मिथिला मे लोककलाक विकास आ स्थानीय बाजारक सम्भावना ::डॉ कैलाश कुमार मिश्र
लोककला प्राचीन समय सँ सौन्दर्य आ उपयोगिताक बीच तारतम्य बैसबैत रहल अछि। मोटा मोटी धरोहर केँ लोक आ विद्वान दू श्रेणी मे बटैत छथि:
1. टेनजिबल (Tangible) सांस्कृतिक धरोहर आ
2. इनटेनजिबल (Intangible) सांस्कृतिक धरोहर
अहि दुनू शब्दक अनुवाद बहुत दुष्कर अछि मुदा एकर अर्थ स्पष्ट अछि। हम अनुवादक प्रक्रिया केँ छोड़ैत अर्थक टोह मे चलैत छी: टेनजिबल सांस्कृतिक धरोहर केर अर्थ भेल ठोस, दृश्य आ एहेन रचना जेना कि पैघ मूर्ती, हवेली, मदिर, धार्मिक स्थल अथवा स्थापत्यकलाक कोनो प्रतिमान जकरा लोक देख सकैत अछि, छुबि सकैत अछि, जे हवा, पानि, बसात आदि सँ सहजे नहि समाप्त भऽ सकैत अछि, जे सैकड़ो हजारो वर्ष धरि यथावत रहि सकैत अछि, जे ठोस अछि, सक्क्त अछि। दोसर श्रेणी अर्थात इनटेनजिबल सांस्कृतिक धरोहर भेल ओहेन वस्तु अथवा कला अथवा धरोहरक स्वरुप जे तन्नुक अछि, कतेक वस्तु एहनो अछि जकरा देखल नहि जा सकैत अछि, सुनल जा सकैत अछि, अनुभव कऽ सकैत छी; जे दृश्यमान तऽ अछि मुदा एहेन वस्तु यथा कागत, वस्त्र, बल्कल, आदि पर बनल अछि; किछु एहेन परम्परा अछि जे मनुष्य द्वारा अभिनय, गायन, वाचन आदि द्वारा होइत अछि आ जकरा दिस लोक उदासीन भेल जा रहल अछि। इ सब भेल इनटेनजिबल धरोहर। एहि मे लोकगीत, नृत्य, लोकक्रीड़ा, लोकनाट्य, माटिक वस्तुक निर्माण, खेलौना, वस्त्र विन्यास, फकड़ा, कथा, पिहानी, गाथा, पाण्डुलिपि, चित्रकारी, गोदना कला, आदि अबैत अछि।
मिथिलाक जाहि तरहक भूगोल आ पारिस्थिकी रहल अछि ताहि मे प्रथम श्रेणी अर्थात टेनजिबल धरोहरक बहुत स्कोप नहि अछि। यद्यपि बिगत किछु वर्ष मे आर्कियोलॉजिकल उत्खनन सँ नाना तरहक मूर्ती आ स्थापत्यकलाक अवशेष आ भग्नावशेष निकलि रहल अछि। एकर सही विवेचन आ सघन उत्खनन एक नव इतिहासक निर्माण कऽ सकैत अछि। बहुत गर्त मे झापल तथ्य सब प्रकाश मे आबि सकैत अछि। इ सब तथ्यक उपरान्तो हमरा लगैत अछि जे मिथिलाक धरती इनटेनजिबल धरोहर लेल अधिक प्रमाणिक अछि। जखन इनटेनजिबल धरोहर केर बात करैत छी तऽ ओहि मे साकांक्ष रहनाई आवश्यक भऽ जाइत अछि। अहि मे अपन सबहक सब कला नहियो तऽ 90 प्रतिशत सँ उपर केर चीज़ सब आबि जाइत अछि। कलाक स्थिति, एकर इतिहास, वर्तमान आ भविष्यक सम्बन्ध मे विद्वान सँ कलाकार तक, नीतिकार सँ सरकार तक, व्यापारी सँ ग्राहक तक, घर सँ बाहर तक सबके सोचक अछि। विश्व बाज़ारक माँगक हिसाबे कलाकृतिक निर्माण, नूतन प्रयोग, एक विधाक दोसर विधा संग समायोजन, देशक विभिन्न भाग मे प्रचलित कला सँ सन्दर्भ, विश्वक कला संग तालमेल, बाज़ारक अनुसारे