ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण

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ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण (उत्तरप्रदेश में एक मैथिल बस्ती)

यह बहुत कम लोग जानते है की उत्तर प्रदेश में रहने बाले मैथिल ब्राहमणों का इतिहास इतना महान है की इन्होने आर्यावर्त में ज्ञान, आध्यात्म व सनातन धर्म को बनाये रखने के लिए कितने महान वलिदान दिए| और हमारे पूर्वजों का इतिहास स-अक्षर मौजूद है | यहाँ तक की हमारी वंश वृक्ष को आजा तक वे लोग सुरक्षित रखे हैं जिन्हें हम जानते ही नहीं और इस काम के लिए उन्होंने हमसे कुछ माँगा भी नहीं| सिर्फ हमारे विकाश व उन्नति के लिए एक पंजी व्यवस्था लागू की ताकि हमारी पीड़ियाँ सुरक्षित रहे बिना रोग और कष्ट के वे निश्वार्थ ही मैथिल ब्राह्मण कुल के लिए इतना त्याग करते रहे | जबकि आज न राज्य है न राजा ही| फिर भी वो इसे आगे बड़ा रहे है |

इतना ज्ञान इतना वलिदान इतना त्याग एक श्रेष्ठ सच्चा ब्राह्मण और कट्टर सनातनी ही कर सकता है| जिसे अपने परिवार समाज को बचाने और ऊपर उठाने की चाह हो|
जब मैं आज के समाज में मैथिल ब्राह्मणों की स्थिति उन इलाको में देखता हूँ जहाँ मैं जन्मा हूँ तो रोम रोम कांप उठता है चाहता हूँ की मैं इस दलदल से निकल जाऊं पर अकेला निकल कर क्या करू गा| जानवर तो हूँ नहीं सोचने समझाने वाला उस परमपिता की संतान हूँ, जिसे कुछ बदलने की चाह है| यहाँ की स्थिति के जिम्मेदार यहाँ के मैथिल ब्राह्मण परिवार स्वयं है यहाँ अपनी स्थिति को संवारने के लिए किसी तरह का वलिदान भाव नहीं है इनके अंदर और न ही आपस में एकता और प्रेम है| इसका मूल कारण अशिक्षा है| क्षिक्षा का स्टार निम्न होने के कारण और जीविका का कोई उचित साधन न होने के कारण लोगो के पास समय और जागरूकता का अभाव है| ये नहीं जानना चाहते की एक ब्राह्मण का जीवन क्या है और इनके पूर्वजो का स्तर क्या था| आज अगर कोई मैथिल भाई इनके सामने जागरूकता दिखाता है तो इन्हें वो जाती विरोधी नजर आने लगता है वजाय उसका साथ देने के उससे दूर होने लगते है |
क्योकि वो इन्हें इनकी पहचान बताता है जिसे ये जानना नहीं चाहते|
वर्षों से अन्य जातियों में रहते रहते इनका स्वभाव भी वही हो गया है ये भूल गए है की इनके पूर्वज ये नहीं थे | पूर्वजो ने कार्य ये किया था पर स्वाभिमान नहीं गिराया था आज बात स्वाभिमान की आगे है तो मै चाहता हूँ की हर मैथिल भाई जाने की उसका स्तर क्या है और अपने स्वाभिमान को समझाने की कोशिश करे| हमारे पूर्वज श्रेष्ठ ब्राहमण थे क्या इसे कहना पाप है अगर नहीं तो क्या खुद को ब्राहमण स्तर पर रखना कठिन है|
आइये कुछ सवालों के उत्तर ढूंढे————

