कवि लालित्य :: विनोद कुमार

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श्री विनोद कुमार जीक उपनाम हँसौड़ा छै। महावीर चौक निर्मली (सुपौल) केर श्री सत्य नारायण महतो आ श्रीमती वीणा देवी जीक घर हिनक जनम 18-01-1969 ई० केँ भेल। एखन ओ न्यू लक्ष्मीसागर रोड नं० 7 दरिभंगा (बिहार) मेँ रहैत छथि। उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय सोतिया, जाले (दरभंगा) मे प्रधानाध्यापक छथि। हिनक शिक्षा प्रभाकर (संगीत) केर अतिरिक्त एम• ए• दू विषयसँ बी•टी•, बी•एड• धरिक योग्यता सेहो छन्हि’। ई बिहार कलम की सुगंध नामक लेखकमंच केर प्रदेश अध्यक्ष रहैत कतेको प्रतिष्ठत संगठन सँ सरोकार राखि रचनाकर्मी छथि। हिनका बेहतरीन शिक्षक लेल भारतीय मनोवैज्ञानिक संस्थान द्वारा गोल्ड मेडल केँ संग – संग अखिन धरि 603 पुरस्कार आ सम्मान प्राप्त भेलनि अछि। मैथिलीमे आधुनिक कालक पुरोधा नव गीत (ताटक छन्द) मेँ लोकप्रिय आशु कवि छथि, जिनका कवित्व धारासँ क्यो प्रांजल कविक रूपे नहिँ धकिया सकैत अछि। बिनोद कविजीक बारे मे नौआबाखर हाई स्कूल (सुपौल) सँ रिटायर हेडमास्टर सह कार्यकारी अध्यक्ष- विधापति सेवा संस्थान, दरभंगाक डॉ• बुचरु पासवान अपन अभिमतमे कहने छथि – वरेण्य साहित्यकार, कविश्रेष्ट, छन्द शास्त्रक मर्मज्ञ केर ‘व्यवहारचालिसा’ सामाजिक सामरस , समतामूलक व्यवहारिक , सामनजस, अरिजन-परिजन केँ सुमार्ग पर चलबाक लेल निरुपन भेल छैक। अपन बात कहैत स्वयं बिनोद जीक कथन भेल- आजुक मनुख अपनाके कम आ दोसराके वेशी देखैछ। गुणके आत्मसात करैक जगह परनिंदामे अपन समय नष्ट करैत अछि’ इयह कारण छी जे क्रोध, आलस्य , अहंकार आओर कुसंगतिक आभामे मानसीक रुपे अपनाके बेराम करैत य आ ताहि व्यवहारे पर प्रतिकूल असैर परैछ। ‘मानव अपन दिव्य जीवनक क्षणके सेवा सत्कर्म, भक्ति, न्याय आ मानवीय मूल्य केर रस्तासँ भटकि अपनाके एकसरे रहि जाइछ । तेँ सबसँ सरोकार राखि सबमे ह्रदय परिवर्तन करक’ उपाय प्रेमके दर्शावल जेबाक चाही ‘ हुनक हिन्दी मे किछु दोहा आ पंक्ति देखल जाय:-
कोविद उन्नीस नाम का,कोरोना का जाल।
मौत सभी में बाँटता, जैसे बनकर काल।।

सब लोगों से कीजिए, सदा मधुर व्यवहार ‘
नहीं जाने कब किस घड़ी , छोर जाय संसार ‘

लाज शर्म को पीने वाले,भला कहाँ शर्माते हैं।
व्यंग वाण हृदय तरकस में,अंधाधुन चलाते है।।
दुनियाँ का दस्तूर यही है,सांच कहे वह मारा जाय।
जिन वृक्षों में फल लदे हों,पत्थर वो ही खाते हैं।।

केवल महिला दिवस मनाकर,
न झूठा सम्मान दिखायें।
जो दहेज ले शादी करते,
ऐसी शादी में न जायें।

भ्रष्टाचारी मजे ले रहे,
हँस के चुस्की चाय से।
कहीं भरोसा उठ न जाये,
अब भारत में न्याय से।

बड़ा जमाना बदल गया है,
माँ बाप नहीं भाते हैं।
खुद को बड़ा दिखाने वाले,
कुत्ते साथ घूमाते हैं।

मैथिली में मुक्तक
१.
पीवै छै तू सिगरेट एहन हाल भ जेतौ।
कमे उमर में उजर तोहर बाल भ जेतौ।।
रंगा-रंगा क केस परेशान भ जेमा।
एक दिन ई सिगरेट तोहर काल भ जेतौ।
२.
गुटका शिखर चबा क तू नेवाब बनय छै।
नव पीढ़ी के बर्वादी के खिताब बनय छै।।
कचड़ा क मुँह में डायल कि स्टाइल मारय छै।
माय-बाप क सपूत बन खराब बनै छै।।
३.
उठेमा हाथ भारत प त गट्टा मोइर देबौ हम।
हेरौ आतंक के गर्दन नरेटी तोईर देबौ हम।।
किये सपना तों देखय छे हमर कश्मीर तों लेमै।
उठैमें आँख ज्यो एम्हर त आँखि फोड़ देबौ हम।

श्री कुमार विश्वासक तर्ज पर मुक्तक छन्दमे आ ताटक छन्द विधामे हिनक नीक रचना पाठक लेल पोथी रुपमे झट आवय ,से आश जागल हन।

Imageलालदेव कामत
स्वतंत्र लेखक और पत्रकार
7631390761

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