“सफठैत”
– राजकुमार झा, सझुआर ।
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कहबी अछि जे शब्द ब्रह्म थिक । अनेकों एहेन शब्द अछि जकर प्रचलन वर्तमान समयमे समाप्त जकाँ भS चुकल अछि । पूर्व समयमे प्रचलित एहने शब्द वा नाम “सफठैत” शब्दक चर्चा करबाक प्रयास कS रहल छी । भारत कृषि प्रधान देश अछि । कृषिक क्षेत्रमे मिथिलाक स्थान सेहो विशिष्ट रहल अछि । कृषि योग्य भूमि मिथिलाक सम्पन्नताक द्योतक रहल अछि । वर्तमान कृषि-प्रणालीक विकसित व उन्नत स्वरूपक चकाचौंधमे पुरातन व्यवस्था विलीन भS चुकल अछि । पुरातन कृषि व्यवस्थाक किछु महत्वपूर्ण प्रचलित शब्द वा नामकें राखब जरूरी बुझि “सफठैत” व्यवस्थाके प्रस्तुत करबाक प्रयास कS रहल छी ।
पूर्व समय ग्रामीण क्षेत्रमे खेतीक मुख्य व सशक्त साधन हSर-बरद होइत छल । खेतक जोतनी हSर-बरदक माध्यमें होइत छलैक । अधिकांश गृहस्थ जोड़ा बरद राखैत छलाह । जिनका दलान पर जोड़ा बरद वा ओहि सँ बेशी बरद रहैत छलन्हि, गाममे ओ लोकनि सम्पन्न गृहस्थ कहाबैत छलाह । मुदा किछु एहनो गृहस्थ छलाह जिनक आर्थिक स्थिति नीक नहि छलनि एवम् जोड़ा बरद नहि रखबाक लेल विवश रहैत छलाह । तखन ओ लोकनि खेती कोना करैत छलाह ? “सफठैत” केर माध्यमें जोतनी वा अन्य खेतीबाड़ीक काज सम्पन्न करैथ । जेनाँ हम एक बरद रखने छी एवम् दोसर गृहस्थ सेहो एक्कहि टा बरद रखने छथि । ओ लोकनि बरदक आदान-प्रदान कय कृषि कार्य सम्पन्न करैथ । बरदक आदान-प्रदान करबाक जे प्रक्रिया छल ताहिके “सफठैत” कहल जाइत छल । एवम् प्रकारेण एहेन सुन्दर व्यवस्था केर माध्यमें गृहस्थ लोकनि खेतीबाड़ी सम्पन्न करैत छलाह ।
आब ई व्यवस्था प्रायः समाप्त भS चुकल अछि । वर्तमान समयमे उन्नत कृषि कार्य ट्रैक्टर केर माध्यमें कयल जाइत अछि । हSर-बरदक युग समाप्त भS चुकल अछि । गाम-घरमे आधुनिक खेतीबाड़ीक मुख्य व्यवस्था केर रूपमे पुरातन प्रणाली मृतप्राय अछि । नव पीढ़ीकें एहेन शब्दक जानकारी उपलब्ध करेबाक दायित्व सम्पूर्ण समाजक अछि । अतीतक सुखद समय व स्थिति पूर्णतः बदलि चुकल अछि । गाम-घरमे एकौटा गृहस्थक दलान पर बरद नहि छन्हि । एहि जगह पर ट्रेक्टर आबि चुकल अछि । नव पीढ़ीक जनतब लेल “सफठैत” शब्दक अर्थके स्पष्ट करैत जानकारी साझा करबाक प्रयास कयलौं अछि । आशाक संग विश्वास अछि जे अपने लोकनिके नीक लागत । जय श्री हरि ।