【मैथिली पोथी】
【मैथिली शोध संचय】
【प्रकाशक-तीरभुक्ति, अखिल भारतीय मिथिला संघक उपक्रम】
मैथिली शोध संचय, तीरभुक्ति प्रकाशनक अनुपम पोथी अछि, जाहिमे मिथिलाक किछु मूर्धन्य विद्वानक आलेख सब एकहि ठाम समेकित कएल गेल अछि। एहि पोथीक सम्पादन कएने छथि मिथिलाक युवा साहित्यानुरागी सर्वश्री विनीत उत्पल आ ऋतेश पाठक। श्रीमान विनीत उत्पल जी युवा पत्रकार छथि आ विभिन्न विषय पर हिनकर आलेख पत्र-पत्रिका में छपैत रहैत अछि आ श्रीमान ऋतेश पाठक जी केंद्र सरकार में अधिकारी रहितो मिथिला-मैथिली केँ सेवा में निरंतर लागल रहैत छथि।
तीरभुक्ति प्रकाशन श्रृंखलाक इ दोसर पोथी अछि। जेनाकि हम सब जनैत छी जे मिथिला प्राचीन समय सँ न्याय, ज्ञान, दर्शन आ मिमांसा के केन्द्र रहल अछि। स्वतंत्रता प्राप्ति के पछाति आन क्षेत्र सन मिथिला क्षेत्रक विकास नहिं भेल, सर्वागीण विकास अवरुद्ध रहल, खास कऽ आर्थिक विकास, मुदा बैद्धिक प्रगति करबामे मिथिला सफल रहल अछि। प्रवासी मैथिल हर क्षेत्रमे अपन वर्चस्व स्थापित कएने छथि आ निरंतर नूतन कीर्तिमान स्थापित कऽ रहलाह अछि। मिथिला क्षेत्रक आर्थिक विकास नहि भेला सँ आ शिक्षाक गिरैत स्तर केँ परिणाम ई भेल जे एहि क्षेत्रसँ बोद्धिक आ श्रमिक वर्ग के पलायन भऽ गेल आ एखनहुँ भइये रहल अछि। मुदा ई कहैमे कोनो संकोच नहि जे मैथिल लोकनि पलायन के दंश क्षेलैत, कष्ट सहैत अपन भावी पीढ़ी के नव पंख देबा मे सफल रहलाह अछि आ जेना-जेना नव पीढ़ी सामर्थ्यवान भऽ रहल छथि, तहिना-तहिना मंद गति सँ ही सही मुदा मिथिलाक विकास सुनिश्चित भऽ रहल अछि। हमरा विश्वास अछि जे मिथिला क्षेत्र पुनः अपन गौरव केँ प्राप्त करत और एहिके लेल ई नितांत आवश्यक अछि जे हम सब मैथिल अपन गौरवमय प्राचीन सँ सीखैत आ स्मरण करैत सशक्त भविष्य केँ नींव राखी और एहि लेल निरंतर शोध कऽ मिथिलाक प्राचीन गौरव, मिथिला क्षेत्रक भौगोलिक स्थिति, आर्थिक विकासक रूपरेखा, सामाजिक स्वरूप, लोक संस्कृति, लोककला आदि केँ समेकित जानकारी मैथिलवृंद के समक्ष प्रस्तुत करी। हमरा जनैत एहेन सन पुनीत कार्य मे सफल भेल अछि इ पोथी – मैथिली शोध संचय।
एहिपोथी मे कुल 21 टा आलेख संकलित कएल गेल अछि। पहिल आलेख अछि – सर्वश्री अजीत झा आ कुमार आशीषक – “मिथिलाक औद्योगिक विकासक परिदृश्य- संभावना और चुनौती”। जाहिमे मिथिलाक इतिहास केँ सुंदर विवेचन कएल गेल अछि, संगहि मिथिलाक उद्योग और व्यापार केँ विकासक यात्रा, प्राचीन काल सँ एखनधरि केँ अति सुक्ष्मता सँ चर्चा कएल गेल अछि। मिथिलाक आर्थिक व्यवस्था प्राचीन काल सँ कृषि आधारित रहल अछि, जतय छोट-छोट उद्योग जेना कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग (वस्त्र बुनाई, लकड़ी आ धातु केँ वस्तुके निर्माण आदि) अर्थव्यवस्थाक रीढ़ रहल अछि, ई उद्योग प्रायः क्षेत्रीय स्तर पर विकसित छल। अंग्रेजी शासन के पछाति तम्बाकू, जूट, नील, कुसियार आदिक खेती पर विशेष ध्यान देल गेल। चंम्पारण, जतय महात्मा गाँधी स्वतंत्रता आंदोलनक नींव रखलैन्हि ओकर पृष्ठभूमि मे छल नीलक खेतीक विरोध (तिनकठिया-प्रथा)। विरोधक स्वर एहिबात सँ स्पष्ट अछि जे 1950 ई. मे केवल दरभंगा मे 68 