महामहोपाध्याय पंडित मुकुन्द झा ‘बख्शी’
जे आन पण्डितक पोथी,से मुकुन्दकेँ थोथी-ई लोकोक्ति जाहि मैथिल व्यक्तित्वक परिचायक थिक,से छलाह महामहोपाध्याय पंडित मुकुन्द झा ‘बख्शी’।
पिता नंदलाल झा ‘बख्शी’ एवं माता योगमाया देवीक एकमात्र संतान करमहा अहपुर मूलक शाण्डिल्य गोत्रीय बख्शीकुलभूषण मुकुन्द महाभागक प्रादुर्भाव फसली साल १२७६आषाढ़ मास, कृष्णपक्ष,दशमी तिथि (करमहाकुलकीर्ति कौमुदी) तदनुसार आङ्गलवर्ष१८६९ईस्वीक उक्त दिन मातामह गृहग्राम रोहाड़ भवानीपुर (दरभंगा)मे भेलनि।जन्मक किछु मासक पश्चात् ओ अपन मायक संग आजुक मधुबनी जिलांतर्गत ढंगाहरिपुर बख्शी टोल स्थित पैतृकगृह आनि लेल गेलाह।हिनक बालरूपक शारीरिक आ’ मानसिक विकास सकारात्मक दिशामे होइत रहल।माता-पिताक छत्रछायामे हिनक शिक्षारम्भ उचित समयसँ भेलनि।बाल्यकालहिसँ ई कुशाग्रबुद्धि-सम्पन्न छलाह।
माय योगमाया देवीक कोरामे संरक्षण पाबि बालक मुकुन्द सात वसंतकेँ देखि चुकल छलाह, माय परलोकवासिनी भऽ गेलथिन।तेँ मातृहीन मुकुन्द मातृक आनि लेल गेलाह। नाना-नानी एहि नातिक भरण-पोषणमे कोनो तरहक त्रुटि नहि होबऽ देलनि।हिनक शिक्षाक उचित बेवस्था भेल।कालक्रमेँ पिता गुरुकुल परम्पराक अनुसार हिनका शिक्षित करबाक निर्णय लेलनि।
ज्ञातव्य अछि जे खण्डवलाकुलक संस्थापक म.म.महेश ठाकुरक शासनकालसँ निरन्तर हिनक पूर्वज लोकनि दड़िभङ्गा राजपरिवारसँ जुड़ल रहलाह।राजक प्रबंधनमे ओ लोकनि सदैव सहभागी रहथि।अनेक पुश्तसँ राजाश्रित रहबाक कारणेँ एहि बालकक शिक्षार्थ दड़िभङ्गा राजपरिवारक अभिरूचि उचिते छल।कुमार गुणेश्वर सिंहक पुत्र सुरेश्वर सिंहक सहयोगसँ हिनक शिक्षाक नवद्वार सृजित भेल।टभका निवासी मीमांसक शिरोमणि म.म.गुरुप्रवर चित्रधर मिश्रक सान्निध्यमे ई पाणिनीय व्याकरण एवं अन्यान्य कतिपय काव्यग्रंथक अध्ययन कयलनि।एही क्रममे पण्डौल निवासी पण्डित प्रवर विश्वनाथ झासँ सेहो व्याकरणादि विषयक ज्ञान प्राप्त कयलनि।प्रारंभिक शिक्षाक उपरांत उच्च शिक्षार्थ ई काशी चल गेलाह।काशीप्रवासमे अध्ययनक हेतु हिनका दड़िभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक आर्थिक सहयोग भेटैत रहलनि। महामहोपाध्याय पंडित जयदेव मिश्रसँ ई जैमिनीय मीमांसादि आस्तिक दर्शनक ज्ञान प्राप्त कयलनि।तत्पश्चात् काशी स्थित क्वीन्स कॉलेजक प्राचार्य म.म. गंगाधर शास्त्रीक सान्निध्यमे विविध शास्त्रादिक अध्ययन कयलनि।हुनकहि मार्गदर्शनमे ई शब्दशास्त्र आ’ सांख्यवेदांतक आचार्य परीक्षोत्तीर्ण भेलाह।गुरुदेवक मार्गदर्शन आ’ वाग्देवी सरस्वतीक असीम अनुकम्पा पाबि पण्डित मुकुन्द झा ‘बख्शी’ सर्वशास्त्र पारंगत भेलाह।
