मैथिली नाट्य-साहित्य : एकटा संक्षिप्त परिचय
काव्यक अन्तर्गत सर्वाधिक रमणीय रचना नाटक मानल गेल अछि – ‘काव्यषु नाटकं रम्यम् ।’ दृश्य एवं श्रव्य दुनू एकहि संग रहबाक कारणे काव्यक आन भेद सँ एकरा नीक मानल जाइछ । आचार्य भरत मुनिक ‘नाट्यवेदं तु पञ्चमम्’ सेहो बड़ प्रचलित अछि जकर तात्पर्य होइत अछि नाटक पांचम वेद थिक । संगहि भरत मुनि कहलनि जे ने तँ एहन कोनहुँ ज्ञान अछि ने शिल्प आ ने विद्या ओ कला एहन अछि आ ने तँ कोनहुँ योग वा कर्म एहन अछि जे नाटक मे नहि देखाओल जाय-
“न तज्जानं न तच्छिल्पं न सा विद्या न सा कला ।
नासौ योगौ न तत्कर्म नाट्ययेऽस्मिन्यत्र दृश्यते ॥”
भारतीय नाट्य शास्त्रानुसार नाट्य-साहित्य मूल रूप सँ दू कोटि मे विभक्त अछि -रूपक ओ उपरूपक । रूपकक दस गोट भेद अछि, जाहि मे नाटक रूपकक सभ भेद मे मुख्य अछि । उपरूपकक अठारह भेद अछि । वस्तुतः नाटक काव्यरत्नक मणिमय मुकुट थिक । प्रत्येक भाषा-साहित्य मे नाटकक प्राचूर्यक इएह कारण थिक, जे ओ सभ कें समान रूपेँ आह्लादित करैत आयल अछि ।
मैथिली नाटकक उत्पत्ति चौदहम शताब्दी मे भेल । संस्कृत संवाद ओ मैथिली गीत मिश्रित नाटकक परम्परा प्रारम्भ भेलैक । एहि प्रकारक पहिल मैथिली नाटक ज्योतिरीश्वरक ‘धूर्त्तसमागम’ प्रहसन थिक, जे दू अंक मे विभाजित अछि । पछाति विद्यापति ‘गोरक्षविजय’ आ ‘मणिमंजरी’ नाटिका लिखलनि । एकर बाद उमापतिक पारिजात-हरणक नाम अबैत अछि, जे श्रीकृष्ण कोना मानिनी सत्यभामाक मानक रक्षार्थ इन्द्रक वाटिका सँ सम्पूर्ण पारिजात वृक्षक हरण कय अनैत छथि, ताहि सँ सम्बन्ध अछि । जहिना गीत-परम्परा मे अनेको शताब्दी धरि विद्यापति व्याप्त रहलाह, तहिना नाट्य परंपरा केँ उमापतिक ‘पारिजात-हरण’ प्रभावित कयने रहल । एकर अतिरिक्त उल्लेखनीय नाटक मे कवि गोविन्दक ‘नलचरित’, मुरारि मिश्रक ‘अनर्धराघव’, शंकर मिश्रक ‘गौरिदिगम्बर’, रामदासक ‘आनन्द-विजय’, लालकविक ‘गौरि स्वयंवर’, नन्दीपतिक ‘कृष्णकेलिमाला’, रमापतिक ‘रुक्मिणी-परिणय’, गोकुलानन्दक ‘मानचरित’, श्रीकृष्ण मिश्रक ‘प्रबोध चन्द्रोदय’, हर्षनाथ झाक ‘उषाहरण’ आदि उल्लेखनीय थिक । एहि मे भागवत, महाभारत, पुराण आदिक चर्चा विशेष रूपे भेल अछि तथा कृष्णलीला-सम्बन्धी कथा कथानकक रूप मे विशेष गृहीत भेल । यद्यपि ई परम्परा हर्षनाथ झाक संग समाप्त भ’ गेल तथापि चन्दा झाक ‘अहिल्याचरित’, विन्ध्यानाथ झाक ‘रमेश्वरचन्द्रिका’ तथा बलदेव मिश्रक ‘राज-राजेश्वरी’ ओ ‘रमेशोदय’ नाटक धरि एकर प्रभाव रहल । वास्तव मे उन्नैसम शताब्दीक अन्त धरि मैथिली नाटकक विकास सन्तोषप्रद नहिं रहल, मुदा एही त्रैभाषिक नाटकक गर्भसँ आधुनिक मैथिली नाटक निःसृत भेल अछि ।
