संगीत : मैथिली संस्कृतिक एकटा अभिन्न अंग

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संगीत : मैथिली संस्कृतिक एकटा अभिन्न अंग

संगीत मैथिल संस्कृतिक एकटा अभिन्न अंग मानल गेल अछि। प्राचीनकालहि सँ मिथिला में संगीतक पद्धति चलि आबि रहल अछि। १४हम शताब्दी में मिथिला में संगीत पर सिंह भूपाल “संगीत-रत्नाकर-व्याख्या” नामक ग्रंथ लिखने छलाह। १६हम शताब्दी में जगद्धर “संगीत सर्वश्व” नामक ग्रंथ लिखलन्हि आ ओकर तुरंत बाद खड़गराम आ कल्लीराम “लच्छिराघव” नामक ग्रंथक रचना कयलन्हि। लोचनक “राजतरंगिणी” त सर्वप्रसिद्ध अछिए जकर उल्लेख करबाक आवश्यकता नहिं अछि।
मिथिला में संगीतक प्रारंभ वैदिक गान सँ मानल जाईत अछि। गौतम, भृगु, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य आदिक आश्रम में वैदिक यज्ञ आ गान सदैव होईत रहैत छल आ ओ परंपरा मिथिला में सतत बनल रहल। जनक विदेहकेँ राजदरबार तँ सहजहि एकर आश्रय केन्द्र छल। वैदिक गान में ऋगवेदक मंत्रसमूह गाओल जाईत छल। सामवेदक गानक निर्माणमे मिथिलाक अपूर्व योगदान अछि। याज्ञवल्क्य संगीत विद्याकेँ मुक्तिमार्गक साधन मानैत छलाह – “वीणा वादन तत्वज्ञ: श्रुतिजातिविशारद:। तालज्ञश्चा प्रयासेन मुक्तिमार्गेनिगच्छति”। वैदिक गान में जकरा स्वरमंडल कहल गेल अछि ओहि समूहक सात स्वर केँ (स, री, ग, म, प, ध, नी) सप्तक कहल गेल अछि। संगीतक ई सात स्वर अपन-अपन स्थान पर निश्चित बनल अछि। एहि सात स्वरक फेर अलग-अलग समूह सेहो होइछ। १६हम-१७हम शताब्दी मे दामोदर मिश्र छ टा रागक स्थापना कयलन्हि। एक-एक रागक पाँच-पाँचटा रागिणी एवँ हुनक आठ-आठ पुत्र आ आठ-आठ पुत्रवधु। ओ राग के पुरुष आ रागिणीकेँ स्त्री मानलन्हि। भैरव, मालकोष, हिंडोल, दीपक, मेघ आ श्री- ई छ टा राग भेल। “गीत-गोविन्द” केँ प्रबंध काव्यक गानक रूप में मानल गेल अछि। “वाग्देवता चरित्रचित्रित चित्रसद्मा…..करोति जयदेव कवि प्रबंधम्”।

ओकर बाद एहि श्रेणी में विद्यापति ठाकुरक पद्मावली सेहो अबैत अछि। विद्यापति स्वयं एक संगीतकार छलाह। मिथिला में “नचारी” आ “लगनी” अखनहु प्रसिद्ध अछि। मिथिला में संगीतक प्रमुख केन्द्र रहल अछि दरभंगा। आइन-ए-अकबरी में विद्यापतिक नचारीक उल्लेख अछि आ संगहि ६ रागक ६-६ रागिणीक उल्लेख सेहो अछि। पचगछिया मिथिला संगीतक एकटा प्रधानकेन्द्र अद्यावधि मानल जाईत अछि। एहिठामक रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंहक दरबार में माँगन खबास सन प्रसिद्ध गबैया रहैत छलाह।

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