आचार्य उपाधिसँ सम्मानित भेलाक उपरांत पण्डित बख्शीजी अपन गाम हरिपुर बख्शी टोल आबि गेलाह।किछु दिनधरि गामे रहि जीविकोपार्जनार्थ बरेली (उ.प्र.) चल गेलाह।ओतऽ हिनका बरेली स्थित संस्कृत पाठशालामे जैनसाहित्यक आचार्य पदपर नियुक्त कयल गेलनि।पिताक इच्छानुसार सन् १८९६ ईस्वीमे पिलखवार गामक एक कुलीन ब्राह्मण परिवारमे हिनक विवाहोत्सव सम्पन्न भेल।हिनक अर्द्धांगिनी रुक्मिणीक श्वसुर-गृहपदार्पणोत्सव सन् १८९९ ईस्वीक दिसम्बर (अग्रहण)मासमे परम्परानुसार सम्पन्न भेल।गृहलक्ष्मीक गृहागमनसँ एहि परिवारमे सुख-समृद्धिक सुन्दर वातावरण सृजित भेल।धन-धर्मादि दृष्टिसँ हिनक दाम्पत्य जीवन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रहल।अध्यापन वृत्ति अर्थ आ’ सम्मान दुनू हिनका दैत रहल।अपन बहुमुखी प्रतिभाक कारणेँ अत्यधिक लोकप्रिय भेलाह।हिनक यश सुदूर प्रांतधरि पसरि गेल।फलत:काशी,पंजाब आदि क्षेत्रमे विशिष्ट सेवाक अवसर हिनका प्राप्त भेलनि।बरेलीसँ ई किछु समयक हेतु दड़िभंगा राजपरिवारक सेवामे आबि गेलाहि। एतहु ई अध्यापन कार्यसँ जुड़ल रहलाह। मुदा, महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक निधनोपरांत ई दड़िभंगा छोड़ि देलनि आ’ पुनः बरेली हेतु प्रस्थान कयलनि।बरेली स्थित राधा-कृष्ण मंदिरक प्रांगणमे संचालित एक विद्यालयमे प्रधानाध्यापक पदपर नियुक्त भेलाह। पाँच वर्ष धरि बरेलीमे सपरिवार रहि उक्त विद्यालयमे अध्यापनकार्य कयलनि।ओतहि हिनक पुत्र जयकृष्ण झाक जन्म भेल। तत्पश्चात् मुरादाबादमे ई अध्यापनकार्य कयलनि। सन् १९०४ईस्वीक जून मासमे मुरादाबादसँ ई गाम जा रहल छलाह।मुदा,मार्ग स्थित बदायूँ नगरमे शिष्य लोकनि हिनका किछु दिनक लेल रोकि गुरुदक्षिणाक रूपमे पर्याप्त धनराशि दऽ विदा कयल।ओहि धनराशिसँ सन् १९०५ईस्वीमे अपन पैतृक गृहक समीप शारदा मन्दिर संस्कृत विद्यालयक स्थापना कयलनि।एहि विद्यालयक संचालनकार्य अपनहि हाथ लेलनि।स्वयं सेहो अध्यापनकार्य करय लगलाह।विद्यालयक प्रबंधकेँ सुनिश्चित कऽ कालक्रमेण मथुरा हेतु प्रस्थान कऽ गेलाह।ओतऽ एक वर्ष धरि लक्ष्मण दासक महाविद्यालयमे अध्यापनकार्य कयलनि। तत्पश्चात् पुन: गाम आबि स्वस्थापित शारदा मंदिर संस्कृत विद्यालयक शैक्षणिक गतिविधिपर ध्यान केंद्रित कयलनि।जाहिसँ गाम-समाजक छात्रलोकनिकेँ हिनक मार्गदर्शन भेटय लागल।एहि मध्य सन् १९०६ईस्वीमे हिनक पिताक निधन भऽ गेलनि।पिताक श्राद्धक बाद अर्थोपार्जन हेतु पुन: बदायूँ चल गेलाह। मुदा,महारानी लक्ष्मीवतीक आदेशकेँ स्वीकार्य मानि ओतऽ नहि रहबाक निर्णय लेलनि।