आधुनिक मैथिली नाट्य साहित्यक जनक कविवर जीवन झा मानल जाइत छथि । विशुद्ध मैथिली भाषा मे सर्वप्रथम नाटक लिखबाक लेल इएह प्रेरित भेलाह आ शिल्प ओ शैलीक दृष्टिएँ नाटक मे परिवर्तनक आरोपन कयल । हिनक चारि गोट नाटक ‘सुन्दर संयोग’, ‘सामवती’, ‘पुनर्जन्म’, ‘नर्मदा सागर’ एवं खंडित अंश ‘मैथिली सट्टक’ उपलब्ध अछि, जकरा एकठाम एकत्रित कय ‘कविवर जीवन झा रचनावली’ नामेँ मैथिली अकादमी प्रकाशित कयलक । ‘सुन्दर संयोग’ चारि अंक मे विभाजित सामाजिक नाटक थिक, जाहि मे नव विवाहित दम्पति सुन्दर आ सरलाक प्रेम विरह ओ मिलनक कथा चित्रित अछि । ‘नर्मदा सागर’ मे परिणय सँ पूर्वक प्रेमकथा चित्रित अछि । ‘सामवती पुनर्जन्म’ सात अंक मे विभाजित पौराणिक कथानक पर आधारित एक उत्कृष्ट नाटक थिक ।
तत्पश्चात् लालदास पौराणिक कथावस्तुक आधार पर ‘सावित्री सत्यवान’ नाटक दस अंक मे लिखलनि, जे सावित्री ओ सत्यवानक प्रणय-सम्बन्ध पर आधारित छैक । पतिक प्रति निष्ठा ओ आसक्ति केँ प्रदर्शित करैत एहि नाटकक अनेक गीत लालदासक अलंकार प्रियताक सफल उदाहरण थिक । मुन्शी रघुनन्दन दास छओ अंकमे ‘मिथिला नाटक’ लिखलनि, जाहिमे विशुद्ध राष्ट्रीयताक भावना सन्निहित अछि । हिनक ‘सुदर्शन’ ओ ‘दूतांगद व्यायोग’ नाटकक चर्चा सेहो कयल गेल अछि ।
सरसकवि ईशनाथ झा सामाजिक नाटक ‘चीनीक लड्डू’ तीन अंक मे लिखलनि, जे आधुनिक कुत्सित समाजक मर्म केँ उद्घाटित करैत अछि । हिनक ‘उगना’ नाटक तँ मिथिलांचलक कोनो एहन गाम नहि अछि, जतय मंचित नहि भेल होइ । एकर कथा विद्यापतिक शिव भक्ति आ ओहि सँ आह्लादित भय उगनाक रूप मे महादेवक विद्यापतिक चाकरी करब थिक ।
शारदानन्द झाक ‘फेरार’ नाटक राजनीतिक कथावस्तुक श्री गणेश करैछ । एहि मे १९४२ ई.क क्रान्ति आ तकर बादक ब्रिटिश सरकारक दमन चक देखौने छथि । पं. जीवनान्द झा दू अंकमे ‘दूर्गा विजय’ नाटक लिखलनि जे दुर्गा सप्तशतीक पाँचम अध्याय सँ एगारहम अध्याय धरिक कयास लय लिखल गेल ।
मंचनक दृष्टिएँ पं. गोविन्द झाक ‘बसात’, ‘तिक प्रणाम’ ओ ‘रुक्मिणीहरण’ बड़ ख्याति पओलक । मैथिल समाज मे नारी शिक्षाक अभाव, पति पत्नी मे जे असमानता देखल जाइत अछि तथा एहि असमानताक जे दुष्परिणाम होइत छैक-तकर सुन्दर चित्रण ‘बसात’ मे भेटैछ । नाट्य लेखन केँ सुधांशु शेखर चौधरी एक नव दिशा देलनि । ‘भफाइत चाहक जिनगी’, ‘लेटाइत आँचर’, ‘पहिल साँझ’, ‘मनुक्ख आ मनुक्ख’ एवं ‘एकतारा’ हिनक चर्चित नाटक थिक । दहेज प्रथाक दुष्परिणाम केँ चित्रित कय समाज केँ तकर विरोध करबा मे प्रयत्नशील होयब ‘लेटाइत आँचर’क उद्देश्य थिक । महेन्द्र मलगिया आ डॉ. अरविन्द कुमार ‘अक्कु’ आधुनिक नाटककार मे सर्वाधिक ध्यान आकर्षित कयलनि । महेन्द्र मलंगियाक ‘लक्ष्मण रेखा : खण्डित’, जुआएल कनकनी, ‘एक कमल नोरमे’ ‘ओकरा आंगनक बारहमासा’, ‘लेभराएल आ सीता’ एवं ‘बिरजू, बिलटू आ बाबू’ नाटकक सफल मंचन भेल अछि । ‘लक्ष्मण रेखा : खंडित’ आदर्शवादी नाटक थिक, जाहि मे विधवा-विवाह केँ आ तकर समस्या केँ नव दृष्टिएँ प्रस्तुत कयल गेल । अरविन्द कुमार ‘अक्कु’क ‘ताल-मुट्ठी’, ‘आगि धधकि रहल छै’, ‘पातक मनुक्ख’, ‘अन्हार जंगल’, ‘एना कतेक दिन’ ‘आतंक’ एवं ‘रक्त’ मंचनक दृष्टिएँ पूर्ण सफल रहल अछि ।
एकर अतिरिक्त आओर महत्वपूर्ण नाटक सभ अछि । विस्तारक भय रहबाक कारणे प्रमुख नाटक सभक मात्र नाम गनायब सम्भव अछि । पं. आनन्द झाक ‘सीता स्वयंवर’, पं. दामोदर झाक ‘गांधर्व विवाह’, डॉ. कांचीनाथ झा ‘किरण’क ‘विजेता विद्यापति’, मणीपद्मक ‘कण्ठहार’, ‘झुमकी’ ओ ‘तेसर कनिञा’, काशीनाथ मिश्रक ‘दिग्विजय’ आ ‘अयाची’, विद्यानाथ रायक ‘विद्यापति’, डॉ. रामदेव झाक ‘परिझैत पाथर’, गंगेश गुंजनक ‘आइ भोर’, उगयकान्त मिश्रक ‘मालिनी’, ‘नचिकेताक ‘एक छल राजा, ‘नाटकक लेल’ एवं ‘नायकक नाम जीवनम्’, भाग्यनारायणक झाक ‘मनोरथ’, छत्रानन्द सिंह झाक ‘प्रायश्चित्त’, बाबू साहेब चौधरीक ‘कुहेस’, विभूति आनन्दक ‘समय संकेत’, ‘गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’क ‘वरदान’, प्रबोधनारायण सिंहक ‘प्रेमक रोग’, गुणनाथ झाक ‘मधुयामिनी’, ‘पाथेय’, कनिञा-पुतरा’ ओ ‘लाल बुझक्कर’, उषा किरण खानक ‘एकसरि ठाढ़ि’ ओ ‘फागुन’ , घननाथ झाक ‘भगवती भक्त’, रवीन्द्रनाथ ठाकुरक ‘टू लेक’, ‘एक राति’ आ ‘जखने कहल कक्का हौ’, डॉ. सदन मिश्र ‘राजनर्तकी’, लल्लन प्रसाद ठाकुरक ‘बड़का साहेब’, ‘बकलेल’, मि. लीलो काका’ ओ ‘लौंगिया मरचाइ’ आदि नाटक मैथिली नाट्य साहित्यक अन्तर्गत मुख्यतः विविध भावधाराक प्रतिनिधित्व करैछ ।