१.मिथिला क्या है?
२.मैथिल क्या है मैथिल ब्राह्मण क्या है?
३.हम यहाँ कैसे रहने आगये?
४.क्यों कोई न कोई हमारे समाज का ब्राह्मणों में घुसना चाहता है?
५.क्यों हम सभी एक उपनाम का प्रयोग नहीं करते?
६.जब हम अपनी कन्या या पुत्र का विवाह करते है तो मूल ग्राम खेडा क्यों पूछते है?
७.क्या है मूल ग्राम और खेडा?
शायद मेरे प्रयत्नं से आप कुछ प्रश्नो के उत्तर जान पाये| पता नहीं कब हर एक मैथिल ब्राह्मण जान पायेगा की असलियत में वह भेड़ों के साथ रहते रहते अपनी असलियत भूल गया है| काश ये सच न होता और हम जैसी जिंदगी जी रहे हैं हमेसा जीते रहते| इसतरह का बदलाब हर एक को नहीं चाहिए होता इंसानों में एक गुण “संतोषम परम सुखं” का होता है जिस का अर्थ लोग नाकारा होकर पूरा कर लेते है| व्यक्ति की जो स्थिति होती है वह उस स्थिति को ख़त्म होने के डर से उसमे कोई फेरबदल नहीं करना चाहता और स्थिति उससे भी गिरती जाती है| जरा से लालच अज्ञान और अज्ञानियों के बहकावे के कारण खुद को पहचानने से ही मुकर जाते है| कितनी अजीब बात है की आज उत्तरप्रदेश में रहने बाले हजारों मैथिल ब्राह्मण अपनी पहचान नहीं जानते है; और इनकी ही उन्नति के लिए बनाई गई “अखिल भारतीय मैथिल ब्राह्मण सभा” इन्हे पहचानती भी नहीं |
सोचिये क्या कारन हो सकता है ‍‌क्या बजह है की कोई अपनी पहचान छिपाए गा?
क्या कारण है की पहचान धुंधली हो गई है समाज का इतना बड़ा हिस्सा इतना बुद्दजीवी व्यक्तित्व खुद को कैसे भूल गया | अजीव है न आइये कुछ कारण जानने की कोशिश करे और एक पहल करें खुद को जानने की………………

हमारा प्रणाम हमारे सभी मैथिल ब्राह्मण भाइयो को………………………….

क्या आप जानते है आप को मैथिल ब्राह्मण क्यों कहा जाता है – हाँ जानते होंगे; नहीं जानते होंगे तो हम बताये देते है |भारत वर्ष में वैदिक मान्यता हे
के अनुशार व कई स्म्रतियो, पुरानो में ब्राह्मणों का विभाजन पूर्व काल में दो भागो में हुआ था|

गौड़द्रविड़भेदेन तयोर्भेदा दश स्म्रता: ]]
विन्शोत्तरशतम विप्रा दिगभेदश्च ततो भवनं ]]

द्रविड़ व गौड़ हुए व इनके बाद इन दोनों के 5-5 भेद हुए ;
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः, गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे || सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः, पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासि ||
विंध्याचलपर्वत के उत्तरी ओर गौड़ ब्राह्मणों को रखा गया जिनके पञ्च भेद ………..
सारस्वत पंजाब की ओर कान्यकुब्ज कन्नौज, गौड़ देश अयोद्ध्या, दिल्ली, तक. बंगाल व बिहार तक ,मैथिल देश तिरहुत (मिथिला) कौशिकी से गण्डकी नदी पर्यंत है’ तथा उत्कल उड़ीसा देश जो विन्द्याचल के उत्तर में लगा है, ये पञ्च गौड़ देश उन्हीं के नाम से है|

ब्राह्मण का स्वभाव:-
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च | ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है। यहाँ ब्राह्मण को क्रियासे बताया है। ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है। केवल ब्राहमण के यहाँ पैदा होने से वह नाममात्र का ब्राहमण होता है व शूद्र के समान ब्राहमणयोग्य कृत्यों से वंचित होता है, उपनयन-संस्कार के बाद ही पूरी तरह ब्राहमण बन कर ब्राहमणयोग्य कृत्यों का अधिकारी होता है।
ब्राह्मण के कर्त्तव्य:-
निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं|
अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा |, दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||
शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना ब्राह्मण के कर्त्तव्य हैं |
ब्राह्मण का व्यवहार:-

ब्राह्मण
ब्राह्मण सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हैं जैसे वेदों का आज्ञापालन, यह विश्वास कि मोक्ष तथा अन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं, यह कि ईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतु अनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं जिनका कारण है हमारे अनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताए | ब्राह्मण सर्वेजनासुखिनो भवन्तु ( सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों ) एवम् वसुधैव कुटुम्बकम ( सारी वसुधा एक परिवार है ) में विश्वास रखते हैं | सामान्यत: ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं (बंगाली, उडिया तथा कुछ अन्य ब्राह्मण तथा कश्मीरी पन्डित इसके अपवाद हैं) |
दिनचर्या:-
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं | यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है | धर्माचरण में मुख्यतया है यज्ञ करना | दिनचर्या इस प्रकार है – स्नान, सन्ध्यावन्दनम् , जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र | अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं | ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं | अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध |
देखें : नित्य कर्म तथा काम्य कर्म
संस्कार:-
ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं | जन्म से पूर्व गर्भधारण, पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना ), सिमन्तोणणयन ( गर्भिणी स्ज्ञी का केश-मुण्डन ) | बाल्यकाल में जातकर्म ( जन्मानुष्ठान ), नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्रासन, चूडकर्ण, कर्णवेध | बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ, उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत्, वेदारम्भ, केशान्त अथवा गोदान, तथा समवर्तनम् या स्नान ( शिक्षा-काल का अन्त ) | वयस्क होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं |

सम्प्रदाय:-
दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं – स्मर्त सम्प्रदाय, श्रीवैष्णव सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय |
ब्राह्मणों की उपजातियां:-
ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में त्यागी, अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्य प्रदेश में बाजपेयी, बिहार व बंगाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में अनाविल, महाराष्ट्र में चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव तथा उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि बिहार में व मध्य उत्तर भारत में मैथिल ब्राह्मण |
मूलतः आज ब्राह्मण जाती का निर्धारण प्राचीन काल की तरह ज्ञान या गुण मात्र से नहीं रह गया है वरन आज इस का निर्धारण जन्म के कुल और कुल के गुणों व कार्यों से होता है| उनके संस्कार और सामजिक स्थिति ही जाती निर्धारण का तरीका है| मनु के आधार पर सिर्फ कर्म ही जाती निर्धारण करते थे पर आधुनिक समाज में जन्म के कुल से निर्धारण होता है| हम्मरा उद्देश्य जातिवाद को बढ़ावा देना नहीं है मुख्यतः कुल और वंश के संस्कारों को व आने वाली पीडीयों को शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनाना है|

मैथिल ब्राह्मण :-
मैथिल राज्य की स्थापना राजा मिथि ने की थी जो प्रथम जनक के विदेह पुत्र थे इसी कारण इन्हें विदेह कहा गया और इनके द्वारा बसी नगरी को मिथिला कहा गया ये न्याय मीमांसा के रचयिता गौतम ऋषि के समकालीन थे| व इनके राज्य में वसिष्ठ तथा भरद्वाज ,संदिल्य जैसे योगी और ज्ञानी मौजूद थे|
इस मिथिला का वर्णन सबसे विस्तार में वाल्मिक रामायण में मिलाता है. इसके बाद महाभारत में भी बलभद्र का प्रवास स्थान के रूप में व कृष्ण तथा पांडवों के पर्यटन व प्रवास में वर्णन है. और इसके बाद यहाँ के हजारो ग्रन्थ स्म्रतियो में है|
मिथिला राज्य में हमेसा से ज्ञानियों का भंडार रहा यहाँ बौद्ध और जैन धर्म का भी उदय हुआ तथा शास्त्र चर्चा का सदैव ये देव भूमि केंद्र रही.यहाँ भारतीय छ: दर्शनों में से चार लिखे गए जब तक मुस्लिम शासन नहीं आया तबतक यहाँ शिक्षा और पर्यटन का केन्द्र था| आज जिसे हम नेपाल बिहार बंगाल में बाँटते है यहाँ कभी मैथिलो का राज्य था यहाँ के राजा हमेशा ब्राह्मण ही रहे जो मैथिलि थे | ये क्षेत्र हमेशा ज्ञान से गुणों से और धार्मिकता से संपन्न रहा| आज भी अगर हम इतिहास देखे तो महान ज्ञानी और राजा यही से हुए|
ऐसे राज्य को देश को कोई क्यों त्याग देगा| पर कभी कभी अपने धर्म और अपनो की रक्षा हेतु स्वर्ग का भी त्याग देवताओं ने किया है|हमें खुद पर गर्व होना चाहिए की हम ऐसे पूर्वजो की संतान है | जिन्होंने जीवन और राज्य का मोह नहीं किया और ज्ञान व धर्म की खातिर वलिदान दिए| आज जब मैं यहाँ उत्तरप्रदेश के मध्य क्षेत्र में देखता हूँ तो पाताहूँ की यहाँ का मैथिल खुद को विश्वकर्मा सम्प्रदाय या अन्य यहाँ की मूल जातियों में अपनी गिनती कराता है | जबकि वह जानता है कि उसके पूर्वज मिथिला राज्य से आकार यहाँ बसे है कोईकोई तो मैथिल अपना गोत्र कहता है | इससे मैं एक बात तो समझ गया की इन्हे मैथिल शव्द तो पता है पर इसका विस्तार नहीं मालूम है|
या कहे इन्होने जानने की कोशिश नहीं की और क्यों करे खुद को जो संतुष्ट कर लिया है | अब इन्हे इसकी आवश्यकता या पहचान की क्या चाह| मैनपुरी , फर्रुखाबाद’, कन्नौज आदि जिलों में हमने पाया की कई शिक्षित मैथिल ब्राह्मण जो जानगये थे की वो मैथिल है या जिन्हों ने मिथिला वाशियों से ज़रा भी संपर्क रखा उनका परिवार आज पूरीतरह ब्राह्मण परिवार है| उन्होंने अपने आप को एक नया रास्ता दिखाया और समाज के उस वर्ग के साथ हो गए जो वर्ग हमेशा से ज्ञान का देवता कहा गया जिससे उनके परिवारों में संस्कार और ज्ञान की इच्छा जागे और खुद भी उत्तरप्रदेश के मैथिल ब्राह्मणों समाज के आदर्श बन गए| पर ये तो सिर्फ ५% ही है |वाकी तो अनजान है खुद से | हम आप सभी को आप का कार्य बदलने की राय नहीं दे रहा न ही आप को मैथिल ब्राह्मण बनाने को कह रहा हूँ| क्यों की ऐसा करने से आप को कही मैं पागल न लगाने लागू| पर मैं चाहता हूँ अगर आप खुदको मैथिल समझते है तो आप अपना स्थान समझे और उस स्थान पर जो उचित कार्य व्यवहार समाज में अपना स्थान पाने के लिए करना हो वह कार्य ही करे | अपने व् अपने परिवारी जानो के संस्कार व विचारों में बदलाव करे बस आप भी एक मैथिल ब्राह्मण के सपूत बनजाये गे|

मैथिल ब्राह्मणों का व्रज में आगमन

सन १३८१-८२ में बंगाल और बिहार में गयासुद्दीन तुगलक का शासन था| उस समय मिथिला के राजा का नाम हरिसिंह देव ठाकुर था | वे बहुत ज्ञानवान धार्मिक राजा थे| वे विद्वानों का सम्मान करते थे तथा ज्ञान विज्ञान में लगे ब्राह्मणों की वृत्ति की व्यबस्था भी राजदरवारसे ही होती थी| जिसे मिथिलांचल विद्वानो का क्षेत्र समझा जाता था|
मिथिला पर गयासुद्दीन का हमला हो गया बंगाल विजय के बाद उसने राजा हरिसिंह देव जी को हरा दिया और मिथिला को अधीन कर लिया| इन शांतिप्रिय ज्ञान विज्ञान के शोध में लगे विप्र जनों को लगा यह मुस्लिम शासक उनकी जो जीविका राज खजाने से चलती थी जिसे ये बंद ही कर देगा साथ ही यह हमें धर्म कर्म से भी बंच्चित कर कर देगा| इस भय से ९ गोत्रों के ७५ मैथिल ब्राह्मण तीर्थ के बहाने बिहार से निकल आये जो अपने विषयों में पारंगत थे| तीन वर्षों ताका भटकने के बाद ये सभी मथुरा जिला के राया के पास विसौली (विश्वावली) नामक गांव में बस गए|
पुनः पलायन की घटना १५५६-५७ में हुई जब सम्राट अकबर पटना में रुके और उन्होंने एक धर्म सम्मलेन कराया| जिसमे मिथिलांचल के महान विद्वानों ने भाग लिया उनमे से तीन विद्वानों को बादाशाह ने पुरस्कृत किया और अपने आगरा साथ लाये| ये तीन ब्राहमण १.पंडित रघुनन्दन झा २.पंडित जीवननाथ झा ३.पंडित शिवराम झा थे| इनके अलावा टोडरमल जी के साथ ७१ विद्वान ब्राह्मण और आये| जिसे मिथिला का सामूहिक पलायन कहा जाता है| इनमे धर्म शास्त्र, नीति शास्त्र, दर्शन, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष, तंत्र, संगीत, वैध, आदि के महाँ विद्वान थे| अकबर बशाह बहुत विद्वान तो नहीं था पर विद्वानों का बहुत आदर करता था| वह हिन्दू मुसलमानों में किसी तरह का भेद नहीं करता था| वह हिन्दू देवी देवताओं के आदर के साथ साथ संत महात्माओं का सत्संग भी नित्य प्रति करता था| उसके दरवार में निम्न विद्वानों को नवरत्न कहाजाता था- १.अब्दुल फजल (फैजी) २.टोडरमल ३.बीरवल ४.तानसेन ५.रघुनन्दन झा ६. देवी मिश्र ७.पुरषोत्तम झा ८. जीवनाथ झा ९.शिवराम झा

