मिथिलाक संस्कृति
मिथिला एकटा भौगोलिक इकाई रहल अछि अति प्राचीन काल सँ। यजुर्वेदक समय सँ ‘मैथिल’ शब्द एकटा संस्कृतिक परिचायक छल आ मिथिलाक भौगोलिक इकाईक अन्तर्गत जे कियो रहैत छलाह से ‘मैथिल’ कहबैत छलाह। मैथिल संस्कृतिक विकास कालक्रमेण होईत गेलैक आ ‘मैथिलत्व’ जे अपन एकटा व्यक्तित्व छैक तकर पूर्णोत्कर्ष विद्यापति के समय में आबि क भेल।
प्राचीनक कालक मिथिक संतान के माथव कहल गेल आ ओहि सँ मैथिल के आविर्भाव भेल। शतपथ ब्राह्मणक निर्माण मैथिलक हाथे भेल आ याज्ञवल्क्य केँ एकर श्रेय देल जाईत छन्हि – “याज्ञवल्क्योहि मैथिल:”। ब्राह्मण युग में विदेहक राज्यसभा में याज्ञवल्क्यक सभापतित्व में वेदमहर्षिगण गूढ़ धर्मतत्वक निर्णय करैत छलाह। मिथिला के न्यायशास्त्रक उद्गमस्थल मानल गेल अछि आ परम्परानुसार गौतम एवं कणाद केँ मैथिल मानल गेल छन्हि। मिथिला में राजर्षिविद्या, सिद्धविद्या, राजविद्या एवं आर्षविद्याकेँ क्रमश: विज्ञान, ज्ञान, एश्वर्य, एवं धार्मिक नाम सँ सम्बोधित कयल गेल अछि। मिथिला में बुद्धियोगक प्राधान्य रहल अछि। विद्याकेँ मिथिलाक वैभव मानल गेल अछि।
उपनिषद् काल में मिथिला विदेहक नामे ज्ञात छल। वृहदारण्यक मे जनककेँविदेहक राजा कहल गेल छन्हि। विद्या आ दानक हेतु ओ प्रसिद्ध छलाह। अपन समकक्षीय मध्य ओ अद्वितीय छलाह। भौतिक दृष्टिकोण सँ सेहो विदेह एकटा सुसम्पन्न राज्य छल आ एहिठाम आध्यात्मिक एवं विद्वतपूर्ण विकासक संभावना विशेष छल। जनक बहुदक्षिणा यज्ञ कयने छलाह जाहिमे दूर-दूर देशसँ ब्राह्मण लोकनि के आमंत्रित कयल गेल छलन्हि आ ओहिठाम कुरु-पाँचालक ब्राह्मण सेहो आयल छलाह। जनक राजसभा में याज्ञवल्क्य विद्वान छलाह जे बेरा-बेरी सबकेँ पराजित कयलाह। याज्ञवल्क्यक दू टा पत्नी छलथिन्ह मैत्रेयी आ कात्यायनी। विदेहक लोक विशेष विद्याप्रेमी होईत छलाह। स्त्री शिक्षा सेहो प्रचलित छल एहिठाम। मैत्रेयी विदुषी छलीह। गार्गीक विद्वताक प्रशंसा त वृहदारण्यक मे अछिए। गार्गी याज्ञवल्क्यक संग विवाद में भाग लेने छलीह। याज्ञवल्क्य स्मृति में कहल गेल अछि –
“मिथिलास्थ: सयोगीन्द्र: क्षणंध्यात्वा व्र्रवीन्मुनीन्”
जनक वंशक आगाक राजा सब योगीश्वर याज्ञवल्क्यक प्रसादे ब्रह्मज्ञानी होईत रहलाह।
“एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्या विशारद:
योगीश्वर प्रसादेन द्वन्यैमुक्ता गृहेष्वपि”
व्यासक पुत्र सुकदेवजी मिथिले में ब्रह्मविद्याक शिक्षा प्राप्त कयने छलाह।