नाटकक एकटा प्रवृत्ति आन भाषा-साहित्यक नीक नाटक सभक मैथिली अनुवाद करब सेहो थिक । एहि मे संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला ओ फ्रेंच साहित्यक उत्कृष्ट नाटक सँ मैथिली नाट्य साहित्यक श्रृंगार करबाक प्रयास भेल । रघुनन्दन दासक ‘उत्तर रामचरित’, प्रो. ईशनाथ झाक ‘मृच्छकटिक’ ओ ‘शकुन्तला’, डा. सुधाकर झा शास्त्रीक मुद्रा राक्षस पं गोविन्द झाक ‘स्वप्न-वासवदत्ता’ ओ ‘मालविकाग्निमित्र’, दामोदर झाक ‘भूतक छाया’, जीवनान्द ठाकुरक ‘अभिषेक’, प्रो. प्रबोध नारायण सिंहक ‘अन्हेर नगरी’ ओ ‘चोर’, डॉ. अणिमा सिंहक ‘पियासल धरती उताहुल नोर’, छत्रानन्द सिंह झाक ‘अन्तिम प्रश्न’ आ ‘गाछ’, परमानन्द झाक ‘पार्वती परिणय’, डॉ. इलारानी सिंहक ‘प्रेम:एक कविता’ ओ ‘सलोमा’, दीनानाथ झाक ‘आगन्तुक’, रामलोचन ठाकुरक ‘चारि पहर’ आ ‘जादूगर’, कुणालक ‘बाँकी इतिहास’ आदि अनूदित नाटक पढ़ि साहित्यिक आनन्द विशेष लेल जा सकैछ ।
मैथिली-साहित्यक अन्य विधा (कथा, उपन्यास, आदि) क कृत्तिकेँ नाट्य-रूपान्तरित करब एम्हर आबि प्रारम्भ भेल अछि, जे मंचनक दृष्टिएँ बड़ सफलता प्राप्त कयलक । ‘यात्री’क ‘नवतुरिया’ उपन्यास, श्रीमती उषा किरण खान द्वारा ‘ललित’क ‘पृथ्वी-पुत्र’ उपन्यास, अशोक द्वारा ‘धूमकेतु’क कथा ‘अगुरवान’, मनोज मनुज द्वारा ‘राजकमलक’क ‘भग्न स्तूपक एकटा अक्षत’ कुणाल द्वारा एवं विभूति आनन्दक ‘रिटायरमेंट’ कथा ‘एसगर-एसगर’ नामेँ ज्योत्सना चन्द्रम् द्वारा महत्वपूर्ण कार्य थिक ।
आकाशवाणीक आविष्कार नाटक केँ दृश्य काव्यक संग श्रव्य काव्य बनाय देलक अछि । २३ जनवरी १९४५ केँ पटना मे एवं २ फरवरी ‘७९ केँ दरभंगा मे आकाशवाणीक स्थापना सँ चौपाल भारती, गामधर ओ सिङरहार कार्यक्रम मे मैथिलीक रेडियो नाटकक प्रवेश शुरू भेल । यद्यपि एहि दिशा मे सन्तोषप्रद कार्य नहि भ’ रहल अछि आ अधिकांश रेडियो नाटक अप्रकाशित पड़ल अछि । कुमार गंगानन्द सिंह लिखित ‘जीवन-संघर्ष’ पहिल रेडियो नाटक थिक, जे पटना केन्द्र सँ प्रसारित भेल छल । ‘मंगरूपाठक’, ‘जय सोमनाथ’, ‘सीता’, ‘चाकरी’, ‘हमर स्वप्न सार्थक भेल’, ‘प्रायश्चित्त, ‘पियास’, ‘कोजगराक भरिया’, बाढ़ि बाटे’, ‘नानक पूरा’, ‘आदर्श वर’, ‘गुरु गूड़-चेला चीनी’, प्रेमक सिन्दूर’, विश्वामित्र’, ‘लोचन धाए फेधाएल हरि नहि आयल हे’, ‘साध्वी सीता’, ‘इनोरेमे भांग’, ‘बातक बतंगर’, ‘आलूक बोरिया’, ‘मामा सावधान’, ‘नसबन्दी’, ‘शंकर-पराभव’, ‘युवा संकल्प’, ‘सिकीक डाली: मलकोकाक फूल’ आदि रेडियो नाटक बहुचर्चित रहल ।
