पाठशालामे मैथिली
शिक्षाशास्त्री लोकनि जे शिक्षाक किछु उद्देश्य निर्धारित केने छथि ताहिमे एकटा प्रमुख अछि शिक्षार्थीक संस्कृतिक रक्षा। आ से शिक्षार्थीक मातृभाषाक शिक्षाक बिना असंभव अछि। कियेक तऽ लोकगीत, लोककथा, फकरा, कहबी, मोहाबरा, लोकगाथा आदिक रूपें संस्कृतिक प्रमुख आ विशाल वस्तु भाषाक माध्यमे संरक्षित भऽ सकैत अछि। स्थानीय इतिहास, पारंपरिक दवाइ-बीरो आदिक ज्ञान आ तकरा लिपिबद्ध करबाक हेतु सेहो भाषाक ज्ञान अनिवार्य।
मिथिलाक अपन विशिष्ट संस्कृति अछि। विश्व संस्कृतिमे एकर अपन मान छै। किन्तु मिथिलाक भाषा मैथिलीक उचित ज्ञानक बिना एहि ठामक संस्कृतिक संरक्षण नहि भऽ सकैछ।
बच्चा जतेक सहजतासँ अपन मातृभाषाक माध्यमे नव वस्तु सीखि सकैत अछि ततेक सहजतासँ आन भाषाक माध्यमे नहि। संसार भरिक समस्त देश सहित भारतक समस्त राज्य सरकार अपन शिशुकें मातृभाषाक माध्यमे शिक्षा प्रदान करैत अछि।
परंच बिहार सरकार मैथिलीभाषी नेना सभक संगे स्वाधीनताक बादेसँ अन्याय करैत आबि रहल अछि। प्राथमिक शिक्षाक माध्यम भाषाक रूपमे मैथिलीकें सम्मिलित नहि कय बिहार सरकार मैथिली भाषाक संगे तऽ अन्याय कैये रहल अछि जे अपनहि राज्यक अबोध नेना-भुटकाक बाल मस्तिष्क संग सेहो अन्याय कऽ रहल अछि। एकटा बालमनक स्वाभाविक शैक्षणिक प्रकृतिक प्रतिकूल ओकरा शिक्षाकेँ अपन मस्तिष्कमे बलजोरी ठूसि लेबा पर मजबूर कएल जा रहलैए । एक तरहे ई मानवाधिकारक हनन सेहो छै।
संसारक समस्त शिक्षाशास्त्रीक संगहि UNESCO तथा UNICEF सेहो मातृभाषाक माध्यमे शिक्षा पर बल दैत रहल अछि। भारत सरकार द्वारा गठित मुदिलियार आयोग (1952), कोठारी आयोग (1964-66), नव शिक्षानीतिक त्रिभाषा फार्मूला आदि सेहो मातृभाषाक माध्यमे शिक्षा पर जोर देने छल। मुदा बिहार सरकार लेल धन्नोधन।
ओना स्वाधीनताक किछु सालक बादहिसँ मैथिली बिहार मे माध्यमिक स्तर धरि माध्यम भाषाक रूपमे नाम लेल स्वीकृत अवश्य अछि। किन्तु ई कार्यरूपमे कहियो लागू नहि भेल। एतय धरि जे देशक सर्वोच्च न्यायालयक एहि प्रसंगक आदेश (मई 2011)क सेहो बिहार सरकार मोजर नहि केलक ।
मतलब ई जे बालमनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्री लोकनिक विचार, शिक्षाक उद्देश्य, विश्वसंस्थाक अभिमत, उच्चतम न्यायालयक आदेश, बिहार सरकारक पूर्व कालक अपनहि निर्णय आदिक आलोकमे सरकारकें प्राथमिक स्तर पर मैथिली माध्यमक रूपें अविलंब लागू करय।
एहिसँ नेना-भुटका अपन भाषा, संस्कृति ओ परंपरा, इतिहास, भूगोल आ पारंपरिक ज्ञानसँ परिचित होएत। ओकरामे आत्मगौरवक विकास हेतै। अपन सभ्यता ओ संस्कृतिक गौरवबोध हेतै।