सुखल मन तरसल आँखि
एहि मैथिली काव्य पोथीक नवकवयित्री मुन्नी कामत हमर अपन, हमर प्यारी दुलारी परिचीत नव युवती छथिन। हिनक जन्म परसा-नवटोली गामके श्रीमती लक्ष्मी देवी आ श्री दिलीप वर्मा जीक घर 17 जुलाई 1989 केँ भेल छन्हि। निर्मली महाविद्यालय सँ धरि हिन्दी आर्नस ग्रेज्युएट छथि। सूड़ियाही निवासी श्रीमान, अरूण कामत पिता रामविलास कामत सँ हिनक वियाह भेला सन्ता पति महोदयक संग साहिबाबाद-गजियाबाद (यू•पी•) मेँ रहैत अहर्निस साहित्य सेवा करैत छथिन। हिनक पहिल प्रकाशित 2014 ई• में तकर दोसर संस्करण वर्ष 2017 मेँ 126 पृष्टक बहरायल ई। दाम 151 टाकाक एहि सुखल मन तरसल आँखि ‘काव्य’ संग्रह मेँ दू अंकक सबसँ नम्हर संख्याँ एतेक कविताक गूंथल मालारूपे मौलिक रचना धारावाहिकताक अजस्त्रस्त्रोत फरिच्छ भ’ देखाइत अछि। मुन्नी जीक दोसरो पोथी प्रतिष्ठित प्रकाशन सँ निकैल चुकल छैक आ मैथिलीक कतेको पत्र-पत्रिकामे हिनक रचना छपल सेहो अछि। मुन्नी कामत केर संदर्भ में उमेश मंडल-पुनम मंडल (चाचा-चाची) जीक प्रोत्साहन जड़ि रूपे जमल छैक, से मुन्नी जी एहि सिनेहके ‘अपन बात’ में कहने छथि। डाॅ• शिव कुमार प्रसाद पोथी समीक्षक सेहो आशीर्वचन रूपे अपन अभिमत प्रकट करैत मुन्नीक बारे में कहलाह अछि-” मुन्नी कामति (वर्मा) मात्र मिथिलांचले नहि वरन् समस्त भारतक बेटीक ‘माउथ पीस’ बनि अपन काव्यके संग्रहक रूप देवाक प्रयास केलनि अछि।” युग-युगसँ संचित आगिके व्यक्त करैमे कवयित्री कतेक वेदनासँ गुजरल हेती से शब्दमे व्यक्त करब असान नहि। हम कवयित्रीक वेदनाके नमन करै छी। हम हूँ तँ कोनो बेटियेक संतान छी। भाषाक गढ़ैन अपपट होइतो अभिवंचित बेटीक भावके समाजक ऐना रूपे सोझा-सोझी करबामे सक्षम भेलीह अछि।एहि संग्रहमे पाठक जे मिथिलाक बेटीक दुखक अनेकानेक दृश्य कवियित्रीक मनक असंतोषे टा नहि; मिथिलाक बेटीक मनोदशाक छवि दृश्यमान भेल अछि । ललनाक प्रति समाज केर पुरुखक आँखिमे नचैत चण्डालक नुकायल छवि उजागर करैत कवियित्री केँ चैनसँ जीबैक पलखैत नहि दए रहल छइ। पाँति देखू- बेटी शिर्षक कवितासँ-:
बेटी अभिशाप नै वरदान अछि’
तिलक बिहारिसँ
बेटीकेँ ने बहाबू ।
ई छी घरक लक्ष्मी
हमरा नै समान बनाबू।
नै अछि बोझ……..
दहेजक आगि शिर्षकसँ
सुनथुन यै सासु-माय
हमहूँ छी किनको बेटी
हमहूँ किनको दुलारी छी
हमहूँ 9 महिना किनको कोइखमे…..
दर्दकटीस कवितासँ
…… माइक सुन भेल आंचर
केतौ हराएल नुनुक बोल
असगर छोड़ि बुढ़ बापकेँ
बिछुरि गेल बेटा अनमोल।…
नोरायल आँखि शिर्षकसँ
….केना उजरल घर बसतै
केना एकर नोर सुखतै
और केतेक दिन
अहिना भोगतै ई भोग।..
मुन्नी कामत केर पहिल कविता सँ शुरू भ’ जाइछ समाजकेर बीच असमानताक मनोदशा जकर एक बानगी’ समरपित होइत बेटी’ शिर्षक मेँ द्रष्टव होइछ-:
जहिया एकर जन्म भेल
तहिए डिबिया मिझा गेल,
सभ कहलक कलंक एलौ
छठिहारो सँ गीत हेरा गेल।
जँ-जँ ई नम्हर भेल…..
31 बाँ क्रम पर पृष्ट सं• 53 मेँ पाठकके सुखल मन
तरसल आँखि भेटत, जाहिमे पाँति अछि:-
एगो सहारा छल
गरीबक
आगरा रोटी पर
भेल पियाउजक।
ऊहो सुआद छिनायल जाइए…
पेहमे जुन्ना आ मुँहमे अपने सँ बज्जर खसाबी सन
निशान मैथिली अभिव्यक्ति रूपे श्रीमती कामतजी
करैत निछछ गरीबी दिश ध्यान आकृष्ट केलीह।
हम कहि सकैत छी नवसिखुआ आ हिन्दी में कलम उठौनिहारि मुन्नी कामत आदरणीय कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीक पोथी पढ़ि-पढ़ि में मैथिलीक प्रति जागरूक भेलीह आ से मातृ भाषा में अपन रचनावलीक माध्यम अक्षय भंडार के भरयमे आगू अयलीह। हिनक रोचक मौलिक उद् बोधन जहन छपैत य तँ पाठक आ उत्सुक लेखकीय प्रहरी सेहो समय निकालबाक फिराकमे रहैछ आ हुनका मो• पर सेहो आशिष दैत प्रशंसा करैत रहल हन। ताहिमे एकटा हमहू छी। कोनो भाषाक सुहद साहित्यकारमे भेद नहिँ तेँ हिनक पोथी दर्जनो भाषामे अनुवाद हुअय से भविष्य में आश करैत छी। आवरण पृष्ट पर लाइव सासु माय सन फोटो मूक वार्ता करैत बहुत किछ कहैत छथिन। मैथिलाक गाम गाम में पंजीकृत पुस्तकालय एहि पोथीक मांग बढ़ाबैत तेसर संस्करण छापल लेल साकार से अपेक्षा करत सेहो विश्वास अछि।
लालदेव कामत
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक