“मिथिलाक नवविवाहिताक खास पावनि मधुश्रावणी” – राजकुमार झा

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“मिथिलाक नवविवाहिताक खास पावनि मधुश्रावणी”
– राजकुमार झा ।
-दिनांक : ०९ जुलाई, २०२०
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मिथिलाक गौरवमयी संस्कृतिक इतिहास अपन आँचरिमे अनेकों लोक पावनिके समेटने अनुपम लोकगाथाक संदेश दैत अछि । एहि लोक पावनिके कड़ीमे श्रावण मासमे नव विवाहिता ललना द्वारा मनाओल जायवला पावनि अछि – “मधुश्रावणी ।” मधुश्रावणी मुख्यरूपें मिथिलामे ब्राह्मण आओर कायस्थ परिवारक नवविवाहिता कन्या द्वारा अपन अखण्ड सुहागक रक्षार्थ मनाओल जाइत अछि । ओना देखल जा रहल अछि जे आब आनो वर्गक स्त्रीगणकें एहि पावनिमे रूचि बढ़लनि अछि ।

मधुश्रावणी श्रावण मासक कृष्ण पक्ष चतुर्थीके प्रारम्भ होइत अछि आ शुक्ल पक्ष तृतीयाके समाप्त होइत अछि । ई पावनि मनोहारी वातावरणक परिचायक थिक । ई पावनि नवविवाहिता अपन नैहरमे मनबैत छथि । एहि पावनिके सबसँ विलक्षण बात अछि जे पावनिक अवधिके मध्य कपड़ा-लत्ता, भोजन एवं पूजामे जाहि सामग्रीक उपयोग कयल जाइत अछि ओ सभ वस्तु सासुर सँ पठाओल जाइत अछि । एहि हेतु नवविवाहिताक सासुर सँ भारक रूपमे सभ वस्तुजात हुनक नैहर पठाओल जाइत अछि । मधुश्रावणीक एहि अनुपम पावनिमे भार ओ भरियाक दृष्य मनोहारी लगैत अछि । ओना तS ई पावनि विधिवत् श्रावण कृष्ण पंचमी सँ प्रारम्भ होइत अछि मुदा एकर विध चतुर्थीयेके प्रारम्भ भS जाइत अछि । एहि दिन सँ नवविवाहिता अरबा-अरबानि खाइत छथि । साँझमे सजि-धजिकS सखी-बहिनपाक संग विभिन्न फूलबाड़ी सँ फूल-पात, जकरा जूही-जाही कहल जाइत अछि, लोढ़िके अपन डालीमे सजा कS गीत गबैत अपन घर अबैत छथि । ई क्रम पूजा समाप्तिक एक दिन पहिने धरि चलैत अछि । पंचमी दिन सासुर सँ पठाओल साड़ी-लहठी, गहना आदि पहिर व्रती पूजाक विधिवत् तैयारी करैत छथि । एहि पावनिमे मुख्य रूप सँ गौड़ (गौड़ी) एवम् नागक पूजा होइत अछि ।

पूजाक लेल सबसँ पहिने एकटा कोबर बनाओल जाइत अछि अथवा घरमे विवाहक समय जे कोबर बनाओल गेल छल ओतय पूजाक हेतु कलश पर अहिवातक बाती प्रज्वलित कयल जाइत अछि । सासुर सँ पठाओल हरैदक गौड़ आ एकगोट नैहरक सुपारी, लSगमे मैनाक पात पर धानक लावा राखि ओहि पर दूध चढ़ाओल जाइत अछि । बिसहारा आओर चन्द्रमाक पूजा उज्जर फूल सँ कयल जाइत अछि मुदा गौड़ीक पूजा सिनूर व रंगक फूल सँ होइत अछि ।

मधुश्रावणीक अरिपन मुख्यरूपें मैनाक पात पर लिखल जाइत अछि । जतS व्रती बैसिकS पूजा करैत छथि आ एकर दूनू कात जमीन पर सेहो अरिपन बनाओल जाइत अछि । जमीन परहक अरिपनके ऊपर मैनाक पात राखल जाइत अछि । बामा कातक पात पर सिनूर आ काजरकें एक आंगूर सँ एक सौ एक साँपक चित्र पारल जाइत अछि जकरा “एक सौ एकन्त भाई” कहल जाइत अछि । एहिमे वौरस नामक नागक पूजा मुख्यरूपें होइत अछि । एहि पावनिमे मैना पातक उपयोग एहि दुआरे कयल जाइत अछि जे पुराणमे कहल गेल अछि कि हिनक पालन-पोषण एहि मैना पातक बीच होइत छन्हि । संगहिं मैना पातक रासायनिक गुणक कारणें एकटा वशीकरण शक्तिक स्रोत सेहो मानल जाइत अछि ।

पूजाक अवधिमे शिव-पार्वतीक विभिन्न कथा सेहो कहल जाइत अछि । जाहिमे प्रमुख अछि – ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘बिसहारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल वसंत’ आदि ।

श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया ताहि दिन वर पुनः नवविवाहिताके सिन्दूरदान करैत छथि, जकरा तेसर सिन्दूरदान कहल जाइत अछि । एहि सँ पहिने वियाहक राति पहिल बेर आ चारि दिनक बाद चतुर्थीक भोरमे दोसर बेर सिन्दूरदान होइत छैक । तैं ई तेसर सिन्दूरदानक पर्व मिथिलांचलक नारी संस्कृतिक परिचायक थिक । पतिक दीर्घजीवनक मंगलकामना करबाक सबसँ विशिष्ट पावनि मधुश्रावणी मैथिल ललनाक समर्पित एवम् सहिष्णुताक कामना, निष्ठा व संस्कृतिक पारम्परिक परम्पराक प्रति प्रेमक प्रतीक थिक । जय श्री हरि ।

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