MLCKP2023-061 :: NEHA JAIN AZIZ
मै नेहा जैन “अजीज़ ”
मेरा जन्म ललितपुर उत्तर प्रदेश में हुआ है मुझे बचपन से ही माता पिता का असीम प्यार मिला उन्होंने मुझे पढ़ाया लिखाया, ऊँची शिक्षा दिलवायी।
8वर्ष की आयु में मैंने अपनी पहली रचना माँ लिखी
उसके बाद अन्य विषयों पर भी कविताए लिखी किन्तु कॉलेज में आते ही पढ़ाई में लग गईं।
11-12वर्ष की उम्र से ही मै विभिन्न व्यर्थ समझी जाने वाली चीजों जैसे आइसक्रीम के खाली कप, ढक्क्न, खाली बोतल,चाट और कुल्फी की स्टिक, xray, चूड़ी, सुतली, माचिस, तेल, मसालो के खाली डिब्बे,खराब बल्ब, होल्डर नारियल के छिलको से तरह तरह की कलात्मक वस्तुएँ बनाने लगी थी
मैंने कागज, बोतल, बल्ब, मिट्टी, टिश्यू पेपर, रुई, कौड़ी आदि से विभिन्न प्रकार की गुड़िया भी बनाई शिल्प में मेरा गहरा रुझान रहा।
मै डॉ बनना चाहती थी इसलिए मैंने बायलोजी ली और B. Sc. किया मैंने upCPMT दी पहली बार में ही मेरा bams आयुर्वेदिक डॉ के लिए सिलेक्शन हो गया
ये मेरी खुशनसीबी ही थी ज़ो बिना कोचिंग के ही मै पहली बार में ही चयनित हो गईं थी
मै उसकी अहमियत न समझ सकी
मैंने वह न करते हुए कुछ लोगों की बात मानकर M. Sc. फ़ूडटेक्नोलॉजी किया
उसके बाद ग्वालियर birtaniya में ट्रेनिंग के लिए गईं
लेकिन वहाँ से लौटने पर पापा के कहने पर मैंने btc किया
उसके बाद tet की परीक्षा दी
इसी बीच मेरी शादी तय हो गईं सूरत गुजरात
शादी के बाद में मेरी टीचिंग जॉब के लिए कॉउंसलिंग आ गईं
सुसराल वाले जॉब के लिए तैयार नही थे मैंने जॉब नही की और सूरत चली गईं
मेरे लिए ये निर्णय आसान नही था एक तरफ सरकारी नौकरी दूसरी तरफ नयी शादी
क्या करुँ लोगों ने कहा सरकारी नौकरी मुश्किल से मिलती है छोड़ो मत पर मेरे लिए घर अहम संबंध ज़ो जुड़ा था वो अनमोल था
सबने कहा मैंने गलत किया क्योंकि बाद में सुसराल वाले मान ही जाते पर मै तो निर्णय ले चुकी थी।
उसके बाद एक दिन सुसराल में पापा का call आया बोले last chance है एक बार परिवार में बात कर लो जॉब के लिए तैयार हो तो ललितपुर आ जाओ कॉउंसलिंग है
ये बात मैंने अपने पति को बतायी
वो बोले तुम बहुत त्याग कर चुकी अब मेरी बारी चलो पैकिंग करो
ललितपुर चलना है
यहाँ जॉब भी लग गईं ललितपुर में मेरी जखोरा ब्लॉक प्राथमिक विद्यालय कुआँतला में लग गईं
डॉ की जगह मै शिक्षिका बन गईं
उसके बाद भी मेरा शिल्प निर्माण चलता रहा
तरह तरह के फूलदान, आदिवासी जोड़े, नाव, टेबल कुर्सी मिट्टी से कछुआ, मोर, कार्ड आदि से ट्रे गिलास बनाती रही
विद्यालय और परिवार के कार्यों के बाद मै शिल्प बनाती
मैंने विद्यालय में देखा कि बच्चे कला रंग के बारे में कुछ नही जानते उनके पास ड्राइंग के लिए कॉपी भी नही थी
तब मैंने रेत से गोल पत्थर जिन्हे पेब्लस कहते है उन पे बच्चों को चित्र बनबाए वे बहुत ख़ुश हुए
फिर मैंने खराब cd पर बच्चों को चित्र बनबाए जैसे प्राकृतिक दृश्य, ओक्टोपस, सौर परिवार