अकबर और शाहजहां के समय तक ये ब्राह्मण बड़े ही सुख से आगरा दरवार में रहे | औरग्जेब की कट्टरता और मृत्यु भय से धर्म न छोडने के कारण आगरा दरवार छोड़ना पड़ा और व्रज के जंगलों में अपने पूर्व मैथिलि भाइयों के साथ सरण ली| इसी व्रज क्षेत्र में रहने के कारन इन ब्राह्मणों को व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण बोला जाने लगा| जब सभी मैथिल ब्राह्मणों का जीवन और गहरे संकट से घिर गया तो उन्होंने सारस्वत, सनाद्य, और गौड़ ब्राहमणों के आस्पद को प्रयोग किया जो शर्मा,मिश्र,उपाद्याय,पाठक थे| पर अधिकतर ब्राहमण शर्मा ही लिखते थे जो की व्रज में ब्राह्मणों के लिए प्रचलित था| और जंगलो में लकड़ी के कार्यों को करने लगे तब म्रत्यु के भय से ये कार्य प्रारम्भ किया था धीरे धीरे ग्रामीण मैथिलो का ये जीविका साधन हो गया तदुपरांत औरंगजेब को जंगलो से खबर आई की आगरा राज महल से निकले मैथिल जंगलों में है तो उसने इन्हें दण्डित करने के लिए यहाँ सिपाही भेजे जिनका यहाँ गोकुला जो यादवों का सरदार था से युद्ध हुआ और वो मारे गए उसके बाद मैथिल ब्राहमण व्रज के खेडाओं(गाँवों) को छोड़ जीविकोपार्जन के लिए उत्तरप्रदेश के अन्य जिलों में पलायन किया जहां उनकी गिनती यहाँ के मूल निवाशियो विश्वकर्मा समुदाय से की जाने लगी| क्यों की वहाँ का शर्मा आस्पद आज भी ब्राह्मणोंके लिए प्रयोग होता है परन्तु यहाँ मूल विस्वकर्मा भी इस आस्पद का प्रयोग करते थे दुर्भाग्यवश पुरोहित कान कार्य न मिलाने से संकट और गहरा गया और जो लकड़ी का कार्य था वही करते रहे| जिस कारण इनके अंदर हीनता आगई औरस्थिति वद से वत्तर हो गई| किन्तु जो शिक्षित थे उन्होंने अपने पंजिकारों से सम्बन्ध रखा और एकजुट रहे और विवाह सम्बन्ध आदि में जागरूक रहे गोत्रादी का ख़याल रखा जिस कारण आज हमारी खुद की पहचान बनी हुई है| आज व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण उत्तरप्रदेश हरियाणा दिल्ली राजस्थान मध्यप्रदेश में बसे हुए है | मूलतः उत्तरप्रदेश के पश्चिमी एवं मध्य जिलों में व्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण बसे है|

उत्तरप्रदेश के मैथिल ब्राहमणों को व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण कहा जाता है| इनमे बिहार का जिला, मूल ग्राम, बीजीपुरुष, गोत्र, खेडा गोत्र, खेडा, आदि से पहचान होती है| इन सबका विवाह आदि संबंधो में खास ध्यान रखाजाता है|

उत्तरप्रदेश में मैथिलि ब्राह्मणों की जानकारी अनेक पुस्तकों में मिलाती है जिनमे से मुख्य-

दी जरनल ऑफ दी बिहार रिसर्च-श्री एस.बी.साहनी
स्मारिका पत्रिका-अखिलभारती मिथिला संघ दिल्ली
औरंगजेब नामा- राय मुंशी प्रसाद जी
प्रवास दर्पण –पंडित जगन्नाथ जी मिश्र
आईने अकबरी –अबुल फैजी
अकबरनामा –अबुल फैजी
व्रज में मैथिल ब्राह्मण- रघुवीर सहाय शर्मा
हमारे प्रवास का इतिहास –डॉ. फूलबीहारी शर्मा
मिथिलाक इतिहास –डॉ. उपेन्द्र ठाकुर
हमारा प्रवास – पंडित रामचंद्र मिश्र (चन्द्र)
ब्रह्म वंश दर्पण –पंडित कोमल प्रसाद शर्मा
ब्रह्म वंश विस्तार –पंडित सहजानंद सरस्वती

हमारे पंजीकार –
पंडित त्रिवेनिकांत झा-बेनीपट्टी मधुबनी बिहार
विद्यानन्दं झा –दरभंगा बिहार
राधेश्याम मिश्र –मुरैना मध्यप्रदेश

