मिथिला धरोहर : मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी अनुमंडल सँ मात्र पांच किलोमीटरक दूरी पर उत्तर पश्चिम कोण मे थुम्हानी नदी आ पवित्र सरोवरक तट पर अवस्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान रामायण कालक पूर्व सँ भक्त पर दया करयवाली, चारों पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करयवाली मानल जाइत छथि।
महामाया देवी केर संबंध मे प्रकाशित कतेको पुस्तक मे वर्णित तथ्यक अनुसार भारतक कुल ५१ शक्तिपीठ मे उच्चैठ वासिनी सतरहवां शक्तिपीठ अछि। सिंह पर सवार स्वर वनदुर्गा उच्चैठ भगवती केर अढ़ाई फीटक कलात्मक प्रतिमा जे गदा, चक्र, शंख आ पद्य के धारण केने छथि, जिनकर चरण के बामां भाग मे मौजूद मछली प्रतिमाक प्रतीक अछि, त चरणक दहिना भाग नीचा ब्रह्मा जी केर प्रतिमाक प्रतीक अछि, जाहिक शीर्ष पर अनमोल रत्न जड़ित अमूल्य मणि सँ से बनल मुकुट शोभायमान अछि।
उच्चैठ देवी स्थान केना पंहुचब
उच्चैठ देवी स्थान बेनीपट्टी सँ ४ कि०मी० पर स्थित अछि लगक रेलवे स्टेशन अछि मधुबनी। सड़क द्वारा इ चारु दिशन सँ जुड़ल छै। अगर अपन गाड़ी नै अछि त बस क द्वारा सेहो एतय जै सकैत अछि। इ सिद्धपीठ सड़क मार्ग द्वारा दरभंगा, सीतामढ़ी आ मधुबनी सँ जुड़ल छैक, अहि स्थान सँ बस और टैक्सी सँ एतय आसानी सँ पहुंचल जा सकैत अछि।
श्यामली वर्ण और विशाल नेत्र वाली शुभलोचना चाइर भूजा वाली छथि, जिनकर पूजा-अर्चना हजारों-हजार वर्ष पूब सँ एतय कैल जा रहल छनि।किंवदंति अछि जे पुरुषोत्तम राम सेहो उच्चैठ मे भगवती दुर्गा केर पूजा केने छथि। उच्चैठ भगवती केर संबंध मे कहल जाइत छनि जे राजा जनक केर यज्ञ भूमि उच्चैठ स्थान अछि आ हुनका वरदानो एतय सँ भेटल छलनी। राम, लक्ष्मण आ विश्वामित्र के दुर्गा केर दर्शनो एतय भेल छलनी।नरलीला लेल उच्चैठ वासिनी एतय सीता रूप मे विराजमान रहल छथि और पांचों पांडव के उच्चैठ भगवती के आशीर्वाद भेटलनि। संगे महा मूर्ख कालिदास सँ विद्वान कालिदास बनबाक आशीर्वाद उच्चैठ भगवती सँ भेटल अछि।
केना मूर्ख कालिदास बनला विद्वान कालिदास
प्राचीन मान्यता अछि जे अहि सँ पूब दिशा मे एकटा संस्कृत पाठशाला छल और मंदिर आ पाठशाला के बीच एकटा विशाल नदी छल। महामूर्ख कालिदास अपन विदुषी पत्नी विद्दोतमा सँ तिरस्कृत भऽ माँ भगवती केर शरण मे उच्चैठ आबि गेला और ओहि विद्यालय के आवासीय छात्र लेल खाना बनेबाक कार्य करय लगला।
एक बेरा भयंकर बाढ़ी आयल और नदी के बहाव अतेक बेसी छल जे मंदिर मे संझुक दीप जड़ेबाक लेल जाय मे सब असमर्थ छलै। कालिदास केर मूर्ख बुझी हुनका आदेश देल गेलनि जे आय सांझ ओ दीप जड़ा कऽ आबैथ और संगे मंदिर मे कुनो चिन्ह (निशानी) पाइर कऽ आबैथ। तहने कालिदास झट सँ नदी मे कूइद पड़ला और कुनो तरहे हेलैत-हैलेत मंदिर पहुंची दीप जड़ा कऽ पूजा अर्चना केलथि। आब मंदिर चिन्ह पड़बाक छलनी, कालिदास के किछु नै देखेलनी तऽ ओ जड़ैत दीपक कालिख कऽ हाथ पर लगा लेलनि और माँ भगवती के साफ मुखमंडल देख कऽ कालिख लगा देलनी। तहने माता प्रकट भेलखिन और बजला रे मूर्ख कालिदास तोरा एतेक बड़का मंदिर मे कुनो और जगह नै भेटलो और एहन बाढ़ी और घनघोर बारिश मे प्राण जोखिम मे दऽ तु दीप जड़ाबय आबि गेले।
इ मूर्खता होय या भक्ति मुदा हम तोरा एक वरदान देबय चाहय छी। कालिदास अपन आपबीती सुनेलैथ जे कोना हुनक मूर्खता के कारण हुनक पत्नी तिरस्कृत कऽ भगा देलनी। अतेक सुनी कऽ देवी वरदान देलखिन जे आय राइत तु जे भी पुस्तक स्पर्श करमें तोरा कंठस्थ भऽ जेतों।
कालिदास लौटला और सब विद्यार्थियों के किताब के स्पर्श कऽ देलनी और मूर्ख कालिदास सँ विद्वान कालिदास भऽ गेला। और आगू जा कऽ विद्वान कवि अभिज्ञान शाकुंतलम , कुमार संभव , मेघदूत आदि के रचना केलथी। अखनो भी ओ नदी, ओहि पाठशाला’क अवशेष मंदिरक निकट मौजूद अछि। मंदिर प्रांगण मे कालिदास केर जीवन सम्बंधित चित्र चित्रांकित अछि।