आचरण, कलाकार मे अर्थशास्त्रक ज्ञान, कला केँ बेचबाक तकनिकी, कला संग स्वास्थ्य, सफाई आदिक भान, विश्वक घटना आ समस्याक कला द्वारे सम्प्रेषण आदि किछु एहेन आवश्यक स्थानीय, देशीय आ वैश्विक पक्ष अछि जाहि पर कलाकार केँ चलक छनि। सुचनातंत्रक युग मे विश्व सँ अलग-थलग कोना रहि सकैत छी? आइ मिथिलाक कला मे बहुत प्रयोग भऽ रहल अछि। किछु कला आगा बढ़ल अछि तऽ किछु लुप्तप्राय भऽ रहल अछि। कतेक कलाक प्रति लोकक उदासीनता नहि बुइझ पाबि रहल छी। किछु कला नीक लेल अलग रूप लऽ रहल अछि तऽ किछु अधलाह लेल! कलाक वैश्विक बाज़ार लेल बहुत तंत्र, संस्था, लोक, व्यापारी काज कऽ रहल छथि। सरकार सेहो लागल अछि। अहिबात सँ संतोष भऽ रहल अछि। मुदा बात अतए रुकक नहि चाही। आगा सेहो बढ़क चाही। हमर मान्यता अछि जे जाबेत धरि अपन कलाक पारखी हम सब अर्थात मैथिल नहि बुझब, अपन कलाक स्वयं उपयोग नहि करब, अपन कलाक ग्राहक नहि बनब ताबेत धरि आनकेँ कोन मुहे कहबैक? के सुनत? उपर सँ हम सब कहैत छी जे भारतक मिथिला आ नेपालक मिथिला मिला हम सब 8 करोड़ लोक छी। अहि पर हमरा कोनो शंका नहि अछि। अगर नियम बना ली जे सब मैथिल प्रतिवर्ष 100 टका केर बजट मिथिला चित्रकला लेल राखब तऽ डोमेस्टिक खपत 800 करोड़क भेल। भऽ सकैत अछि 25 प्रतिशत लोक 100 टका केँ नहि लेथि। इहो तऽ भऽ सकैत अछि जे 25 प्रतिशत लोक जे आर्थिक रूप सँ प्रबल छथि देशी आ विदेशी धरती पर रहि रहल छथि ओ 500-1000 टकाक लेथि? हम अहि आलेख मे अपन ध्यान डोमेस्टिक बाज़ार आ खपत पर रखैत ओकर विभिन्न पक्ष आ इ बात कोना संभव अछि ताहि पर चर्च करैत छी।
मिथिलाक सब कलाक वर्णन हमरालोकनि केँ इतिहास, भाव इतिहास, लोक इतिहास, धर्म-इतिहास, भाव-भूगोल आदि मे भेटैत अछि। मिथिला अदौ सँ लोक आ शास्त्र एवम शास्त्र आ कला आ सबहक बीच सामंजस्य हेतु प्रख्यात रहल अछि। मिथिला तीर्थक्षेत्रक संग-संग ज्ञानक्षेत्र आ कलाक्षेत्र सेहो रहल अछि। पुराण मे मिथिला केँ सर्वश्रेष्ठ देश कहल गेल अछि। अहि भूमि केँ ज्ञानक्षेत्र, तीर्थक्षेत्रक संग-संग धरती पर स्वर्गक संज्ञा सँ विभूषित कएल गेल अछि। बंगालक वैष्णव संतकवि कर्णपुर अपन ग्रन्थ “पारिजातहरणमहाकाव्य” मे एक प्रेरक प्रसंग लिखैत छथि। कृष्ण अपनी प्रेयसी सत्यभामाक संग वायुमार्ग सँ अमरावती सँ द्वारका जा रहल छथि। मिथिला मे प्रवेश करैत देरी कृष्णक आँखि आनंदक नोर सँ भरि उठैत छनि! सत्यभामा ओंघाएल छथि। हुनका झकझोरेत कृष्ण कहैत छथिन:
“हे सुन्नरि! हे कमल नयनी! निचा ताकू, देखू! यैह थिक जनकपुत्री जानकीक जन्मभूमि, जतय केर विद्वानक जिह्वा पर ठाढ़ भेल विद्याक देवी सरस्वती सतत नृत्य करैत रहैत छथि!”
