राजपरिवार आ मिथिला के धरोहर सबके संरक्षित धरोहर सूची में शामिल करय सरकार : मैनेजर सिंह

राजपरिवार आ मिथिला के धरोहर सबके नियमानुसार अपन संरक्षित धरोहर सूची में शामिल करय सरकार : मैनेजर सिंह

पटना । नलिनी ठाकुर

पटना संग्रहालय के दुर्लभ पांडुलिपि आ अन्य पुरावशेष सबहक संरक्षणक काज के सेहो प्रोफेसर सिंह द्वारा समीक्षा कयल गेल। पटना संग्रहालय के अपर निदेशक,डा विमल तिवारी, संरक्षण विशेषज्ञ आ पटना संग्रहालय के संरक्षण कार्य के एन आर एल सी लखनऊ द्वारा प्रतिनियुक्त श्री अजय प्रताप सिंह, बिहार रिसर्च सोसायटी के डा शिव कुमार मिश्र,रसायनज्ञ गौरीशंकर मिश्र सहित संरक्षणक काज में लागल चारू विशेषज्ञ भाग लेलथि। पटना संग्रहालय में एन आर एल सी लखनऊ द्वारा बीस महीना तक संरक्षणक काज चलाओल जायत जहिमें लगभग पचहत्तर लाख रुपए खर्च कयल जायत।

धरोहर भवन के कोनो व्यक्ति के बेचय वा ध्वस्त करबाक अधिकार नहिं अछि। भारत सरकार आ राज्य सरकारक स्मारक भवन सँ संबंधित नियम के अनुसार कोनो भी व्यक्ति के धरोहर भवन में कोनो भी तरहक परिवर्तन करबाक सेहो अधिकार नहिं अछि। ई सब बात भारत सरकार के राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला, लखनऊ के महानिदेशक प्रोफेसर डॉ मैनेजर सिंह कहलाह। प्रोफेसर सिंह दरभंगा, मधुबनी एवं राजनगर के दरभंगा राज द्वारा निर्मित भवन सबके अवलोकन के क्रम में कहलथि।

प्रोफेसर सिंह लक्ष्मी विलास विलास पैलेस के जीर्णोद्धार काज पर सेहो आपत्ति जतेलथि आ कहलथि कि हेरीटेज विशेषज्ञ सबके देखरेख में संरक्षण कार्य होबाक चाही। कामेश्वर नगर स्थित नरगौना पैलेस,श्यामा मंदिर परिसर, यूरोपियन गेस्ट हाउस, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन आदि के अवलोकन के क्रम प्रोफेसर सिंह कहलथि कि राज्य सरकार द्वारा अविलंब नियमानुसार एहिसबकें अपन संरक्षित धरोहरक सूची में शामिल करबाक चाही। राज दरभंगाक किला के अंदर के भूमि के विक्रय सेहो नियमानुसार उचित नहिं अछि। प्रोफेसर सिंह, राजनगर के राज परिसर स्थित स्थापत्यकलाक प्रशंसा करैत कहलाह आ एकर सतत क्षरण पर दुःख व्यक्त कयलाह। महानिदेशक कहलथि कि मधुबनी के भौरा गढ़ी के स्मारक भवन जे उत्तर बिहार के प्राचीनतम भवन सबमें एक अछि आ एकरा संरक्षित धरोहरक सूची में शामिल करबाक आवश्यकता अछि।

महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय दरभंगाक दुर्लभ कलावस्तु सबके संरक्षण काजक समीक्षा के लेल प्रोफेसर सिंह दरभंगा आयल छलाह। संग्रहालय के डेढ़ सौ सँ बेसी सामग्रिक संरक्षण कार्य एन आर एल सी लखनऊ के विशेषज्ञ लोकनि द्वारा कयल जा रहल अछि। एहि काज में एक करोड़ पैंसठ लाख रुपए खर्च होयय आ तीन साल सँ बेसी समय लगबाक संभावना अछि। संग्रहालय के दुर्लभ कलावस्तु सबकें देखबाक पश्चात प्रोफेसर सिंह कहलथि कि हाथी दांत सँ निर्मित कलावस्तु सबकें दृष्टि सँ ई संग्रहालय देश में सबसँ समृद्ध मानल जा रहल अछि। एहिके संरक्षण के पश्चात समुचित ढंग सँ रखरखाव आ प्रर्दशन के आवश्यकता अछि। संरक्षण आ प्रर्दशन के बाद ई संग्रहालय देश के सबसँ समृद्ध संग्रहालयों में सँ एक साबित भय सकैत अछि। प्रोफेसर सिंह, संग्रहालयाध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र के प्रयास सबहक सराहना करैत कहला कि डा मिश्र के ज़िद के चलते दरभंगा के एहि संग्रहालय के संग-संग पटना संग्रहालय के दुर्लभ पुरातात्विक सामग्री सबहक संरक्षण कार्य संभव भय सकल। प्रोफेसर सिंह कहलथि कि एतय के सामग्री सबहक महत्ता के देखैत हाथी दांत सँ निर्मित कलावस्तु सबके संरक्षण काज में सबसँ निपुण विशेषज्ञ श्री प्रमोद कुमार पाण्डेय के देखरेख में संरक्षणक काज चलाओल जा रहल अछि।

मधुबनी जिला के देवहार गांव स्थित मुक्तेश्वर नाथ शिवलिंग के अविलंब संरक्षण के लेल सेहो प्रोफेसर सिंह द्वारा आश्वासन देल गेल। ओ कहलथि कि संरक्षण के बिना ई प्राचीन शिव लिंग जल्दिए विलीन भय सकैत अछि।

धरोहर भवनक अवलोकन के क्रम में प्रोफेसर सिंह के संग संरक्षण विशेषज्ञ श्री अजय प्रताप सिंह, मूर्ति विशेषज्ञ डा सुशांत कुमारसंग्रहालयाध्यक्ष डा शिव कुमार मिश्र द्वारा संरक्षण कार्य के लेल विभिन्न प्रकार के विकल्प सबपर विस्तार से चर्चा कयल गेल जबकि संग्रहालय में संरक्षण कार्य क समीक्षा के दौरान हुनक संग हुनकर टीम के सदस्य गण आविष्कार तिवारी, आरुषि मेहरा, अनुपमा दास आ संयुक्ता के अलावा संग्रहालयक दीर्घासहायक चन्द्र प्रकाश, धर्मेंद्र राय, संतोष कुमार, राजेन्द्र राम सेहो उपस्थित छलाह।

सुवर्ण प्रभाष सूत्र नामक दुर्लभ बौद्ध ग्रंथक संरक्षण कयल जायत। ई ग्रंथ दुनिया के सबसँ प्राचीन पांडुलिपियों में सँ एक अछि आ सोना एवं चांदी के इंक सँ हस्तनिर्मित कागज पर लिखल गेल अछि।

” धरोहर भवन को किसी व्यक्ति को बेचने अथवा ध्वस्त करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। भारत सरकार एवं राज्य सरकार के स्मारक भवन से संबंधित नियमों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धरोहर भवन में किसी भी तरह के परिवर्तन करने का भी अधिकार नहीं है। लक्ष्मी विलास विलास पैलेस के संरक्षण कार्य हेरीटेज विशेषज्ञों की देखरेख में होना चाहिए। राज्य सरकार द्वारा अविलंब नियमानुसार इन्हें अपने संरक्षित धरोहर की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। किले के अंदर के भूमि के विक्रय भी नियमानुसार उचित नहीं है। मधुबनी के भौरा गढ़ी का स्मारक भवन जो उत्तर विहार के प्राचीनतम भवनों में से एक है की संरक्षित धरोहर की सूची में शामिल करने की आवश्यकता है।”

– प्रोफेसर डॉ मैनेजर सिंह, महानिदेशक राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधानशाला, लखनऊ

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *