“लजबिज्जी (लाजवंती)” :: राजकुमार झा, सझुआर

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“लजबिज्जी (लाजवंती)”
– राजकुमार झा, सझुआर ।
– ०१ जून, २०२० (सोमदिन)
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अद्भूत, अनुपम एवम् आश्चर्यजनक वनस्पतिक विपुल भंडार धरती माता अपना कोईखमे भंडारण कय जगतकें विलक्षण उपहार प्रदान कयने छथि । जखन हाई इसकूलमे पढ़ैत रहि, इसकूल जेबा एवम् ऐबाक क्रममे सभागाछीक अगल-बगल स्थित गाछीक चारूकात असंख्य संख्यामे कतारबद्ध लजबिज्जीक छोट-छोट झाड़ अपना दिशि स्वतः ध्यान आकृष्ट करैत छल । धिया-पुताक उमेरक उमंगताक उमंगमे संगी-साथीक संग आधा घंटा एक घंटा एहि पौधाके छुबामे व्यतीत भS जाइत छल । सभ पत्ताकें आंगुरसँ छुला उपरांत एक अद्वितीय आनंदक अनुभूति होइत छल । कयेक दिनसँ सोचि रहल छलौं जे, ई पौधा एखनहुँ छैक की ? आई प्रातःकाल पुनः ओहि जगह गेलौं आ देखैत छी जे कतारबद्ध अवस्थामे प्रकृतिक ई अनुपम पौधा अपन पूर्ण ऐश्वर्यक संग विद्यमान अछि ।

एहि पौधाकें लजबिज्जी वा लाजबंती सेहो कहि सकैत छी प्रकृति एकरा अनुपम व अद्वितीय गुणसँ सम्पन्न बनौने छथि । हम अनुभव कS रहल छी जे प्रकृति एक विशिष्ट रासायनसँ लजबिज्जीकें परिपूर्ण कयने छथि । देखु ने हवा-बसातक संसर्गमे आबि एकर पत्ता यथावत् अवस्थामे बनल रहैत अछि । मुदा कोनो प्राणी अनचोका वा जानि-बुझिकें पत्ताके आंगुरसँ स्पर्श कयलक की तुरत एकर दुनू पत्ता आपसमे सटि जाइत अछि । किछुयेक सेकेंड वा मिनटक उपरान्त पुनः पूर्व अवस्थामे सेहो आबि जाइत अछि । पता लगेला उपरांत बुझबामे आयल जे ई वनस्पति अत्यधिक लज्जकोटर स्वभावक होइत अछि । आंगुर वा अन्य वस्तुसँ छुबू तS लजाके स्वयंकें दुबका लैत अछि । पुनः पूर्व अवस्थामे सेहो आबि जाइत अछि ।

इएह विलक्षणता प्रकृतिक अनुपम श्रृंगार थिक । प्रकृति प्रदत्त धरोहरकें रक्षा करब हमरालोकनिक सामूहिक कर्तव्य एवम् दायित्व बनैत अछि । पदार्थीय आ भौतिक आनंदक चकाचौंधमे ध्यान राखल जेबाक चाही जे परम पिता परमेश्वर द्वारा बिनु मँगने एहेन-एहेन विलक्षण वनस्पतिकें रक्षण-संबर्द्धन कय मानवीय कर्तव्यक अनुपालन करैत रहि । जँ अपने लोकनिक समक्ष लजबिज्जी संबंधित आओरो जानकारी हो, निश्चितरूपें सार्वजनिक करी, जाहिसँ नव पीढ़ी अनुपम ज्ञान प्राप्त कय लाभान्वित भS सकैथ । जय श्री हरि ।

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