काशी स्थित महारानी लक्ष्मीवतीक निवासस्थल देवीपुर हिनक कर्मक्षेत्र बनि गेल।महारानी साहिबाक दरबारमे राजपण्डित ब्रजबिहारी झाक सहकर्मी बनि कुशलतापूर्वक कार्यसम्पादन करैत रहलाह।ओतऽ हुनका द्वादशाधिक वर्ष धरि दानाध्यक्ष पदपर कार्यरत् रहबाक सौभाग्य प्राप्त भेलनि।एहि तरहेँ पण्डित बख्शीजी दड़िभंगा राजपरिवारक लेल अत्यधिक प्रिय आ’ विश्वासपात्र रहलाह।खण्डवलावंशक्रमागत सम्मानित सेवकक क्रममे हिनक स्थान दशम छल।एहि मध्य सन् १९१५ईस्वीमे महाराज रमेश्वर सिंहक राजनगर (मधुबनी)स्थित राजप्रासादमे हुनक पुत्रद्वयक यज्ञोपवीत संस्कारक सुअवसरपर विद्वान लोकनिक हेतु व्याकरणादि विषयक धौतपरीक्षा आयोजित कयल गेल।बख्शीजी उक्त परीक्षामे अपन अलौकिक प्रतिभाक परिचय देलनि।तत्पश्चात् महाराज द्वारा हिनका धर्मसमाज संस्कृत कॉलेज,मुजफ्फरपुरमे श्रौतस्मार्त कर्मकाण्ड विषयक आचार्य पदपर नियुक्त कयल गेलनि।अपन उत्तम शैक्षणिक योगदानक कारणेँ एहि कॉलेज में हिनका प्रधानाचार्य पदकेँ सुशोभित करबाक सुअवसर प्राप्त भेलनि।हिनक मार्गदर्शन में एहि कॉलेजक अनेकानेक छात्र विद्वान भेलाह।अपन आत्मज जयकृष्ण झाकेँ सेहो श्रौतस्मार्त कर्मकाण्डादि विषय में यथोचित मार्गदर्शन कऽ उत्तम कोटिक विद्वान बनौलनि।लगभग दश वर्ष धरि एहि कॉलेजमे सेवारत रहलाक बाद सन् १९२८ ईस्वीमे महाराज रामेश्वर सिंहक आदेशानुसार मात्र तीन सय रुपेयाक मासिक मानदेयपर पटियाला राजक राजपण्डित पदकेँ सुशोभित करबाक सौभाग्य हिनका प्राप्त भेलनि।एक वर्ष तीन मास धरि ई पटियाला राजक सेवामे रहलाह।तदुपरांत हिनक पुत्र पण्डित जयकृष्ण झा ‘बख्शी’ पटियालाराजक उक्त पदकेँ स्वीकार कयलनि।पटियालासँ ई काशी आबि गेलाह।काशीमे मीरघाट स्थित रानीकोठामे हिनक प्रवास होइत अछि।एहि मध्य ब्रिटिश वायसराय द्वारा हिनका ‘महामहोपाध्याय’ उपाधिसँ सम्मानित कयल गेलनि।अपन पौत्र बालकृष्ण झाकेँ सेहो अपनहि लग राखि लगभग दू वर्ष धरि शैक्षिक मार्गदर्शन कयलनि।ज्ञात होइत अछि जे हिनक पौत्र बालकृष्ण झा ‘सरस’ सन् १९३५ईस्वीसँ हिनक निधनक छ: माह पूर्व धरि अपन पितामहक अंतेवासी बनि विशेष कृपा प्राप्त कयलनि।रानीकोठाक प्रवासमे ई अध्ययन-अध्यापन सह साहित्यसृजन व्यवसायमे सतत् व्यस्त रहैत छलाह।मैथिली साहित्यमे ख्यातिलब्ध साहित्यकार कविवर सीताराम झा हिनक संपर्कमे सदिखन रहैत छलाह।मुदा ध्यातव्य जे एहि बेरक काशीप्रवास पण्डित बख्शीजीक लेल शुभसूचक नहि रहलनि।हिनक गाम हरिपुर बख्शी टोल स्थित पैतृक गृहमे चोरि भऽ गेलनि,जाहिमे पर्याप्त आर्थिक क्षति भेलनि।तदुपरांत यमराजक डंका बाजि उठल।१५जनवरी,१९३४ ईस्वीक दिन सम्पूर्ण बिहार भूकम्पक झटकामे डोलि गेल।
प्राकृतिक विकट विनाशलीलामे धन-जनक अपार क्षति भेलै।धरतीक प्रचण्ड कोप एहू परिवारकेँ नहि बकसल।भूकम्पमे घर खसलासँ हिनक धर्मपत्नी रुक्मिणीक देहावसान भऽ गेलनि।एहन विषम परिस्थितिमे बख्शीजी काशीसँ गाम आबि गेलाह।अपन शोकसंतप्त जीवनमे शांति हेतु शिवाराधनाक मार्ग अपनौलनि आ शिवभक्तिसँ ओत-प्रोत भऽ जाइत रहथि।ओही साल (शाके १८५६)वैशाख मासमे अपन पैतृक गृहक सोझाँ पिता द्वारा खुनाओल पोखरिक पुबरिया मोहारपर शिवमंदिरक निर्माण करौलनि।तत्पश्चात् बख्शीजी काशीक हेतु पुन: प्रस्थान कऽ गेलाह।ताहि मंदिरद्वारक शीर्ष भाग स्थित शिलालेख रूपमे बख्शी विरचित काव्यश्लोक द्रष्टव्य अछि-
आसीत् खण्डवलाकुलीय नृपतिप्राप्त प्रतिष्ठो गुणै:।
श्लाघ्योभूरिबलेन भीमतुलितो बलम्हीतिनामा द्विज:।।
झोपाख्योस्य कुलेऽमले करमहाख्येभूत् सनाथ:सुधी:।
तत्सूनो स्वपितामहस्य सुधियोनाम्ना मुकुन्दो विदन्।।
भोलानाथममुं रसेषु वसुभू (शाके १८५६)शाके द्वितीयेऽनघे।
राधेमासि सुधानिधौ सुसमये चातिष्ठपच्छङ्करम्।।
ग्रामेऽस्मिन् कुलजै: स्वकैश्च बलिते सर्वे सपर्यापरा।
श्री शम्भोकृपया सुतार्थ निवहैर्मेदीं लभन्तां चिरम्।।
ई ध्यातव्य थिक जे ‘सम’ आ’ ‘विषम’ ई दुनू इहलौकिक उपहार सभक जीवन-व्यवहारकेँ प्रभावित करैत रहैत छै।क्यो अपन जीवनसंग्राममे सामयिक विषमतासँ घबराकऽ किंकर्त्तव्यविमूढ़ताक जालमे फँसि पराजित भऽ जाइत छथि तँ क्यो ताहिसँ परे रहि विजयश्रीकेँ वरण करैत छथि।जँ एक कुशल साहित्यकारक स्थितिपर विचार कयल जाय तँ यैह अनुभूति होइछ जे ओ कहियो पराजित नहि होइत छथि।हुनक चिन्तन सम आ’ विषम दुनू स्थितिसँ सामंजस्य स्थापित कऽ लैत अछि आ’ तदनुकूल साहित्यसृजनकेँ सार्थकता प्रदान करैत अछि।एहि कारणसँ ओ अधिकाधिक कीर्ति आ’ सम्मानकेँ अर्जित करैत छथि।म.म. मुकुन्द झा ‘बख्शी’ सेहो एही रूपक विशिष्टतासँ परिपूर्ण भेलाह।हिनक साहित्य चिन्तन इतिहास-दर्शन लोकव्यवहारादिसँ सम्बद्ध विविध विषयवस्तुकेँ यथार्थ रूपेण निरुपित करैत अछि।संस्कृत साहित्यक क्षेत्रमे हिनक योगदान सर्वाधिक रहल अछि।मौलिक रचनाक अतिरिक्त शिक्षार्थी लोकनिक समस्याक निदानार्थ कतिपय क्लिष्ट साहित्यक टीका एवं व्याख्या लिखि प्रकाशित करौलनि।मैथिली साहित्यमे सेहो हिनक योगदान महत्त्वपूर्ण रहल।
