कोनो भी समाजक वा समुदायक परिचय सभसँ पहिने ओकर भाषा सँ होइत अछि, यथा- तमिल, मलयाली, बंगाली, ओड़िया, पंजाबी, मराठी, गुजराती आदि-आदि । उपरोक्त समाजक परिचयक अनुमान ओकर भाषा सँ सहजहि लगाओल जा सकैछ । एतबे नहि, गौर करब तऽ पायब जे सभ भाषाक अपन लिपि सेहो अछि जे ओहि समाज/समुदाय द्वारा पोषित आओर सवंर्द्धित भए रहल अछि । एहि परिपेक्ष्य मे हमरा सभक की पहचान अछि ? एहि यक्ष प्रश्नक उत्तर ढूंढबाक क्रम मे पाओल जे हमर सभक पहचान किछु कारणवश दबि गेल अछि वा दबाओल गेल अछि । जँऽ बेसी सोझगर शब्द मे कहल जाय तऽ ई कहबा मे अतिशयोक्ति नै जे हमरा सभक मूल पहचान पर जेना कोनो दोसर पहचान आरोपित कएल गेल हो । एहि मूल पहचानक वर्चस्वक जड़ि मे कोनो तरहक अलगाववाद देखनाई न्यायोचित नहि होयत। एकरा ओहि सँ ऊपर उठि के देखय पड़त । भारतवर्षक ई अनुपम विशेषता अछि जे विभिन्न भाषा-भाषी लोकनि अपन मूल पहचान के बचबैत एहि महान देशक महानता मे श्रीवृद्धिए कए रहल छथि । एहन स्थिति मे अपन मातृलिपिक (तिरहुता/मिथिलाक्षर) अछैत दोसर लिपिक कान्हक बले कतेक दिन धरि आओर किएक घिसियौर काटी ? ई सत्यापित तथ्य अछि जे मिथिलाक्षर, किछु आओर भाषाक लिपि केर जननी अछि । एहेन जे गौरवान्वित करए वला भाषा अछि, ओकर लिपि आई विलुप्तिक कछेर पर ठाढ़ अछि । ई सत्य अंतरात्मा केँ झकझोरय वला अछि । इएह कारण अछि जे मिथिलाक्षर शिक्षा अभियानक हम अभियानी सभ बिनु परिणामक चिंता कएने अपन काज मे सतत लागल छी आओर आत्मसंतुष्टिक अनुभव करैत छी । जहाँ तक सार्थकताक बात छै तऽ हमर सभक ई सोच अछि जे समस्त मिथिलावासी केँ हृदय मे आरोपित अपन लिपिक बीज के अंकुरित करबाक चेष्टा अवश्य करबाक चाही । हर्षक बात जे जानकीक कृपा सँ हमरा सभक ई छोट-छीन प्रयास आब अपन असरि देखा रहल अछि आ मिथिलाक लगभग हर कोन सँ समाजक हर वर्गक लोक सभ एहि अभियान सँ भिन्न-भिन्न माध्यमे जुड़ि रहल छथि आओर विलुप्त होइत मिथिलाक्षर के बचेबाक भगिरथ प्रयास मे लागल छथि । एहि महान लक्ष्य केँ प्राप्त करब कोनो एकटा व्यक्ति, अभियान वा किछु संस्थाक बूताक बात नहि अछि, मुदा एहि लेल हाथ-पर-हाथ धए बैसलो तऽ नहि जा सकैछ । जावत सभ गोटे अपन हिस्साक योगदान नै देथिन्ह तावत लक्ष्य प्राप्ति कठिन अछि । एहि प्रसंग मे “अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक अष्टम अधिवेशन (दरभंगा)‘‘ मे डाॅक्टर अमरनाथ झाजी द्वारा देल गेल अध्यक्षीय भाषण मे हुनक ई कथन – “यावत् अपने लोकनि “मैथिली लिपिक” प्रचार नहि बढ़ाएब तावत् मैथिली भाषाक जड़ि सुदृढ़ नहिए होयत । एकमात्र मिथिलाक्षरक प्रचार बढ़ओने अनायास “मैथिलीक” रक्षा होइत रहत अन्यथा सतत आन मैथिलीक क्षेत्र केँ संकुचिते करवाक चेष्टा मे लागल रहत । अतएव सबहुगोटे ई प्रतिज्ञा करू जे जहां धरि हो मैथिलिए लिपिक व्यवहार घर ओ बाहर मे करब” हमरा सभक मनोबल बढ़बैत रहैत अछि ।
जहिया समस्त मिथिलाक मैथिलक संग-संग प्रवासी मैथिल सभ सेहो अपन मातृलिपि सँ अवगत भए जेता तहिआ प्रासंगिकता आओर सार्थकताक बात बेमानी साबित भए जायत । लक्ष्य बहुत पैघ अछि मुदा जानकीक असीम कृपा सँ आमजनक सहभागिता सँ सहजहि प्राप्त कएल जा सकैछ ।