यजुर्वेद संहिता सँ पता चलैत अछि जे ब्राह्मण युग मे विदेहक राजनैतिक आ सांस्कृतिक महत्त्व बराबर छल। पश्चिम मे जे स्थान कुरु पंचालक लोकक छल वएह स्थान पूर्व मे कौशल आ विदेहक छल।
किछु विद्वानक मान्यता छनि जे शतपथब्राह्मण ग्रन्थक रचना विदेह मे कएल गेल। जातक, बौद्ध साहित्य, तन्त्र-ग्रन्थ (आ तन्त्र परम्परा), अध्यात्म रामायण, रामायण आदि ग्रन्थ सब मे विदेहक वैशिष्ट्यक विश्लेष्ण प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध अछि।
महाभारतक शान्तिपर्व मे एक स्थल पर जनक-यज्ञवल्क्य वार्तालापक प्रेरक प्रसंग अबैत अछि।
महाकवि भास अपन नाटक स्वप्नवासवदत्तम् केर अंक 6 मे उदयन केँ वैदेही पुत्र कहने छथि। बिम्बिसारक पत्नी आ अजातशत्रुक माय वासवी विदेह-पुत्री छलीह। वर्धमान महावीर विदेह-पुत्री विदेह-दत्ताक पुत्र छलाह आ बहुत काल धरि विदेह मे व्यतीत केने छथि एहेन प्रमाण भेटैत अछि। महावीर 6 वर्षक प्रवास सेहो विदेह मे बितेने छलाह। महावीर आ बुद्धक समय मे जे वृज्जिसंघ छल ओकर दू टा प्रमुख सदस्य लिच्छवी आ विदेहक लोक छलाह। अही वृज्जि संघकेँ कौटिल्य राज शब्दोपजीवी संघ कहैत छथि। विदेह मे वन सम्पदा आ प्राकृतिक सम्पदाक अकूत भण्डार छल धन, जन, पशु, कोनो वस्तुक अभाव नहि छलैक।
प्राच्य मे रहनिहार काशी, कौशल, मगध, आ विदेहक लोक मे विदेहक लोकक विशिष्ट स्थान देल गेल अछि। विदेहवासीक यशक चर्च बेर-बेर भेटैत अछि।
जैन आ बौद्ध धर्मक ग्रंथ (पाण्डुलिपि) मे मिथिलाक लेल गणराज्य शब्दक प्रयोग कएल गेल अछि, अहि स पता चलैत अछि जे मिथिलाक कतेक महत्वपूर्ण स्थान रहल हएत।
लोक मान्यता कहैत अछि जे जखन सीता माटि सँ कुम्भ मे प्रकट भेलीह तखने मिथिला तीर्थक्षेत्र भऽ गेल। लोक आनंद मे नृत्य करय लागल। इन्द्र प्रसन्न भेल पानि संग फुल आ सुगंधिक वर्षा करऽ लगलाह। गायक आ मधुर वाद्ययंत्र वादक स्वर्ग सँ मिथिलाक भूमि मे रसनचौकी केर वाद्ययंत्रक संग उतरलाह। मिथिला गीतमय-संगीतमय-नृत्यमय-वाद्यमय भऽ गेल। कला नव स्वरुप मे उत्पन्न भेल। जातकक अनुसार विदेह मे 16000 ग्राम, 16000 नर्तकी, आ असंख्य मात्रा मे रथ, घोड़ा, हाथी, बरद, गाय, आ अनेक जानवर आ ने जानि की की छलैक।
जखन राम लक्ष्मण संग विश्वामित्र जनकपुर अबैत छथि तऽ मिथिलाक घरक देबार, सड़क सब अनेक तरहक रंगक संयोजन सँ कलाकृतिक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण दैत छल। चित्रकारी देखि सब कियोक मुग्ध भऽ जाइत छथि। तुलसीदास रामचरितमानस केर बालकाण्ड मे लिखैत छथि:
बनइ न बरनत नगर निकाई।
जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥
चारु बजारु बिचित्र अँबारी।
मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी॥1॥
नगरक सुंदरताक वर्णेका नहि। मोन जतऽ जाइत अछि, ओतहि रमि जाइत अछि, लोभा जाइत अछि। बाज़ार सुन्दर अछि। मणि माणिक्य सं बनल छत्र एना लागि रहल अछि जेना स्वयं ब्रह्मा अपने हाथे बनेने होथि!