संस्कृत साहित्यमे पण्डित मुकुन्द झा ‘बख्शी’ महाभाग विरचित (१)करमहाकुलकीर्ति कौमुदी,(२)खण्डवलाकुलप्रशस्ति,(३)लक्ष्मीवतीचरितम्,(४)जनेश्वरीचरितम्,(५)गोकुलनाथकृत अमृतोदयनाटक टीका,(६)सप्तपविका निरुक्तविवृत्ति,(७)प्राकृतमञ्जरी,(८)कर्मकाण्डमन्त्रार्थ प्रदीप (छन्दोगानाम् कृते),(९)कर्मकाण्डमन्त्रार्थ प्रदीप (वाजस्नेयीनाम् कृते),(१०)सरला (लाट्यायन श्रौतसूत्रटीका),(११)नित्यकृत्य रत्नमाला (आह्निक पद्धति),(१२)शारदातिलक टीका,(१३)न्यायमुक्तावली टीका,(१४)जगन्नाथतीर्थयात्रा प्रकाश,(१५)अमरकोषटीका,(१६)गोभिल्यगृह्यसूत्रटीका,(१७)शंकर मिश्रकृत गौरीदिगम्बर प्रहसनटीका आदि प्रकाशित ग्रंथ हिनक उन्नत लेखनशैलीक परिचायक अछि।एहिसँ ई बुझना जा रहल अछि जे संस्कृत साहित्यमे बख्शीजी बहुविधिपारंगत छलाह।किन्तु मैथिली साहित्यक क्षेत्रमे ‘मिथिलाभाषामय इतिहास’ हिनक एकमात्र प्रकाशित कृति अछि,जाहि लेल हिनका मैथिली साहित्य परिषद् द्वारा मुज़फ्फरपुरमे आयोजित छठम अधिवेशनमे ‘साहित्य महोदधि’ उपाधि प्रदान कयल गेलनि।ज्ञातव्य अछि जे सन् १९३६ईस्वीमे आयोजित उक्त अधिवेशनक सभापतित्व रायबहादुर (स्व.)जयानंद कुमर कयने रहथि।तावत् धरि मैथिली भाषाक साहित्य शैलीक निर्धारण नहि भऽ सकल छल।ताहि अधिवेशनमे एतदर्थ गठित समितिक सदस्यरूपमे पण्डित बख्शीजी सेहो मनोनीत भेलाह।मिथिला भाषामय इतिहासक अतिरिक्त मैथिली भाषामे हिनक अनेकानेक स्फुट निबन्ध प्रकाशित अछि।एतबहि नहि,किछु भगवती आ’ शिवक गीत सेहो यत्र-तत्र सुनबामे अबैत अछि।किन्तु एकर थाह नहि लागि रहल अछि।एक ऐतिहासिक ग्रंथक रूपमे उपलब्ध ‘मिथिला भाषामय इतिहास’ मिथिलाक सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक अतीतक वृहद् परिचायक अछि।विद्वताक कसौटीपर कसल प्राञ्जल संस्कृत शब्दावलीसँ परिपूर्ण गद्यशैलीमे विचलित एहि दस्तावेजमे खण्डवला राजवंश द्वारा मिथिला,मैथिल आ’ मैथिलीक प्रति कयल योगदान द्रष्टव्य अछि।बख्शीजीक समस्त साहित्यिक कृति एहि तथ्यक स्वत:प्रमाण अछि जे गद्य-पद्यमय साहित्य शैलीमे ई पटु छलाह।अपन विलक्षण व्यक्तित्व एवं कृतित्वसँ जीवनभरि सम्मानित होइत रहलाह।मैथिल लोकनि हिनका ‘करमहाकुलकमल दिवाकर’ एवं ‘साहित्य महोदधि’ उपाधिसँ सम्मानित कयलनि। सन् १९२२ईस्वीमे भारतधर्ममण्डल द्वारा हिनका ‘कर्मकाण्डभूषण’ उपाधिसँ सम्मानित कयल गेलनि।एही क्रममे राजसत्ता द्वारा सेहो सम्मानप्राप्ति होइत रहलनि।फलत: कर्मकाण्ड प्रधानाचार्य, महामहोपाध्याय आदि उपाधिसँ अलंकृत भऽ सम्पूर्ण भारतवर्षमे मिथिलाक गौरवकेँ समुन्नत कयलनि।