टा नीलक फैक्ट्री छल। स्वतंत्रताक समय मिथिला क्षेत्र मे 15 गोट चीनीक मिल छल जाहिमे एखन मात्र दु टा चालू अछि, तहिना खाद केर कारखाना आदि बंद पड़ल अछि। एहि आलेख मे औद्योगिक विकासक संभावना आओर चुनौतीक बहुत सुंदर ढ़ंग चित्रण कयल गेल अछि। मिथिला क्षेत्र सघन जनसंख्या बला अछि। अतः एतय श्रमिक के अभाव नहिं। आलेख मे मिथिलाक क्षेत्र विशेष के चिन्हित कऽ ओतय कुन-कुन उद्योगक विकास भऽ सकैत अछि तकर विवेचन सार्थक ढंगसँ प्रस्तुत कएल गेल अछि। सबटा संभव छै, जरूरत छै तऽ इच्छाशक्ति के साथ अर्थतंत्र आ परिस्थिति तंत्र केँ सुदृढ़ कऽ अपराध मुक्त वातावरणक निर्माण केँ।
दोसर आलेख मे श्री भास्कर ज्योति जी बहुत सुंदर ढ़ंग सँ मिथिलाक धार्मिक स्थल के पर्यटन स्थल मे बदलवाक बात कऽ रहलाह अछि। जाहिसँ निःसंदेह मिथिला क्षेत्रक आर्थिक सुदृढीकरण होयत, संगहि संग एहि क्षेत्रक धरोहर आ संस्कृतिक संरक्षण होयत।
तेसर आलेखमे श्री ऋतेश पाठक जी सत्ता (सरकार) मे पर्याप्त हिस्सेदारीक बात करैत छथि। कारण कुशल राजनीतिक नेतृत्व रहला सँ क्षेत्रक चहुमुखी विकास संभव छैक। मुदा पिछला किछु दशक सँ मिथिला क्षेत्रमे एकर अभाव छैक, जकर परिणाम स्पष्ट देखा रहल अछि। हालांकि बौद्धिक आ सांस्कृतिक स्तर पर अपन सुदृढ़ परंपरा के संरक्षित करवामे मैथिलवृंद अपन-अपन स्तर पर कार्यरत छथि, आवश्यकता अछि समेकित प्रयासक। कुशल राजनीतिक नेतृत्वक अभावमे मिथिला क्षेत्रक विकास अवरूद्ध अछि।
चारिम लेखमे श्री लक्ष्मण झा “सागर” “मिथिला राज्य मागंक औचित्य” पर प्रश्नचिन्ह ठाढ़ करैत, बिहार सरकार आ भारत सरकार सँ किछु मूलभूत मांग कऽ रहलाह अछि तऽ पाँचम आलेख मे श्री प्रवीण नारायण चौधरी “मिथिला राज्य कियैक जरूरी” एहि पक्षमे अपन तर्क प्रस्तुत कऽ रहलाह अछि।
पोथीक छठम, सातम आ नवम आलेख में श्री विनीत कुमार झा “उत्पल”, श्री दिलीप कुमार झा, श्री ऋतेश पाठक एवं श्रीमती स्वाती शाकम्भरी क्रमशः उच्य अध्ययनमे मैथिली भाषाक गप्प कऽ रहलाह अछि, तऽ सातम आलेखमे मैथिली भाषाके संविधानकेँ अष्ठम अनुसूची मे शामिल भेलाक पछाति मैथिलीक दशा आ दिशा लऽ कऽ प्रस्तुत भेलाह अछि, नवम आलेखमे मैथिली पत्रकारिता आ मैथिली भाषायी पत्रिकाक कालक्रमानुसार विस्तृत विवरण प्रस्तुत कएलाह अछि।
आठम आलेखमे श्री भास्कर ज्योति आ कुमारी पल्लवी मिथिला विकास बोर्ड के प्रासंगिकता आ व्यावहारिकता पर गहन विमर्श प्रस्तुत कएलन्हि अछि। मिथिला क्षेत्रक चहुमुखी विकासक वास्ते एकटा सुसंगठित आ सुनियोजित मिथिला विकास बोर्डक स्थापना अति आवश्यक आ समीचीन अछि। दसम आलेखमे श्री शिव कुमार झा “टिल्लू” मैथिली बाल-साहित्यक उदभव आ विकास पर गहन चर्चा कएलन्हि अछि। ग्यारहम आलेखमे श्री रमाकान्त राय “रमा” कहैत छथि जे एकैसम शताब्दीक पहिल दशक मैथिली उपन्यासक दशक छल जाहिमे नव-नव विधाक उपन्यासक रचना भेल, जकर परिणाम स्वरूप उपन्यास अपन विकास यात्राक पथ पर सतत अग्रसर अछि।