मिथिला मे लोककला कुटीर उद्योगक रूप नहि लऽ सकल अछि। सबस पहिने कलाक विविध स्वरुप बुझनाई जरुरी। कला मे अनेक स्वरुप अछि मुदा किछु के चर्च हम कऽ रहल छी: प्रमुख कला अछि
1. मिथिला चित्रकला
2. खादी (सूत काटब, बुनकरी)
3. जनेऊ बनाएब
4. सुजनी/केथरी
5. टेराकोटा
6. सिक्की कला
7. लहठी
8. काष्ठकला
9. लोकगीत
10. लोकनाट्य
11. मिथिला रामलीला
12. कथा पिहानी
13. रसनचौकी
14. बांसक सामग्री
15. मिथिलाक लोक क्रीड़ा
ओना आरो अनेक तरहक कला मिथिला मे अछि। सबहक चर्च संभव नहि मुदा जे प्रमुख चीज़ सब अछि ताहि पर विचार अवश्य कएल जा सकैत अछि। पहिने कहि चुकल छी जे एहि आलेख मे हम वैश्विक बाज़ार आ कलाक प्रचार पर बात नहि करब। हम डोमेस्टिक केँ सम्भावना पर बात करब जाहि पर कलाकार, समाज, समाजक नेता, योजनाकार, आ विद्वान लोकनि गंभीर भेल विचार कऽ सकैत छथि। प्रवासी मैथिल सेहो अपन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकैत छथि। स्पष्ट करैत चली जे एकर बहुत पैघ सम्भावना अछि। डोमेस्टिक बाज़ार बहुत पैघ आ पुष्ट अछि। एकर व्यवस्थापन सँ मिथिला क्षेत्र बहुत आगा बढ़ि सकैत अछि।
हम सब जनैत छी जे पूरा बिहार आ ओहू मे मिथिला क्षेत्र शिक्षा, विशेष रूप सँ लिखबा पढ़बाक स्थिति मे बहुत पाछा अछि। जातय भारतक लिटरेसी रेट 72.99 छैक ओतहि बिहार 61.8 पर अटकल अछि। बिहारो मे मुजफ्फरपुर छोड़ि मिथिलाक सब जिला 61.8 प्रतिशत सँ बहुत कम अछि। दरभंगा 56 प्रतिशत, मधुबनी 58 प्रतिशत, सीतामढ़ी 52 प्रतिशत शिवहर आ सहरसा 53 प्रतिशत पर अछि। इ बतबैत अछि जे हम सब कतेक पाछा छी। एकर विपरीत जनसँख्या घनत्व मे बहुत आगा। भारतक प्रति वर्ग किलोमीटर मे जनसंख्या घनत्व 382 मनुख छैक जखन कि बिहार मे 1106 । मिथिलाक जिलाक हालत दयनीय अछि: दरभंगा मे 1728, समस्तीपुर मे 1467, मुजफ्फरपुर मे 1514, सीतामढ़ी मे 1492 तऽ शिवहर मे 1880 । पूरा मिथिला मे सुपौल एक असगर जिला अछि जतय केर जनसँख्या घनत्व बिहारक औसत सँ कम अर्थात 919 छैक। सब तरहें बिहार कमजोर आ बिहार मे मिथिला कमजोर। एकमात्र क्षेत्र जाहि मे बिहार पूरा भारत मे तेसर स्थान रखने अछि से छैक सड़क निर्माणक गति मे – केरल आ पश्चिम बंगालक बाद बिहार शीर्ष स्थान पर अछि। अतय केर लगभग सब गाम सड़क सँ जुडि चुकल अछि। मिथिलाक गाम सब सेहो सड़क सँ जुडि गेल अछि। इ विकासक एहेन काज अछि जकरा देखल जा सकैत अछि।
स्त्री शिक्षा आ रोजगार मे सेहो बिहार आ मिथिला पिछरल अछि। जतय देश मे 31.1 % महिला सब विभिन्न विभाग मे काज कऽ रहल छथि ओतय बिहार मात्र 18.1 % पर अटकल अछि। यद्यपि राज्य सरकार अहि दिश साकांक्ष भेल अछि आ उचित दिशा मे काज भऽ रहल अछि। बिहार सरकार इहो निर्णय लेलक अछि जे सब सरकारी नौकरी मे महिला हेतु 35 प्रतिशत आरक्षण रहतैक। अहि दिशा मे नीक काज भऽ रहल छैक।
सबसँ ख़ुशीक बात इ जे बिहार सरकार भारत सरकार संग तालमेल बैसबैत पर्यटन आ संस्कृति केँ विकास लेल गंभीर बनल अछि। बिहार अपना केँ आठ सर्किट सँ जोड़ि रहल अछि:
1. बुद्धिस्ट सर्किट (Buddhist Circuit)
2. जैन सर्किट (Jain Circuit)
3. रामायण सर्किट (Ramayana Circuit)
4. शिव शक्ति सर्किट (Shiv Shakti Circuit)
5. सूफी सर्किट (Sufi Circuit)