मैथिली नाट्य-साहित्यक विकास मिथिलाक अतिरिक्त नेपाल आ आसाम मे भेल । कहल जाइछ जे मैथिली नाटकक जन्म मिथिला मे भेल आ विकास नेपाल मे । नेपाल मे मैथिली नाटकक जे श्रृंखला स्थापित भेल, तकर श्रेय मल्ल वंश केँ देल जायत । मल्ल राजा लोकनि द्वारा मैथिली नाट्य साहित्यक हेतु जे सत्प्रयास कयल गेल, तकर साम्राज्य भातगाँव, काठमांडू, ललितपुर एवं बनेपा मे भेल । चारू केन्द्र मिलाय लगभग एक सय मैथिलीक नाटक लिखल गेल । परन्तु मल्ल राजवंशक पतनक बाद मैथिली नाट्य-साहित्यक समक्ष जे एक अल्प विरामक स्थिति आबि गेलैक, तकरा एमहर आबि दूर कयलनि, पं. जीवनाथ झा, डॉ. ‘धीरेन्द्र’, महेन्द्र मलंगिया, स्व. वासुदेव ठाकुर, गुणनाथ, रामभद्र, शशिकान्त ठाकुर, रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’, कृष्णकान्त ठाकुर प्रभृति ।
आसाम मे वैष्णव धर्मक प्रचार-प्रसार लेल मैथिली नात्य-साहित्यक विकास सोलहम शताब्दी मे भेल, जकरा ‘अंकीया नाट’ कहल गेल आ एकर प्रवर्त्तक शंकरदेव छलाह । अंकीया नाटककार मे माधवदेव, गोपालदेव आ रामलोचन ठाकुरक नाम अग्रगण्य अछि ।
मैथिली नाट्य-साहित्य केँ दुतगतिएँ आगाँ बढ़यबाक श्रेय मैथिली नाट्य-रंग केँ सेहो छैक । मैथिली रंगमंच केँ ठाढ़ करबा मे पटनाक चेतना समितिक मुख्य भूमिका रहल, जे सभ साल विद्यापति स्मृति पर्वक अवसर पर किछु नाटकक मंचन करैत आयल अछि । संगहि बहुतो एहन नाट्य संस्था अछि, जे अनेकानेक मौलिक, अनूदित ओ रूपान्तरित मैथिली नाटकक मंचन कयलक । एहि मे प्रमुख अछि-‘भंगिमा’ (पटना), ‘अरिपन’ (पटना), ‘चित्रगुप्त सांस्कृतिक केन्द्र’ (कलकत्ता), ‘अखिल भारतीय मिथिला संघ’ (कलकत्ता), ‘मिथिपात्रिक (कलकत्ता), ‘श्यामा नाट्य कला-परिषद’ (चनौर), ‘मिथिला नाट्य कला-परिषद्’ (सरिसव-पाही), ‘मिथिलाक्षर’ (जमशेदपुर), ‘मैथिली कला-मंच’ (बोकारो), ‘भद्रकाली नाट्य-परिषद्’ (कोइलख), ‘नाट्य-परिषद्’ (पिण्डारूछ) आदि ।
वास्तव मे मैथिली नाट्य-साहित्य अपन विकासक पथ पर अग्रसर भ’ रहल अछि । ऐतिहासिक, पौराणिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि भावभूमि पर आधारित नाटक द्वारा मैथिली-साहित्य गौरवान्वित भेल अछि । नाटककार मंच-कौशल केँ ध्यान मे राखि एकर अभिवृद्धि मे लागल रहैत छथि ।
(Posted 1st June 2011 by BAREL BARABABU)