इन सभी पंजिकारो के पास १९७२ तक के वंश का विस्तार उपलब्ध है| सभी ने बड़ी कठिनाई और त्याग से ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणों को एकजुट रखने का प्रयाश किया है|
सन २००२ में मिथिलांचल के दो विद्वान पं. देवचंद मिश्र तथा पं. गोविन्द मिश्र सौराठ सभा पयोखरोनी जिला मधुबनी राज दरभंगा ने व्रज क्षेत्र में अपने भूले भटके भाइयों की खोज की | इस कार्य में जगतगुरु श्री राधेश्यामशरण देवाचार्य जी महाराज (जिनका आश्रम मिथिला कुञ्ज वृन्दावन में है) के सहयोग से नै पंजी बनाई |

साभार—————–ब्रह्म वंश दर्पण – पं. कोमलप्रसाद शर्मा
ब्राह्मण गोत्रावली-पं. इन्द्रमणि पाठक
पं० गजेन्द्र ठाकुर

आज किसी भी जाती वर्ग की शुद्धता या गोत्रादी की शुद्धता बनाए रखना बड़ा ही मुस्किलसा हो गया है| फिर भी कोशिश करने में क्या जाता है| हमारा मानना जाती वर्ग को महत्त्व देना नहीं वल्कि अपनी आने बाली पीडियों को शारीरिक और मानसिक रूप से पुष्ट बनाना मात्र है | पीडियों को वैदिक रूप से आगे का निर्माण कराना है|