6. सिख सर्किट (Sikh Circuit)
7. गान्धी सर्किट (Gandhi Circuit)
8. प्रकृति/ वाइल्डलाइफ सर्किट (Nature/ Wildlife Circuit)
इ जे उपरलिखित सर्किट अछि एकर बहुत महत्त्व छैक। सब सर्किट स मिथिला सोझे-सोझ जुड़ल अछि केवल सिख सर्किट सँ कनि घुमा कऽ। बुद्ध सर्किट सँ मिथिलाक सोझ सम्बन्ध रहल अछि। वज्रयानी तंत्रक मिथिला गढ़ रहल अछि। बुद्ध बहुत दिन मिथिला मे रहल छथि। यएह बात जैन सर्किट संगे सेहो अछि। रामायण सर्किट केँ तऽ की कहि! अहिल्या स्थान सँ चलैत, मंगरौनी, धनुखी, कनैल, सतलखा, पुनौरा धाम (सीतामढ़ी) होइत जनकपुर। एकरा अतिरिक्त लोकमान्यता केँ हिसाबे बहुत गाम, स्थान जरुर हएत जे रामायण सर्किट केर हिस्सा भऽ सकैत अछि।
यएह स्थिति सहरसा केँ वारंटनगर, दरभंगा केँ वराटनगर आ नेपालक मिथिलाक वराटनगर संग अछि। मान्यता अछि जे पाण्डव अज्ञातवासक समय मे किछु दिन मिथिला मे छलाह। अंग सँ जे मिथिला के जोड़ि दी तऽ बाते अलग भऽ जाएत। फेरो बुद्धिस्ट सर्किट विस्तृत आकार लऽ सकैत अछि। मिथिला मे अनेक सूफी संत भेलाह, हुनकर मजार अछि, हुनका सँ सम्बन्धित आख्यान अछि। सब स्थान ताकल जा सकैत अछि। शिव शक्ति सर्किट लेल मिथिला प्रबल स्थान अछि। कपिलेश्वर, सिम्हेश्वर, उगना महादेब, उचैठ स्थान, डोकहर, महिषी आदि अहि सँ सहज रूप सँ जुडि सकैत अछि।
मिथिलाक गामे-गाम पोखरि इनार सँ भरल पड़ल अछि। पोखरि सब अंतिम साँस लऽ रहल अछि आ पचहतर प्रतिशत इनार भसि गेल। कतेक छोट पैघ नदी मिथिला मे बहैत अछि। पानिक प्रचुर भण्डार अपना लग उपलब्ध अछि।
जखन रामायण सर्किट केर बात करैत छी तऽ बेर-बेर तुलसीदास स्मरण अबैत छथि। मिथिला तीर्थ क्षेत्र भऽ जाइत अछि। तुलसीदास फेर लिखैत छथि:
धनिक बनिक बर धनद समाना।
बैठे सकल बस्तु लै नाना।
चौहट सुंदर गलीं सुहाई।
संतत रहहिं सुगंध सिंचाई॥2॥
कुबेरक समान श्रेष्ठ धनीक व्यापारी सब प्रकारक वस्तुक संग दोकान मे बैसल छथि। चौराहा सुन्दर लगैत अछि आ गली-कुची सब सदैव बढियाँ सँ सुसज्जित आ सुगन्धित रहैत अछि।
लोकक घर द्वार परिवारक चर्च करैत तुलसीदास लिखैत छथि:
मंगलमय मंदिर सब केरें।
चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें॥
पुर नर नारि सुभग सुचि संता।
धरमसील ग्यानी गुनवंता॥3॥
सबहक घर मंगलमय लागि रहल छैक आ ओहि पर चित्र कढ़ल छैक, जकरा एना लगैत अछि जेना कामदेवरूपी चित्रकार अंकित केने हो। नगरक स्त्री-पुरुख, पवित्र साधु स्वभावक धर्मात्मा, ज्ञानी आ गुणवान छथि।
राजा जनक केर निवासक चर्च एना कऽ रहल छथि:
अति अनूप जहँ जनक निवासू।
बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू॥
होत चकित चित कोट बिलोकी।
सकल भुवन सोभा जनु रोकी॥4॥
जतऽ जनकजीक अत्यन्त अनुपम महल अर्थात निवास स्थान छनि ओकर सौन्दर्य आ विलासिता देखि मनुख के कहैत अछि देवतो अचम्भित छथि। राजमहलक कोट परकोट एना लागि रहल अछि जेना समस्त लोकक शोभा लेने ठाढ़ हो!
धवल धाम मनि पुरट पट
सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुंदर सदन
सोभा किमि कहि जाति॥213॥
उज्ज्वल महल सब मे अनेक प्रकारक सुंदर रीति सँ बनल मणि जटित सोनाक जरीक परदे लागल छैक। सीताजीक रहक हेतु सुंदर महलक शोभाक वर्णन भला कोना कएल जा सकैत अछि?
सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा।
भूप भीर नट मागध भाटा॥
बनी बिसाल बाजि गज साला।
हय गय रख संकुल सब काला॥1॥
राजमहलक सब दरवज्जा सुन्दर छैक जाहि मे वज्र सनक केवाड़ लागल छैक। ओहि वज्र केवाड़ मे हीरा माणिक्य जड़ित छैक। महल लग नट, मागध आ भाट सबहक भीड़ लागल रहैत छैक। घोड़ा आ हाथी लेल पैघ-पैघ घुड़साल आ हथिसार बनल छैक जे सदिखन घोड़ा आ हाथी सँ भरल रहैत छैक।
प्राकृतिक वाइल्डलाइफ सर्किट हेतु सिमरिया, कोसीक क्षेत्र, पुरनिया आदि क्षेत्रक विकास कएल जा सकैत अछि। प्रयागराजक बाद मिथिला लग सोन-गण्डक-गँगाक त्रिवेणी संगम बनैत अछि। सिमरिया गंगाक महात्म्य सही ढंग सँ प्रचारित नहि कएल जा रहल अछि। मिथिलाक आम आ आमक वन बहुत प्राचीन समय सँ प्रख्यात अछि। रामचरितमानस मे तुलसीदास लिखैत छथि:
देखि अनूप एक अँवराई।
सब सुपास सब भाँति सुहाई।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना।
इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥
ओतहि आमक एक अनूप कलम देखि, जतए सब सुविधा उपलब्ध रहैक आ जे सब तरहें सुहावन छल, विश्वमित्र रामकेँ संवोधित करैत कहैत छथिन “हे सुजान रघुवीर! हमर मोन कहि रहल अछि जे अहिठाम रहल जाए”।
आमक महत्त्व आइयो धरि नहि घटल अछि मिथिला मे। जखन मालवा सँ मलिक परिवारक लोक अर्थात गबैया ध्रुपद संगीत लेल दरभंगा एलाह तँ महाराज कहि देलथिन जे उपयुक्त जगह रहबाक हेतु देखू। ओ सब एक साफ़ आ सुंदर आमक गाछी मे रहब स्वीकार कएलनि। ओहि आमक गाछी सँ आमता घराना भऽ गेल। हरेक गाम, शहर केँ छोट पैघ पोखरिक अपन कथा, दंतकथा आ लोक इतिहास अछि।
तहिना गांधीजी केँ खादी पर सर्वाधिक नीक प्रयोग मिथिलाक स्त्रिगन केलनि। मुसलमान बुनकर अथवा जुलहा सब ओहि तागक वस्त्र बुईन नव स्वरुप देलाह। कतेक आश्रम बनल। जखन विनोबा भावे भूदान आ ग्रामदान आन्दोलन चलेलनि ताहि समय मे मिथिला मे लोक बहुत भूमि दान मे देलकनि। अनेक ठाम पैघ भू-भाग मे खादी भण्डार बनल। मधुबनी दरभंगा क्षेत्र मे स्त्रिगन द्वारे काटल सूत विश्व मे प्रसिद्ध भेल। सब चीज़ केँ पुनः गान्धी सर्किट सँ जोड़ि जीवन्त कएल जा सकैत अछि।
जखन-जखन रामायण सर्किट के बात कहैत सुनैत छी तऽ लगैत अछि जे कनिक जँ साकांक्ष भऽ जाई हम सब तऽ बहुत सुंदर भऽ सकैत अछि मिथिला। रामायण आ रामचरितमानस मे वर्णित मिथिला केर सर्किट संगे ओही सौन्दर्य सँ विकसित कएल जा सकैत अछि।
एकर प्रमाण रामचरितमानस मे भेटैत अछि जे अतय केर इनार, पोखरि, नदी कहेन प्रबल अछि। तुलसीदास लिखैत छथि:
पुर रम्यता राम जब देखी।
हरषे अनुज समेत बिसेषी॥
बापीं कूप सरित सर नाना।
सलिल सुधासम मनि सोपाना॥3॥
राम जखन जनकपुरक शोभा देखलनि, तखन अपन अनुज लक्ष्मण सहित बहुत अनादित भेलाह। कारण मिथिला मे हुनका बड़का बड़का बावरी, इनार, नदी आ पोखरि भेटललनि, जाहि मे अमृत सन पानि रहैक आ मणि माणिक्य सँँ जरित सीढ़ि।
गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा।
कूजत कल बहुबरन बिहंगा॥
बरन बरन बिकसे बनजाता।
त्रिबिध समीर सदा सुखदाता॥4॥
मकरंद रस सँ मातल भमरा सुंदर गुंजार कऽ रहल अछि। रंग चिरै मधुर बोल बाजि रहल अछि। कमल खिलल अछि। ऋतू मे शीतल मंद सुगन्ध पवन बहि रहल अछि:
सुमन बाटिका बाग बन
बिपुल बिहंग निवास।
फूलत फलत सुपल्लवत
सोहत पुर चहुँ पास॥212।
