मैथिल ब्राह्मणों का व्रज में आगमन
सन १३८१-८२ में बंगाल और बिहार में गयासुद्दीन तुगलक का शासन था| उस समय मिथिला के राजा का नाम हरिसिंह देव ठाकुर था | वे बहुत ज्ञानवान धार्मिक राजा थे| वे विद्वानों का सम्मान करते थे तथा ज्ञान विज्ञान में लगे ब्राह्मणों की वृत्ति की व्यबस्था भी राजदरवारसे ही होती थी| जिसे मिथिलांचल विद्वानो का क्षेत्र समझा जाता था|
मिथिला पर गयासुद्दीन का हमला हो गया बंगाल विजय के बाद उसने राजा हरिसिंह देव जी को हरा दिया और मिथिला को अधीन कर लिया| इन शांतिप्रिय ज्ञान विज्ञान के शोध में लगे विप्र जनों को लगा यह मुस्लिम शासक उनकी जो जीविका राज खजाने से चलती थी जिसे ये बंद ही कर देगा साथ ही यह हमें धर्म कर्म से भी बंच्चित कर कर देगा| इस भय से ९ गोत्रों के ७५ मैथिल ब्राह्मण तीर्थ के बहाने बिहार से निकल आये जो अपने विषयों में पारंगत थे| तीन वर्षों ताका भटकने के बाद ये सभी मथुरा जिला के राया के पास विसौली (विश्वावली) नामक गांव में बस गए|
पुनः पलायन की घटना १५५६-५७ में हुई जब सम्राट अकबर पटना में रुके और उन्होंने एक धर्म सम्मलेन कराया| जिसमे मिथिलांचल के महान विद्वानों ने भाग लिया उनमे से तीन विद्वानों को बादाशाह ने पुरस्कृत किया और अपने आगरा साथ लाये| ये तीन ब्राहमण १.पंडित रघुनन्दन झा २.पंडित जीवननाथ झा ३.पंडित शिवराम झा थे| इनके अलावा टोडरमल जी के साथ ७१ विद्वान ब्राह्मण और आये| जिसे मिथिला का सामूहिक पलायन कहा जाता है| इनमे धर्म शास्त्र, नीति शास्त्र, दर्शन, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष, तंत्र, संगीत, वैध, आदि के महाँ विद्वान थे| अकबर बशाह बहुत विद्वान तो नहीं था पर विद्वानों का बहुत आदर करता था| वह हिन्दू मुसलमानों में किसी तरह का भेद नहीं करता था| वह हिन्दू देवी देवताओं के आदर के साथ साथ संत महात्माओं का सत्संग भी नित्य प्रति करता था| उसके दरवार में निम्न विद्वानों को नवरत्न कहाजाता था- १.अब्दुल फजल (फैजी) २.टोडरमल ३.बीरवल ४.तानसेन ५.रघुनन्दन झा ६. देवी मिश्र ७.पुरषोत्तम झा ८. जीवनाथ झा ९.शिवराम झा
अकबर और शाहजहां के समय तक ये ब्राह्मण बड़े ही सुख से आगरा दरवार में रहे | औरग्जेब की कट्टरता और मृत्यु भय से धर्म न छोडने के कारण आगरा दरवार छोड़ना पड़ा और व्रज के जंगलों में अपने पूर्व मैथिलि भाइयों के साथ सरण ली| इसी व्रज क्षेत्र में रहने के कारन इन ब्राह्मणों को व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण बोला जाने लगा| जब सभी मैथिल ब्राह्मणों का जीवन और गहरे संकट से घिर गया तो उन्होंने सारस्वत, सनाद्य, और गौड़ ब्राहमणों के आस्पद को प्रयोग किया जो शर्मा,मिश्र,उपाद्याय,पाठक थे| पर अधिकतर ब्राहमण शर्मा ही लिखते थे जो की व्रज में ब्राह्मणों के लिए प्रचलित था| और जंगलो में रहने लगे ओर अपनी जीविका के लिए ओर कार्यो को करने लगे जैसे लोहै इतयादी धीरे धीरे ग्रामीण मैथिलो का यही सब कार्य जीविका का साधन हो गया तदुपरांत औरंगजेब को जंगलो से खबर आई की आगरा राज महल से निकले मैथिल जंगलों में है तो उसने इन्हें दण्डित करने के लिए यहाँ सिपाही भेजे जिनका यहाँ गोकुला जो यादवों का सरदार था से युद्ध हुआ और वो मारे गए उसके बाद मैथिल ब्राहमण व्रज के खेडाओं(गाँवों) को छोड़ जीविकोपार्जन के लिए उत्तरप्रदेश के अन्य जिलों में पलायन किया जहां उनकी गिनती यहाँ के मूल निवाशियो विश्वकर्मा समुदाय से की जाने लगी| क्यों की वहाँ का शर्मा आस्पद आज भी ब्राह्मणोंके लिए प्रयोग होता है परन्तु यहाँ मूल विस्वकर्मा भी इस आस्पद का प्रयोग करते थे दुर्भाग्यवश ओर जो मूल ब्रहमां थे उन जगाहो के उनकी वजाह से कार्य न मिलाने से संकट और गहरा गया और जो भी कार्य मिला उसको कर के अपना जीवन यापन किया था | जब परीस्थितियां अनकुल हुई तब से लेकर आज तक अपनी पहचान ओर वजुद के लिए कोशिस कर रहै है जिस कारण इनके अंदर हीनता आगई औरस्थिति वद से वत्तर हो गई थी | किन्तु जो शिक्षित थे उन्होंने अपने पंजिकारों से सम्बन्ध रखा और एकजुट रहे और विवाह सम्बन्ध आदि में जागरूक रहे गोत्रादी का ख़याल रखा जिस कारण आज हमारी खुद की पहचान बनी हुई है| आज व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण उत्तरप्रदेश हरियाणा दिल्ली राजस्थान मध्यप्रदेश में बसे हुए है | मूलतः उत्तरप्रदेश के पश्चिमी एवं मध्य जिलों में व्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण बसे है|
उत्तरप्रदेश के मैथिल ब्राहमणों को व्रजस्थ मैथिल ब्राहमण कहा जाता है| इनमे बिहार का जिला, मूल ग्राम, बीजीपुरुष, गोत्र, खेडा गोत्र, खेडा, आदि से पहचान होती है| इन सबका विवाह आदि संबंधो में खास ध्यान रखाजाता है|
उत्तरप्रदेश में मैथिलि ब्राह्मणों की जानकारी अनेक पुस्तकों में मिलाती है जिनमे से मुख्य-
दी जरनल ऑफ दी बिहार रिसर्च-श्री एस.बी.साहनी
स्मारिका पत्रिका-अखिलभारती मिथिला संघ दिल्ली
औरंगजेब नामा- राय मुंशी प्रसाद जी
प्रवास दर्पण –पंडित जगन्नाथ जी मिश्र
आईने अकबरी –अबुल फैजी
अकबरनामा –अबुल फैजी
व्रज में मैथिल ब्राह्मण- रघुवीर सहाय शर्मा
हमारे प्रवास का इतिहास –डॉ. फूलबीहारी शर्मा
मिथिलाक इतिहास –डॉ. उपेन्द्र ठाकुर
हमारा प्रवास – पंडित रामचंद्र मिश्र (चन्द्र)
ब्रह्म वंश दर्पण –पंडित कोमल प्रसाद शर्मा
ब्रह्म वंश विस्तार –पंडित सहजानंद सरस्वती
हमारे पंजीकार –
पंडित त्रिवेनिकांत झा-बेनीपट्टी मधुबनी बिहार
विद्यानन्दं झा –दरभंगा बिहार
राधेश्याम मिश्र –मुरैना मध्यप्रदेश
इन सभी पंजिकारो के पास १९७२ तक के वंश का विस्तार उपलब्ध है| सभी ने बड़ी कठिनाई और त्याग से ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणों को एकजुट रखने का प्रयाश किया है|
सन २००२ में मिथिलांचल के दो विद्वान पं. देवचंद मिश्र तथा पं. गोविन्द मिश्र सौराठ सभा पयोखरोनी जिला मधुबनी राज दरभंगा ने व्रज क्षेत्र में अपने भूले भटके भाइयों की खोज की | इस कार्य में जगतगुरु श्री राधेश्यामशरण देवाचार्य जी महाराज (जिनका आश्रम मिथिला कुञ्ज वृन्दावन में है) के सहयोग से नै पंजी बनाई |
साभार—————–ब्रह्म वंश दर्पण – पं. कोमलप्रसाद शर्मा
विवेक शर्मा, फिरोजाबाद
सम्पर्क : 9720291106