“मैथिली भाषा में एकटा दीर्घ कविताक पोथी”
यथास्थितिक बादक लेल नवारंभ- मधुबनी सँ 2019 मेँ बहरायल। एहि पोथीक दाम 150 टाका आ पृष्ठ संख्या 128 का छैक। मात्रे सातटा कविता केँ एहीमें रचनाकार रमेश स्थान देलनि अछि। एहि पोथीमे 15 पन्नाक शुभकामना कबि जीकेँ दैत ‘वैचारिक आवेगक प्रतिमान कविता’ शीर्षक सँ डॉक्टर कमल मोहन चुन्नु पोथिक गंभीरता मादे अपन कलम चलेने छैथ। ताहिक संक्षेपतः तथ्य पोथीक पछीला कभर पर सेहो पाठकके दृष्टिगोचर होइछ। डा० चुन्नु जीक अभिमत भेलनि” समाजक विकास निरंतर संघर्ष सँ भेलैक अछि। समाजक संघर्ष बहुरूपिय- बहुस्तरीय होइत अछ। व्यक्ति-व्यक्तिक बीच संघर्ष होइछ। व्यक्ति आ समाजिक बीच संघर्ष होइछ। साहित्य आ समाजक बीच होइत अछि। कवि आ समाजक बीच होइत अछ। आदि-आदि।अहिए संघर्ष सबक वैचारिक आवेगक क्रियात्मक रूप अछि। तँ हिनकामें ई वैचारिक आवेग वेस दृढताक संग आ वेस स्पष्टताक संग उपस्थित भेल। हिनक कविता में प्रतिरोध सेहो एकटा सामाजिक अस्त्र सन काज करैत अछि। अलग सँ कहवाक प्रयोजन नहि जे प्रतिरोध संघर्षकेँ उर्जा भेटैत छैक। हिनक कविता रचना सँ एहि मान्यता केँ प्रमाणित कयल जा सकैत अछि।” साहित्यक मैथिली कवि गोष्ठी में ई कविता पाठ करय जोकर तँ नहि रहत, कारण श्रोतामें सेहो कवि वर्गक बेसी रहैत छथि, जिनका दोसराक पैघ कविता नहि रूचैत छैन् आ बेशी समय लगा सँ माहौल सेहो उबाउपन सन भ जैइछ। रमेश जीक दीर्घ कविता कें हमरासन लोक अक्षिता सेहो कहर सँ अपनाकेँ नहि रोइक सकैत अछि। कविजी एके सुरमे कथेतर जेकाँ सवातीनसयसँवेशी सांति दैत सब कविता मे अपन मौलिक वकतव्य राखि धरि पोथीके खूब भरलनि अछि। हिनक कविता में पाठक स्वयं राग आ रस तकैत-तकैत अशोथकित भ’ जायत, एहिमे हिनक सब रचना लोक मंगल कामना सँ अभिप्रेत छैक जे आलोचना मुक अछि’ देशमे आ वाश्वमे आतंकवाद, नश्लवाद (रंगभेद), साम्यवाद, समाजवाद, मानवतावाद, लोकवाद आ दियावाद पर तँ वृहद विमर्श होइते रहैछ। सम्यक आओर ई यथास्थितिक बादक लेल” जे एहि पोथीक पहिल दीर्घकविता थीक, जाहिमे पाँति देखू-:
ध्रवतारा आ सांध्य-तारामे जत’
नहि बूझल जाइछ कोनो अन्तर
निश्चय मानू
गाम थीक ओ हमरे।
जिनगी गुदस्त क’ देलनि
जत’ पित्ती हमर
ध्रूवतारा हिया-हिया क’
बटेदारिवला धानक खो पर
दौन हँकैत-हँकैत
नहि पड़लनि पुर्री कहियो
गोनू झाक पेनकट्टा छिट्टा जकाँ…. अधवयुसु कविजीक ब्राह्मण पित्ती आ पितियाइन निठाहे परिश्रमी छैथ, समकालीन मिथिलांचल में 70% त्रुटि पूर्वक मैथिली बजनिहार मेहनतीक रहने कठिनाह जीवन सरिपहुँ छैक। राजकमल चौधरी जीक पील्ला अन्न वेत्रे चौवटिया पर मरल-पड़ल रहैक, परंच ग्रामीणसमाज तँ कतेकोबेर बिकायते रहतै, जे सोचनीय छै। दोसर कविता ‘कोसी-घाटी सभ्यतामेँ अछि-:
……थरभस लागल नावकेँ
गीतक सहारा दैत
छीतन मुखिया-
‘से मैया गे….
बड़-बड़ बिपत्तिया गे मैया
राज-कोसी में लागै छै….
कोसी नगरिया में आ….
मुदा मनाउनक
कोनो असरि नै।
कोसी माई पर।………
मैथिली भाषी पढ़ाकू पाठक केँ सद्यप्रकाशित पोथीमे घृणाक आँखि में धधरा: वाराणसी, कत’ अछि मुक्ति-पथ?; महा-विस्फोटक महा-प्रयोग; चन्दन वन में साँप आ क्षत-विक्षत अस्मिताक महाद्वीप पढ़ैतकाल खुब अछौंह खोराक भेटत। मैथिली सेवी आओर रचनाकर्त्तागण केँ दीर्घ कविताक रसास्वादन लेल ई कृति अनुपम बुझायत, घरेलू पुस्तकालय में संग्रह कयल जा सकैत अछि। रमेश जीक लघुकविता आ दीर्घ कविता कोसी संदेश में पहिलो पढ़िचुकल छी। हमरा अत:करणमे भाव आयल जे एहि कांइतिके पोथी एकेपल्ला दीर्घ कवितासँ (पौने छ: सय सँ बेसी पांति) भड़ल जाय आ से व्यंग कविताक परिभाषा परिधिमे रहबे करत।
लालदेव कामत
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक