तटपर पापहारिणी यज्ञक आयोजन केलन्हि। एकर फलस्वरूप हुनका एकटा पुत्र भेलन्हि जकर नाम बलाश्व छल। वैशालीक इक्ष्वाकु–मानव क्षेत्रमे बलाश्वक राज्यारोहणसँ ऐतिहासिक स्तरपर आर्यक तत्वक विस्तार भेल। एहि राजाकेँ बलाश्व–करनधम सेहो कहल जाइत अछि। खनीनेत्र आ करनधमक बीचमे एकटा विभूति राजाक उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
करनधम वैशालीक एकटा महत्वपूर्ण शासक छलाह। ओ बहुत रास क्षेत्रकेँ जीतलन्हि आ अपन राज्यक अंतर्गत केलन्हि। नव–नव प्रकारक कर पराजित राज्यपर लगौलन्हि। वीरा नामक कन्यासँ स्वयंवरक माध्यमे हुनक विवाह भेल छलन्हि आ ओहिसँ उत्पन्न पुत्रक नाम छल अविक्षित। अविक्षित एतेक निपुण एवँ योग्य छलाह जे सात ठाम स्वयंवरमे हुनके जयमाल पड़लन्हि। जयमाल पहिरौनिहार कन्याक नाम एवँ प्रकार अछि–
____ i.)हेमधर्मक पुत्री वरा
____ ii.)सुदेवक पुत्री गौरी (काशी)
____ iii.)बालिनक पुत्री सुभद्रा (अंग–वंग)
____ iv.)वीरक पुत्री लीलावती (अविक्षितक मायक बहिन)
____ v.)वीरभद्रक पुत्री अनिभा (ऐजन)
____ vi.) भीमक पुत्री मान्यवती (विदर्भ)
____ vii.)दभ्यक पुत्री कुमुदवती (मालवा)
उपरोक्त सूची एहिबातक द्योतक अछि जे वैशालीक सम्पर्क ताहि दिनमे सभ प्रसिद्ध राज्य सभसँ छल आ एहिसँ वैशाली राज्यक महत्वक संकेत भेटइत अछि। अंग, वंग, विदर्भ, मालवा आदि राज्यक संग सम्पर्क तत्कालीन अंतर राज्य सम्बन्धक प्रतीक मानल जा सकइयै। ताहि दिन हैहेय राज्यक शासक लोकनि विदेह एवँ वैशालीपर आक्रमणक सूरसारमे लागल रहैत छलाह परञ्च हुनका लोकनिकेँ एहिमे कोनो सफलता नहि भेटलन्हि कारण करनधम, अविक्षित, एवँ मरुत्त सन्–सन् शासक वैशालीक राजगद्दीपर छलाह। करनधम अपना युगक एकटा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व छलाह जे वैशाली एवँ समस्त उत्तर भारतक इतिहासपर एकटा अमिट छाप छोड़ने छथि। महाभारतमे जे पाँचटा तीर्थक वर्णन अछि ताहिमे कारन्धमतीर्थक महत्वपूर्ण स्थान अछि। आन तीर्थक नाम अछि अगस्त्य, सौभद्र, पौलोम एवँ भारद्वाजीय। महाभारतमे करन्धमकेँ एकटा प्राचीन धर्मात्मा राजाक रूपमे वर्णन कैल गेल छैक। स्कन्धपुराणमे करन्धमकेँ राजर्षि कहल गेल छैक। करन्धम एक महान शासक छलाह आ अपना राज्यक सभ विद्रोही तत्वकेँ दबाकेँ एक सशक्त राज्यक स्थापना कएने छलाह आ बहुत दिन धरि तक शासन कएने छलाह। वैशालीक साम्राज्यवादी परंपराक जन्मदाता करन्धमकेँ मानल जाइत अछि। हुनक पुरोहित छलथिन्ह अंगीरस। हुनके शासन कालसँ वैशालीक राजदरबारमे अंगीरस पुरोहित लोकनिक प्रभाव बढ़लन्हि।
करन्धमक बाद हुनक पुत्र अविक्षित शासक भेला। ओहैहेयआक्रमणकेँ रोकबामे समर्थ भेलाह। विदिशाक संग सेहो हुनका किछु खटपट भेल छलन्हि। तकर बाद हुनक पुत्र मरुत्त शासक भेला। पुराणमे मरुत्तकेँ चक्रवर्त्तीक संज्ञा देल गेल छैक। महाभारतमे मरुत्तकेँ भारतक १६ राजामे सँ एक प्रमुख राजा मानल गेल छैक। मरुत्तक तुलना विष्णु, वाँसव आ प्रजापतिसँ सेहो कैल गेल छैक। महाभारतमे मरुत्तक हेतु सम्राट शब्दक व्यवहार भेल छैक। एक किंवदंती छैक जे न्यायक तरूआरि मुचुकुन्दसँ लकए मरुत्त रैवतकेँ देलथिन्ह आ एहिसँ इ ज्ञात होइत अछि जे ओ एक न्याय–प्रिय शासक छलाह। हुनक अंगिरस पुरोहितक नाम छल सम्वर्त। ओ बड्ड पैघ–पैघ यज्ञ कएने छलाह आ धर्मप्रिय शासकमे हुनक नाम अग्रगण्य छन्हि। मरुत्त अपन पुत्रीक विवाह संवर्तक संग केलन्हि। हिनका शासन कालमे ‘एन्द्रमहाभिषेक’क आयोजनक उल्लेख भेटइयै आ अश्वमैघ यज्ञक श्रेय हुनका देल जाइत छन्हि। विभिन्न स्थानपर पैघ–पैघ यज्ञ करबाक आ करेबाक श्रेय सेहो हिनका देल जाइत छन्हि। स्कन्द पुराणक अनुसार गण्डकी उपत्यकाक राजा मरुत्त यज्ञ करबाक हेतु एक बेर जय आ विजयकेँ आमंत्रित कएने छलाह आ हुनका लोकनिकेँ प्रचूर दक्षिणा देने छलाह। कोनो अघटित घटनाक चलते हिनका दुनू गोटएकेँ श्राप पड़लन्हि आ इएह दुनू गोटए ग्रज आ ग्राहमे एहि क्षेत्रमे परिवर्त्तित भऽ गेलाह आ बादमे इएह स्थान हरिहर क्षेत्रक नामसँ प्रसिद्ध भेल। मरुत्त नाग आ हैहेय लोकनिकेँ सेहो पराजित केलन्हि। मरुत्तकेँ सात टा पत्नी छलथिन्ह–
____ i.) विदर्भ राजक पुत्री प्रभावती
____ ii.) सौवी राजक पुत्री–सुवीग
____ iii.) मागधकेतुवीर्यक पुत्री–सुकेशी (अंग–वंगक आनव वंशक)
____ iv.) मद्रराजासिन्धुवीर्यक पुत्री–केकयी
____ v.)केकयी राजक पुत्री–सैरन्ध्री
____ vi.) सिन्धुक आनवराजक पुत्री–वपुषमती
____ vii.) चेदी राज्यक पुत्री–सुशोभना
एहि वैवाहिक सम्बन्धसँ वैशालीक स्थिति सुदृढ़ छल आ भारतक विभिन्न राज्यक संग एकर सम्बन्ध सेहो नीक छल। मरुत्तक अठारह पुत्रमे ज्येष्ठ पुत्रक नाम छल नरिष्यंत।
नरिष्यंत एक प्रमुख शासक छलाह आ उहो वैवाहिक सम्बन्धक माध्यमे अपन ताकत बढ़ौलन्हि। ओकर बाद हुनक पुत्र दम शासक भेलाह। दमक बाद राज्यवर्द्धन आ ओ दक्षिणापथसँ अपन वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित केलन्हि। एकर बाद पुनः वैशालीक इतिहास अंधकारपूर्ण अछि आ तृणबिन्दुक राज्यारोहणसँ पुनः हमरा लोकनि एकटा लीखपर पहुँचैत छी।
तृणबिन्दुक सम्बन्धमे कोनो विशेष जानकारी हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। संभव जे ओ कोनो स्थानीय शासक रहल होथि आ राजनैतिक अस्थायित्वक स्थितिसँ लाभ उठा कए एकटा संशक्त राज्यक स्थापनामे समर्थ भेल होथि। पुराण सभमे तृणबिन्दु महिपति आ राजर्षि दुनू कहल गेल छैक। हिनक पत्नीक नाम छल अलभवुषा आ हिनका लोकनिककेँ तीनटा पुत्र छलैन्ह–विशाल, शून्यबंधु आ धूम्रकेतु। विशाल वैशाली नगरक संस्थापक मानल जाइत छथि। हिनक पुत्री इलाविलाक विवाह पुलस्त्य (दक्षिणक राक्षसवंश)सँ भेल छल। एवँ प्रकारे एहि बेर क्षत्रिय कन्याक विवाह ब्राह्मणसँ भेल। बुझि पड़इयै जे वैशालीक शासक लोकनि विवाहक मामलामे उदार छलाह। एहिसँ उत्पन्न पुत्र विश्रवस मुनिक आश्रम नर्मदा तटपर छल। दक्षिणक पौलस्त्य वंशक उत्पत्ति वैशालीक राजवंशसँ भेल छल।
तृणबिन्दुक पुत्र विशाल प्राचीन भारतीय इतिहासक प्रसिद्ध मील स्तंभ मानल जाइत छथि। ओ अपना नामपर अपन राजधानीक नाम विशाला रखलन्हि जे कालक्रमेण वैशालीक नामसँ प्रसिद्ध भेल। मार्कण्डेपुराणमे सेहो एकटा विशालग्रामक उल्लेख भेटइत अछि आ अथर्ववेदमे वर्णित तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। राजा विशालकेँ विशालाक प्रभु, आ विशालापुरीक संस्थापकक रूप से बताओल गेल अछि। ओहि समयमे गया आ वैशालीक बीच घनिष्ठ सम्पर्क छल। राजा विशाल पितृपूजा आ पिण्डदानकसमर्थक छलाह आ ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ हुनका पिण्डदानक प्रवर्त्तको कहल जा सकइयै। ब्रह्माण्डपुराणमे राजा विशालकेँ धर्मात्मा पुरूष कहल गेल अछि। मार्कण्डेपुराणमे विशाल नामक एकटा ब्राह्मण आ हुनक पुत्र वैशालीक उल्लेख भेटइत अछि। वैशालीमे एकटा महावन छल जे गौतमबुद्धक समय धरि विराजमान छल। विशाल बहादुरीक द्योतक सेहो बुझल जाइत अछि। आ संभवतः अहु अर्थमे ‘वैशाली’ शब्दक उद्भव भेल हो। सम्प्रति ‘राजा विशालक गढ’ प्राचीन वैशालीक खण्डहरक रूपमे विराजमान अछि जकर उत्खननसँ ताहि दिनक बहुत रास सामग्री उपलब्ध भेल अछि। विशालक बाद हेमचन्द्र शासक भेलाह, तखन क्रमिक रूपें सुचन्द्र, धूम्राश्व, श्रृंजय, सहदेव, कृशाश्व, सोमदत्त, जनमेजेय, आ सुमति। वैशालीक इतिहासमे सुमतिक शासन बड्ड महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। अपनावंशक ओ सभसँ अंतिम राजा मानल गेल छथि। विश्वामित्र जखन राम लक्ष्मणक संग वैशाली पहुँचल छलाह तखन एहिठाम सुमति शासन करैत छलाह। वैशालीकेँ ‘उत्तमपुरी’ कहल गेल अछि। देखबामे ओ एतेक सुन्दर एवँ स्वर्गीय छल जे सामान्य लोगकेँ बुझि पड़इत होइक जे जेना इ स्वर्गे हो। सुमति आदरपूर्वक विश्वामित्र, राम एवँ लक्ष्मणक ठहरबाक प्रबंध केलथिन्ह आ यथायोग्य स्वागत सेहो। ओहिठामसँ मिथिला पहुँचबाक बीचमे ओ लोकनि गौतमाश्रम सेहो रूकल छलाह। सुमतिक बाद वैशालीक इतिहास पुनः अंधकारपूर्ण भऽ गेल आ एकर जे स्थिति रहल तकर कोनो ज्ञान हमरा लोकनिकेँ नहि अछि। राजतंत्रक अंत आ कुलीनतंत्रक प्रगति जे कोना एहि क्षेत्रमे भेल तकरा संबन्धमे अखनो विशेष बात संदिग्ध एवँ अनिश्चिते अछि।
