“दरभंगामे धूम मचौने छथि आदरणीय शंकर झाजी”
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किछु गोटेके प्रश्न हेतन्हि – “की प्रयोजन छलन्हि शंकर झाजीकें जे कर्मभूमि मुंबईसँ जन्मभूमि दरभंगाक जमीन पर चौबीसो प्रहर एतेक बेशी मेहनत करबाक ?” वस्तुतः एहि तरहक प्रश्न उठब स्वाभाविको अछि । मुदा जखन जन्मभूमिक प्रति अन्तर्मनमे उठल एहेन टीस, जकरा किछु राजनीतिक दल अपन क्षुद्र स्वार्थ सिद्धिक लेल दोहन करबाक पैशाचिक प्रवृतिकें पाँछा अपस्याँत बनि, जोंक जकाँ शोणित पीबि कंकाल बना देलक, ओहिकें विरोध करबाक लेल मुखरता एवम् तल्लीनताक संग आवाज बुलन्द केनिहार कहाँ कियो मैथिल सपूत दृष्टिगोचर भS रहल छलाह ! व्यक्तिगत सफलता, सुख-ऐश्वर्य आदि अपन कर्मक फलस्वरूप प्राप्त होइत अछि मुदा ई सभ रहितहुँ अपन मातृभूमि, मातृभाषा, मिथिलाक भौगोलिक, सांस्कृतिक एवम् सामाजिक स्वरूपक रक्षार्थ सेवाक संकल्प लेब सभहक वशक गप्प नहि । एहि लेल चाही अन्तर्मनक शुद्ध आकुलता आ समाजके बदलि देबाक उद्दात संकल्प । शंकर झाजीक इएह आकुलताक प्रतिफल थिक जे दरिभङ्गा शहर एवम् ओहिठामक स्थानीय समस्या जेकर स्थिति विषम अछि, ताहिकें पूर्णरूपेण बदलि देबाक इच्छा शक्ति, मठाधीश लोकनिकें वा तथाकथित जनप्रतिनिधिकें अनसोहांत लागि रहल छन्हि ।
जन्मभूमिक सेवा करबाक ललक हेबाक चाही । सेवामे भौतिकताक प्रदर्शन कम्म समग्र समाजक उन्नति आओर सर्वांगीण विकासक भाव हेबाक चाही । स्वयंसँ ऊपर उठि समग्रताक प्रति अनाशक्त समर्पण, कठिनसँ कठिन स्थिति-परिस्थितिकें सरल व सुगम बना दैत अछि । जे मिथिला ज्ञानस्थली, साधनास्थली आओर समस्त जगत कल्याणक प्रति सदैव चिंतनशील रहल, वएह मिथिला वर्तमान समयमे अपन पूर्व स्वरूपकें प्राप्त करबाक लेल अपन समर्पित भूमिपुत्रक बाट जोहि रहल अछि । टकटकी लगाय निष्काम कर्मयोगीकें ताकि रहल अछि । आदरणीय शंकर झाजी ! अहाँ जाहि तरहें संकल्पक संग अपन अभियानकें आत्मसात करैत जननीक सेवा हेतु तत्परताक संग समर्पित भेलौं अछि, निश्चितरूपें नवजागरणक इजोतमे आशाक किरण बनि विषादक स्याहसँ समाजके बदलबाक सशक्त, सबल, प्रबल आ आशाक संचार समवेत रूपें दृष्टिगोचर भS रहल अछि ।
चिंतित ओ व्यक्ति हेताह वा छथि, जिनका अनुभव भS रहल छन्हि जे आब हमर निरंकुश सत्ताकें प्रबल चुनौती देनिहार ताल ठोकि हमरा ललकारि रहल छथि । संघर्ष भीषण छैक मुदा परिस्थितिजन्य चुनौतीकें अवसरमे परिवर्तित करेबाक कुबत अपनेमे अछि । समाज सेहो एहि यथार्थ सत्यकें अवसरमे बदलबाक लेल तैयार छथि । शंखनादक भीषण स्वरमे आत्मबलकें धारण करैत “प्रशस्त पूण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो” केर जय-ध्वनिके अनुसरण-अनुगमन करैत अपन मार्गकें अबाध गतियें अग्रसारित करैत रहुँ । सफलता स्वतः द्वारि पर आबि अपनेकें स्वागत करबाक लेल तैयार रहत । जय श्री हरि ।
बहुत निमन बिचार ऐछ,,,🙏
ऐ निक काज के लेल अगर हमरा स जे बैन सकता हम जरूर करब,,,,जय मिथिला जय मैथिली 💙🙏