बारहम आलेखमे प्रो. (डॉ) रामसेवक सिंह आधुनिक मैथिली काव्यमे नारी रचनाकारक योगदान पर चर्चा कएलन्हि अछि। मैथिली साहित्यके समृद्ध करवामे हिनकर सभक योगदान अमुल्य अछि। तेरहम आलेख श्री देवशंकर नवीन के छैन्ह। श्रीमान नवीन जी महान रचनाकार श्री राजकमल चौधरीक उपन्यास पर एकटा उत्कृष्ठ विश्लेषण प्रस्तुत कएने छथि। चौदहम आलेखमे श्री अरूणाभ सौरभ, मैथिलीक बहुविधाधर्मी लेखक श्रीमान ताराचंद वियोगी जीक लेखन, चिंतन आ आलोचनाक दृष्टिके बेजोड़ वर्णन कएने छथि। पन्द्रहम आलेखमे श्री धर्मव्रत चौधरी, वरिष्ठ साहित्यकार राजकमल चौधरीक मैथिली-कथामे स्त्री चरित्रक व्यापक विश्लेषण कएलन्हि अछि।
सोलहम आलेखमे श्री शिव कुमार झा “टिल्लू” महान दार्शनिक, सनातन धर्मक स्तंभ उदयनाचार्यक दर्शनक प्रासंगिकता आ हुनक डीह के उद्धारकेँ बात कएलाह अछि। सतरहम आलेखमे श्री नारायण झा मिथिलाक धिया सीता केँ नायिका रूपमे संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत कएने छथि। अठारहम लेखमे श्री अजित झा जीके छन्हि जाहिमे हालहिमे प्रकाशित अमीश आ देवदत्त पटनायकक पुस्तक मे सीताक छवि केँ नव दृष्टि सँ परिभाषित कयलन्हि अछि संगहि एहिमादे आजुक सीताक बात कऽ रहलाह अछि। उन्नीसम आलेख विरिष्ठ साहित्यकार श्री तारानन्द वियोगी जीक अछि जाहिमे वियोगी जी दीना-भद्री-उत्पीड़ित समुदायक स्मृतिगाथा प्रस्तुत कएलन्हि अछि।
बीसम आ इक्कीसम आलेख अछि साहित्यानुरागी, मानवशास्त्री, लोक-कला आ लोक-संस्कृति पर विपुल ज्ञान रखनिहार वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमान डॉ. कैलाश कुमार मिश्रक छन्हि। जाहिमे “मैथिली लोकगीत मे भोजनक विन्यास” आ “मधुश्रावणीक मानवशास्त्रीय विवेचना: लोक आ शास्त्रक समन्वयक पाबनि” पर सुक्ष्म सारगर्भित आ तथ्यात्मक विश्लेषण कएल गेल अछि।
“वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमान केदार कानन जीक कहब बेजाय नहि छैन जे एहिपोथीमे एक दिस मिथिलाक अनमोल संस्कृतिक व्यापकता भेटैत अछि तऽ दोसर दिस मिथिलाक औद्योगिक विकास, मिथिलाक पृथक राज्यक अवधारणा पर विचार-विमर्श। एक दिस मैथिली भाषाक संवैधानिक दर्जा भेटला उपरांत ओकर दशा आ दिशा तऽ दोसर दिस मिथिला विकास बोर्डक गतिविधि, मिथिलाक व्यापक लोक संस्कृतिक भव्य चित्र महान दार्शनिक उदयनाचार्यक अवदानक विस्तृत कथा, पाबनि-तिहारक आ खान-पानक विशिष्टताक संगहि-संग सीता आ जनकपुरक गौरवशाली आख्यान, संगहि मैथिली साहित्यक अनेक विधा पर गंभीर आलेख एक जगह संग्रहित भेटैत अछि।”
“मैथिली शोध-संचय” पोथी पठनीय आ संग्रहणीय अछि। खास कऽ हुनका लेल जे मैथिली उच्य शिक्षा प्राप्त कऽ रहलाह अछि, UPSC वा BPSC परीक्षा के तैयारी मे मैथिली भाषा जिनकर विषय छैन्ह, संगहि-संग जे व्यक्ति मिथिला-मैथिली सँ प्रेम करैत छथि आ एहि क्षेत्र सँ परिचित होमय चाहैत छथि, सभक लेल ई पोथी ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होयत।
अखिल भारतीय मिथिला संघक प्रयास सराहनीय अछि। संघक अध्यक्ष श्रीमान विजय चन्द्र झा जीक कहब छैन जे भविष्य मे अखिल भारतीय मिथिला संघ मैथिली साहित्य के समृद्ध करैत रहत।
अस्तु॥
पोथीक नाम – मैथिली शोध-संचय
संपादक – सर्वश्री विनीत उत्पल आ ऋतेश पाठक
कुल पृष्ठ – 211
मूल्य – ₹300/-
प्रकाशक – तीरभुक्ति प्रकाशन
सम्पर्क- अखिल भारतीय मिथिला संघ, दिल्ली।
©उज्ज्वल कुमार झा