iii.)सुमतिक पछाति आ वज्जीकुलीनतंत्रक स्थापना धरिक इतिहास:- सुमतिक शासनक अंत भेला पर लगभग ६०० वर्षक पछाति वैशालीमे कुलीनतंत्रीय शासनक विकास भेल आ क्रमेण वृज्जीसंघ सेहो। एहि ६०० वर्षकेँ वैशालीक इतिहासमे अन्धकार युग कहल गेल अछि। साहित्य एवँ पौराणिक परंपरामे सुमतिक बाद कोनो राजाक नामक संकेत नहि अछि। महाभारत युद्धक समयमे विदेह, कोशल एवँ मल्लराष्ट्रक विवरण तँ भेटइत अछि परञ्च वैशालीक सम्बन्धमे कोनो सूचना उपलब्ध नहि होइछ। एहेन बुझि पड़इयै जे सुमतिक अवसानक पछाति विदेहक पराक्रम बढ़ि गेल छल आ वैशालीक विशेष भागपर संभवतः विदेहक आधिपत्य भऽ गेल छल। उत्तर बिहारक विदेह आ मल्लक उल्लेख महाभारत युद्धक प्रसंगमे अबैत अछि तँ संभव जे वैशालीक विशेष भागपर विदेहक आधिपत्य (वैशालीपर विदेह राज्यक आधिपत्य) भऽ गेल हो आ किछु अंशपर मल्ल लोकनिक। वैशालीक स्वतंत्र सत्ता समाप्त रहलाक कारणे वैशालीक स्वतंत्र उल्लेख नहि भेटल स्वाभाविके बुझि पड़इत अछि। किछु विद्वानक मत छन्हि जे राजा सुमतिक पछाति वैशालीपर किछु दिनक हेतु कोशलक आधिपत्य भऽ गेल छल। कोशलक कमजोर भेलापर विदेह राज्य ओहि परिस्थितिसँ लाभ उठाकेँ वैशालीकेँ अपना अधीन कऽ लेलन्हि। ताहि दिनमे रामक सार भानुमंत मिथिलामे शासक छलाह। वैशालीक प्रभुत्व घटि चुकल छल। विदेहक आधिपत्य भेला संता वैशालीक अपन जे स्वतंत्र संबन्ध यादव अथवा पाण्डव लोकनिसँ रहल हेतन्हि सेहो गौण भऽ गेल हेतन्हि आ इ लोकनि अपन अधीनस्थ स्थितिक कारणें गुम–सुम भए अपन समय कटइत हेताह। भऽ सकइयै जे विदेहक राजतंत्रक अंत भेने दुनू ठाम एक्के बेर कुलीनतंत्रीय गणतंत्रक स्थापना भेल हो।
सुमतिक पछाति मिथिलाक इतिहासक जे क्रम उपलब्ध अछि ताहि आधार पर इ उचित बुझना जाइत अछि जे मिथिला अपन साम्राज्यवादी प्रसारक क्रममे वैशालीकेँ पराजित कए अपना अधीन कऽ लेने होएत। साम्राज्यवादी प्रवृतिक प्रारंभ सीरध्वज जनक धरि जीवित छल आ ओ साँकास्य धरि अपन राज्यक सीमाक विस्तार कएने छलाह। महाभारत युद्धक पश्चात जे एकटा अनिश्चितताक स्थिति उत्पन्न भेल ताहिसँ लाभ उठाके जनकवंशक शासक गण, उग्रसेन, जनदेव, धर्मध्वज, तथा आयुस्थन, अपन साम्राज्यवादी परंपराकेँ आगाँ बढ़ौलन्हि आ करीब बारह पुस्त धरि एकरा जारी रखलन्हि। अयोध्याक राज्यक छिन्न–भिन्न भेल उत्तरो मिथिलाक राज्यक विस्तार होइते रहल। कोशल–काशीमे बरोबरि खटपट होइत रहल। वैशालीक वस्तुस्थितिक सम्बन्धमे कोनो ठोस ज्ञान हमरा लोकनिकेँ एहि समयमे नहि अछि।
महाभारतमे प्राचीन भारतीय गणतंत्र एवँ विभिन्न जातिक विवरण भेटइत अछि परञ्च ओहु सूचीमे वैशाली अथवा ओहिठामक गणतंत्रक कोनो उल्लेख नहि अछि। एकमात्र उल्लेख जे वैशालीक सम्बन्धमे अछि से विशालाक पुत्री भद्रा–वैशाली–जाहि राजकुमारीक हेतु द्वारावतीक वासुदेव, वेदिक शिशुपाल, एवँ कारूषक शासक लालायित रहैत छलाह। वैशालीमे नाग प्रधानक उल्लेख सेहो भेटइत अछि आ कहल जाइत अछि इ लोकनि अर्जुनक साहायता कएने छलथिन्ह। वैशालीमे नाग लोकनिक प्रधानताक विवरण दीर्घनिकाय आ महावंशमे सेहो भेटइत अछि। अथर्ववेदमे तक्षक वैशालेयक उल्लेख तँ हम पूर्वहिं कऽ चुकल छी। वैशालीसँ गुप्तकालीन अवशेषमे बहुत रास सर्प मूर्ति भेटल अछि जाहिसँ इ स्पष्ट होइछ जे एहिक्षेत्र नाग लोकनिक प्रधानता रहल हेतन्हि।
कहल जाइत अछि जे भीमसेन अपन दिग्विजयक क्रममे गण्डक लोकनिकेँ पराजित कएने छलाह। अहुँठाम वैशाली नाम नहि दए गण्डक लोकनिक (गण्डकक समीप रहनिहार) नाम अछि आ अहुँसँ बुझि पड़इयै जे वैशालीक राजनैतिक महत्व ताहि दिन धरि समाप्त भऽ चुकल छल। ओहि दिग्विजयक क्रमक जे सूची अछि ताहिमे विदेहक पूर्वहि गण्डक लोकनिक विवरण अछि। भीमसेन उत्तरी कोशल, मल्ल, जलोद्भव, जनक वैदेह, शक, वर्बर, एवँ सातटा किराल प्रधानकेँ पराजित कएने छलाह आ शरमक, वर्मक आ गोपालकक्ष लोकनिकेँ सेहो। किछु गोटएक मत छन्हि जे इ तीनू वर्ग वैशालीक निवासी छलाह आ ओतहिक ब्राह्मण, क्षत्रिय आ वैश्यक द्योतक सेहो। मुदा ठोस साधनक अभावमे इ सब एकटा अंदाज मात्र थिक आ तैं एहिपर पूर्ण विश्वास करब असंभव। सुमतिक बादसँ लिच्छविक उत्थान धरिक इतिहास अंधकार पूर्ण अछि आ ओहिमे जे कोनो एकटा मान्य तथ्य अछियो तँ से मात्र इएह एहि ६०० वर्षक अभ्यंतरमे वैशाली कैक टुकड़ामे बटि गेल छल आ मुख्य रूपसँ विदेह एवँ मल्ल लोकनि एकर विशेष भागपर अपन आधिपत्य स्थापित कऽ लेने छल।
iv.)मिथिलामे गणराज्यक स्थापनाक इतिहास:- अन्धकार युगसँ जखन वैशाली अवतीर्ण होइछ तखन हम देखैत छी जे वैशालीक नेतृत्वमे समस्त उत्तर बिहारमे एकटा कुलीनतंत्रीय गणराज्यक परंपराक स्थापना होइत अछि। इ.पू. छठी शताब्दी समस्त विश्वक इतिहासमे अपन एकटा महत्वपूर्ण स्थान रखइयै आ भारतमे तँ सहजहि इ युग एकटा युगांतकारी युग छल–राजनैतिक आ साँस्कृतिक दृष्टियें। मिथिलाक इतिहास दृष्टियें सेहो इ युग युगांतकारी कहल जा सकइयै। राजनीतिमे राजतंत्रक उत्तराधिकारी गणतंत्र भेल आ विचारक क्षेत्रमे वर्धमान महावीर आ गौतमबुद्ध एकटा नव कीर्तिमान स्थापित केलन्हि। वैशालीमे कहिया आ कोना गणराज्यक स्थापना भेल एकर ठीक–ठीक पता हमरा लोकनिकेँ नहि अछि मुदा एतवा हम सब जनैत छी जे महावीर आ बुद्धक समयमे वैशालीमे कुलीनतंत्रीय गणराज्यक प्रभुत्व छल। बुद्ध जाहि शब्दमे वैशालीक गणराज्यक प्रशंसा कएने छथि ताहिसँ बुझना जाइत अछि जे बुद्धसँ १००–२०० वर्ष पूर्वहिंसँ इ गणराज्य रहल हो। कराल जनकक अत्याचारी शासनसँ तंग आबि जखन प्रजा विद्रोह कए विदेह राज्यमे क्रांति मचौलक तखन ओहिठाम राजतंत्रक अवसान भेल आ गणराज्यक स्थापना। कहल जाइत अछि जे एहि घटनाक फलस्वरूपें समस्त उत्तर बिहारमे गणराज्यक परंपरा प्रारंभ भेल आ चूँकि वैशाली विदेहक अंग छल तै वैशालियोमे गणराज्यक स्थापना भेल। कराल जनक विदेहक जनक वंशक अंतिम राजा छलाह आ हुनक अवसानक पछातियेसँ मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना मानल जाइत अछि। कहल जाइत अछि महाभारत युद्धक २२ पुस्त कऽ बाद बौद्ध धर्मक उत्थान भेल आ एहि बीचमे मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत। पुराणमे एहि बीच २८ मैथिल राजाक उल्लेख भेटइत अछि।
बौद्ध धर्मक उत्थानक बहुत पूर्वहिं मिथिलामे गणतंत्रक स्थापना भेल होएत तकर संकेत हम उपर दए चुकल छी। पुराणमे २८ मैथिल राजाक विवरण अछि आ जातकमे मात्र १५ राजामे २८ सँ जे १५ घटा देल जाइक तें १३ राजा बचि जाइत छथि आ महाभारत युद्ध आ गणराज्यक स्थापनाक बीच संभवतः इएह १३ राजा मिथिलामे राज्य कएने होएताह। एहि १३मे अंतिम राजा कराल जनक रहल हेताह। जातकमे मखादेवकेँ मिथिलाक राजतंत्रक संस्थापक मानल गेल अछि। मिथिलामे जातक सूचीक अनुसार राजाक नाम एवँ प्रकारे अछि–
____ सुरूचि प्रथम, सुरूचि द्वितीय, सुरूचि तृतीय, महापनाद
(जातक नं-४८९+२६४)
____ महाजनक प्रथम, अरिठ्ठजनक, पोलजनक, महाजनक द्वितीय, दिघावु
(जातक नं–५३९ )
____ साधीन, नारद
(जातक नं-४९४)
____ निमि, कलार
(जातक नं–९, ४०८, ५४१)
____ मखादेव
(जातक नं–९, ५४१)
____ अंगति
(जातक नं-५४४)