गोत्र

सगोत्री विवाह हमारे भारतीय समाज में निषिद्ध माना जाता है।गोत्र शब्द का प्रयोग हमारे ग्रंथों में कहीं दिखाई नहीं देता । सपिण्ड के विवाह निषिद्ध के बारे में ऋग्वेद के दसवें मण्डल के दसवें सूक्ति में यम यमी जुड़वां भाई बहन के संवाद के रूप में आख्यान द्वारा उपदेश मिलता है।
यमी ने अपने सगे भाई यम से संतान उत्पन्न करने की प्रबल इच्छा प्रकट की परन्तु यम ने इसे अच्छी तरह सपिण्ड को समझाया है की- ऐसा विवाह प्रकृति के विरुद्ध होता है। और जो इस प्रकार से संतान उत्तपन्न करते है वे घोर पाप करते है।
सलक्षमा यद् विपुरुषा भवति” ऋ.0 10/10/2
सलक्षमा सदोहर बहन से पीड़ाप्रद संतान उत्पन्न होने की आशंका होती है।
“पापमा हुर्याः सस्वारं निगच्छात” ऋ0 10/10/12
जो अपने सगे भाई बहन से संतान उत्पन्न करते है वे भद्र जनों से पापी कहलाये जाते है।
इस विषय पर स्पष्ट जानकारी पाणिन कालीन भारत से भी मिलाती है।
अष्टाध्यायी के अनुशार-“अपत्यं पौत्र प्रभृति पद गोत्रं”
एक पुरखा के पोते,पड पोते आदि जीतनी संतांने होंगी एक गोत्र की कहलाई जाए गी।
यहाँ सपिण्ड का उद्दरण करना आवश्यक है-
यहाँ सपिण्ड का उद्दरण करना आवश्यक है।
स्पिन्ड़ता तू पुरुषे सप्तामें विनिर्तते।।
समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरर्वेदत ।। मनु 5/60
सगापन तो पांचवीं पीड़ी में समाप्त हो जाता है और घनिष्ट पन जन्म और नाम न याद होने पर टूट जाता है।परन्तु सपिण्डता सातवीं पीडी तक नहीं कतम होती।
आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक के आधार पर अतः प्रजनन से उत्पन्न विकारो की संम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई यानि एक से कम सातवी पीढ़ी तक जाकर ही होता है।
गणित के सूत्र के अनुसार
अं न्तः प्रजनन विकार गुणांक
= 0.5 है तो प्रथम n पीढ़ी में ये
(.5)1×100=50% होगा
छटवीं पीड़ी में
=(.5)6×100=1.58% होगा
तथा संतावीं पीडी में ये
::- (.5)7×100=0.78% होगा
अर्थात एक प्रतिशत से भी कम अनुवांशिकी रोग आदि होने की संभावना हो जाती है|
इस कारण हमारे वैदिक ऋषियों ने सातवी पीड़ी तक जानकारी रखना जरूरी माना था।
मतलब साफ़ है की सगोत्री विवाह या सपिण्डी विवाह में मिले विकार या अनुवांशिक रोग सातवीं पीड़ी के बाद ही संभावित रूप से ख़त्म हो सकता है। यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है। जिससे हमारे ऋषियों ने सपिण्ड विवाह निषेध करके बताया था।
सगोत्र विवाह से भी अनेक हानियाँ होती है-
सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग,अल्पायु,किन्नर,दो अंग,कम बुद्धि, रोगनिरोधक क्षमता की कमी, अपंगता ,विकलांगता, आदि अन्य सामान्य विकार उत्पन्न हो जाते है। भारतीय समाज में सगोत्र विवाह न होने का एक यह भी परिणाम है- की सम्पूर्ण विश्व में भारतीय सबसे अधिक बुद्धिमान मने जाते है। और विश्व गुरु कहलाता है।
सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर में एक अत्यंत आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है। पुरानी सभ्यता चीन कोरिया इत्यादि में भी गोत्र व सपिण्ड विवाह अमान्य है।
माना जाता है मूल पुरुष ब्रह्मा के चार पुत्र हुए भृगु’, अंगीरा,मारीच, व अत्रि। भृगु के कुल में जमदाग्नि,अंगीरा, के गौतम और भारद्वाज , मारीच के कश्यप , वशिष्ठ एवं अत्रि के विश्वामित्र हुए।
इस प्रकार जमदाग्नि , गौतम, भारद्वाज, कश्यप, वसिष्ठ, अगस्त, और विश्वामित्र ये सात ऋषि आगे चलकर गोत्र कर्ता या वंश चलाने बाले हुए।इस प्रकार के विवरण से पता चलता है की अत्रि के विश्वामित्र के साथ एक और वंश चला बताते है।
अपने नाम के साथ गुरु शिष्य परम्परा ,पिता पुत्र परम्परा आदि अपने नगर क्षेत्र व्यवसाय समुदाय बताने की प्रथा चली।
परन्तु वैवाहिक सम्बन्ध के लिए सपिण्ड की साबधानी सदैव वांछित रही आधुनिक काल में जनसँख्या वृद्धि से उत्तरोत्तर समाज इतना बड़ा हो गया है। सगोत्र न होने पर भी सपिण्ड होने की संभावना होती है।
इस लिए विवाह सम्बन्ध में आधुनिक काल में अपना गोत्र छोड़ देना आवश्यक नहीं रह गया है। परन्तु सगोत्र होने पर सपिण्ड की परीक्षा आवश्यक हो जाती है। यह इतनी सुगम नहीं होती। सात पीडी के पहले के पूर्वजों की जानकारी सामान्यता नहीं होती ।इसी लिए सगोत्र विवाह को नकारा गया है।
बैसे भारतीय परम्परा में गोत्र और वंश प्रणाली समाज में कोई व्यवधान नहीं डालती पर विवाह सम्बन्ध में इसकी परिक्षा अति आवश्य्क्क है।
आज हमारे समाज में असमय मृत्यु, अनुवांशिक, बीमारियाँ शारीरिक ब्याधियां आदि सपिण्डी विवाह के कारण हो सकती है। विवाह के समय वंश व गोत्र

विवेक शर्मा, फिरोजाबाद
सम्पर्क : 9720291106


43 Comments

  1. ये तो आश्चर्य है कि सभी मैथिल ब्राह्मणों ने लुहार बढई का कार्य अपना लिया। पांडित्य कार्य को कोई जारी नही रख सका।

  2. Thanks wrighting this article on Brijasth maithili Brahmin. Manu peoples who have not know that who are they. They calculate themselves in carpenter and lohar cast because other peoples of society and mainly others Brahmins haven’t know that Brijasth maithili Brahmin are actually Brahmins because other cast carpenter and lohar are mixed in Brijasth maithili Brahmins. Your work is greatfull thanks.

  3. PROUD TO SEE OUR MAITHIL BRAHMIN CONINUE OUR GREAT LEGACY OF YAGYVALK, GRAGI, VISWAMITRA , There should be a forum for renew our marriage relation between maithil living in Durbhanga, Madhubani , Sitamarhi, Jankapur etc. with Brajasth Maithil Brahmans living in UP /MP Rajasthan. Once this will started in few places, it will take momentum. Kindly share the details of reputed Brajasth Maithil Brahman illigible bride and groom so that I could spread the message among our relative living in Mithila
    My well wishes
    Bimal K Jha
    shachidanand1@gmail.com

  4. Name _Mahesh
    Surneme_ don’t know😌
    Address_ Mathura (U.P.)
    Mob no_7520222200
    Team Maithil Munch_please help me to know my surname.