पुष्प वाटिका (फुलवारी), बाग आ वन, जाहि मे बहुत रास चिरै निवास करैत अछि, फूलल, फडत आ सुंदर पात सँ भरल नगर चारू दिशा सँ सुशोभित लागि रहल अछि।
रामायण सर्किट सं मिथिला मे मंगरौनी, सौराठ, पुनौराधाम (सीतामढ़ी), सतलखा, अहिल्या स्थान आदि के पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित कएल जा सकैत अछि। अतए देश विदेशक तीर्थयात्री आ पर्यटक आबि अतय केँ लोक आ कला आ कलाकार केँ लेल अमृतक बुंद बनि सकैत छथि। तीर्थे के नाम पर वनारस मे शिल्क, खेलौना, साहित्य आदि विकसित भेलैक। तीर्थयात्री सब सन्देश मे मिथिला चित्रकला, लोक कलाक वस्तु लऽ जा सकैत छथि। वैष्णव देवी केँ मन्दिर मे सुखाएल शेव, आदिक प्रसाद बनैत अछि। बादाम आदि महाग होइत छैक। मिथिलाक मखान कम वजनक करण इकनो सबसँ सस्ता आ विलक्ष्ण प्रसाद अछि जकरा घरक सब कियोक खा सकैत अछि।
पानिक संचरण, सुरक्षा आ ओकर सफाई आजुक सबसँ पैघ जरूरत अछि। कहि चुकल छी जे सब नदी, पोखरि जलकर केर अपन फोकलोर छैक। ओहि कथा केँ पानिक उत्सव मना कलाकार सबकेँ प्रेरित कए ओहि कथाक चित्रण कए कथा आ चित्रकारी मे नव-नव बिम्ब आ चित्रक प्रयोग कएल जा सकैत अछि। ग्राहक केँ नव चीज़ भेटतैक। नव ऊर्जा भेटतैक। जलकरक रक्षा सेहो हेतैक। लोक संस्कृतक धरोहर दिस साकांक्ष हेताह।
हम महाराष्ट्र राज्यक बीड मे भ्रमण करैत रही। ओतय एक सरकारी स्कूल मे गेलहुँ। एक दूर दराज मे अवस्थित सरकारी स्कूलक देबार, सीलिंग, आ पूरा कैंपस रंग आ आधुनिक चित्रकला सँ भरल। विज्ञान, भोगोल, इतहास आदिक चित्र आ मूर्ती बनल। मोन रमि गेल। जखन पता केलहुं तऽ ज्ञात भेल जे जिलाक एक युवा चित्रकारक दल अपन रोजगार केँ जोगार मे किछु प्रधानाध्यापक लग गेल। हुनका सं निवेदन केलक जे ओ सब शिक्षक सँ किछु चन्दा कए युवक सब केँ देथि। फेर सब विद्यार्थीक माता पिता सँ निवेदन केलक। अंत मे ग्रामसभा केँ प्रतिनिधि, शिक्षक आ विद्यार्थी सबहक माता पिता संग कलाकार सब एक समवेत सभा केलि। ओहि सभा मे इ निर्णय लेल गेल जे विद्यालय केँ सुन्दर बनेबा मे सबहक भूमिका रहत। कलाकार सब अपन पारिश्रमिक मे चालीस प्रतिशत छुट देताह, माता-पिता यथासाध्य पैसा देथिन्ह, शिक्षक सब अपन वेतन सँ किछु अंश दान करताह आ अंत मे ग्रामसभा सेहो अपन फण्ड सँ सहयोग करत। फेर की छल। प्रयोग शुरू भेल। देखैत देखैत किछुए दिन मे स्कूल कलात्मक भऽ गेल। आब ओ सब गामे-गामे घुमि सब स्कूल मे अहि प्रयोग केँ दोहरेनाइ शुरू केलनि। जिलाक एक एक स्कूल सुंदर भऽ गेल। संस्कार-स्वरुप बदलि गेलैक। जे देखलक दंग भऽ गेल। विन-विन बला स्थिति भऽ गेलैक। कलाक प्रचार भेलैक, विद्यार्थी केँ स्कूलक वातावरण बदलि गेलैक। सफाई बढ़ि गेलैक आ कलाकार केँ रोजगार भेट गेलैक। महाराष्ट्र मे आइयो लोक तमासा आ अपन लोक नाटक देखैत अछि। एहि सँ कला आ कलाकार दुनूक संरक्षण, उत्साहवर्धन आ संवर्धन होइत छैक। हमरा लोकनि सेहो अपन प्रयास सँ अहि तरहक प्रयोग मिथिलाक सब स्कूल मे कऽ सकैत छी। कला मूर्तमान भऽ उठत। कलाकर केँ रोजगार भेटतैक। विद्यार्थी, माता-पिता (अभिभावक), शिक्षक, गामक प्रतिनिधि आ सरकार सब कियोक विकास मे समिधा देबाक पात्र बनत। मिथिलाक पहिचान कलाक्षेत्रक रूप मे होमय लागत। मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सुपौल, बेगुसराय, मुगेर, भागलपुर, बांका आदिक सब स्कूल सुंदर भऽ उठत।