वर्द्धमान महावीरसँ २५० वर्ष पूर्व मिथिलामे निमि नामक एकटा शासक भेल छलाह जे जैन धर्म ग्रहण कएने छलाह। इ. पू. ७५० क आसपास मिथिलामे जनक वंशक अंतिम शासकक राज्यक अवसान भेल आ तकराबादे ओहिठाम गणतंत्रक स्थापना भेल। मिथिलामे गणराज्यक स्थापनाक संगहि वज्जी गणराज्यक स्थापना सेहो भेल। मिथिलामे राजतंत्रक पश्चात गणतंत्रक स्थापना एकटा मह्त्वपूर्ण घटना मानल गेल अछि। कौटिल्यक अनुसार वज्जी (वृज्जी) आ लिच्छवी अलग–अलग छल। महापरिनिवान्नसुतमे बुद्ध वज्जी लोकनिक गुणगाथा कएने छथि आ पाणिनि सेहो वृज्जी लोकनिक विवरण देने छथि। वज्जी गणराज्यक संदर्भमे अष्टकुलकक उल्लेखसँ ज्ञात होइत अछि जे एहिमे आठकुलक लोग संगठित रहल होइत। तथापि एहिठाम लिच्छवियेक प्रधानता रहल होइत। लिच्छवी लोकनि वैशालीक रहनिहार छलाह आ अष्टकुलकक सर्वशक्तिमान सदस्य सेहो। ज्ञात्रिक नामक जाति सेहो वज्जी गणराज्यमे प्रसिद्ध छल। एहि कुलमे वर्धमान महावीरक जन्म भेल छलन्हि। सूत्रकृतांगमे ज्ञात्रिकक सम्पर्क उग्र, भोज, इक्ष्वाकु, कौरव, लिच्छवी आदिसँ बताओल गेल अछि। एहिसँ बुझि पड़इत अछि जे इ सब एक दोसराक समीपे रहैत छलाह आ उत्तर बिहारक विभिन्न क्षेत्रपर हिनका लोकनिक अधिकार छलन्हि। इ सब गणराज्यक सदस्य छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। मिथिलामे जे वज्जी गणराज्य छल तकर दूटा प्रमुख महारथी रहैथ वैशाली आ विदेह।
v.) गणराज्यक सदस्य जाति:- लिच्छवी वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ अंग रहैथ। बौद्ध साहित्यमे लिच्छवीक विशद विश्लेषण भेल अछि। हुनका लोकनिक प्रधान केन्द्र छल वैशाली आ राजनैतिक रूपे ओ वैशाली आ नेपालपर अपन अधिकार स्थापित कएने छलाह। चारिम शताब्दीमे जे गुप्त साम्राज्यक स्थापना मगधमे भेल छल ताहुमे लिच्छवी लोकनिक विशेष हाथ छलन्हि। लगभग ८०० वर्ष धरि बिहार आ नेपाल इतिहासकेँ लिच्छवी लोकनि प्रभावित कएने छलाह।
लिच्छवी जातिक उत्पत्तिक सम्बन्धमे अद्यतन विद्वान लोकनिक बीच मतभेद बनले अछि। लिच्छवि, निच्छवि, लिच्चिकि, लेच्छवी, लेच्छाइ, लेच्छकी, आदि शब्द लिच्छविक द्योतक मानल जाइत अछि। पालि साहित्य, सिक्का, अभिलेख, आ अन्यान्य साधन सबमे लिच्छवी शब्दक प्रयोग भेटइत अछि जाहिसँ इ ज्ञात होइछ जे इयैह शब्द इतिहासमे जनप्रिय भए स्वीकृत भऽ गेल। कौटिल्य, मेधातिथी, गोविन्दराज आदि लिच्छवी शब्दक व्यवहार कएने छथि।
बहुत रास विद्वानक कहब छैन्ह जे लिच्छवी लोकनि विदेशी छलाह–आ हुनक सम्बन्ध तिब्बत, कोलारियन, सिथियन, तथा फारससँ छलन्हि। किछु विद्वानक मत छैन्ह जे लिच्छवीक सम्बन्ध यूची जातिसँ छलन्हि। तिब्बती उत्पत्तिपर विशेष जोर देल जाइत अछि। लिच्छवीक आचार–विचार आ सामाजिक नियम आदिक आधार इ कहल गेल अछि जे हुनका लोकनिक उत्पत्ति तिब्बती स्रोतसँ भेल होएत। एहिमतक समर्थकक विचार छन्हि जे प्रागैतिहासिक कालमे किछु मंगोलियन–तिब्बती जाति एहि क्षेत्रमे आबिकेँ बसल हेताह आ ओहिसँ लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति भेल होएतैन्ह। भारतीय विद्वान लोकनि लिच्छवीकेँ भारतीय मनैत छथि परञ्च अपनहु सबमे किछु एहनो विद्वान छथि जनिक विचार छन्हि जे लिच्छवी लोकनिक उत्पत्ति परसिया (फारस)सँ भेल होएत। निच्छवि शब्दक उत्पत्ति फारसक ‘निसि विस’ नगरसँ भेल अछि आ ओहिसँ लिच्छवीक उत्पत्ति सेहो फारसक इतिहास विवरणमे कतहु एहेन उल्लेख नहि भेटइत अछि जाहि आधारपर इ कहल जाए जे फारसक लोग पूर्वी भारतमे आबिकेँ कहियो बसल छलाह अथवा पूर्वी भारतसँ कहियो हुनका लोकनिकेँ कोनो प्रकारक सम्पर्क रहल होन्हि।
प्राचीन भारतीय साहित्यमे लिच्छवी लोकनिकेँ क्षत्रियक रूपमे वर्णन भेल छैक। महापरिनिर्वाणसुतसँ ज्ञात होइछ जे ओ लोकनि क्षत्रियक हिसाबे बुद्धक शवक अवशेष प्राप्त करबा लेल इच्छुक छलाह। सिगालजातकमे लिच्छवी कन्याकेँ क्षत्रिय कहल गेल छैक। महाली नामक लिच्छवी अपनाकेँ बुद्ध जकाँ क्षत्रिय घोषित करैत अछि। जैनकल्प सूत्रमे वैशालीक लिच्छवी नेता चेतकक बहिन त्रिशलाकेँ क्षत्रियाणी कहल गेल छैक। लिच्छवीक उत्पत्तिक सम्बन्धमे बुद्धघोषक मत छन्हि जे ओ लोकनि क्षत्रिय छलाह। नेपाल वंशावलीमे लिच्छवी सूर्यवंशी क्षत्रिय कहल गेल छैक। मनु लिच्छवीकेँ व्रात्य–क्षत्रिय कहैत छथि। वज्जि आ लिच्छवीक मध्य कोन सम्बन्ध छल अथवा दुनूक बीच कोनो सीमा रेखा छल अथवा नहि से कहब असंभव। वृज्जी–वज्जी गणराज्यक सर्वश्रेष्ठ सदस्य लिच्छविये लोकनि छलाह। बुद्ध लिच्छवीक तुलना तावतिंशदेवसँ कएने छथि। वृज्जि (वज्जिका) आ लिच्छवी दुनू दू शब्द छल परञ्च लिच्छवीक प्रधानताक कारणे वज्जीसँ लिच्छवीक बोध होइत छल।
नेपाल अभिलेखमे लिच्छवीकुलकेतु, लिच्छवीकुलांबरपूर्णचन्द्र, लिच्छवीकुलानंदकार, लिच्छवीकुलतिलको आदि शब्दक व्यवहार भेल अछि। चीनी आ तिब्बती स्रोतसँ ज्ञात होइछ जे इ लोकनि लिच्छवीक नामसँ प्रसिद्ध छलाह। एक परंपराक अनुसार तिब्बतक राजवंश लिच्छवीक वंशज छलाह। प्राचीन कालमे संभव जे नेपालक बाटे तिब्बत आ मिथिलाक सम्बन्ध घनिष्ठ रहल हो आ राजनैतिक–साँस्कृतिक आदान–प्रदान होइत हो। हिमालयक तराइमे किरात लोकनिक वास छल आ इ लोकनि बरोबरि पहाड़क आ पार जाइत आवैत छलाह आ दुनू दिससँ हिनका लोकनिकेँ सम्पर्क छलन्हि। एहि क्रम तिब्बत आ मिथिलाक संपर्क घनिष्ठ भेल हो से संभव आ दुनूक बीच साँस्कृतिक आदान–प्रदान सेहो। लिच्छवी लोकनि विचारसँ प्रगतिशील छलाह आ तै जँ हिनक विचार तिब्बती विचारधाराकेँ ताहि दिनमे प्रभावित केने हो तँ कोनो आश्चर्यक गप्प नहि। एहिठामक संस्कृतिसँ प्रभावित होएब हुनका लोकनिक लेल स्वाभाविक छल कारण मिथिला तिब्बती नेपाली व्यापारीक बाटपर पड़इत छल।
लिच्छवीकेँ विदेशी नहि कहल जा सकइयै। लिच्छवी आ विदेह दुनू क्षत्रिय छलाह आ हुनका लोकनिकेँ कोनो जातिगत विभिन्नता देखबामे नहि अवइयै। अहुयुगमे वैशालीकेँ विदेहक अंगे बुझल जाइत छल आ तैं तँ त्रिशलाकेँ वैदेही कहल गेल अछि। लिच्छवी लोकनि देखबा सुनबामे सुन्दर होइत छलाह आ हुनकर पहिरब ओढ़ब अत्यंत सुन्दर होइत छलन्हि। अंगुत्तर निकायमे आन क्षत्रिय शासक जकाँ लिच्छवी लोकनिकेँ अभिषिक्त मानल गेल छन्हि। हियुएनसंग लिच्छवीकेँ क्षत्रिय कहने छथि। लिच्छवी लोकनि ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, कार्तिकेय, वासुकी, लक्ष्मी आ विजयश्रीक पूजा करइत छलाह आ अहुसँ इ स्पष्ट अछि जे ओ विदेशी नहि छलाह। वैशालीमे जैन, बोद्ध आ ब्राह्मण धर्मक प्रधानता छल आ नेपालमे सेहो इ लोकनि ओहि सब धर्मक पालन करइत छलाह। लिच्छवीक अतिरिक्त आ कैकटा जाति वैशालीमे रहैत छलाह जकर विवरण निम्नांकित अछि।
ज्ञात्रिक जाति ओहिमे सबसँ प्रसिद्ध छल आ एहि कुलमे जैनधर्मक संस्थापक वर्द्धमान महावीरक जन्म भेल छलन्हि। ज्ञात्रिक लोकनिक प्रधान केन्द्र छल कुन्द ग्राम आ कोलाग्ग। बौद्ध साहित्यमे महावीरकेँ नात (नाट) पुत्र कहल गेल छन्हि। इ लोकनि काश्यप गोत्रक छलाह। वज्जी गणराज्यक विकासमे हिनका लोकनिक विशेष योगदान छलन्हि। राहुल साँकृत्यायनक अनुसार आजक जथरिया भूमिहार ब्राह्मण एहि ज्ञात्रिकक वंशज छथि। राहुलजीक एहि मतकेँ सब केओ नहि मानैत छथि।
उग्र लोकनि सेहो एक प्रसिद्ध जाति छलाह। वैशालीसँ हिनका लोकनिकेँ घनिष्ठ सम्पर्क छलन्हि। ‘हत्थीगाम’क समीप इ सब रहैथ होथि से संभव। बृहदारण्यकोपनिषद एवँ धम्मपद्दठीकामे उग्र लोकनिक विवरण भेटइत अछि मुदा ओ लोकनि इएह उग्र छलाह अथवा नहि से कहब असंभव। विदेह आ काशीमे उग्र लोकनिक प्रभुता आ सैन्यबलक चर्च भेटइत अछि। बुद्ध सेहो उग्र लोकनिक शहरमे गेल छलाह। सूत्रकृतांगमे उग्रकेँ बड्ड पैघ स्थान देल गेल छन्हि आ ललितविस्तारमे जे ६४ लिपिक विवरण अछि ताहिमे एकटा उग्र लिपिक विवरण सेहो अछि। ओहि ६४ मे एकटा पूर्व विदेहक लिपिक वर्णन सेहो भेटइत अछि। उग्रकेँ मिश्रित जाति सेहो कहल गेल अछि।