बच्चे अब कला के द्वारा अधिगम कर रहे थे
मैंने शिल्प का प्रयोग भी उन्हें सिखाने के लिए किया
मैंने खराब cd से घड़ी बनायी और उन्हें समय देखना सिखाया।
उनमे क्लात्मकता और सृजनात्मकता आयी
अब मै एक नवाचारी शिक्षिका के रूप में जानी जाने लगी।
मैंने कई अभिनव प्रयोग शिक्षा में किये. नये नये नवाचार मेरी शिक्षण प्रक्रिया के हिस्से बन गये।
इसी बीच मैंने अंग्रेजी से ma किया और कुछ समय बाद मैंने एक बेटे को जन्म दिया उसके जन्म के 8महीने बाद मैंने जूनियर टेट का exam दिया ज़ो अच्छे no से पास किया।उसके बाद जब बेटा दो साल का हुआ तो मैंने ignou से b.ed किया और विथ ऑनर पास किया, इन सबमे मेरे पति मेरे साथ थे उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया।
मैंने लेखन पुनः शुरू किया कविता, आलेख, लघुकथा, काव्यात्मक कथा, ग़ज़ल, संस्मरण विधाओं में रचना की।
साथ ही अर्रा के बीजो, पेन्सिल की छीलन आदि पेंटिंग बनाने लगी मैंने कई अमूर्त चित्रण किये, फेवरिक पेंटिंग की
सब सही चल रहा था लेकिन कोरोना में मेरे पापा की मृत्यु हो गईं मैंने पिता नही अपने भगवान को खोया था वो हमेशा चाहते थे कि मै अफसर बनूं पर किस्मत ने मुझे कहीं और पहुंचा दिया वो मेरी लेखन से प्रभावित थे और चाहते थे कि मेरी किताब प्रकाशित हो बस मैंने अश्कों से उनकी याद में ग़ज़ल की किताब “आईना ए अजीज़ लिख दी ज़ो उन्हें समर्पित है उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर ही उसका विमोचन हुआ और मैंने उनके नाम अज़ीज़ को अपना उपनाम बना लिया और नेहा जैन अज़ीज़ बन गईं मेरे नाम में उनका नाम फिर से जिन्दा हो गया
मेरी दूसरी किताब एक रास्ता चाँद का आयी जिसका विमोचन दिल्ली world book fair में हुआ।
जिसकी भूमिका ret. आईपीएस और वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरि राम मीणा जी ने लिखी है मैंने किन्नर और आदिवासी विमर्श पर शोध पत्र लिखें,
सभी जगह मेरे पति मजबूत स्तम्भ की तरह मेरे साथ खड़े रहे मेरा हौसला बढ़ाते रहे
मै आदिवासियों के लिए चौपाल भी चलाती हूँ जहाँ उन्हें जागरूक बनाती हूँ
मैंने फिर लोक कला मिथिला, सोहराई, वारली का अध्ययन किया और मेरा रुझान मिथिला या मधुबनी आर्ट की तरफ हुआ इसने मुझे आकर्षित किया मैंने समझना शुरू किया इसकी उत्पत्ति, विशेषताओं का अध्ययन किया आज स्थिति ये है कि मैंने उपलो पर मधुबनी चित्रण किया
नारियल पर किया
प्लाई पर कोरोना थीम पर भी मधुबनी चित्रण किया
पेपर पर भी कार्य जारी है ये एक ऐसी कला है ज़ो हमारी संस्कृति को समाये हुए है जिसमें सकारात्मकता भरी हुई है नीरसता को खत्म करती हुई आनंद का बोध कराती है जन्मोत्सव, उपनयन, विवाह या समसामायिक परिस्थिति को भी अभिव्यक्त करती है इसकी रेखांए, घनापन दर्शक को बांधती है आज मै ख़ुद को मिथिला कलाकार कहलाना पसंद करती हूँ….
SOME PAINTINGS BY NEHA JHAIN :-