बात आगो बढ़ि सकैत अछि। जेना जयपुर केँ पिंक अथवा गुलाबी शहर कहल जाइत छैक तहिना मिथिलाक सब नगर आ शहर केँ मिथिला चित्रकारी शहर कहल जा सकैत अछि। अहि लेल सब केँ एक संगे बैसक जरुरत अछि। इ प्रयोग मिथिला केँ कहैत अछि समस्त बिहार केँ एक नव आ कलातमक स्वरुप सँ भरि सकैत अछि। एकाएक पर्यटन मे चमत्कार आबि सकैत अछि। बहुत संख्या मे देशी आ विदेशी पर्यटक केँ आकर्षित कऽ सकैत अछि।
मिथिलाक मन्दिर, कम्युनिटी हाल, पब्लिक प्लेस केँ कला सँ सजाएल जा सकैत अछि। प्रवासी मैथिल सबकेँ निवेदन कएल जा सकैत अछि जे ओ सब किनको विवाह, जन्मदिन आदि मे जँ जाथि तऽ गिफ्ट केँ रूप मे मिथिला पेन्टिंग अथवा मिथिला कलाक कोनो वस्तु देथि। खाद्य सामग्री यथा ड्राई फ्रूट्स आदि देबाक इच्छा छनि तँ मखानक बनल वस्तु देथि। जँ मखान देथि तँ बांसक वरतन अथवा सिकी केँ मौनी मे देथि। एहि सँ एक संग मिथिलाक तीन कलाक कल्याण हएत तीनू केँ आर्थिक लाभ भेटत। रोजगार बढ़त।
खादीक क्षेत्र मे मिथिला अपन सूत आ बुनकरी दुनू विधा मे प्रख्यात छल। खादी भण्डार सब मृतप्राय भऽ चुकल अछि मुदा मिथिलाक सब शहर आ पैघ गाम मे जमीन बांचल छैक। ओहि जमीन पर पुनः खादीक प्रयोग कएल जा सकैत अछि। खादी संग अचार, तिलौरी, अदौरी। दनौरी, पापर आ खादी वस्त्र आ अवयव पर चित्रकारी बना ओकरा डोमेस्टिक, राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मे बेचल जा सकैत अछि। किछु मॉडल सेंटर सह म्यूजियम बनाएल जा सकैत अछि। इ व्यवस्था जँ बढ़ियाँ सँ भऽ गेल तऽ बहुत सीमा धरि जाति-पाति, उंच-नीचक देबार तोड़ि सकैत अछि।
मिथिला सब क्षेत्रक संग-संग ज्ञानक्षेत्र सेहो रहल अछि। इ विद्वत परम्परा केर गढ़ अछि। एकरे प्रमाण वृद्ध वाचस्पति थिकाह। मिथिलाक अनेक गाम अपन संतानक विद्वता लेल जानल जाइत अछि। विद्वताक परम्परा एखनो विद्यमान अछि। सरिसब, सौराठ, कोइलख, महिषी आदि एकर उदाहरण अछि। मिथिलाक विद्वान परम्परा आ विद्वान सब सँ सम्बन्धित गाम आ कर्मक्षेत्रक सेहो रूट बनि सकैत अछि। हुनक उपलब्धि, यात्रा, संस्कार, जीवन चरित आदि पर कलात्मक प्रयोग भऽ सकैत अछि। कला के माध्यम सँ लोक हुनका बुइझ सकैत छथि। ओहि कलाक प्रसार-प्रचार कएल जा सकैत अछि। ओहिकेँ बाज़ार बनाएल जा सकैत अछि।
कलाक व्यवस्थित विकास मिथिला मे प्रवासी आ मिथिला मे रहयबला मैथिल संगे तारतम्य स्थापित कऽ सकैत अछि। दूनूक आवाजाही बढ़ा सकैत अछि। साहित्य एखनो धरि कोनो-ने-कोनो कारणे सब क्षेत्र, समुदाय आदि केँ लोक केँ नहि जोड़ि सकल अछि। इ बात कला मे नहि अछि। कला सबकेँ जोड़ैत अछि। सबकेँ कला प्रदर्शन करबाक आ अपन ज्ञानक उत्कृष्ट प्रमाण देबाक अवसर प्रदान करैत अछि। इ बात जँ साहित्य अकादमी आ मिथिला पेन्टिंग मे पद्मश्री अथवा अन्य पुरुष्कार सँ करब तऽ स्पष्ट भऽ जाएत।
जरुरी अहि बातक अछि जे हम सब कला आ कुटीर उद्योगक बात सबस पहिने अपन धरा पर करी। पहिने स्वयं अपन कला केँ बूझी आ कलाकार केँ सम्मान करी हुनकर आर्थिक स्थितिक ध्यान राखी। अगर से भऽ गेल तऽ कला समस्त संसार मे पूज्य हएत। एकर बाज़ार बढ़ले जाएत। यएह भेल कलाक सार्वभौमिकता। एहिलेल मिथिला केँ सब लोक केँ एक होमय पड़त। जखन एक हएब, साकांक्ष हएब तऽ कला बढ़त कलाकार आनंदित भेल नित नूतन प्रयोग करत आ मिथिला यशक भागी बनत।
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मिथिला पेंटिंग : Mukti Jha