जैन साहित्यमे उग्र जकाँ भोगकेँ सेहो क्षत्रिय कहल गेल छैक। इ लोकनि प्रथम जैन तीर्थकंर ऋषभक वंशज छलाह महापरिनिव्वानसुत्तसँ ज्ञात अछि जे वैशालीसँ पावा जेवाक रास्तामे भोगनगर, जम्बुगाम, अम्बगाम, हत्थिगाम, भण्डगाम आदि भेटइत छल आ एहि सबसँ भोग लोकनिक घनिष्ठ सम्पर्क छलन्हि।
सूत्रकृतांगमे इक्ष्वाकु लोकनिक विवरण अछि आ इहो लोकनि वज्जी क्षेत्र रहैत छलाह। संभवतः इ लोकनि सुमतिक वंशज होथि। चूँकि विदेह लोकनि इक्ष्वाकुक पुत्र निमिक वंशज छलाह तैं इहो संभव अछि जे इहो लोकनि अपनाकेँ इक्ष्वाकु कहैत होथि। इहो संभव जे अयोध्याक इक्ष्वाकु एम्हर आबिकेँ बसि गेल होथि।
वज्जी संघमे कौरव लोकनिक उपस्थिति एकटा समस्याक प्रश्न बनि गेल अछि। एहि सम्बन्धमे निम्नलिखित तथ्यकेँ स्मरण राखब आवश्यक। महाभारतक अनुसार पाण्डु मिथिला जाकए विदेहकेँ पराजित कएने छलाह। भीम गण्डक लोकनिकेँ पराजित केला उत्तर वैदेहक जनककेँ पराजित केलन्हि। ओ विदेहपर आधिपत्य स्थापित कए ओहिठाम अपन खुट्टा गारि अपन साम्राज्यवादी अभियानकेँ आगाँ बढ़ौलन्हि आ कौशिकी कच्छक राजाकेँ पराजित केलन्हि। इ क्षेत्र सम्प्रति विहपुर–पूर्णियाँ क्षेत्रक संकेत दैत अछि। कौशिकी क्षेत्र आ एहिसँ पूर्वक क्षेत्रपर एकटा कौरव राजकुमारकेँ लादि देल गेल। एम्हर विदेहमे जे कौरव बचि गेलाह से एहिठामक वासी बनिकेँ रहि गेला। हस्तिनापुरक अंत भेलापर सेहो कौरव लोकनि एहि क्षेत्रमे आबिकेँ बसलाह। राजा जनक दरबारमे तँ प्रारंभहिसँ कुरू पाँचालक ब्राह्मण लोकनिक अबरजात बनले छल।
वज्जी गणराज्यक अंतर्गत बहुत तरहकेँ लोग रहल होएत एहिमे संदेह नहि। त्रिकाण्डशेषमे लिच्छवी, वैदेह आ तैरभुक्तकेँ पर्यायवाची शब्द मानल गेल छैक आ वज्जी संघक अगुआ इएह सब छलाह। कुछ विद्वानक कथन अछि जे कराल जनकक मृत्युक पश्चातो विदेहमे राजतंत्र बनल रहल आ महापद्म नंद जखन मिथिलाकेँ जीतलैन्ह तकर बादे मिथिलामे गणराज्य भेल मुदा हमरा इ बात मान्य नहि बुझि पड़इयै कारण कराल जनकक मृत्यु भेला उपरांत मिथिलामे विद्रोहक आगि भभकि उठल आ ओतए राजतंत्रकेँ समाप्त कऽ कए गणतंत्रक स्थापना कैल गेल। बुद्धक समयमे विदेह एकटा गणतांत्रिक राज्य छल। अजातशत्रुक वैशाली आक्रमणक पछाति एहि क्षेत्रक सूर्यास्तक संकेत भेटए लागल। पतंजलि एहि बातक साक्षी छथि जे विदेहमे गणराज्य छल। एहिमे आठ कुलक संघ छल। मल्ल, विदेह, उग्र, भोग, इक्ष्वाकु, ज्ञात्रि, कौरव एवँ लिच्छवीकेँ मिलाकेँ एकटा शासन छल–जकरा हमरा लोकनि लिच्छवी, विदेह अथवा वज्जीसंघक नामसँ जनैत छी।
vi.) बौद्ध साधन आ मिथिलाक इतिहास:- अंगुत्तर निकायमे वज्जी संघक विवरण अछि मुदा विदेहक नाम नहि अछि। इहो संभव जे वज्जी संघक सदस्य रहलाक कारणे एहिमे एकर नाम नहि देल गेल हो। दीपवंशमे वर्णित परंपराक अनुसार कराल जनकक पुत्र छलाह समङ्कर आ हुनका बाद राजा भेलाह अशोक। ओहि परंपरामे इहो कथा अछि जे चम्पानगरक राजा नागदेवक वंशज कैक पुस्त धरि मिथिलापर शासन केलन्हि। एहिमे सबसँ अंतिम राजा भेलाह बुद्धदत्त। दीपवंशक कथासँ इ सिद्ध होइत अछि जे कराल जनकक बादो मिथिलामे राजा द्वारा शासन होइत रहल आ मिथिला नगरमे २५ टा राजा तकर बादो शासन केलन्हि जाहिमे बुद्धदत्त अंतिम छलाह। तकर बाद राज्य मगधक अंतर्गत चल गेल। एकर अतिरिक्त मिथिलामे अंगति, सुमित्र आ विरूधक नाम सेहो भेटइत अछि। अंगतिक शिक्षक छलाह गुणकस्सप/गुणकस्सपक विचार पुराणकस्सप आ मखलि गोसाल्लक विचारसँ मिलैत–जुलैत अछि आ इ सब बुद्धक समकालीन छलाह। राजा सुमित्रक सम्बन्धमे ललितबिस्तरमे वर्णन भेटइत अछि। ललितविस्तरमे मिथिलाक सौन्दर्यक वर्णन अछि–आ ओहिमे इहो कहल गेल अछि जे सुमित्रकेँ हाथी, घोडा, रथ आ पैदल