प्रस्तुत वृत्तान्त म.म. पण्डित मुकुन्द झा ‘बख्शी’जीक पौत्रद्वय पण्डित बालकृष्ण झा ‘सरस’ एवं हरिकृष्ण झा ‘बख्शी’क उक्ति आ’ सहमतिपर आधारित अछि।ध्यातव्य अछि जे म.म.मुकुन्द झा ‘बख्शी’केँ छ:टा पुत्री आ’ एकटा पुत्र भेलनि। पुत्र( स्व.) जयकृष्ण झा ‘बख्शी’सँ तीन पुत्र क्रमश: बालकृष्ण,(स्व.)आनंदकृष्ण आ’ हरिकृष्ण भेलथिन,ताहिसँ भरल-पुरल परिवार छनि।उपलब्ध साक्ष्य प्रामाणिकताकेँ स्वत:सिद्ध करैत अछि।
मिथिलाक पाण्डित्य परम्पराक कुशल संवाहक म.म.पण्डित मुकुन्द झा ‘बख्शी’ अपन अरसठि सालक जीवनयात्रामे बहुत किछु देखि चुकल छलाह।पाश्चात्य सभ्यताक प्रहारसँ आहत भऽ मिथिलाक सांस्कृतिक अवमूल्यनसँ नीक जकाँ परिचित छलाह आ’ तेँ अपन साहित्यसृजनमे व्यवहार-शुचितापर विशेष ध्यान दैत रहलाह।एक कुशल कर्मयोगी जकाँ समाज आ’ राष्ट्रक प्रति अपन भूमिकाक समुचित निर्वहन करितो गार्हस्थ्य धर्मक परिपालन सतत् करैत रहलाह।अपन पारिवारिक दायित्वमे कोनो तरहक त्रुटि नहि होबऽ देलनि। समयानुसार अपन छओ पुत्री क्रमशः शारदा,दुर्गा,अर्पणा, पार्वती,पद्मा आ’ सर्वमङ्गलाक पाणिग्रहण करा चुकल छलाह। सभकेँ कुलीन परिवारमे स्थान लागि गेल रहनि।पुत्रकेँ सेहो उचित स्थान भेटि चुकल रहनि। अर्जित धनराशिसँ पारिवारिक समृद्धि सुनिश्चित कऽ चुकल छलाह।एहि तरहेँ इहलौकिक कर्त्तव्यक निर्वाह करैत अपन जीवनकेँ धन्य बनाय अंततोगत्वा फसली साल १३४४,अग्रहण मास,शुक्लपक्ष,एकादशी तिथि,सोमवासर, तदनुसार १२ दिसम्बर १९३७ ईस्वीक दिन मोक्षतीर्थनगरी काशीमे एहि महामानवक महाप्रयाण भऽ गेलनि।एहि उज्ज्वल नक्षत्रक अस्त भेला सन्ताँ सम्पूर्ण समाज मर्माहत भऽ उठल।मुदा ‘कीर्तिर्यस्य स जीवति’ उक्तिक अनुसार हिनक योगदान सदैव पठनीय, स्मरणीय एवं अनुकरणीय रहत।
मिथिलाक एहि सपूतकेँ हार्दिक श्रद्धांजलि!
पूर्णेन्दु कुमार झा ‘बख्शी’
मुकुंद झा ‘ बक्शी ‘ ( १८६० – १९३८) .
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मुकुंद झा बक्शी संस्कृत क ख्यातिप्राप्त नामवर खासके कर्मकांड क विद्वान छलाह . वो काशी मे अध्यापन केलाक उपरांत किछु दिन पटिआला महाराज क दरवार मे राज पंडित रहलाक बाद मुजफ्फरपुर क धर्मसमाज कॉलेज मे १९१९ से १९३८ तक अध्यापन क कार्य केलैथ . जीवन क अंतिम समय काशी मे व्यतीत केलैथ .
मैथिली मे लघु व्याकरण आ अमरकोश पर टीका लिखलैथ .मैथिली मे हुनकर ऐतिहासिक कार्य मिथिला भाषामय इतिहास अछि । अहि किताब मे वो मिथिला के अंतिम शासक वंश खण्डवलावंश के पहिल राजा महेश ठाकुर से तत्कालीन महाराजधिराज रमेश्वर सिंह क विस्तृत इतिहास शामिल अछि . चार सौ वर्षक दौरान महल मे कतेको घटना और एपिसोड क जिक्र अछि .
सुप्रभात 🙏🏻
चित्र साभार বাবূ ফণীশ্ৱর্ ঝা (फणीश्वर)