    Thanks.

  5. I praise your work a lot ! I will be in your contact in future and I wish you do something more in this field. I am Krishn Murti Jha from Bihar. My email address is krishnmurti.jha@gmail.com . In near future I will contact you. Once again I praise you and your work.

  6. My name is manoj kumar sharma maithil brahaman my gotr Birthariya my rishi gotr and khera kya hoga

  7. Sir i am “Mathil Brahmin” , my “kuldevi” is “Belon ki mata” . Sir my “kheda” is “Arothiya”. Please sir tell my “Rishi Gotra “.

  8. I need this Book kindly provide it my contact number is 9718205253,both khand.

  9. मेरा सवाल ये है कि मैथिल ब्राह्मणों में इनका एक गोत्र अरोठिया भी होता है क्या❓

  10. मेरा सवाल ये है कि मैथिल ब्राह्मणों में इनका एक गोत्र अरोठिया भी है क्या

  11. Maithil bhramano ne lohar or bhadai ka kaam nhi kiya. Vishwakarma apne ko Maithil bhraman bannte hai jo ki hai nhi wahi lohar or bhadai m ate apko jankari ka abhav hai

  12. अगर कोई मैथिल ब्राह्मण को बढई के नाम से संबोधित करता है तो इसका कानूनी जामा क्या है

  13. Sir
    I am maithil brahmmin living in FARRUKHABAD (UP)
    My panjiyan no 58465.
    can you tel me may kheda gotra?

  14. मैं बहुत विनम्रता से जानना चाहता हूँ कि आप के पूर्वजो ने कभी बढई या लुहार का कार्य किया है या नही।

    1. Wo vishwakarma hai jo bhadai or lohar khati jagid panchal etc hai Maithil bhramano Bhadai nhi hote hai real jankari lijye y jo vishwakarma hai y bhi apne ko Maithil bhraman bolte hai or y hai nhi inhi logo ki wajah se confusion ho hota ata hai starting se hi

  15. अकबर बशाह बहुत विद्वान तो नहीं था पर विद्वानों का बहुत आदर करता था| वह हिन्दू मुसलमानों में किसी तरह का भेद नहीं करता था| वह हिन्दू देवी देवताओं के आदर के साथ साथ संत महात्माओं का सत्संग भी नित्य प्रति करता था| उसके दरवार में निम्न विद्वानों को नवरत्न कहाजाता था- १.अब्दुल फजल (फैजी) २.टोडरमल ३.बीरवल ४.तानसेन ५.रघुनन्दन झा ६. देवी मिश्र ७.पुरषोत्तम झा ८. जीवनाथ झा ९.शिवराम झा

    अकबर और शाहजहां के समय तक ये ब्राह्मण बड़े ही सुख से आगरा दरवार में रहे |
    Jo tumne likha h pahle uske baree jankari prapt Karo Akber ko mahan bata rahe ho to aap apne purvjon ka apman kar rahe ho ki akber mahan tha uske jesa mahan paapi nahi hoga koi pahle Thora sa apni History sudharo
    Contact me At Pandit Nakul Dev Sandilya
    9634601265

  16. What is Rishi name and other details about me.

    District- aligarh
    Block- tappal
    Vill. – Hamidpur
    Gotra- kanwariya.
    No. – 9717389530

  17. Are bhai is lekh m clear likha h ki maithil brahmano ne akar jangalo m lakdi Kam shuru kiya. Lekin yaha ek doubt to h hi ki kaise pehchan kare ki asli maithil Brahmin kon h kyu ki jati to sabhi h badhai bhi h lohar bhi h. Aur sabhi apne aap ko maithil bolte h

  18. We must make a provision for our future generations for obc certificate for maithil Brahmin because we have faced lot of issues by which be become poor and marginalized from other Brahmin . In Delhi maithil Brahmin is added in obc category in point no. 5 anybody can check I have pdf anyone can check it… Now we are making certificate of bhadhai because we were hiding our profession from ancient times but jangid Brahmin are clearly mention in obc why can’t we it will solve all the problem and

  19. History jaan kar accha Laga ,gyaan bhi Bada hai ,is lekh ko pad kar ek Nayi jaankaari Mili ki hum Kal take his andhre mein they uski shuruaat hui hai ek Nayi jaankaari ke Saath thank you sir Prakash Chand Sharma. From Ajmer Rajasthhaan

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