सेनाक कोनो अभाव नहि छलन्हि। सबतरहे सुखी सम्पन्न रहैतहुँ राजा बड्ड बूढ़ छलाह आ शासन क्षमता हुनक घटि चुकल छलन्हि। विदेहक तुलनामे ललितविस्तरमे वैशालीक गणराज्यक विशेष प्रशंसा अछि। इहो सूचना भेटइत अछि जे राजा विरूधक मंत्री सकलकेँ विदेह छोड़िकेँ वैशाली भागे पड़ल छलिन्ह कारण विदेह राज दरबारमे तरह–तरहकेँ षडयंत्र चलि रहल छल। आन मंत्री सब हिनकासँ इर्ष्या करैत छलाह। सकल वैशालीमे आबिकेँ प्रख्यात भेलाह आ एहिठाम नायकक पदपर निर्वाचित भऽ गेलाह। गिलगिट मैन्युसक्रिप्टमे सेहो मिथिलाक कोनो एक अनामा राजाक प्रधानमंत्री खण्डक उल्लेख भेटइत अछि। खण्ड ५०० अमात्यक प्रधान छलाह। हुनक जनप्रियतासँ आन–आन मंत्री घबड़ा उठलाह आ हुनका समाप्त करबाक प्रयास करे लगलाह। ओ लोकनि राजाकेँ इ कहिकेँ भरकावे लगलाह जे ‘खण्ड’ अपनाकेँ राजा बुझि रहल छथि आ तदनुसार काज कऽ रहल छथि। खण्ड एहि सबसँ तंग आबि वैशाली (जे कि गणराज्य छल) चल गेलाह जाहिठाम लिच्छवी लोकनि हुनक स्वागत केलथिन्ह।
एहि सबसँ स्पष्ट होइत अछि जे वैशाली विदेहसँ पूर्वहि गणराज्य भऽ चुकल होएत।
vii.) वज्जी गणराज्यक राजनैतिक सम्बन्ध:- इ. पू. छठी शताब्दीक १६ महाजनपदमे वज्जीक विवरणकेँ सम्मिलित करब एहि बातक द्योतक थिक जे ताहि काल तक एकर राजनैतिक प्रतिष्ठा स्थापित भऽ चुकल छल। अंगुत्तर निकायमे सेहो एकर विवरण अछि। वज्जीसंघक स्थापना ताहि दिनमे भेल छल जखन ने तँ काशीपर कोशलक अधिकार भेल छल आ ने अंगपर मगधक। वज्जीसंघ आ बिम्बिसारक राज्यक सीमा मिलैत–जुलैत छल। दुनूक बीच युद्ध भेल छल तकरो उल्लेख यदा कदा भेटइत अछि। दुनूक बीच युद्धक कारण कि छल से कहब असंभव अछि। संभव अछि जे मगध जखन अंगपर आक्रमण केलक तखन मगधक नजरि अंगक उत्तरी भाग अंगुतरापपर सेहो छलैक। अंगुतरापक सीमा वज्जीसंघक सीमासँ मिलैत–जुलैत छलैक आ तै वज्जीसंघकेँ सतर्क रहब आवश्यक छलैक। एहि अंगुतराप प्रश्न लऽ कए दुनूक बीच मतभेदक संभावना भऽ सकैत छैक। अंगुतराप एक महत्वपूर्ण जनपद छल आ बौद्ध धर्मक केन्द्र सेहो। एहिठाम बुद्ध कैक बेर गेल छलाह आ आपण ग्राममे एकाध मास रहलो छलाह। अंग जीतलाक बाद बिम्बिसार अंगुतरापपर अपन आधिपत्य स्थापित करए चाहैत हेताह जकर विरोध करब वैशालीक हेतु स्वाभाविक छल। एहि क्रममे जे संघर्ष भेल होएत ताहिमे संभवतः लिच्छवी लोकनि अंगुतराप क्षेत्रपर अधिकार कऽ लेने हेताह जे बिम्बिसार मानबा लेल तैयार नहि भेल हेताह आ एहि कारणे दुनूमे युद्ध भेल हेतन्हि। झगड़ाक एकटा आओर कारण अम्बपाली सेहो छल। बिम्बिसार चुपेचाप वैशालीमे आबिकेँ एकाध सप्ताह रहल छलाह आ अम्बपालीसँ बिम्बिसारकेँ एकटा पुत्रो छलन्हि जकर नाम छल अभय। संघर्षक चाहे जे कारण अथवा स्वरूप रहल हो परञ्च अंतमे जा कए वैशालीक संग बिम्बिसार वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित केलन्हि आ एकर फलस्वरूप दुनू राज्यक बीच युद्धक अंत भेल। तखनसँ मगधक संग वैशालीक सम्बन्ध अजातशत्रुक आक्रमणक समय धरि ठीके रहल।
मल्ल आ लिच्छवीक बीचक सम्बन्ध सेहो बढ़िया छल। दुनूक ओतए गणराज्यक व्यवस्था छल आ दुनूकेँ जैन आ बौद्ध धर्मक प्रति आस्था छलन्हि। मनु दुनूक वर्णन व्रात्य कहिकेँ केने छथि। अजातशत्रुक आक्रमणक समयमे दुनू सम्मिलित रूपें हिनक विरोध कएने छलाह। महावीरक मृत्युक अवसरपर सेहो ओ लोकनि सम्मिलित रुपें काज कएने छलाह। कोशल राजाक सेनापति बन्धुल मल्ल रहथिन। कोशल राज्यक संग सेहो लिच्छवी लोकनिक सम्बन्ध बढ़िये छलन्हि। लिच्छवी महाली आ राजकुमार प्रसेनजित तक्षशिलामे संगे पढ़ैत छलाह। दुनूमे खूब दोस्ती छलन्हि। वत्सक संग सेहो वैशालीक वैवाहिक सम्बन्ध छल। वत्सराज सतानिकक विवाह चेतकक पुत्री मृगावतीसँ भेल छल। उद्यन ओहि दुआरे वैदेही पुत्र कहबैत छथि।

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